भाग - 3
अनाथालय में सभी लड़कियाँ इसी उम्मीद में तो जीया करती थी कि एक दिन उनके सपनों का राजकुमार आएगा और उन्हें दुल्हन बनाकर ले जाएगा , फिर तो शादी के बाद उन्हें एक परिवार मिल ही जायेगा।आज भी अच्छे से याद है वो दिन जब उनकी वार्डन शर्मा मैम को उन्होंने शादी के बाद देखा था, कितनी खुश लग रही थी वो,उनका तो रूप ही निखर गया था।मैम ने ही तो बताया था शादी के बाद लड़की की जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है और उसे एक नया घर मिल जाता है।
बचपन से ही कितने सपने सजाए आराधना बड़ी हुई और उसने बी.ए. तक पढ़ाई की। अब आराधना 21 साल की हो गयी, ये समय था जब वो खुद अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी और बसाना चाहती थी एक नयी दुनिया जहाँ उसके हर ख्वाब पूरे हो ।
इस ओर उसने अपना पहला कदम उठाया और रिसाली नगर भिलाई का वो प्रतिष्ठित 'श्री राम वस्त्रालय ' जहाँ उसने छोटी सी नौकरी ढूंढी।
अनाथालय छोड़कर वह रिसाली के मैत्री नगर में ही रहने लगी।एक बड़ा सा चॉल जहाँ अन्य लड़कियाँ भी रहती थी पर उनमें से ज्यादातर छोटे गांवों से आयी कॉलेज स्टूडेंट्स थी और वे आराधना की तरह अनाथ नहीं थे।
श्री राम वस्त्रालय में काम करते आराधना को लगभग आधे महीने ही तो हुए थे, रोज की तरह उसने सुबह का नाश्ता किया और दोपहर के लिये लंच बॉक्स अपने साथ रखते हुए ऑटो का इंतजार करने लगी।एक चमचमाती हुई कार जो उसके सामने आकर रुकी, ये तो कुछ जाना पहचाना सा लग रहा था।
" अरे ये तो मनीष सर हैं
अग्रवाल सर के बेटे, पर ये यहाँ कैसे " धीरे से ऐसा कहते हुए आराधना ने अपना चेहरा घुमा लिया और जल्दी से दूर खड़ी हो गई।
" आराधना ... आराधना "
मनीष ने उसे आवाज दी।
गोरा रंग, नार्मल हेयर स्टाइल, ब्लैक जीन्स, सफेद शर्ट और स्पोर्ट शूज मनीष उसे सामने खड़ा दिखाई दिया। श्रीराम वस्त्रालय के मालिक सुरेंद्र अग्रवाल का 23 साल का बेटा मनीष जिसने एम. कॉम करने के बाद अपने पापा की सारी जिम्मेदारी खुद ही ले ली।अपने मम्मी पापा और छोटी बहन शीतल के आँखों का तारा था मनीष, बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल और संस्कारों से परिपूर्ण था।
"अरे आराधना तुम शॉप ही जा रही हो ना,
चलो मेरे साथ बैठे " मनीष ने आराधना से कहा।
" नहीं सर
मैं कैसे चल सकती हूँ ?
मैं तो रोज ऑटो से ही जाती हूँ
आप चलिये न मैं आ जाती हूँ " आराधना ने पीछे हटते हुए कहा।
" तो आज मेरे साथ चलिये
हम दोनों की मंजिल तो एक ही है "
मनीष के इतना जिद करने पर आखिरकार अराधना कार के पीछे सीट पर बैठी।इतने दिनों में उसने कभी करीब से उसे नही देखा था, वह बस सोंचती रही कितने मददगार हैं सर अभी 2 दिन पहले ही एक वर्कर को वो खुद अपनी कार से हॉस्पिटल ले गये थे।
मनीष बीच- बीच मे उससे बातचीत करने की कोशिश करता पर उसने खामोश रहना ही ठीक समझा।आधे घण्टे बाद वे दोनों पहुँच गये, मनीष ने ठीक शॉप के सामने कार रोका, आराधना असहज महसूस करने लगी। पता नहीं दूसरे वर्कर्स क्या सोचेंगे उसके बारे में, तभी सामने से मिस्टर अग्रवाल आते दिखाई दिये।
" अरे बेटा ! आ गए तुम, काम हो गया ना "
मिस्टर अग्रवाल ने मनीष से कहा।
" जी पापा काम हो गया, रास्ते में आराधना मिल गयी उसे भी साथ लेकर आया हूँ " मनीष ने कार के अंदर बैठी आराधना की ओर इशारा करते हुए अपने पापा से कहा।
