Jindagi se mulakat - 3 in Hindi Fiction Stories by Rajshree books and stories PDF | जिंदगी से मुलाकात - भाग 3

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जिंदगी से मुलाकात - भाग 3

फोन सोफे पर रखकर रिया चैन की सांस लेते हुए बैठ गई कि तभी बाहर से किसी की आवाज आयी।
रिया ने बालकनी में जाकर देखा नंदिनी आवाज दे रही थी- "आपका ब्लाउज हो चुका है,साड़ी को भी फॉल लग चुका है, आकर ले जायिए।"
नंदिनी की बात सुन रिया घर को ताला लगा के लाइट बंद करके नंदिनी के घर के तरफ चल पड़ती है।
अपार्टमेंट से नीचे उतरते ही सामने नंदिनी खड़ी दिखाई देती है।
नंदिनी रिया को देखकर हँस देती है पर रिया का हंँसी के गिफ्ट पर रिटर्न गिफ्ट देने का कोई इरादा नहीं होता,अपनी शाल को अपने आप से कस के बांधते हुए बिना कुछ बोले वो चल देती है।
नंदिनी को पहले तो उसका बर्ताव ठीक नहीं लगा लेकिन उसने उससे पूछना लाजमी भी नहीं समझा।
रिया के घर से नंदिनी के घर तक जाने के लिए तीन अपार्टमेंट को छोड़ कर जाना पड़ता था।
नंदिनी ने रास्ता काटने के लिए रिया को साथी समझ कर उससे पूछ लिया- "आज ऑफिस में ज्यादा ही काम हो गया शायद इसलिए इतनी थकावट महसूस हो रही है आपको।"
"नहीं आज हाफ डे था, वो कल के काम के बारे में सोच कर ज्यादा ही परेशान हूं।"
रिया ने स्वभाव के अनुसार एक उखड़ा उखड़ा सा जवाब दिया ।
"कल के बारे में आज सोच कर आज का यह समय खराब क्यों करना?"
नंदिनी की यह बात सुनकर रिया को उसपर गुस्सा आने लगा एक तो 12वीं पास ऊपर से हाउसवाइफ हिम्मत कैसे हुई इसकी ऐसा बोलने की ऐसे सोच कर रिया ने नंदिनी को जवाब दिया - "Preplanning Is Key Of Happiness".
अगर हम कल के बारे में आज से सोचना शुरु ना करें तो लाईफ बोझ बन जाती है।
इस बात का जवाब नंदिनी ने बड़े शांति से रिया को दिया- "लेकिन कभी-कभी जिंदगी की कुछ लम्हों का मजा बिना सोचे समझे ही ज्यादा आता है। बंजारो का सफर भले ही बोझसा लगता है लेकिन कभी-कभी बंजारेपण में भी सुकून मिल ही जाता है।"
कितना कुछ जानती थी, नंदिनी जिंदगी के बारे में।
क्या खुशियों की तराजू मे सोची समझी रसमें उन खुशियों को हल्का कर देती है? क्या मैं जीवन के साथ ज्यादा खुश थी? इस सोच मे रिया डूबी ही थी की कब नंदिनी का फ्लॅट आ गया पता ही नहीं चला।

नंदिनी ग्राउंड फ्लोर पर ही रहती थी।
नंदिनी का पति सुरेश एक इलेक्ट्रॉनिक की दुकान में इलेक्ट्रॉनिक सामान रिपेयर करने वाला कारागीर था।

नंदिनी ने रिया को कुर्सी पर बैठाया। घर कुछ ज्यादा बड़ा नहीं था लेकिन तभी भी उस घर में एक अजीब सी बात थी, ऐसा लगता था हर एक चीजों को प्यार के साथ सजाया हो।
एक कांच की अलमीरा मे नंदिनी और उसके पति सुरेश की कुछ तस्वीरें रखी थी उसकी शादी,उनके बेटे के साथ कुछ खींची हुई फोटोस और सोफे के ठीक सामने हैप्पी बर्थडे का तोरण लगाया गया था।
रिया सोचने लगी ऐसा क्या है नंदिनी मे? नाहि वो पढ़ी लिखी है, नाहि वो इतनी समझदार।
इसके बावजूद वो इतनी खुश कैसे हैं ? और मैं एक सॉफ्टवेयर कंपनी में ब्रांच मैनेजर होने के बावजूद खुश नहीं हूँ।
सच में नंदिनी सही तो नहीं कहती कि, मे खुश रहना
भूल गई हू या फिर मे खुश रहना ही नही चाहती।
जीवन सही था,नंदिनी सही है, मैं गलत हूं !? नही बिल्कुल नहीं।
मुझे जितनी तनखा मिलती है उतनी तो सुरेश के एक साल की तनखा को भी जोड़गे तो कम पड जाएंगी।

