punmilan in Hindi Moral Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | पुनर्मिलन

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पुनर्मिलन

पुनर्मिलन

'देवेशजी, आप तो पढ़े लिखे इंसान हैं...इतनी निर्दयता से तो कोई जानवर को भी नहीं मारता...बच्चे प्यार से समझते हैं न कि मार से प्यार रूपी नकेल से शैतान से शैतान बच्चे को ठीक किया जा सकता है....।बच्चे तो फूल के समान होते है, उचित परवरिश से ही उनका उचित एवं संतुलित विकास हो पाता है । शायद आपको पता नहीं आजकल बच्चों के प्रति क्रूरता अपराध है !! 'डाक्टर नरेन्द्र ने विक्की को देखकर किंचित क्रोध से कहा ।

क्या मैं अनाड़ी और बेवकूफ हूँ जो बेवजह ही विक्की को मारता...पहले तो समझाने का ही प्रयत्न किया था, जो भी आता है उपदेश देकर चला जाता है । देवेश मन ही मन बुदबुदा उठा ।

डा0 नरेन्द्र कुछ खाने और कुछ लगाने की दवा देकर चले गये थे । विक्की की हालत देखकर देवेश का आफिस जाने का मन नहीं किया तथा उसने आफिस से छुट्टी ले ली थी...। अपराधबोध से ग्रसित उसका मन ही मन स्वयं ही तर्क विर्तक में उलझा हुआ था किंतु डाक्टर के प्रताड़ने पर उसके आत्मसम्मान को ठेस लगी थी...अहम् घायल हुआ था...सच तो यह कि उसमें सच्चाई का सामना करने की ताकत नहीं बची थी...।

उसने कहीं पढ़ा था कि सब कुछ होते हुए भी चोरी करना एक मनोरोग... क्लपटोमीनिया कहलाता है । तभी बड़े-बड़े अमीर लोग भी डिपार्टमेन्टल स्टोर से यह सोचकर मनपसंद सामान उठाते पाये गये हैं कि उन्हें कोई देख नहीं रहा है लेकिन जब स्टोर में लगे वीडियो कैमरे द्वारा उनकी चोरी पकडी जाती है तब वे उसका खंडन करते फिरते हैं...। कहीं विक्की भी तो इसी मनोरोग का शिकार नहीं हो गया है...? उसे मारने से पहले उसे किसी मनोरोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए था किंतु प्रिया की बातों से उसे अनायास ही इतना क्रोध आ गया कि वह स्वयं पर काबू में नहीं रख पाया ।

कालबेल की आवाज सुनकर दीपिका ने दरवाजा खोला तो सामने जेठ नरेश तथा जिठानी अनिला को देखकर वह अवाक् रह गई...

'अच्छा, तुम दोनों बातें करो, मैं काम करके आता हूँ...वैसे भी इस समय देवेश और विक्की तो घर में होंगे नही, नरेश ने दीप्ति के चेहरे के उतार चढाव की ओर ध्यान दिये बिना कहा ।
'दीप्ति, कौन है... ? ' आवाज सुनकर देवेश ने पूछा ।

'देवेश आज आफिस नहीं गया क्या ?' देवेश की आवाज सुनकर नरेश कमरे में गये, अनिला तथा दीप्ति ने भी उनका अनुसरण किया ।

'क्या हुआ विक्की को...? ' देवेश को विक्की के पास बैठा देखकर अनिला ने चिंतित स्वर में पूछा ।

देवेश भी भाई-भाभी को देखकर चौंक गया । उसने उठकर चरण स्पर्श तो कर लिये लेकिन एकाएक समझ में नहीं आया कि उनके प्रश्न का क्या उत्तर दे...?

'इसे तो तेज बुखार है ।' अनिला ने उसका मस्तक छूते हुए कहा तभी उसकी निगाह उसकी गर्दन पर पड़े निशान पर गई तो अनायास ही उसके मुख से निकल पड़ा,'अरे , इसके गर्दन पर यह नील का निशान कैसे पड़ गया ?'