" बहुत अच्छा किया बेटा, बहुत प्यारी बच्ची है पहले दिन से ही कितनी लगन से काम करती है,
आराधना बेटा ! बाहर आ जाओ अब "
मिस्टर अग्रवाल के आवाज देने पर अराधना सिर झुकाकर कार से बाहर निकली और उनका अभिवादन करते हुए सीधा अंदर चली गयी।दीवाली का त्यौहार नजदीक आ रहा रहा था इसलिए शॉप पर भीड़ भी बढ़ते जा रही थी, वैसे भी अगर कपड़ों की सारी वैरायटी की बात हो तो लोगो की जुबान पर श्री राम वस्त्रालय का नाम ही आता था, दूसरा प्रभाव मिस्टर अग्रवाल और मनीष के स्वभाव का भी था।
दोपहर के 3 बज रहे थे सेकण्ड फ्लोर पर आराधना एक कस्टमर को साड़ियाँ दिखा रही थी,
" आरधना तुम्हे मनीष सर ने नीचे बुलाया है जाओ, यहाँ काम कोई और देख लेगा "
दीपक ने आराधना से कहा।जो शॉप पर ही वेटर का काम करता था।
ऐसी क्या बात हो गयी जो सर ने मुझे खुद बुलाया है, पता नही बाकी लोग क्या सोचेंगे? आज सुबह ही कार से उतरते देख लोग मुझे घूर रहे थे। ऐसा सोंचते - सोचते आराधना नीचे गयी।
" सर कुछ काम था क्या? "
उसने धीमे अंदाज में पूछा।
" हाँ आराधना ! सुना है कि तुम डेकोरेशन का काम भी अच्छा करती हो "
" ऐसी कोई बात नही सर, बस अनाथालय में कुछ खास मौके पर डेकोरेशन करने की कोशिश करती थी "
" तो ठीक है इस बार दिवाली पर श्री राम वस्त्रालय के डेकोरेशन की जिम्मेदारी तुम्हारी, अब ना मत कहना अपनी ही शॉप है समझो "
आरधना कुछ कह पाती इससे पहले ही मनीष ने एक फाइल उसके हाथ में देते हुए कहा -
" इसमे शॉप का मैप भी है तुम उस हिसाब से सारी चीजें देख लेना और जितने मटेरियल चाहिए उनकी लिस्ट बना लेना, इस बार दिवाली पर हमारा शॉप sky light की तरह लगना चाहिए "
" मैं पूरी कोशिश करूँगी सर "
फाइल लेकर आराधना वापिस सेकण्ड फ्लोर पर पहुँची, और सोंचने लगी सर ने जब इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी है तो उन्हें निराश नही करना चाहिए, फिर वह कस्टमर्स के साथ व्यस्त हो गयी।
अब रात के 9 बज रहे थे सभी वर्कर्स जाने की तैयारी में लगे थे। आराधना भी खड़ी होकर ऑटो का इंतजार करने लगी, तभी पीछे से मनीष आया और उसने धीरे से कानों के पास आकर कहा- " मुझे तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा, अच्छे से सोच लेना "
आराधना कुछ समझ न पायी, और उसके पूछने से पहले ही मनीष वहाँ से चला गया।सामने एक ऑटो आकर रुकी, आराधना उसमे बैठी, और जाते हुए सोंचने लगी कितने अच्छे हैं मनीष सर सभी वर्कर्स का ध्यान रखते हैं, पर वो मुझसे क्या जवाब चाहते हैं ? मैंने डेकोरेशन के लिये तो हाँ बोल ही दिया है।
" लीजिए मैडम आ गया मैत्री नगर "
आराधना ऑटो से उतरने लगी।
" अरे मैडम अपना फाइल तो लेते जाइए "
ऑटो वाले ने फिर उसे आवाज दिया।
" अरे बाप रे सारा गुड़ गोबर हो जाता अगर ये फाइल छूट जाता तो,
थैंक यू भैया "
इतना कहते हुए आराधना अपने किराये के मकान पर पहुँच गयी।
दिन भर से थकी हारी और ऊपर से डेकोरेशन वाली नयी जिम्मेदारी, उसने फ्रेश होकर खाना बनाया और खाना खाने बैठी।न जाने क्यों आज का दिन उसे बहुत ज्यादा सुहावना लग रहा था, आज मनीष को उसने करीब से जाना, उनका मुस्कुराता चेहरा और उनके बात करने का अंदाज वाह क्या बात है।
क्रमशः......