पूर्ण-विराम से पहले....!!!
22.
शिखा यथार्थ को कुछ-कुछ महसूस कर रही थी....तभी खुद को भविष्य के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रही थी| बहुत अपेक्षाएं करना समीर और शिखा की आदतों में नहीं था|
पहले समीर और शिखा सारे घर में एक-दूसरे के लिए हुआ करते थे| अब समीर की यादें सारे घर में उसके इर्द-गिर्द घूमती थी| कभी इस कमरे से तो कभी उस कमरे से शिखा को समीर की आहटें और बातें सुनाई देती थी| शिखा ने खुद को दूसरे कामों में व्यस्त रखना भी प्रारंभ कर दिया था ताकि जीवन सरल होने लगे| इतने सालों का साथ इतनी जल्दी छूटता भी कहाँ है| यह शिखा को भली-भांति पता था|
प्रखर पूरे तेरह दिन तक लगातार उसके घर आता रहा था| ड्राइंग रूम में घंटों बैठकर शिखा को चोर निगाहों से देखता रहता| सार्थक के घर में होने से वह शिखा की कोई मदद नहीं कर पाता था पर उसको हमेशा यह एहसास दिलाता रहा कि वह हमेशा साथ हैं|
प्रखर ने सार्थक से भी दोस्ती कर ली थी| सार्थक को भी प्रखर का स्वभाव बहुत पसंद आया| तभी जाते-जाते वह प्रखर से बोला ..
“अंकल मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ आप और माँ कॉलेज में साथ-साथ पढे हैं| आप तीनों की बहुत अच्छी अन्डरस्टैन्डींग थी| लगभग रोज ही आप तीनों का साथ में उठना-बैठना था| मैं अभी माँ को अपने साथ नहीं ले जा सकता और माँ भी नहीं जाना चाहती| चूँकि मां घर में अकेली रह गई है अगर आप ध्यान रख लेंगे तो मुझे अच्छा लगेगा| उनको कभी भी कोई जरूरत होगी मैं आ जाऊंगा|”..
प्रखर ने सिर हिला कर उसको सहमति दी| पर सार्थक की बात सुनकर मन ही मन सोच विचार करने लगा...
आज की पीढ़ी कितनी समझदार हो गई है| सिर्फ़ अपनी सुगमताओं और सुविधाओं का ध्यान में रखकर कितनी सहजता से सार्थक ने अपनी ज़िम्मेदारी को बेहिचक प्रखर के कंधों पर डाल दिया| लाइफ मूवस ऑन की रिदम पर चलने वाली पीढ़ी जीवन को कितने अलग तरीके से जीती है| आज पहली बार प्रखर ने व्यवहारिक रूप में देखा|
इस पीढ़ी को जब खुद के लिए निर्णय लेने होते हैं.....तब यह अपनी बातों का ताना-बाना अपने स्वार्थों और सुविधाओं के इर्द-गिर्द बहुत अच्छे से बुन लेते हैं| प्रखर ने जिस महकमे में काम किया था वहाँ हर तरह के किस्से उसने सुने थे| न जाने ऐसे कितने एडवोकेट के संपर्क में वो आज भी था| जिनके पास केसेस की भरमार थी| बदलते समय में बहुत स्वार्थी सोच होने से किसी भी व्यक्ति के विषय में भविष्यवाणी कर पाना आसान नहीं था|
शिखा ने भी सार्थक की सभी बातें प्रखर से साझा की| सार्थक की बातों को भी प्रखर ने सुना| साथ ही प्रखर को समीर की बताई हुई सार्थक से जुड़ी बहुत सारी बातें याद आई| जिसमें समीर ने शिखा को भी शामिल नहीं किया था क्यों कि वो हर बात को माँ बनकर सोचती आई थी|
सार्थक ने घर से जाने के बाद समीर या शिखा को कभी भी अपने दिल की कोई बात नहीं बताई| उसने वही किया जो उसको ठीक लगा| उसने दोनों के इस घर में आने के बाद कभी उनकी कोई मदद करने का नहीं सोचा| जबकि बेटे को पता होना चाहिए उम्र के इस पड़ाव पर घर जमाने में बच्चों की अगर मदद मिल जाए तो आसानी हो जाती है| शनिवार-इतवार उसकी छुट्टी ही रहती थी और लखनऊ से आगरा ओवर-नाइट यात्रा थी| अगर वो प्लान करता तो आ सकता था|