''मुझे क्षमा कर दीजिए पापा...अब मैं कभी...।' विक्की स्पर्श पाकर अस्पष्ट स्वर में बुदबुदा उठा ।

'ओह ! देवरजी आपने विक्की पर हाथ उठाया और वह भी इतनी बुरी तरह... मैंने आज तक अपने किसी बच्चे को नहीं मारा और तुमने इस बेचारे मासूम को इतना मारा कि इसके गर्दन पर नील भी पड़ गया है ।'अनिला ने लगभग चीखते हुए कहा ।

'मैंने इन्हें कितना मना किया था कि हम अपना बच्चा स्वयं पालेंगे किसी को गोद नहीं देंगे लेकिन देख लिया न गोद लेने का नतीजा...भला कोई अपने बच्चे को इतनी बुरी तरह मार सकता है ।'रोते-रोते अनिला पुनः बोली ।

'भाभी , विक्की ने चोरी की है...इसकी इस बुरी आदत को देखकर मैं स्वयं पर काबू न रख सका और मेरा हाथ उठ गया...। 'अपराधी मुद्रा में देवेश ने कहा ।

'शर्म करो देवरजी...पहले तो बच्चे को मारकर गलती की अब चोरी का आरोप लगाकर दूसरी गलती कर रहे हो...! क्या तुम्हें मेरा बच्चा चोर नजर आता है...? अगर उसने गलती से कुछ चुरा भी लिया तो कौन सा तुम्हारा खजाना खाली हो गया...जो तुमने मार-मारकर तुमने इसकी यह हालत बना दी है ।'अनिला क्रोध में बोली ।

'भाभी , मुझे अत्यंत ही खेद है...। 'देवेश ने अपनी गलती स्वीकारते हुए कहा ।

'खेद है, कहने से तो इसकी चोटें ठीक नहीं हो जायेंगी...अब मैं तुम्हारे जैसे वहशी जानवर के पास इसे नहीं छोड़ सकती...मैं आज ही इसे लेकर जा रही हूँ । ' कहते हुए अनिला ने एकतरफा निर्णय सुना दिया । नरेश ने भी मौन स्वीकृति प्रदान कर दी ।

देवेश और दीप्ति उनके सामने रोये, गिड़गिड़ाये...बार-बार कहा कि अब वे ऐसी गलती नहीं करेंगे...उनकी छोटी सी दुनिया का वही चाँद और सूरज है उसके बिना उनका जीवन अमावस्या की काली रात्रि के सदृश रह जायेगा...वह कैसे जीवित रह पायेंगे...?

उन दोनों ने उनकी एक नहीं सुनी तथा उसी समय वे उसे लेकर चले गये । देवेश और दीप्ति की सारी खुशियाँ, उमंगें विक्की के चले जाने से तिरोहित हो गई थीं...। दीप्ति ने पूरी रात्रि रोते-रोते बिता दी तथा देवेश ने चलते हुए सीलिंग फैन को देखकर...उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इतना प्यार देने के पश्चात् भी उससे चूक कहाँ हो गई...। वह विक्की को बेहद चाहता था । उसकी प्रत्येक इच्छा को पूरा करने का प्रयास करता था । वह जो माँगता उसे लाकर देता रहा था किंतु फिर भी उसमें चोरी की आदत पता नहीं कहाँ से पड़ गई थी ।

दीप्ति ने उसे एक नहीं कई बार कहा था कि वह हमेशा गिनकर रूपये पर्स में रखती है किंतु हर बार कम हो जाते हैं...शायद उसके पूछने का उद्देश्य यह रहता था कि कहीं उसने तो रूपये नहीं निकाले । लेकिन वह बात की तह में जाये बिना यह कहकर उसे चुप करा देता था कि तुम्हें ही ध्यान नहीं रहता कि तुमने कहाँ, कब और कितना खर्च किया... उसने कभी सोचा भी नहीं था कि रूपयों के कम होने की वजह विक्की भी हो सकता है ।

इस बार तो विक्की ने हद ही कर दी , पड़ोसी दिव्येश के घर से रिमोट कंट्रोल की कार ले आया तथा पूछने पर बड़ी सफाई से झूठ बोलते हुए कहा कि यह कार प्रिया ने उसे गिफ्ट में दी है ।

प्रिया और विक्की दोनों एक ही स्कूल में एक साथ पढ़ते थे...साथ-साथ स्कूल जाते और खेलते थे । आज वह विक्की से कोई कॉपी माँगने आई थी । विक्की कॉपी लेने अपने कमरे में गया तो पीछे-पीछे वह भी चली गई...विक्की के अलमारी से कॉपी निकालते समय अलमारी में रखी कार पर प्रिया की नजर पड़ गई तथा वह कह उठी, 'अरे, यह तो मेरी कार है, यह यहाँ कैसे आई ? विक्की तुम मेरे घर आकर इससे खेल रहे थे, लगता है तुम इसे चुराकर लाये हो...। '

'यह कार तुमने इसे गिफ्ट में दी थी...। विक्की के कुछ कहने से पूर्व ही देवेश जो किसी काम से उस कमरे में आया था, प्रिया का आरोप सुनकर पूछ उठा ।

