"विभु तुमने स्कूल बैग लगा लिया? तुम्हें और तान्या को आज मैं ऑफिस जाते पर स्कूल छोड़ दूंगी।"
टीवी कैबिनेट से पर्स उठाती गरिमा ने बेटे विभु को आवाज देते हुए कार की चाबी उठाई।
"जी आंटी जी।" कमरे से आती विभु हल्की आवाज ने गरिमा को एक बार फिर बेचैन कर दिया।
"आंटी जी?" उसकी नन्ही बेटी तान्या ने आश्चर्य से विभु की तरफ देखते हुए हवा में हाथ उठा दिए।
गरिमा ने चिल्लाते हुए कहा," ऐसा कब तक चलेगा विभु? अब बस करो।"
बदले मे विभु ने कुछ उत्तर नहीं दिया बस उसे देख कर अपनी कंजी आंखें झपकाईं और सिर झुका कर बैग लगाता रहा।
उन कंजी आंखों का उत्तर तो गरिमा के पास कभी से ही नहीं था।
विभु से नजरें चुराती वह तान्या को आवाज देती कमरे से बाहर निकल गई।
"तुम लोग जल्दी से नाश्ता कर लो मैं बाहर तुम्हारा इंतजार कर रही हूं।"
अठारह वर्षीय विभु सर झुकाए धीरे-धीरे नाश्ता कर रहा था और छोटी दस वर्षीया तान्या नाश्ता कम विभु का दिमाग ज्यादा खा रही थी।
विभु चुपचाप उसकी सब बातें सुन रहा था।
बहुत देर तक बोलने के बाद जब तान्या की किसी बात का उत्तर विभु ने नहीं दिया तो तान्या अनमनी होकर बोल उठी ,"मम्मा देखो भैया नहीं बोल रहा मुझसे।"
मां बेटे की अंतर्द्वंद से अनजान तान्या तो हमेशा की तरह अपने प्यारे भाई का पूरा ध्यान अपने ऊपर चाहती थी। पर विभु था कि जैसे पिछले तीन दिनों से पूरी तरह से मूक हो गया था।
वह सदैव तान्या को गुदगुदाता, उसे हर पल हंसाता।
खाने से लेकर उसकी खेलने की हर चीज में उसे छेड़ता। हरदम शरारती विभु पिछले तीन दिनों से तान्या को भी आश्चर्यचकित कर रहा था।
गरिमा ने स्थिति को संभालते हुए कहा, " चलो जल्दी नाश्ता खत्म करके बाहर आओ ,नहीं तो मैं चली जाऊंगी ।फिर जाते रहना अपनी स्कूल बस में।"
"नहीं मम्मा मुझे आपके साथ ही जाना है ।चलो भैया मम्मा की सवारी जाए उससे पहले ही हम इस पर बैठ जाते हैं।" तान्या विभु का हाथ खींचती हुई बाहर ले जाती हुई बोली।
"मम्मा आपके साथ आगे की सीट पर मैं ही बैठूंगी आज भैया को नहीं बैठने दूंगी।"
तान्या लपक कर आगे बैठना ही चाह रही थी वह देखकर दंग रह गई कि हमेशा उससे आगे बैठने को झगड़ने वाला भैया आज चुपचाप सिर झुका कर पीछे का दरवाजा खोल कर कब का सीट पर बैठ चुका था।
गरिमा बेहद अशांत थी।
वह क्या करें उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।कार के शीशे से उसे पीछे बैठे विभु का उदास चेहरा साफ नजर आ रहा था। वह सब देख पा रही थी विभु की कंजी आंखें आंसुओं से नम थी।
उसकी आंसुओं की नमी एक बार फिर उसे कुशाग्र की याद दिला गई। कुशाग्र को याद करके अब उसकी स्वयं की आंखें भी नम हो गई थी।
बच्चों को स्कूल छोड़ कर वह वापस लौटते हुए अतीत की गलियों में खो गई।
उसे आज भी याद था एक समय था जब यह आंखें एक क्षण को भी उसके मन मस्तिष्क से ओझल नहीं हो पाती थी।
शहर के प्रख्यात वकील की इकलौती पुत्री थी वह । अपने वैभव से उपजा घमंड गरिमा के माता-पिता का स्वभाव का अभिन्न हिस्सा था तो गरिमा उसे कैसे अछूती रहती।