"कभी कभी खुशियों के बदले में दूसरी तरफ से पैसे डाल देने पर हमें लगता है पैसे डालने से खुशियो का पगड़ा अपने आप नीचे चला जाएगा।"

इस दुनिया में जो अमीर है वह अमीरी तक जाते-जाते इतनी गरीबी देख लेते हैं कि अमीर बनने के बाद आदत के अनुसार गरीबी का डंका बजाना नहीं छोड़ते लेकिन दूसरी तरफ एक गरीब ही दूसरे के दु:खो को अच्छे से समझ सकता है।

नंदिनी ने ब्लाउज के साथ एक थाली में पकोड़े और साथ में पुदीने की चटनी भी ले आयी और थाली रिया के सामने कर दि -"लिजीए ना वैसे भी बारिश में पकोड़े मिल जाए तो दिल और पेट दोनों खुश हो जाते हैं।"
एक बारिश मै तो ऐसे ही जीवन ने मुझे मूंग दाल के पकोड़े खिलवाये थे तब मैं कितनी खुश थी। रिया एकबार फिर से अपने ख्यालों में डूब गई की रिया के ध्यान को तोड़ते हुए नंदिनी बोली - "क्या सोच रही हैं ? लिजिए ना... कभी-कभी सेहत को दांव पर लगाना भी बहुत अच्छा होता है।"
रिया ने बड़ी की कंजूसी से सिर्फ दो पकोड़े को हाथ में लिया।
"आपकी सास ने बनाए हैं?"
"नहीं - नहीं, वो तो सुबह डब्बे बनाकर थोड़ी थक गई थी तो अभी आराम कर रही है"
"सुरेश जी का आने का टाइम हो गया है और उन्हे पकौड़े काफी पसंद है। हंसते हुए-बारिश के मौसम में।"

बड़े बुजुर्ग कह गए- "ज्यादा हंसो मत बाद मे जाकर रोना पड़ेगा।"
रिया को नंदिनी की हंँसी कांटे की तरह चूभने लगी।
रिया ने नंदिनी पर जलते हुए उससे पूछा -"घर के सब लोग काम करते हैं?"
"हाँ। सुरेश जी इलेक्ट्रॉनिक रिपेयरिंग शॉप में,
मेरी साँस ऑफिस के कर्मचारी और अकेले रहने वाले छात्रों के लिए टिफिन बनाती है। एक बार फिर से मासूमियत भरी हंसी हंसते हुए "और मेरा तो काम आपको पता ही है मैं लोगों के ब्लाउज या फिर कपड़े सी कर देती हूं।"
अचानक रिया ने अपना हाथ अपने पयजामे से कसके बांध लिया। उसके होंठ थरथराने लगे शरीर लाल पडने लगा , उसे एक अजीब सी घुटन महसूस होने लगी।
नंदिनी की हर एक बात उसे कांटे की तरह चूभने लगी।
रिया का मन नंदिनी के हर एक बात के साथ खुद के साथ ही खेल खेलने की कोशिश कर रहा था।
रिया ने नंदिनी से मन में ही द्वेश भरते हुए पूछा -
"इसके बावजूद तुम खुश कैसे हो ? कभी तुम्हें नहीं लगता कुछ बड़ा काम करना चाहिए? उब नहीं जाती तुम इस दुनिया से ?"
नंदिनी ने आंँखों से मुस्कुराते हुए रिया की तरफ देखकर पूछा- "आप नहीं थकती खुद की जिंदगी से?"
रिया को लगा प्रश्न पूछने के बाद जो जवाब मिलेगा उससे उसके जलन में थोड़ी ठंडक पड़ जाएगी पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, रिया का चेहरा एकाएक उतर गया।
नंदिनी ने शायद रिया का दर्द भाप लिया था इसलिए वो उसके दर्द पर मरहम लगाते हुए बोली -"मैं भी कभी-कभी इस दुनिया से थक जाती हूं।"
"मुझे भी कुछ करने की इच्छा होती है इसलिए तो मैंने सिलाई मशीन का काम शुरू किया है। सुरेश जी मुझे काफी प्यार करते हैं।साँसू माँ भी मुझे काफी समझती है, जब भी कभी कपड़ों का कॉन्ट्रैक्ट ज्यादा हो जाता है तो घर का सारा काम वही करती है।"
"मैं जरूर कुछ बड़ा करना चाहती हूं पर एक नई दुनिया में सिर्फ खुद के साथ जिंदगी नहीं बिताना चाहती।"
नंदिनी और रिया के बीच में शीत युद्ध छिड़ चुका था
खुशी- सत्य, कर्म - दु:ख के बीच की लड़ाई ।
नंदिनी की यह बातें रिया के सीधे दिल में जाकर चुभी वो भी तो वैसे ही जिंदगी जी रही थी।
खुद के साथ अकेले जहां उसे प्यार करने वाला,गुस्सा करने वाला, टोकने वाला कोई नहीं था।
अचानक से रिया को बारिश में भी गर्मी का एहसास होने लगा।
"ठीक है अभी मैं चलती हूं बाद में कभी कुछ कपड़े देने हो तो आ जाऊंगी ।"
नंदिनी मुस्कुराते हुए बोली- "कभी-कभी वैसे ही मिलने आजाया कीजिए मिलने के लिए मकसद नहीं, थोड़ा वक्त और खाली दिल चाहिए होता है।"
रिया एक औपचारिक मुस्कान देकर वहां से निकल गई।