' अंकल यह कार तो मेरे अंकल अमेरिका से लाये थे । मैं इसे क्यों गिफ्ट में देती ? यह मेरी कार है । लगता है अंकल, विक्की इसे चुराकर लाया है । 'कहती हुई प्रिया कार लेकर चली गई थी ।

कार चुराकर लाना और ऊपर से झूठ बोलना देवेश को आपे से बाहर कर गया था । आवेश में उसने पास रखी छड़ी उठा ली और तब तक मारता गया जब तक कि वह थक नहीं गया...। पता नहीं कौन सा शैतान उसके ऊपर सवार हो गया था कि तब न आर्तनाद करते विक्की का स्वर उसे सुनाई दे रहा था और न ही विक्की को बचाने का प्रयास करती दीप्ति की मनुहार...उसे बस यही याद था कि प्रिया कह रही है...'अंकल, यह तो मेरी कार है, लगता है विक्की इसे चुरा लाया है ।'

होश में आने पर उसे अपनी गलती का न केवल एहसास हुआ वरन् अफसोस भी हुआ था...बार-बार मन में आ रहा था कि विक्की को इतना मारने से पूर्व उसे समझाना चाहिए था पर 'अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ' की मनःस्थिति के साथ वह विक्की को गोद में लेकर असहाय सा बिलखते हुए बोला था, ' सारी बेटा, आज मैंने तुझे बहुत मारा पता नहीं मैं इतना निर्दयी कैसे बन गया ? :

'मारकर अब क्षमा माँगने से क्या फायदा...क्या क्षमा माँगने से इस मासूम के शरीर और मन पर पड़े जख्म ठीक हो जायेंगे ? वैसे भी उसे सजा देने से पूर्व एक बार उससे भी तो सच्चाई जानने का प्रयत्न करते । ' दीप्ति ने रोते हुए कहा था ।

दीप्ति सच कह रही है...हो सकता है प्रिया गलत कह रही हो ! पर यह भी आवश्यक नहीं है कि विक्की पूछने पर सच ही बोलता । यह ठीक है कि उसने विक्की को निर्दयता से मारा...उसके हाथों से अक्षम्य अपराध हुआ था लेकिन उसका अपराध कम भी तो नहीं था...। किसी के घर से कोई चीज उठा लाना और झूठ बोलना, क्या उचित है ? क्या बच्चे को गलती के लिये सजा देना अनुचित है ? वह यह भी नहीं समझ नहीं पा रहा था कि भाई साहब भाभीजी विक्की को अपने साथ क्यों लेकर गये । विक्की आज अगर उसका अपना बेटा होता तब भी क्या वे दोनों उसे इस तरह दोषी ठहरा कर उसका बच्चा लेकर चले जाते...? क्या बच्चे की गलती पर माता-पिता को मारने का हक नहीं रहता...?
मन में अनेक प्रश्न नागफनी के काँटों की तरह चुभ-चुभकर उसे घायल कर रहे थे लेकिन उनमें से किसी का भी उत्तर उसके पास नहीं था...।

काल का चक्र कभी भी नहीं रूकता चाहे आँधी आये या तूफान...चाहे महाप्रलय के द्वारा जीवन ही क्यों न नष्ट हो जाये...। सूरज अपनी उसी गति के साथ निकलता है और मानव सूर्योदय की नवकिरण के साथ जीवन की अँधेरी रात से उबरने का प्रयत्न करने लगता है, यही देवेश के साथ हुआ...

भयावह अँधेरी रात्रि से उबरने के प्रयत्न में दूसरे दिन आफिस जाने के लिये कपड़ों पर प्रेस करने लगा तो अनायास ही उसके मुँह से निकल गया,'विक्की , अपनी शर्ट और पेंट भी ले आ, उसमें भी प्रेस कर दूँ...।'

पर विक्की कहाँ था जो उसे प्रत्युत्तर देता...उसकी आवाज दीवारों से टकराकर लौट आई । नाश्ते के लिये बैठा तो विक्की की खाली कुर्सी देखकर मन में अजीब बेचैनी होने लगी और वह परांठे का तोड़ा हुआ टुकडा वापस थाली में रखकर उठ गया ।

'आपने कुछ खाया नहीं ।'दीप्ति देवेश की मनःस्थिति को समझते हुए भी पूछ बैठी ।

'इच्छा नहीं है । '

दीप्ति क्या कहती, वह भी तो उसी आग में जल रही थी...