अपना रूप तो मां से विरासत में पाया ही था पिता का दम्भ भी उसने अपने जीवन में उतार लिया था।
उसकी स्वभाव की तेजी के चलते कॉलेज में कोई भी उससे उलझ कर अपनी दुर्गति नहीं कराना चाहता था।
हर किसी को नीचा दिखाना वजह बेवजह किसी का भी उपहास उड़ाना उसका प्रिय मनोरंजन का साधन था।
विद्यार्थी तो विद्यार्थी कॉलेज के सीनियर व टीचर्स भी समय-समय उसका शिकार बन ही जाते।
कुछ उसके पिता का प्रभाव व कुछ गरिमा की विलक्षण प्रतिभा हर बार उसे बचा ले जाती।
पढ़ाई में तो वह अब्बल थी ही, कल्चरल प्रोग्राम्स में भी उसका कोई सानी नहीं था।
वह इसी तरह से दंभ के रथ पर सवार रहती अगर उसके जीवन में कुशाग्र का प्रवेश ना हुआ होता।
रोज की तरह एक दिन वह क्लास में बैठी अपनी मित्र मंडली से घिरी चहक रही थी।
नया टर्म चालू हो गया था नए ऐडमिशंस हो रहे थे तो अभी पढ़ाई सही से शुरू नहीं हुई थी।
क्लास के एक कमजोर लड़के मनन को पकड़ कर उससे जबरदस्ती जोक्स सुने जा रहे थे और वह बेमन से गरिमा की मित्र मंडली का मनोरंजन कर रहा था।
तभी प्रवेश हुआ कुशाग्र का। एक नए चेहरे को देखकर सबका ध्यान उसकी तरफ जाना स्वभाविक था और गरिमा ने भी मनन को हटाकर कुशाग्र को अपनी तरफ आने का इशारा किया।
"न्यू एडमिशन ?" गरिमा ने तेज आवाज से उसे बुलाते हुए पूछा।
"हां" संक्षिप्त से जवाब देकर कुशाग्र मुस्कुराकर सीट पर बैठने लगा।
"ऐ लड़के बैठो मत इधर आओ अपना इंट्रोडक्शन दो।" गरिमा ने अपनी तीखी आवाज में कहा।
"कुशाग्र... कुशाग्र नाम है मेरा" कहकर कुशाग्र फिर बैठने लगा।
"अरे ..अरे सीधे खड़े रहो ढंग से परिचय दो अपना क्या तुम्हें पता नहीं है न्यू एडमिशन को कैसे पेश आना चाहिए।" गरिमा ने फिर कहा।
मुस्कुराकर कुशाग्र उसके सामने आ गया अपनी कंजी आंखें झपकाता हुआ बोला, " हां मुझे पता है। पर मैं तुम्हारा जूनियर नहीं हूं , क्लासमेट हूं तो मुझे तुम्हें क्यों इंट्रोडक्शन देना है।"
उसकी कंजी आंखों में एकबारगी गरिमा खो गई पर आसपास हंसती अपनी मित्र मंडली को देखकर संयत होकर तीखी आवाज में दोबारा कुशाग्र से बोली, "ठीक है ठीक है हो तुम बैचमेट । पर रुल्स तो रूल्स है नए एडमिशन हो तो नए एडमिशन की तरह ही पेश आना होगा।"
"ठीक है करो क्या करना चाहती हो।"
कुशाग्र ठीक उसके सामने आकर उसकी आंखों में आंखें डालते हुए बोला।
उसे अलपक अपनी तरफ देखता देख अब गरिमा की पलकें नीचे हो गई थी यह पहली बार हुआ था कि उस पर कुछ कहते नहीं बन रहा था।
वह पीछे हट गई और मुस्कुराता हुआ कुशाग्र फिर से सीट पर जा बैठा।
आज गरिमा चुप थी, यह देखकर उसकी मित्र मंडली हैरान थी ।
नीति ने कहा," गरिमा दूर रहना इन कंजी आंखों वालों से, यह बहुत जादूगर किस्म के लोग होते हैं इन से उलझना बेकार है।'
गरिमा चिढ़कर बोली , "चुप रह तू, फालतू की बात करती है। आज मेरा मूड नहीं था इसलिए ज्यादा पूछने की इच्छा नहीं करी।"
