bharosha - 4 in Hindi Love Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | भरोसा- -अनोखी प्रेम कथा (भाग 4)

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भरोसा- -अनोखी प्रेम कथा (भाग 4)

वह कुछ समझ पाती उससे पहले दोनो ने उन्हें पकड़ लिया।
"कौन हो तुम?छोड़ो मुझे"।नाज़िया दोनो आदमियों की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी।लेजिन उनकी पकड़ से छूटने में सफल नही हुई तब वह जोर से चीखी थी।रात के सन्नाटे को चीरती हुई उसकी चीख दूर तक चली गई थी।
नाज़िया को बिल्कुल उम्मीद नही थी कि इतनी रात को उसे बचाने के लिए कोई आएगा।पर ऐसा नही हुआ।सड़क से गुजरते हुए विवेक ने उसकी चीख सुन ली।यू तो आजकल कोई फालतू में,बेमतलब किसी के पचड़े मे पड़ना नही चाहता।लोग सहायता की पुकार को अनसुनी कर देते है।मुसीबत में फसे की मदद करने की जगह उसे अनदेखा करके चले जाते हैं।लेकिन विवेक ने ऐसा नही किया।वह एक सी क्षण की देर किए बिना चला आया।
"इसे छोड़ दो।"वह आते ही बोला था।
"तू कौन है हुक्म देने वाला।"एक बोला था
"दिख नही रहा तेरी तरह ही हाड़ मास का आदमी हूँ",विवेक फिर बोला,"इसे छोड़ दो।"
"तू इस पचड़े में मत पड़।अपनी भलाई चाहता है,तो यहाँ से खिसक ले।"दूसरा आदमी बोला।
"लातों के भूत बातो से नही मानते।"
विवेक अकेला दोनो से भिड़ गया।वह जुडो कराटे का चैंपियन था।उसने दोनो को इतना मारा की वह जैसे तैसे अपनी जान बचाकर भागे थे।
"आप न आते तो ये लोग मुझे मुँह दिखाने लायक नही रहने देते।"नाज़िया,विवेक का शुक्रिया अदा करते हुए बोली।
"गलती आपकी भी है।इतनी रात को आपको अकेले नही आना चाहिए था।" विवेक बोला,"वैसे आप कहा से आ रही है?"
"मै नाज़िया अपने बारे में बताते हुए बोली,"और आप?"
"मैभी ,विवेक फोटोग्राफर था।वह भी एक मैरिज होम से लौट रहा था।
"रात काफी हो गई है।तुम्हे घर छोड़ देता हूँ।"
विवेक, नाज़िया को उसके घर छोड़ने गया था।नाज़िया मेर्रिज होम से चली तब उसने अपने अब्बा को फोन कर दिया था।लेकिन काफी देर तक वह नही आयी, तो रहीस चिंतित हो उठा। वह घर के बाहर चक्कर लगाने लगा।ज्यो ही घर के सामने मोटर साईकल रुकी।रहीस दौड़कर बेटी के पास पहुँचकर बोला,"बेटी कहा रह गसी थी?"
"मत पूछो अब्बा।आज अगर विवेक मेरी चीख सुनकर न आता तो
नाज़िया अपने अब्बा को बताने लगी।
"अंदर आओ न।"
"हॉ बेटा^ ^रहीस भी बोला था
"अभी नही रात काफ़ी हो गई है"।
उस रात विवेक चला गया,लेकिन उसकी नाज़िया से दोस्ती हो गई।फोन पर उनकी बातें होने लगी।विवेक को जहाँ भी फोटोग्राफी का काम मिलता।वंहा वह नाज़िया को मेकअप का काम दिलाने लगा।वह उसका पूरा ख्याल भी रखने लगा।उसने स्पष्ट शब्दों में कह रखा था।रात में वह अकेली आयेगी जायेगी नही।रात को कही आना जाना होता,तो वह विवेक को फोन कर देती।
समय गुज़रने के साथ,विवेक नाज़िया को चाहने लगा।प्यार करने लगा।एक दिन अपने प्यार का इज़हार करते हुए बोला"मैं तुम्हे अपनी बनाना चाहता हूँ।"
"मैं भी तुम्हे चाहती हूँ।प्यार करती हूं।तुम्हे अपना शौहर बनाकर मुझे खुशी होगी,"नाज़िया बोली,"लेकिन मैं चाहकर भी ऐसा नही कर सकती।"
"क्यों?"नाज़िया की बात सुनकर विवेक बोला।
"मेरे अब्बा---नाज़िया ने अपने अतीत का पन्ना,जो अब तक नही खोला था।विवेक के सामने खोल दिया।
नाज़िया का अतीत जानकर विवेक बोला,"मेरी जिंदगी में आने वाली तुम पहेली औरत हो,जिसे मैंने चाहा।प्यार किया।शादी करूँगा ,तो सिर्फ तुमसे।तुम्हारे अब्बा को मना लुंगा।"
,विवेक को विश्वास था।नाज़िया के अब्बा मान जाएंगे।लेकिन ऐसा नही हुआ।विवेक की बात सुनकर वह बोले थे,"मुझे तुम दोनों की दोस्ती पर ऐतराज नही है।लेकिन नाज़िया का निकाह मैं अपनी जात बिरादरी में ही करूँगा।"



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