स्कूटर स्टार्ट करके पीछे देखा तो सिर्फ दीप्ति खड़ी थी...विक्की नहीं था जो कहता, 'पापा, ठहरिए मैं अभी आया, जूते की लेस बाँध रहा हूँ ।'

भारी मन से देवेश आफिस चले गये । शाम को आफिस से लौटने पर देवेश सीधे बिस्तर पर आकर लेट गया । दीप्ति के पूछने पर बोला,'सिर में दर्द है ।'

'दर्द क्यों न होगा...इतना सोचते क्यों हो ? यह क्यों नहीं सोच लेते कि विक्की कभी इस घर में आया ही नहीं था ।' दीप्ति सिर में बाम लगाती हुई बोली ।

'कैसे सोच लूँ दीप्ति ! उसकी गंध इस घर के कोने-कोने में बसी है । इस घर की प्रत्येक वस्तु पर उसका स्पर्श है...। वह एक हफ्ते का था तभी तो हम उसे लेकर आये थे । तुमने कहा था कि किसी अनाथ बच्चे को गोद में ले लो मैं भी शायद तैयार हो जाता किंतु तभी पता चला कि अनिला भाभी माँ बनने वाली हैं । ओम और शिखा के रूप में उनका परिवार पूर्ण था । वह नहीं चाहती कि तीसरा बच्चा संसार में आये तब हमने कहा था कि आप अपने लिये नहीं वरन् हमारे लिये इस बच्चे को जन्म दें...हमें इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह लड़का है या लड़की ।
उस समय मन में यही आया था कि जब अपना है तो पराये पर अपनी ममता क्यों उडेलें ? लेकिन अब लगता है कि वह तो स्वप्न था जिसे हम पिछले आठ वर्षो से देख रहे थे...। हम यह भूल गये थे कि विक्की हमारा बेटा नहीं है...हमें उसे सिर्फ प्यार करने का अधिकार है मारने या डाँटने का नहीं...। काश ! तुम्हारी बात मानकर किसी अनाथ बच्चे को अपना लेते तो एक अनाथ बच्चे की परवरिश कर समाज सेवा में कुछ योगदान ही देते...। उसका जीवन संवर जाता...उसे माता-पिता मिल जाते और हमें हमारा बच्चा जिस पर सिर्फ हमारा ही अधिकार होता...और यह अवांछित स्थिति न आती । ' कहकर देवेश बच्चों की तरह दीप्ति की गोदी में सिर छिपा कर रोने लगा ।

दीप्ति देवेश को क्या कहकर दिलासा देती...वह स्वयं अपनी नजरों में अपराधिनी थी...। उस जैसी स्त्री को शायद जीने का कोई अधिकार नहीं है...। वह स्वयं तो बच्चों के प्यार के लिये तरसती ही है,अपने पति को भी पिता का सम्मान और अधिकार नहीं दे पाती...। वह तो भाग्यशाली थी जिसे देवेश जैसा समझदार पति मिला जिसने कभी उसकी कमी की ओर इंगित नहीं किया वरन् उसके कहने के पूर्व ही विक्की को उसकी सूनी गोद में डालकर उसे माँ का अधिकार दिला दिया...। आभारी थी अपने जेठ जिठानी की जिन्होंने बिना किसी हिचक के अपने कोख के फूल को उसे सौंप दिया था किंतु अनायास आई आँधी ने उसकी हँसती खेलती बगिया को उजाड़कर रख दिया था...विधि के हाथों वे विवश होकर रह गये थे ।

प्रकृति का नियम है कि जेठ बैसाख की भीषण गर्मी के पश्चात् सावन आकर सूखे मुरझाये बाग को हरा भरा बना देता है...पेड़ों में नई पत्तियाँ आ जाती है...पशु पक्षी भी नाचने गाने लगते हैं, जीवन में बहार आ जाती है और कभी पतझड़ आकर हरे भरे पेड़ों, खेतों और खलिहानों से रस निचोड़ लेता है । यही हाल मानव जीवन का है...उनके जीवन में असमय ही पतझड़ आ जाने के कारण उनकी छोटी सी बगिया बेरौनक हो गई थी । सावन की रिमझिम बौछारें...बहारें उनके भाग्य में हैं या नहीं, उन्हें यह भी पता नहीं था ।

दिन बीतते गये...देवेश कुछ ही दिनों में बूढ़ा नजर आने लगा था...दुख और क्षोभ से मानो उसकी कमर ही झुक गई थी । एक दिन आफिस से आकर देवेश ने स्कूटर खड़ा किया ही था कि विक्की दौड़ता हुआ आया तथा बोला, ' पापाजी , देखिये हम आ गये । 'उसकी आँखों में उसके लिये असीम प्रेम नजर आ रहा था ।