उसके बाद तो गरिमा नित नए तरीके कुशाग्र को परेशान करने की खोजती पर कुशाग्र अपने सौम्य स्वभाव के चलते उसकी किसी बात का बुरा नहीं मानता बदले में बस मुस्कुरा कर रह जाता।
कुशाग्र को परेशान करने के गरिमा ने कई हथकंडे अपनाए।
कभी उसकी साइकिल का उपहास उड़ाती और कभी उसकी साइकिल की पहिए की हवा ही निकाल देती।
और उसका गैंग इसमें उसका पूरा साथ देता।
बदले में कुशाग्र का हंसता मुस्कुराता चेहरा उसे और चिढाता । गरिमा की हर हरकत का जवाब वह बस मुस्कुरा कर और हंस कर देता।
इसी के चलते एक बार अवसर पाने पर गरिमा ने कुशाग्र की प्रोजेक्ट फाइल गायब करा दी। और फिर कुछ ऐसा घट गया जिसके बारे में कभी गरिमा ने सोचा भी नहीं था।
"स्टूडेंट्स आज फाइल सबमिशन की लास्ट डेट है आप सभी लोग अपने प्रोजेक्ट्स जमा करा दीजिए।"
प्रोफेसर की कड़कड़ाती आवाज ने कुशाग्र को परेशान कर दिया था।
वह तो कब से उनको आया देखकर अपनी फाइल तलाश रहा था और वह थी कि मिलने का नाम नहीं ले रही थी।
होती अभी कैसे उसकी फाइल तो गरिमा के बैग में आराम फरमा रही थी।
एक-एक करके सभी ने अपने प्रोजेक्ट्स जमा करा दिए। कुशाग्र खाली हाथ प्रोफेसर के पास गया।
प्रोफ़ेसर ने वार्निंग दी थी कि आज दोपहर तक वह फाइल जमा करा दे नहीं तो उसका टर्म एग्जाम देना मुश्किल हो सकता था।
प्रोफेसर के जाते ही कुशाग्र सिर झुका कर बैठ गया और गरिमा और उसका गैंग एक अघोषित जीत से प्रसन्न था।
"चलो चल कर मजे लेते हैं देखते हैं अब वह क्या करेगा।" विशाल ने सभी से कहा।
कुशाग्र को सर झुकाया देख गरिमा ने चिहुंक कर पूछा, "और हीरो कहां खो दी तुमने अपनी प्रोजेक्ट फाइल।"
कुशाग्र ने जब अपना सर उठाया तो गरिमा को एकदम धक्का सा लगा।
कुशाग्र की आंखें आंसुओं से भरी थी। पहली बार वह उन आंखों को दर्द से डूबे देख रही थी।
वह तो अब चुप थी नीति ने पूछा, "अरे क्या हुआ तुम तो एक फाइल को लेकर इतना परेशान हो गए।"
"सर कह रहे थे ना कि फाइल नहीं डिपॉजिट कराई तो टर्म एग्जाम ना दे पाऊंगा मैं। एग्जाम नहीं छोड़ सकता मेरी मम्मी बहुत परेशान हो जाएंगी।"
कुशाग्र ने रुधे गले से कहा।
वह कह ही रहा था कि गरिमा ने उसकी प्रोजेक्ट फाइल आगे कर दी।
अब कुशाग्र की आंखें क्रोध से लाल थी वह समझ चुका था उसकी फाइल गरिमा छुपा दी थी। उन आंखों की गर्मी सहने की क्षमता गरिमा में नहीं थी वह चुपचाप वहां से हट ली।
"यार पागल है तू एकदम से दे दी उसको फाइल।"
विशाल गुस्सा करते हुए बोला।
गरिमा शांत थी। उसको चुप देखकर उसका गैंग भी चुप हो गया।
अब कुशाग्र सीरियस रहने लगा था उसने गरिमा की तरफ देखना भी बंद कर दिया था। वह उससे जितना बात करने की कोशिश करती वह उसे इग्नोर करके आगे बढ़ जाता।
गरिमा का मन बेचैन हो उठा था कुशाग्र का यह बदला व्यवहार उसके लिए असहनीय था।
वह कुशाग्र से माफी मांगने का निर्णय कर चुकी थी।
लेकिन तीन दिनों तक कुशाग्र कॉलेज नहीं आया।
"वह आ क्यों नहीं रहा है?" गरिमा ने अनमने ढंग से पूछा।
नीति सब समझ रही थी फिर भी अनजान बनते हुए उसने पूछा, "कौन वह?"
