Aadmi ka shikaar - 13 in Hindi Fiction Stories by Abha Yadav books and stories PDF | आदमी का शिकार - 13

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आदमी का शिकार - 13


शाम गहरा गई थी. बस्ती पर अंधेरे की हल्की चादर तनने लगी थी.बस्ती के लोग वापस लौट आए थे.सरदार और तन्वी छाँव के बाहर बैठे थे. योका अंदर छाँव में चटाई पर लेटा था.नूपर उसके पास बैठी थी. उसको मनकी का इंतजार था.कई बार वह उठकर बाहर देख आयी थी.लेकिन, मनकी का कहीं पता नहीं था.
"मनकी नहीं आयी."नूपर ने योका से कहा.
"जरूर आयेगी."योका पूरे विश्वास से बोला.
नूपर की आँखें दरवाजे की ओर ही लगु थीं. इसबार उसे निराश नहीं होना पड़ा. मनकी आ रही थी.
योजना के अनुसार नूपर और मनकी तन्वी के पास गई.
"मुझे दिशा मैदान जाना है."नूपर ने तन्वी से कहा.
"तन्वी ,तुम इसके साथ चली जाओ.'सरदार ने तन्वी से कहा.
"मैं साथ चली जाती हूं.'मनकी जल्दी से बोली.
"ठीक है, इसे छाँव वापस छोड़ जाना."सरदार ने हिदायत दी.
"हां,सरदार. यहां पहुंचा कर ही जाऊंगी."कहकर मनकी ,नूपर को साथ लेकर चल दी.
'"देवता भाई चला गया?"नूपर ने मनकी के साथ चलते हुए पूँछा.
"बिल्कुल अभी गया है."कहते हुए मनकी ने अपनी चाल तेज कर दी.
जल्दी ही दोनों देवता भाई की छाँव में पहुंच गई. छाँव में अंधेरा था.मनकी ने दीपक जलाया तो वह सन्न रह गई. छाँव में शिकार किया हुआ मानव धड़ न था.
"मानव धड़ कहां गया?"नूपर ने मनकी से प्रश्न किया.
"मैं यही रखा छोड़ गई थी.बापू ने मुझे देवता के पास चावल पकाने भेज दिया था."मनकी ने बताया. वह भी आश्चर्य चकित थी.इससे पहली मानव धड़ इतनी जल्दी गायब नहीं हुआ था.
"तुम चावल पका कर वापस छाँव में आयीं थीं."नूपर ने मनकी से पूँछा.
"नहीं, बापू देवता के पास पहुंच गया था. उसने कहा कि वह चावल छाँव में रखकर दिशा मैदान को जायेगा. मैं उसके साथ ही थी.वह चावल छाँव में रखकर बाहर गया मैं तुम्हारे पास आ गई."मनकी बिना सांस लिए कहती चली गई.
"इसका मतलब ,जब तुम चावल बना रही थीं, तभी मानव धड़ यहां से गायब हुआ है."नूपर सिर हिलाकर बोली.
"लेकिन, बापू, बस्ती बालों के सामने धड़ कहां ले जा सकता है."मनकी को समझ नहीं आ रहा था.
"जरूर इसी छाँव में कोई रास्ता होगा. हमें इसकी तलाशी लेनी चाहिए."नूपर बोली.
"लेकिन, छाँव में तो एक ही दरवाजा है."मनकी ने कहा.
नूपर बिना जबाव दिए छाँव की तलाशी लेने लगी.पूरी तलाशी लेने के बाद भी उसे कहीं कुछ नजर नहीं आया तो वह निराश होकर वहीं जमीन पर बैठ गई. उसका दिमाग अभी भी चल रहा था. तभी उसे छाँव का दायीं ओर का कोना कुछ उठा हुआ सा लगा.वह दौड़कर उस कोने में गई .उसफर्श की चटाई हटाते ही वह और मनकु आश्चर्य चकित रह गई. वहां नीचे जमीन मे जाने के लिए एक दरवाजा था.नूपर ने जल्दी से उस दरवाजे को खोला तो उसका मुँह खुला रह गया. नीचे जाने के लिए सीढ़ी लगी थी.नूपर जल्दी जल्दी सीढियां उतरने लगी.मनकी उसके पीछे थी.अब दोनों नीचे बड़े से कमरे में थीं.
नूपर ने कमरे में चारों ओर नजर दौड़ाई. कमरे में एक कोने में बड़े बड़े कुछ पत्थर रखे थे.शायद बैठने के लिए. और कुछ नहीं था वहां. लेकिन, दायीं ओर एक छोटा लकड़ी का दरवाजा था. जैसे ही नूपर ने उसे खोला. मनकी चीख
पड़ी-"बाप रे,सुरंग."
"जरूर कुछ दाल में काला है."सुरंग देखकर नूपर को गड़बड़ी नजर आने लगी.वह सुरंग की ओर बढी.
लेकिन, मनकी ने तुरंत उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया"नूप्पू आगे न जाओ.
"क्यूँ?"उसने आश्चर्य से पूँछा. एकबार के लिए उसे लगा कि वह देवता भाई से मिली हुई है.
"बापू वापस आ गया तो हम लोग पकड़े जायेंगे और मारे भी.कल बापू के जाने के बाद मैं इस सुरंग की तलाशी ले लूँगी. मैं हर समय तुम्हारी सहायता को तैयार हूँ.तुम ही योका से मेरा ब्याह करवा सकती हो."मनकी ने स्पष्ट किया. उसे नूपर की आँखों में शक की परछाईं नजर आ गई थी.
"ठीक है,"नूपर ने वापस लौटते हुए कहा. मनकी के ऊपर शक करने के लिए वह स्वयं पर शर्मिंदा थी.
देवता भाई की छाँव से बाहर आकर मनकी ,नूपर को सरदार की छाँव की ओर चल दी.


क्रमशः