aasman mai daynasaur - 11 - last part in Hindi Children Stories by राज बोहरे books and stories PDF | आसमान में डायनासौर - 11 - अतिम

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आसमान में डायनासौर - 11 - अतिम

आसमान में डायनासौर 11

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

प्रो.दयाल ने चालक की ओर अपना हाथ हिलाकर इंजिन के चलाने के तेल के बारे में पूछा तो उसने इशारे से जमीन पर लगे पेड़ और फसलों को बताया और दोनों हाथ आपस में रगड़ कर बताया कि यह मशीन वह पेड़ों और फसलों के तेल से चलता है। उस व्यक्ति ने उड़नतश्तरी कि खिड़की के बाहर दिखते खेतों और पेड़ो की और इशारा किया तो वे लोग भी बाहर देखने लगे।

प्रो.दयाल चौके क्योकिं पृथ्वी पर अभी वह खोज पूरी भी नही हो पाई थी कि वे कि वनस्पति तेलों से गाड़ी चलाई जाये जबकि यहां के लोग उसी तेल से गाड़िया चलाते है। ये लोग तो पृथ्वी से बहुत आगे है। इनकी मशीनरी भी कितनी छोटी है।

प्रो.दयाल ने इशारे से उस चालक से पूछा कि वे कहां जा रहे है तो उसने इशारे से बताया कि आराम करने। प्रो.दयाल संतुष्ट हो गये।

तभी उड़नतश्तरी रूक गयी। दरवाजा बना और वे लोग नीचे उतरे।

सामने एक चमचमाता मकान खड़ा था। ऐसा लगता था मानो प्लास्टिक से बनाया गया हो। प्रो.दयाल उतरकर उस मकान की और बढ़े उन्हे पास पहुंचकर ज्ञात हुआ कि यह मकान तो सचमुच ही प्लास्टिक का बना है जो इच्छानुसार टुकड़ो में अलग अलग करके कही भी ले जाया सकता है। उन्हे फिर विस्मय हुआ कि पृथ्वी पर जिस क्षेत्र में अभी खोज ही शुरू हुई है वहां ये लोग बहुत आगे है।

मकान में भीतर पहुंचकर वे तीनो सामने बिछे पलंग पर लेट गये आंख मूंदकर एक गहरी नींद ली।

उस ग्रह के सूरज की चाल कुछ सुस्त सी लगती थीे। लगभग चार घंटे की नींद के बाद भी जब वे लोग जगे तो ज्यो का त्यांे उजाला दिख रहा था यानि कि जागने पर भी उन्हे बाहर दोपहर का समय मिला।

पास ही बाथरूम था उन्होंने ऑक्सीजन की नली को नाक से हटाकर परीक्षण किया तो उन्हें ज्ञात हुआ कि अब ऑक्सीजन फैली हुई है, इसलिए अपनी पीठ के ऑक्सीजन सिलेेण्डर से सांस नही लेना था। अजय ने चैक किया तो पाया कि यही हाल स्पेस सूट का है यहां ऐसा वातावरण है कि स्पेश सूट की जरूरत नही है। वातावरण में पृथ्वी जैसा ही हल्कापन था अतः स्पेस सूट भी उतारकर उन तीनो ने स्नान किया और फ्रेश हो गये। वे आपस में कोई बात करना ही चाह रहे थे कि तभी एक साथ दस बारह आदमी उनके कमरे में घुस आये सबके चेहरो पर हंसी विराजमान थी। वे सब नीले रंग के चोेगे पहने हुुये थे। सबके सिर एकदम गंजे थे। एक आदमी के हाथ में हेलमेट जैसी कोई वस्तु थी।

उसने आगे बढ़कर प्रो.दयाल को कुर्सी पर बैठने का इशारा किया तो प्रो.दयाल एक कुर्सी पर जा बैठे।

उस व्यक्ति ने प्रो.दयाल के सिर में वह हेलमेट लगा दिया और दूर हट गया।

एकाएक प्रो.दयाल को लगा कि अब वे उन लोगों कि भाषा समझ सकते है। यह कनटोप का चमत्कार था।

उनमे से एक व्यक्ति ने पूछा िक वे कहां से आये है तो प्रो.दयाल ने जवबा दिया िक वे एक दूसरे सूर्य के ग्रहों मे से एक ग्रह पृथ्वी पर से आये है।

इसके बाद प्रो.दयाल ने उस कनटोप के बारे मे पूछा तो उस व्यक्ति ने बताया कि यह एसी मशीन है जो व्यक्ति के विचारो को इस ग्रह की भाषा में बदल देती है। बोलने की ज़रूरत नही पड़ती ऐसे ही इस ग्रह की भाषा को वह कनटोप विचारो के रूप में बदलने की शक्ति रखता था।

फिर तो प्रो.दयाल ने अपनी पृथ्वी के बारे में ढ़ेर सारी बातें बताई और उन लोगो से उनके ग्रह के बारे में कितनी ही नई बाते जानी।