"दिमाग खराब मत कर तुझे उसका घर का पता मालूम है।" गरिमा ने झल्लाते हुए कहा।
"तू उसके घर जाएगी ।"कहते हुए नीति ने अपनी आंखें फैला दी।
लेकिन उसका जवाब देने को वह गरिमा नहीं थी वह कब की ऑफिस की तरफ बढ़ चुकी थी कुशाग्र का एड्रेस लेने।
अब गरिमा और उसका गैंग कुशाग्र के घर पर धमक चुका था।
साधारण से घर को देखकर एकबारगी गरिमा को थोड़ा आश्चर्य हुआ। वैभव जीवन की आदी रही गरिमा की मित्र मंडली भी उसके स्तर की थी तो उसे इतना सरल जीवन इतने पास से देखने का अनुभव नहीं हुआ था।
कुशाग्र के परिवार में केवल उसकी मां थी । कुशाग्र जब बहुत छोटी उम्र का था तभी उसके पिता इस दुनिया में मां बेटे को अकेला छोड़ गए थे।
एक साथ इतने सारे स्टूडेंट्स को देखकर कुशाग्र बुरी तरह से सकपका गया। वह तो वायरल फीवर के चलते कॉलेज नहीं जा पा रहा था।
सब मित्र कुशाग्र को घेरकर बैठ गए। गरिमा चुप खड़ी थी ।नीति ने उसको कोहनी मारते हुए कहा, "देख ले सही सलामत तो है।"
लेकिन गरिमा को नीति की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी वह तो अलपक कुशाग्र को देख रही थी।
कुशाग्र भी बीच-बीच में बातें करते हुए उसे देख रहा था पर लगातार गरिमा को अपनी तरफ देखता देख उससे नजरें बचा रहा था।
कुशाग्र की मां एक बहुत सरल व सौम्य स्वभाव की महिला थी। वह सभी बच्चों को तुरंत चाय नाश्ता ले आई ।
उनकी बातों से साफ पता चलता था कि कुशाग्र का सरल स्वभाव उनकी ही देन था।
चाय पीते हुए अब कुशाग्र का कमरा हंसी ठहाकों से गूंज रहा था।
चलते हुए गरिमा ने कुशाग्र के पास जाकर बहुत हल्के स्वर में सॉरी बोला।
एक बार कुशाग्र फिर मुस्कुरा उठा था।
उसकी कंजी आंखें गरिमा को देखकर चमक रही थी।
कुशाग्र के घर से लौटते हुए गरिमा अब बहुत खुश थी। उसकी खुशी उसकी चेहरे को रक्तिम करे जा रही थी और नीति थी कि उसे लगातार छेड़े जा रही थी।
कुशाग्र की आंखें उसे लगातार अपने चेहरे पर गड़ती महसूस हो रही थी।
कुशाग्र के सौम्य व्यवहार ने गरिमा के व्यक्तित्व को पूरी तरह से बदल दिया था। जिंदगी को वह अलग नजरिए से देखने लगी थी।
बात बात पर ठिनकना, हर पर अपनी धाक जमाना अब बीते दिनों की बातें हो गई थी। कुशाग्र के साथ वह अपनी जिंदगी के सबसे सुखद दिनों को जी रही थी।
दोनों के बीच कोमल भावनाएं इतनी प्रगाढ़ हो गई थी कि अब गरिमा कुशाग्र के बिना अपनी जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकती थी। कुशाग्र की आंखों में ही अब उसके सपने भी शामिल हो गए थे।
दोनों का कैरियर एक दूसरे का साथ पाकर तेजी से आगे बढ़ रहा था। और अब समय आ गया था कि वे
अपने जीवन में भी स्थायित्व लाएं।
इसी के चलते जब अपनी भावनाओं को उसने अपने माता-पिता के समक्ष रखा तो लगा जैसे भूचाल आ गया।
इकलौती बेटी का चयन उन्हें एक आंख नहीं भाया था। इसी के चलते गरिमा के पिता कुशाग्र के घर जाकर उसकी मां को अघोषित धमकी दे आए थे।
कम उम्र में पति को खोने के बाद कुशाग्र की मां बेटे का साथ किसी भी हाल में नहीं छोड़ना चाहती थी और उन्होंने जल्द ही कुशाग्र का विवाह करने का निर्णय ले लिया।
उन्होंने गरिमा को बुलाकर एक तरह से उससे याचना की कि वह अपने घरवालों का विरोध छोड़कर माता-पिता की बात मान ले और कुशाग्र को सुरक्षित भविष्य कर दें।
