"जिंदगी रंगीन होनी चाहिए,
ब्लैक एंड व्हाइट तो टीवी भी होते हैं।
जिंदगी खुशनुमा होनी चाहिए,
गमगीन तो मातम हुआ करते हैं।
आज कल घरों में डाइनिंग टेबल तो है,
लेकिन साथ में खाना खाने वाले नहीं होते।
घरों में मंहगे सोफ़ा तो है,
लेकिन साथ बैठ कर गुफ्तगू करने वाले नहीं होते ।।
घरों में टीवी विद फायर स्टिक तो होते है,
लेकिन साथ बैठ कर कोई देखने वाले नहीं होते।
घरों में मंहगी गाड़ियां तो होती है,
लेकिन उन गाड़ियों में साथ जाने वाले नहीं होते।।
घरों में छोटे-छोटे बच्चे तो होते है,
लेकिन उन बच्चो के साथ बच्चा बनने वाला वो लोग नहीं होते।
घरों में अपने तो होते है,
लेकिन अपना पन दिखाने वाले नहीं होते।।
घरों में लड़ाई झगड़े करने वाले तो होते है,
लेकिन प्यार से सुलझाने वाले नहीं होते।
घरों में बिस्तर तो होते है,
लेकिन उन बिस्तर पर प्यार से सिर सहलाने वाले लोग नहीं होते ।।
ये "ख़ाली मन" है साहब यहां मन से खुशियां छीनने वाले तो है,
लेकिन ख़ाली मन को खुशियां देने वाले नहीं होते।।
बेरंग तो कागज होते हैं।
उनका कागज पर रंग भरने वाले नहीं होते।
इश्क का गुलाल तो लगाने वाले होते हैं।
लेकिन दामन में खुश रंगों की बहार भरने वाले नहीं होते।।
ऊंची आवाज में बात करने वाले तो होते हैं।
लेकिन गुफ्तगू करने वाले नहीं होते।।
यह "खाली मन" है साहब यहां मन से खुशियां छीनने वाले तो हैं लेकिन
खाली मन को खुशियां देने वाले नहीं होते।।
जिंदगी के दौर में मांग में सिंदूर भरने वाले तो होते हैं।
लेकिन खुशियों से झोली भरने वाले नहीं होते।।
सात फेरे लेने वाले तो होते हैं।
लेकिन जिंदगी की दौड़ में साथ चलने वाले नहीं होते।।
रिश्तो की जिम्मेदारी तो लेने वाले होते हैं।
लेकिन जिम्मेदारी निभाने वाले नहीं होते।।
यह "खाली मन" है साहब हकीकत को पढ़ने वाले तो होते हैं।
लेकिन इस हकीकत को मन में उतारने वाले नहीं होते।।
यह छोटी सी जिंदगी और बहुत सारे ख्वाब , अब देखना यह है कि पहले जिंदगी पूरी होती है
या ख्वाब।।
"जिसके पास दिल ही नहीं वह क्या समझे मेरे जज्बात को।
अपना दिल तो वह छोड़ आए कहीं उसके पास उस अंधेरी काली रात को।। "
"वह मेरे दर् पर आकर कहने लगे, अब वापस मत जाने देना उन अंधेरों में,
हमने भी सोचा सवार लेंगे हम उन्हें अपनी खुशियों से,
लेकिन उन्हें सवार थे सवार थे हमारी खुशियां ही फना हो गई।।"
दूर है राहे , फिर भी चलना है गिर गिर के हम को समझन है,
कल क्या होगा किसको पता है, पल-पल रंग समय बदल रहा है।।
एक ही डाली पर बैठे थे हम, फिर भी अजनबी हैं।
किसे कहते दिल की हम, हम इतने भी तो करीब नहीं है।।
जुदा होंगे रास्ते एक दिन वह मोड भी आएगा, जो हमें नजदीक लाता है जहां हमें खुद को आजमाना है।।
चाहे जमाना कहे कुछ भी ,टूटे चाहे कसमें भी,
कोई तो हमको कदम उठाना है ।।
यह "खाली मन" है साहब , इसे फिर से सजाना है।
फिर से सजाना है।
और फिर से सजाना है।।
"तुम साथ हो तो सब संभल जाना है,
यह खाली मन है इसे फिर से सजाना है।।