बाहर बारिश अभी भी नहीं रुकी थी, रास्ते पर पड़े हुए खड्डो में जो पानी जमा था उसमें पड़ती बारिश की बूंदे इस बात का सबूत थी"
क्या वाकई में मैं खुश नहीं थी?
जीवन को छोड़कर आने का मेरा फैसला गलत था? नंदिनी के पीछे खुश होने का राज क्या है ? मेरे मन में नंदिनी के लिए एकाएक इतना गुस्सा कैसे भर गया?
इतनी चीड !! क्यों जलन हुई उससे मुझे?
मैं तो उससे औदे मे कही गुना बढ़ी थी फिर भी आज क्यों ऐसा लग रहा था कि मैं उसके सामने एक चीटी के बराबर भी नहीं हूंँ। क्यों ...? रिया के मन मे एकसाथ कही सवाल घर करने लगे।

पश्चाताप मैं मन ही मन में चिल्लाना खुद से मन ही मन में गुफ्तगू करना यह तो बड़ी आम बात है।
रिया का हमेशा से, 'मैं ही सही हूं' वाला एटीट्यूड बारिश के पानी में धुंधला सा हो रहा था।
बारिश की छोटी-छोटी टपोरी बूंदों ने भी रिया के मन को पूरी तरह से भिगो कर रख दिया था। वो बाहे फैलाके बीच सड़क में बारिश को महसूस कर रही थी।
बारिश की बूंदे अब उसके आंँखों के इर्दगिर्द जा गिरी जैसे दुनिया से रिया के बहते हुए आंँसू छुपाने का काम कर रही हो।
रिया जोर जोर से चिल्लाना चाहती थी।
लेकिन इंसान उसके मन में जो है वैसी बातें कर लेता तो दुःख यह शब्द सुख के सामने कद से थोड़ा छोटा पड़ जाता।
रिया ने अपने आंसुओं को संभाला,चिख को रोका और घर की ओर चल दी। आज रिया ने ऊपर जाने के लिए लिफ्ट का नहीं बल्कि सीढ़ियों का रास्ता पकडा।
जीवन की यादें उसके साथ बिताए गए पल, इतनी बेजान जिंदगी होने के बावजूद भी नंदिनी के चेहरे पर एक हंसी उसे अंदर से झंझोड रही थी।
जब वो सोचते सोचते खुद के फ्लैट के पास पहुंची
तो उसने पैजामे से चाबी निकाली तभी मोबाइल बजा। unknown नंबर था।
रिया नें फोन को कंधे पर दबाते हुए ताला खोला- "हॅलो।"
दूसरी तरफ से आवाज आते ही वो पत्थर की तरह जड़ हो गई। फोन जीवन का था।
"कल मेरे दोस्त की शादी है, शादी शाम तक निपट जाएगी ।
दस मिनिट है तुमहारे पास शादी खत्म होते ही मैं तुम्हें फोन करूंगा। ब्लू सनशाइन कॅफे में पहुंच जाना।"
रिया अपने जवाब मे कुछ बोले उससे पहले ही जीवन ने फोन रख दिया।
रिया के सपनों के आशियाने में काफी अंधेरा था फिर भी आकाश में बादल ने चांद को थोड़ी जगह दे दी कि वह सामने आकर पूरी धरती को रोशन कर सकें।
रिया रात के अंधेरे में ही बालकनी की ओर चलती गई।
आकाश की तरफ देखा तो बादल ने तरस खाकर
आकाश चांद और चांदनी के हाथ में सौंप दिया था।
रिया की डायरी के कुछ कागज जो सूख चुके थे वह हवा के साथ झूल रहे थे और गीले कागजों को अपनी फड़फड़ाने की आवाज से चिढा रहे थे।
"अब सिर्फ कल का इंतजार है मुझे." रिया कल के बारे मे सोचकर मुस्कुराने लगी पर एकाएक 10 मिनिट की बात सोचकर उसका चेहरा मुरझा गया.
कल मेरे पास सिर्फ दस मिनिट हैं, लेकीन सिर्फ दस मिनिट ही क्यौ?