meri chai in Hindi Short Stories by Gal Divya books and stories PDF | मेरी चाय......

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मेरी चाय......


मेरी चाय.......


वो बारिश के बाद पकोड़ो के साथ पी हुुुई चाय...
वो शर्दी की सुबह कांपते हाथों से पी हुुुई चाय...
वो दोस्तों के साथ दुनिया की फ़िक्र करते पी हुुुई चाय...
वो समवन स्पेसियल के साथ प्यार बांटते पी हुुुई चाय...
वो रात को नींद ना आने पर उल्लुकी तरह जागते पी हुई चाय...
वो अपने दोस्त के ब्रेकअप का दर्द बांटते पी हुई चाय...

ऐसे तो न जाने चाय के साथ तो कितने रिश्ते कितने किस्से जुडे हुए होते है। ये चाय अपनी जींदगी में एक अलग ही जगह बना लेती हैं। आेर मेरी लाइफ में तो इस चाय का एक अलग ही रिश्ता है।
मेरा और मेरी चाय का रिश्ता हि कुछ अलग है, ये मेरी हर खुशी में मेरे साथ है तो हर गम भी हम साथ ही बाटते है। मूड अच्छा तो चाय, मूड खराब तो चाय अरे अगर अकेली हूं तो भी चाय... गहरी नींद के बाद सुकून वाली सुबह हो या परेशानी से जागते काटी पूरी रात हो चाय हमेशा साथ होती हैं।
मेरे दोस्त तो मुझे चाय दिवानी हि बुलाते हैं। सच्ची बताऊं मुझे ये चाय इतनी क्यू पसंद है????
क्यू की चाय उसे भी बहुत पसंद थी....
माय बेस्ट फ्रेंड, माय अोल प्रॉब्लम सोल्यूसन, ओल टाइम अवेलेबल फॉर मी, वन अंड ओनली माय डफ्फर.... नहीं नहीं डफ्फर तो सिर्फ मेरे लिए आपके लिए तो राहुल मिश्रा, नाम तो सुना ही होगा....
हा राहुल, मेरी लाइफ में चाय की एंट्री इसी के कारण हुई थी, उसे पहली बार एक चाय की टपरी पर हि मुलाकात हुई थी, तब चाय मुझे कुछ ज्यादा पसंद नहीं थी, लेकिन दोस्तों के साथ चली गई थी, डफ्फर वहीं मिला था। वैसे तो मैं उसे २ साल से जानती थी, अरे हम एक ही कॉलेज में तो थे, लेकिन वो रिच आेर हाय क्लास टाइप आेर में वही भारत की कंगाल जनता में से एक। इसी लिए कभी बात नहीं हुई थी, लेकिन हा उसका चाय के लिए प्यार पूरी कॉलेज में फेमस था।
उस दिन गलती से उसके हाथ से चाय मेरे कपड़ों पर गीर गई थी, जब की गलती मेरी हि थी, में ही उससे का के तकरा गई थी। पता तो है में हूं हि एसी, थोड़ी इंपर्फेक्ट सी , उस दिन सॉरी से शुरू हुआ ये रिश्ता बहुत आगे तक चला।
फिर तो मेरा आेर उसका रिश्ता सबसे अलग सबसे ख़ास बन गया। वो हर वक़्त मेरे साथ आेर में उसके साथ। पूरी कॉलेज में हमारी जोड़ी को बेस्ट फ्रेंड का टैग मिल गया था। अब तो हम साथ ही होते थे, उसकी हर मुसीबत का सहारा में थी और मेरी हर फरमाई को वो पूरा करता था। हम एक दूसरे के सिर्फ दोस्त नहीं एक दूसरे की जान थे।
लेकिन कहते है ना कि अच्छे रिश्ते लंबे नहीं चलते बस हमारा ये रिश्ता भी लंबा नहीं चला। उसके परिवार को मेरा कंगालीपन खटका आेर में उसकी आेर उसके परिवार के बीच नहीं आना चाहती थी। तो उसे बोल दिया अलविदा......
तब हम जब आखरी बार मिले थे तो वो मुझे वहीं चाय की टपरी पर ले गया जहां हम पहेली बार मिले थे और बोला क्या आखरी चाय पिएगी मेरे साथ???
तब बस उसने इतना मांगा था कि जब भी मेरी याद आए तो कुछ कर या ना कर बस चाय जरूर पी लेना...
बस तब से ये चाय मेरी लाइफ में यू हि अपनी जगह बरकरार बनाए हुए है। वो डफ्फर मेरा था और ये चाय उसकी लेकिन वो छूट गया... बस उसकी ये चाय रह गई, तो अब ये मेरा डफ्फर आेर ये मेरी चाय......