गरिमा समझ चुकी थी उसके पिता बहुत प्रभावशाली थे जिसके चलते वह कुशाग्र को कभी भी हानि पहुंचा सकते थे। कुशाग्र ने बहुत विरोध करा ,अपनी मां को समझाने की कई प्रयास भी करें।
लेकिन मां की मन में बैठे भय को वह नहीं निकाल पाया। और बुझे मन से उसे मां का निर्णय स्वीकारना पड़ा।
कुशाग्र का विवाह मेघना से हो गया उधर गरिमा ने भी पिता के चुने राजीव के साथ जिंदगी के नए अध्याय लिखने शुरू कर दिए।
राजीव का चुनाव उसके जीवन में गलत साबित नहीं हुआ। कुशाग्र की यादें अमिट थी पर राजीव ने उसके जीवन के खालीपन को भर दिया था।
प्रतिभाशाली राजीव की प्रोत्साहन से वह कैरियर की ऊंचाइयों को छूती हुई कंपनी की सीईओ पद तक पहुंच चुकी थी।
कुशाग्र भी अब जिंदगी को नए सिरे से जीना सीख चुका था। मेघना ने उसके अस्थिर मन को स्थिरता प्रदान कर दी थी और उनके जीवन में उनका पुत्र आ चुका था।
कुशाग्र की यादें अब मधुर पन्नों की तरह उसके मन पर अंकित रह गई थी।
एक दिन सवेरे आई खबर ने उस को हिला कर रख दिया। नीति का फोन आया था।
देवी दर्शन को निकले कुशाग्र के परिवार का एक्सीडेंट हो गया था। अपने पुत्र को छोड़कर कुशाग्र मां और पत्नी के साथ इस दुनिया को अलविदा कह चुका था।
सुनते ही राजीव को साथ लेकर गरिमा फौरन चल दी।
अब वह कुशाग्र के घर में थी जहां कुछ नजदीकी रिश्तेदार उसके एक वर्षीय पुत्र को संभाले हुए थे।
उसे देखते ही गरिमा की आंखों में आंसू आ गए।
जब उसने बच्चे के सर पर हाथ फेरा तो बच्चे ने अपनी कंजी आंखें झपकाते हुए गरिमा की उंगली कस कर पकड़ ली। यह देखकर तो गरिमा का हृदय बैठे गया। वह अब खुद बहुत देर तक उस बच्चे को लिए बैठी रही।
उन रिश्तेदारों में कोई भी उस बच्चे को रखने को उत्सुक नहीं था , यह जानकर गरिमा उसे अपने साथ ले आई और राजीव ने इसमें उसका पूर्ण समर्थन दिया।
अब वह बच्चा उसका जान का टुकड़ा विभु बन गया था। गरिमा के माता पिता ने इस बात का भरसक विरोध करा लेकिन अब गरिमा अटल थी।
नन्ना विभु जब भी अपनी आंखें झपकाता वह बरबस कुशाग्र की याद दिला जाता।
असमय पिता के गुजर जाने पर गरिमा को मां को अपने साथ रहने लाना पड़ा।
मां ने कभी विभु को मन से नहीं चाहा उन्हें उसमें कुशाग्र की परछाई जो दिखती थी। पर गरिमा तो कब की कुशाग्र से मन का बंधन हटाकर राजीव के साथ जिंदगी में काफी आगे बढ़ चुकी थी।
अब विभु का वात्सल्य उसके जीवन का आधार था।
फिर प्रवेश हुआ नन्ही तान्या का।
तान्या के प्रति गरिमा की मां का लगाव अलग ही दिखता था। उनकी पुत्री की संतान जो थी वह।
सब बातों से बेखबर माता-पिता का लाडला विभु बड़ा होने लगा। उसे तान्या जान से ज्यादा प्यारी थी और अपनी मां में उसके प्राण बसते थे।
नानी का व्यवहार उसे जरूर अखरता था पर वह समझ नहीं पाता था।
अपनी मां का लाडला होने के कारण मां को हर बात में परेशान करना उसकी आदत हो गई थी।
और एक दिन अप्रत्याशित घट गया, एक दिन गरिमा मनुहार करके दोनों को शाम का नाश्ता करा थी।
विभु को दूध कभी से अच्छा नहीं लगता था पर गरिमा उसे जबरदस्ती देती थी।
उस दिन दूध पीते पर विभु ने मजाकिया अंदाज में कहा था, "आप अच्छी मां नहीं हो तभी तो दूध देती हो अच्छी मांए तो जूस देती है जूस।"