खैर भविष्य में सार्थक शिखा के लिए क्या करेगा या नहीं करेगा.. अभी तो यही प्रश्नचिन्ह था| उसको अपनी गृहस्थि ही संभालने में अभी बहुत युद्ध करने थे| प्रखर को सार्थक के बारे में काफी बातें पता थी| पर यह बात सार्थक को नहीं पता थी|
खैर सार्थक ने अपने मन की भावना प्रखर के सामने रखकर उसके लिए थोड़ी सुगमता कर दी थी| एक स्त्री के अकेले रह जाने के बाद किसी भी पुरुष का उसको सहयोग करना इतना आसान नहीं होता| यह प्रखर बहुत अच्छे से जानता था| जब प्रखर अनजान लोगों की मदद करता रहा था तो शिखा को छोड़ना उसके बस में नहीं था|
जैसे-जैसे समय गुजरा काका या काकी को भेजकर प्रखर शिखा की मदद करवाने लगा| सार्थक जिस रोज गया प्रखर उसको स्टेशन छोड़ने गया क्यों कि उस रोज कैब वालों ने हड़ताल कर रखी थी|
सार्थक को ट्रेन में बैठाकर प्रखर जब घर लौटा तो सीधा शिखा के घर गया| समीर के जाने के बाद शिखा से उसको मिलना था| शिखा के इतना परेशान होने पर भी प्रखर उसके साथ तसल्ली के पाँच मिनट भी नहीं गुज़ार पाया था| जैसे ही प्रखर ने डोर-बेल बजाई...शिखा ने दरवाज़ा खोला| सामने प्रखर को पाकर वो रोने लगी|
गुज़रे हुए तेरह दिनों में शिखा ने जितनी समीर की कमी को महसूस किया था उतनी ही उसको प्रखर की याद आई थी| पग-पग पर साथी बना प्रखर पहले तो आत्मीय बनकर उसके साथ सालों साल मानसिक यात्रा पर चलता रहा| अब उम्र के इस पड़ाव पर मिलने के बाद मानसिक यात्रा हो या शरीरी प्रखर हमेशा समीर और उसके साथ ही रहा|
प्रखर ने जैसे ही शिखा को देखा....उसको न जाने क्यों लगा कि एक अरसे बाद वो शिखा से मिला है| शिखा की आँखों से झाँकता अकेलापन प्रखर को अपना अकेलापन ही लगा|
“अंदर आने को नहीं कहोगी शिखा?..सार्थक को अच्छे से स्टेशन छोड़ आया हूँ|”
शिखा के सहमति से सिर हिलाने पर जैसे ही प्रखर अंदर आया शिखा उसके गले से लगकर फूट-फूट कर रोने लगी| प्रखर ने शिखा से कहा...
“कब से सोच रहा था....तुमको अपने साथ लेकर बैठूँ....तुम्हारे कुछ दुख-दर्द बाँटूँ| पर वक़्त मौका ही नहीं दे रहा था| इन तेरह दिनों में मेरे भी रात-दिन कैसे गुज़रे हैं यह मैं ही जानता हूँ| जब भी तुम्हारे लिए सोचता कि तुम अकेली घर में क्या कर रही होगी....कहीं बहुत टूट तो नहीं रही होगी....बैचेन हो जाता था| फोन तुम लेती नहीं थी| कैसे बांटता तुम्हारे दु:ख शिखा| खुद को आहत करके मुझे भी आहत करोगी|”
गले लगी हुई शिखा के बालों में प्रखर लगातार उँगलियाँ चला रहा था| समीर के बारे में सोच-सोच कर शिखा ने खुद को हलकान कर रखा था| आज सवेरे से ही शिखा तेज सिर दर्द से परेशान थी| तभी प्रखर ने कहा..
“जानती हो शिखा जब प्रीति गई थी मेरे पास प्रणय था| मेरे अकेलेपन का साथी| जो काफ़ी दिनों तक मेरे साथ रहा| पर तुम्हारा सोचकर मेरा जी घबराता था क्यों कि मुझे सार्थक के व्यवहार के बारे में सब पता था|”
प्रखर का लगातार धीर-धीरे बोलना और साथ में ही उसके सिर में अपनी उँगलियाँ चलाना शिखा को राहत दे रहा था| जैसे ही शिखा की आँखों में नींद आना शुरू हुई उसने प्रखर से कहा....
“अब मुझे नींद आ रही है प्रखर| तुम घर चले जाओ....और आराम करो| मैं ठीक हूँ....हम बात करेंगे|”
“तेरह दिन से तुमको अपने गले लगाने के लिए तरस गया था शिखा| इसलिए सीधा चला आया| खुद को संभाल लो जितनी जल्दी हो सके| तुमको परेशानी में नहीं देख सकता| काका को बोलकर आया था....वो भी बाट जोह रहे होंगे| खाना लगा हुआ होगा टेबल पर| अब चलता हूँ|”....बोलकर प्रखर अपने घर चला गया|
क्रमश..