'अरे विक्की तू...अचानक यहाँ...कैसे ? ' देवेश ने उसे गोदी में उठाकर बेताहशा चूमते हुए कहा ।

'बड़े पापा के साथ आया हूँ । 'विक्की ने मासूमियत से उत्तर दिया ।

उसकी मासूमियत देखकर देवेश की आँखों में आँसू आ गये थे...देवेश अंदर गया, उसकी नजर दीप्ति पर पड़ी उसकी आँखों में खुशी का सागर लहरा रहा था ।

विक्की को गोद से उतार कर उसने नरेश भाईसाहब के पैर छूए तथा पूछा , 'भइया, भाभी नहीं आई ।'

' देवेश, अनिला नहीं आ पाई । वास्तव में वह बेहद शर्मिदा है...। वह समझ नहीं पा रही थी कि कैसे तुम दोनों से क्षमा माँगे ? '

'भइया...भाभी ने कुछ भी गलत नहीं कहा था...वास्तव में मैं ही वहशी जानवर बन गया था ।'अपराधबोध से ग्रस्त देवेश फिर कह उठा था ।

'जो हो गया उसे एक काली अँधेरी रात समझकर भूल जाओ और संभालो अपनी अमानत जिसने हमें हमारी गलती का एहसास करा दिया । यहाँ से जाने के दूसरे दिन से ही विक्की कहने लगा कि मुझे पापा ममा के पास जाना है...मुझे अपने घर जाना है...मेरी पढ़ाई का नुकसान हो रहा है । हमने इससे कहा कि हम तुम्हारा यहीं दाखिला करवा देते हैं तुम यहाँ हमारे पास रहकर पढ़ना ओम और शिखा के साथ रहना तब यह बोला....मुझे यहाँ नहीं रहना, मुझे अपने घर जाना है वहीं रहकर पढ़ना है ।

जब हमने कहा कि तुम्हारे पापा तुम्हें बहुत मारते हैं तब यह चिढ़कर बोला...मारते हैं तो क्या हुआ प्यार भी तो करते हैं...गलती करने पर तो सभी मारते हैं । मेरे पास वहाँ खूब अच्छे-अच्छे खिलौने तथा पढ़ने के लिये अनेकों अच्छी-अच्छी किताबें पापा-ममा ने लाकर दी हैं...। कल तो इसने हद ही कर दी...सुबह से खाना-पीना छोड़कर तुम्हारे पास आने के लिये जिद करने लगा...और मुझे इसे लेकर आना पड़ा । मुझे क्षमा करना भाई...अब यह तुम्हारी अमानत है, तुम जैसे चाहे इसे रखो हम कभी दखल नहीं देगें ।' नरेश भाईसाहब ने अपनी गलती स्वीकारते हुए कहा ।

विक्की अभी तक देवेश का हाथ पकड़े उसकी ओर देख रहा था मानो कह रहा हो... मुझे क्षमा कर दो पापा...अब कभी चोरी नहीं करूँगा ।

देवेश ने एक बार पुनः उसे गोद में उठा लिया तथा बेताहशा प्यार करने लगा...इस अनोखे मिलन को देखकर दीप्ति आँचल से आँसू पोंछ रही थी, उन्हें लग रहा था कि एक बार फिर उनके घर आँगन में सावन की रिमझिम बौछार होने लगी है...पुनः उनके बाग में चिड़िया चहचहाने लगी हैं....उधर बादलों के मध्य से चाँद विहँस कर अपनी शीतलता...अपनी चाँदनी धरा पर बिखेरने लगा था ।

दीप्ति के जेहन में कहीं पढ़े शब्द गूँजने लगे...वास्तव में प्यार, स्नेह और अपनत्व दो इंसानों के बीच की कड़ी है जो समय के साथ-साथ बढती जाती है...। यहाँ यह बात भी कोई अर्थ नहीं रखती कि उनमें खून का रिश्ता है या नहीं...। यह बात और है कि सदैव कुछ मध्यस्थ आकर अपने पराये का भेदकर इंसानों के बीच की दूरी बढ़ाने का प्रयास करते रहते हैं...उनका यह प्रयास कितना सफल होता है और कितना असफल, यह आपसी संबंधों की प्रगाढता पर निर्भर करता है...।

आज देवेश, दीप्ति तथा विक्की के मध्य पनपे सच्चे, सहज, प्यार के सेतु ने ही उनका पुनर्मिलन करवाया...आखिर उसकी ममता जीत ही गई ।

सुधा आदेश