वह कह कर चुका ही था कि बराबर बैठी गरिमा की माँ एकदम से भड़क उठी और बरसों से हृदय में दफन उनके शब्द मुंह के रास्ते बाहर आ ही गए, "हां बेटा मां तो तेरी वह है ही नहीं बस तू ही उसका बेटा बना बैठा है।"
गरिमा के चुप कराते कराते भी अब परिपक्व हो चुका विभू सब कुछ समझ चुका था। उसे एक ऐसा झटका लगा था जिसकी तो उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
रात को घर आकर राजीव ने उसे प्यार से सब कुछ समझाया पर विभु अब पूरी तरह से शांत हो गया था।
ऊपर से शांत लेकिन मन में प्रचंड तूफान लिए वह उस स्थिति का सामना नहीं कर पा रहा था।
इस घटना को आज तीन रोज हो गए थे और विभु ने उसे मां कहना छोड़ दिया था।
यह सब सोचती हुई गरिमा वर्तमान में वापस लौट आई थी और अत्यंत अशांत मन से चला रही कार पर अपना नियंत्रण नहीं रख पाई और अब उसकी कार अपना बैलेंस खोकर सड़क किनारे पेड़ से टकरा चुकी थी।
आईसीयू में गरिमा को देखकर विभु अपना धैर्य खो चुका था। स्थिति बहुत नाजुक थी।
डॉक्टर का कहना था ब्रेन हेमरेज हुआ था ऑपरेशन कर कर तुरंत क्लॉट निकालना था।
राजीव से खून का इंतजाम कराने को कहकर डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर में चले गए।
गरिमा का ब्लड ग्रुप रेयर था आसानी से नहीं मिलता।
राजीव परेशान था तभी विभु को याद आया कि पिछले दिनों हुए इंफेक्शन से उसका ब्लड ग्रुप पता चल था उसका और गरिमा का ब्लड ग्रुप एक ही था।
उसे याद आ रहा था कि कैसे उस दिन घर आकर उसने तान्या को चिढ़ाते हुए कहा था ,"देख मम्मी मेरी है, अब तो ब्लड ग्रुप भी मेरा और मम्मी का सेम है।"
दोनों भाई-बहनों ने इस बात को लेकर बहुत देर तक एक मीठा झगड़ा किया था।
उसने तुरंत राजीव से कहा कि , "बाहर कहीं से अरेंज करने की जरूरत नहीं है, ब्लड तो मैं ही दे सकता हूँ।"
राजीव ने कहा, "बेटे अभी तुम बहुत छोटे हो।"
अधीर होता हुआ विभु बोला ,"नहीं पापा मैं अट्ठारह साल का हो गया अब मैं ब्लड डोनेट कर सकता हूं।"
अगली सुबह अच्छी खबर लेकर आई। गरिमा का ऑपरेशन सफल हुआ था।
अब नानी बेटी की जान बचने के बाद विभु के प्रति कृतज्ञ थी। लेकिन वह कुछ कह नहीं पा रही थीं।
विभु राजीव के साथ संग बराबर अस्पताल रहा। बड़ी मुश्किल से ही कुछ घंटे को घर जाता।
एक सप्ताह बाद गरिमा को होश आया। सब लोग प्रसन्न हो उठे।
राजीव ने गरिमा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए पूछा,
"कैसी हो?"
गरिमा ने सही में सर हिलाया।
मां पास आकर फफक कर रो पड़ी बोली मुझे तुम लोग माफ कर दो मैंने तुम्हारे खुशहाल परिवार में दुख की सेंध लगा दी।
फिर विभु की तरफ मुंह करके बोली, "बेटा तू तो सच में गरिमा का ही बेटा है। मैं ही शायद उसकी मां नहीं।"
"नहीं नानी आप ऐसा मत कहो मम्मी को हम जल्दी ही घर सही से ले जाएंगे।"
कहता हुआ विभु गरिमा के पास आकर बोला," मम्मी घर चल कर पाव भाजी खानी है मुझे आपके हाथ की और मेरे बस की बात नहीं यह तान्या बहुत परेशान करती है मुझे आप घर आओगी तो ही यह सही होगी।"
तान्या झूठा गुस्सा करते हो बोली, "अच्छा भैया घर चलो फिर मैं बताती हूं आपको।"
गरिमा की आंखों से आंसू बह निकले थे। उसने अपना खोया परिवार फिर से पा लिया था और अब अस्पताल का वह कमरा सभी की हंसी की आवाज से गूंज रहा था।
और कहीं दूर अनंत में वह कंजी आंखें भी यह सब दृश्य देखकर अपनी अतृप्त प्यास बुझा चुकी थी।
-डॉ शुभ्रा वार्ष्णेय