उस ग्रह के लोगो पर बुढ़ापे का असर नही होता था क्योंकि वे लोग एसी गोलियां खाते थे जिससे उनके शरीर मे हारमोन्स की मात्रा बराबर बनी रहती थी। फलतः उनके बदन के सभी उतक ठीक ढ़ग से से काम करते रहते थे।

उस ग्रह के सभी कारखाने प्रदुषण से मुक्त है और वे सूर्य की रोशनी से चलते है। न धुंआ न शोर। एक अनुठी शांति वहां रहती थी।

उनके पास ऐसे यान थे कि पलक झपकते ही करोड़ो मील दूर जा सकते थे। लेकिन उस ग्रह पर हथियारों के नाम पर एक सुई भी नही थी। वहां की जनसंख्या केवल दस लाख है। इसका कारण बताते हुये उस व्यक्ति जिसने अपना नाम नही जाति बतायी कि पहले इस ग्रह के पास भी पृथ्वी जैसी व्यवस्था थी लेकिन एक बार जाने कैसा प्रदुषण फैला कि वहां के सभी निवासी गंजे हो गये इससे घबराकर उन्होंने प्रदुषण मुक्त होने के तरीके अपना लिये इसी प्रकार एक बार एक बम के फट जसपे पर एक हजार लोगो की मौत हो जाने से उन्होंने अपने सारे हथियार उस ग्रह से दूर अंतरिक्ष में फिकवा दिये। तब से यह ग्रह एकदम साफ सुथरा है और पृथ्वी से पांच हजार साल आगे के वैज्ञानिक युवा में हैं।

प्रो.दयाल सोचने लगे कि पृथ्वी वासी तो ऐसी कितनी ही बड़ी दुर्घटनाओं के बाद भी नहीं चैत रहे है। जाने वहां क्या होगा।

तब प्रो.दयाल ने उस ग्रह का भ्रमण करने का विचार बताया तो वे सब लोग खुशी-खुशी तैयार हो गये। वे सब विदा हुये दयाल ने अपनी बातचीत दोनो चेलो को सुनाई ।

एक उड़नतश्तरी मे उन्होंने ग्रह को देखना शुरू कर दिया।

बीच में रात हुई तो एक मकान में रूककर आराम किया गया।

प्रातः फिर भ्रमण आरंभ हुआ और ग्रह के नगर गांव तथा कारखाने आदि के साथ बाग बगीचे नालो आदि को देखते उन लोगो को पृथ्वी की बहुत याद आने लगी।

उन्होंने अपने मेजबान लोगो से अपनी इच्छा व्यक्त की तो उन्होंने प्रो.दयाल के सामने एक नक्शा फैला दिया। जिसमें समूचे अंतरिक्ष का चित्र बना था।

सैकड़ो की संख्या में सूर्य और करोड़ो की संख्या में ग्रह उपग्रह दिखाते हुये उन्होंने प्रो.दयान से अपनी पृथ्वी पहचानने को कहा।

प्रो.दयाल ने काफी देर देखने के बाद सूर्य के साथ अन्य ग्रहो की दूरी की स्थिति पहचानते हुये एक सौर मंडल की और इशारा किया तो उन लोगो मे से एक व्यक्ति उठा और बाहर चला गया। अन्य लोगो ने बताया कि वह यह देखने गया है कि प्रो.दयाल का पहचाना ग्रह ही वास्तव में पृथ्वी है या नही ।

कुछ देर बाद लौटकर उसने बताया कि प्रो.दयाल ने सही पहचाना है वह पृथ्वी ही है। उसने पृथ्वी तक पहुंचने का एक मार्गदर्शक नक्शा भी प्रो.दयाल को दिखाया।

प्रो.दयाल ने फ्रांस की मेडम ग्रजमैन का जिक्र करते हुये उनमे से किसी एक से पृथ्वी पर चलने का आग्रह किया तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया क्योंकि पृथ्वी का प्रदूषण युक्त वातावरण उन्हे रास नही आयेगा। उन सबसे मिलकर और उड़नतश्तरी को एक नमूना अपने साथ लेकर प्रो.दयाल ने अपने यान गगन को स्टार्ट किया।

एक हल्की सी भरभराहट के साथ यान आसमान मे ऊँचा उठा और पृथ्वी की और भाग चला।

कई दिन के सफर के बाद उन लोगो ने अपनी आकाशा गंगा देखी,सूर्य देखा,अन्य उपग्रह देखे। और अपनी प्यारी पृथ्वी को पहचान कर पुलकित हो उठे।

अंततः एक दिन वे अपने साथ जानकारियों का एक बड़ा जखीरा लेकर दूसरे सूरज की दुनिया के किस्से अपने कैमरे और अपने कम्प्युटर मे भरकर भारत की पवित्र भूमि पर उतरे।

सारे देश ने उन्हे सिर पर उठा लिया। विश्व के सिरमौर वैज्ञानिक उनके इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगे।

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