anaitik - 9 in Hindi Fiction Stories by suraj sharma books and stories PDF | अनैतिक - ०९ पहेली नजर ने...

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अनैतिक - ०९ पहेली नजर ने...

मै छत पर सिगरेट के कश ले रहा था, उपर चढ़ने कि सीढ़ियां थोड़ी ऊंची थी जिसकी वजह से माँ पापा साल में एक-दो बार ही ऊपर आते, माँ पापा से सीढियां चड़ना नहीं होता था, छत के चारो तरफ दीवारें थी तो मुझे किसिके देखने का भी डर नहीं रहता, इसीलिए मै रोज यहीं आकर सिगरेट पिता और थोड़ी देर रुक कर नीचे चला जाता, उस दिन भी यहीं हुआ, छत पर सिगरेट और मै दोनो एक दूसरे के प्यार में खोए थे, तभी नीचे मुझे किसी के आने की आवाज़ सुनाई दी, मैंने देखा तो रीना और कशिश थे, मुझे लगा शायद वो अन्दर माँ से बात करेंगे तब तक मै जल्दी अपने हमसफ़र सिगरेट के साथ कुछ और पल बिताकर नीचे चला जाऊंगा, पर मेरी किस्मत हमेशा ही मुझ पर हँसने का बहाना ढूंढते रहती.. माँ ने उन्वोहें बताया मै ऊपर हूँ तो वो दोनो ऊपर आ गए!!
मेरा ध्यान सिगरेट के कश लेने में था, और वो पीछे से बस मुझे देख रहे थे. मैंने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा वो दोनों मुझे देख कर हँस रहे थे, रीना को पता था की मै सिगरेट पिता हूँ उसका देखना मेरे लिए कोई नया नहीं था पर मुझे कशिश की बात याद आ गयी "पहली बार था इसीलिए छोड़ दिया"

अच्छा तो इसीलिए ऊपर आते हो, रीना ने मुझे छेड़ते हुए कहा और वो दोनों हँसने लग गये .. रीना और मै गले मिले

कब आई तू? और कैसी है आंटी तबियत अब?

आज सबेरे ही आयी हूँ, माँ की हेल्थ पहले से अभी काफी ठीक है,

एक ही सिटी में ससुराल रहने का ये तो फायदा है की कभी भी अपने घर आ जा सकते है

मेरी बात सुनकर रीना ने मुझे टेडी नज़र से देखा, फिर हम बाते करने लग गये..

कशिश चुपचाप बैठी थी, रीना से बाते करते वक़्त मेरी नज़र उसे देखती तो वो बस मुझसे नज़रे हटा देती. मुझे लगा शायद रीना के सामने वो मुझसे बात नहीं करना चाहती हो, और मुझे भी ये सही भी लगा.

और सुना, कब जा रहा है तू जर्मनी? ये सवाल तो रीना ने पूछा था पर लग रहा था मानो जवब का इन्तजार कशिश कर रही हो

मैंने कहा "बस जैसे ही लॉकडाउन खुला अगले ही दिन..

आज तो ३१st हैं ना तेरी सैलरी आने वाली होगी, पार्टी तो बनती है फिर..

ज़रूर, वैसे भी हम कितने दिनों बाद मिले है यार, पर सब बंद है कही नहीं जा सकते

तो क्या हुआ घर पर ही कर लेते है, मै खाना अच्छा बनती हूँ, रीना की बात सुनकर मुझे हँसी आ गयी..

वो समझ गयी थी मुझे कॉलेज के दिन याद गये जब वो घर खुद बनाकर खाना ले कर आती! कभी सब्जी में नमक ज्यादा रहता तो कभी बिलकुल ही नमक नहीं रहता, हम दोनों मुस्कुराने लगे, उसने मुझे बताया की उसके पति को भी एक बड़ी कंपनी में जॉब लगी है पर काम बहोत रहता है, आगे वो बोल ही रही थी की उसका कॉल आ गया और वो उठकर थोडा साइड में चली गयी, अब पहली बार कशिश मेरे इतने करीब थी हम दोनों की नज़रे मिल रही थी पर ना मै कुछ बोल सका ना ही वो, अक्सर हमारे साथ ये होता है, मेसेज पर या कॉल पर तो हम खुल कर बात कर सकते है पर जब वो इन्सान हमारे सामने हो जिसे आप बहोत कुछ कहना चाहते हो आप नहीं कह सकते...

मैंने सिर्फ कहा,'सॉरी मीटिंग में था उस वक़्त इसलिए बात नही कर सका" पर ये बात मै उस से नज़र मिलाते हुए कहने कि कोशिश कर रहा था पर नहीं कह सका, इसीलिए मैंने जेब से एक सिगरेट निकली और उस से खेलते हुए निचे देख कर उस से कही " बादमे मैंने मेसेज किया था पर आप शायद बिजी थी..कशिश अब भी खामोश थी, पर मै उसकी धड़कन की घहरी आवाजों को इतने नजदीक से सुन सकता था..उसने बस मेरी ओर देखा, हलकी मुस्कान के साथ बोली

"कोई बात नहीं, अब मुझे चलना चाहिए" और वो उठ कर चली गयी..

सीडियों से उस के साथ मेरी आँखे भी एक एक सीडी निचे उतर रही थी..आखिर उसने ऊपर देखते हुए प्यारी मुस्कान से मेरी तरफ देखा और घर से बहार चली गयी..मेरी धडकने तेज़ हो गयी थी पर मै कुछ सोच पता उसके पहले पीछे से आवाज़ आयी,

"भाभी कहा गयी?"

हाँ वो कुछ काम था, शायद वो चली गयी..

रीना ने कहा-"अच्छा अब मै भी चलती हूँ बहोत देर हो गयी ना, वैसे अभी एक हफ्ता हूँ मै यहाँ, रोज आउंगी तुम्हे परेशान करने

बिलकुल, हक है तुम्हारा कहकर मै भी उसके साथ निचे उतरने लगा..

मन में आया एक बार उस से कशिश के बारे में बात करू पर फिर सोचा कही वो गलत ना समझ ले, वैसे मै रीना को जनता था वो कभी मुझे गलत नही समझेगी ये भी पता था पर बात सिर्फ मेरी नहीं कशिश की भी थी इसीलिए मै उसे मुश्किल में नहीं डालना चाहता था..