Jindagi mere ghar aana - 7 in Hindi Moral Stories by Rashmi Ravija books and stories PDF | जिंदगी मेरे घर आना - 7

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जिंदगी मेरे घर आना - 7

जिंदगी मेरे घर आना

भाग – ७

अब लगता है, यह घर का यही माहौल वह भी तो चाहती थी, लेकिन किसी से सहयोग मिले, तब तो। डैडी के लिए तो घर का मतलब था, पेपर, ब्रेकफास्ट, डिनर (लंच वे आॅफिस में लिया करते थे) और नींद... बस। और मम्मी इतना कम बोलतीं - सिर्फ काम की बातें, बस। और भैया को रौब जमाने से ही फुर्सत नहीं। महीने में दस दिन तो उसके साथ लड़ाई ही रहती... रौब तो ये शरद भी कम नहीं जमाता, पर दूसरे ही पल मना भी लेता है, अपनी गलती मान भी लेता है। जबकि भैया... हुँह! हार कर खुद जातीं बातें करने और तब ऐसे बोलता जैसे अहसान कर रहा हो।

पर अब तो आराम से ताश की बाजी जमती, बरसों बाद कैरम की धूल झाड़ी गई... भैया भी उदार हो लेता है। बरना लूडो तक कभी नहीं खेला उसके साथ

बाहर निकली, तो देखा शरद कैरम की गोटियाँ जमा रहा है। भैया... मनपसंद गानों की सीडी ढँूढ़ने में लगे थे। उसे आदेश दिया शरद ने... ‘अपने लिए, एक चेयर लेकर आओ।‘

‘पर तीन जन कैसे खेलेंगे!‘

‘क्यों तुम नहीं खेलोगी, शर्मिला टैगोर का बुलावा आ गया क्या?‘

‘जी नहीं।‘

‘ओह! समझा... जूही चावला तशरीफ ला रही हैं।‘

’’नहीं बाबा’’

अच्छा तो; पूनम ढिल्लों से मिलने जा रही हो ?

‘ओफ्फोह! कह तो दिया... न कोई आ रही है, न मैं कहीं जा रही हूं, (अब उसकी तीन सहेलियों के नाम, फिल्म एक्ट्रेसों से मिलते थे, तो उसका क्या कसूर, पर शरद को तो जैसे ये नाम रट गए थे, हर दो मिनट में दुहरा लेता)... पर हमलोग सिर्फ तीन हैं, कैसे खेलेंगे?‘

‘क्यों, तीन क्यों?? आंटी कहाँ गईं?‘

‘मम्मी ऽ ऽ खेलेंगी‘ हँसी छूट गई उसकी तो।

‘क्यों नहीं खेलेंगी, हमलोग तो यहाँ जमे हैं, अकेली क्या करेंगी वो?‘

मम्मी भी कहाँ तैयार थीं। टालने की कोशिश की, पर एक नहीं माना शरद -‘‘इसमें क्या है, यों स्ट्राइकर पे हाथ रखा और यों मारा शाॅट कम से कम इस गिलहरी से तो अच्छा ही खेलिएगा।‘

और सचमुच जब मम्मी ने दूसरे ही शाॅट में क्वीन कवर कर लिया तो नेहा ने भी घोषणा कर दी, अगले चांस मे वह और मम्मी पार्टनर रहेंगी।

***

शरद आठ दिन रहकर, मौज-मस्ती कर चला गया पर सबको जैसे एक सूत्र में पिरो गया। उसे डर था... शरद के जाने के बाद कहीं घर वापस पुराने ढर्रे पर न लौट पर नहीं, डैडी एक बार खुले तो फिर पुराने उधड़े स्वेटर सा परत दर परत खुलते ही चले गए। अब पहले से जल्दी घर भी तो लौटने लगे हैं। आदमी की व्यस्ततम जिंदगी में भी एक कोना ऐसा होता है... जिसकी पूर्ति घर-परिवार में ही हो सकती है।

भैया भी खूब दिलचस्पी लेने लगा है, घर में... पिक्चर, पिकनिक... चारों इकट्ठे जाते तो पैर नहीं पड़ते उसके जमीन पर। पहली बार भैया के हास्टल जाने पर चीजें देर तक धँुधली नजर आती रहीं।

कॉलेज खुला तो इतने दिनों से छूटी सहेलियों का ख्याल आया। बातें... बातें और बस बातें... सबों के पास इतना कुछ था कहने को... और वक्त इतना कम। अनजाने ही शायद शरद के सारे कारनामे सुना गई वह। यह भी ध्यान तब आया जब स्वस्ति ने टोका - ‘तेरी बातों से तो ऐसा लगता है, जैसे शरद आठ दिन नहीं, आठ महीने रहकर गया है।‘

‘अरे! वह सुबह से रात तक कोई न कोई गुल खिलाते रहता था... और सब तो ठीक था, पर मुझ पर ही बहुत रौब जमाता था... क्या करती... मम्मी डैडी ने भी इतना सर चढ़ा रखा था कि बस।‘

और यह शरद हर पंद्रह दिन बाद रौब जमाने पहुंच जाता... ट्रेनिंग सेंटर पास ही था। इस बार भैया के आने पर ‘वाटर फाल‘ जाने का प्रोग्राम बना। वह मन ही मन चाह रही थी कि डैडी न जाएं तो अच्छा। डैडी भी कहां तैयार थे... हमेशा की तरह कहा -‘इस संडे तो जरा मैं बीजी हूँ, तुमलोग घूम आओ।‘

पर शरद अड़ गया -‘एक दिन का समय...अपने लिए निकालिए न, अंकल,...अच्छा लगेगा, हमलोग तो मौज-मस्ती करें और आप फाइलों से जूझते रहें। नहीं अंकल... सोचेंगे कुछ नहीं... आप चल रहे हैं।‘

और डैडी ने हथियार डाल दिए -‘अच्छा अब तुमलोगों का इतना मन है तो समय निकालना ही होगा, पर फिर सेटरडे मैं बहुत देर से घर आऊंगा...अपनी आंटी से कह दो... फिर कोई शिकायत नहीं करेंगी।‘ और प्रस्ताव सर्व सम्मति से पास हो गया। डैडी को भी अब यह सब रास आने लगा था। वैसे तो उसने भी खूब जिद की थी... लेकिन सच कहे तो अंर्तमन से नहीं चाहती थी कि डैडी के साथ जाना पड़े। उतनी फ्रीडम कहाँ रहेगी? कितने भी खुल गए हों तो क्या... शरारतें करने की छूट तो नहीं मिली। हँसते-खेलते समय भी, एक सहम सी व्याप्त रहती है। कहीं सीमा का अतिक्रमण न हो जाए। और पहाड़ी पर चढ़ने को जब सीढ़ियों का सहारा लेना पड़े तो क्या मजा?

लेकिन नेहा की शंका निर्मूल सिद्ध हुई। डैडी, इतने खुशमिजाज हैं और इतने लतीफे उन्हें याद हैं, किसी को भी पता नहीं था - रास्ते भर अपने संस्मरण और लतीफे सुना-सुना कर हँसाते रहे सबको।

जब वे लोग डैडी के साथ धीरे-धीरे चलने लगे तो उन्होंने उत्फुल्लता से कहा, ‘...आह! हम बूढ़ों के साथ क्यों घिसट रहे हो तुमलोग... गो अहेड...एन्जॉय योरसेल्फ।‘