Gandhiji ke ve pyare teen bandar in Hindi Short Stories by Annada patni books and stories PDF | गांधीजी के वे प्यारे तीन बंदर

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गांधीजी के वे प्यारे तीन बंदर

गांधी जी के वे प्यारे तीन बंदर

अन्नदा पाटनी

दरवाज़े पर अजीब सी दस्तक सुनाई दी । देखा तो तीन बंदर थे । मैं डर गई, बोली," अरे तुम यहाँ क्या कर रहे हो ? जाओ छत पर जाओ और वहीं कूदो फाँदो ।" दरवाज़ा बंद करने जा ही रही थी कि वे बोले," हम वह बंदर नहीं है । स्पेशल बंदर हैं । हम गांधी जी के बंदर हैं ।"

"क्या गांधी जी के बंदर हो ? क्या मतलब ?"

तभी तीनों ने अपने अपने हाथ मुँह पर, आँख पर और कान पर रख कर चिरपरिचित पोज बना लिए ।

"ओह अच्छा अचछा । आ जाओ,अंदर आ जाओ ।

बेचारे शालीनता से आकर सोफ़े पर बैठ गए । मैंने पूछा क्या खाओगे तो बोले,"आज हमारा उपवास है, केवल फल खा सकते हैं ।"

मैंने केले, सेव आदि फल खिला कर, उनके आने का कारण पूछा ।

वे बोले," हम बहुत परेशान हैं, इसलिए आपके पास आए हैं । आपके पिताजी गांधीवादी थे न । हमें आशा है आप हमारे दर्द को समझ जाएँगी ।"

"ऐसा क्या हो गया ?" मैंने पूछा ।

मुँह पर हाथ रखने वाले बंदर ने कहा," आपने तो देखा है कि हम तीनों को बापू ने अपनी बात लोगों को समझाने के लिए एक स्थान पर बैठा दिया था । उनके आदेश का पालन हमारी हर पीढ़ी कर रही है और जो संसार से चले जाते हैं, उनका स्थान भरते चले जाते हैं । अब हमारी बारी है बैठने की । "

"अरे वाह, कितना अच्छा काम कर रहे हो । "

"हम तो अपना काम कर रहे हैं पर बहुत दुखी हैं । बैठ बैठे हम देख रहे हैं कि जिन गांधी जी ने देश के लिए अपने प्राण त्याग दिए, राष्ट्रपिता कहलाए, आज उनके प्रति लोग कितने उदासीन हैं । जब उनकी इतनी अवहेलना हो रही है तो हमें कौन पूछेगा । सिर्फ़ किताबों में तस्वीर छपी रह जायेगी, आँख कान मुँह पर हाथ रखे ।"

तभी आँख बंद करने वाला बंदर बोला," अरे, मेरी सुनो, मैं आँख पर हाथ रख कर कहता हूँ कि बुरा मत देखो । कुछ फ़ायदा है क्या इस उपदेश का ? चारों तरफ़ इतना बुरा हो रहा है, अच्छा तो कहीं दिखाई नहीं देता । बलात्कार, हत्याएँ, लूट खसोंट, बेईमानी और भ्रष्टाचार,चारों ओर यही दिखाई दे रहा है । मैं तो आँखों पर हाथ रखे रखे थक गया पर इस उपदेश का कोई पालन ही नहीं कर रहा है ।मैं तो कहता हूँ अब आँखें खोल कर रखो और इनसे बच निकलने का रास्ता खोजो ।"

तभी दूसरा बंदर बोला," और मेरा हाल देखो, कान पर हाथ रख कर गांधी जी की नसीहत समझाता हूँ कि बुरा मत सुनो । यहाँ कान फट रहे हैं, इतनी इतनी गंदी, वीभत्स घटनाएँ घटित हो रही हैं । असभ्य भाषा और अनुचित व्यवहार बंद कान भी सुन लेते हैं तो फिर कान बंद करने का क्या फ़ायदा है ।"

अब तीसरा बोल उठा," मेरी व्यथा भी सुन लीजिए । मुँह पर हाथ रख कर समझाना मेरा कर्तव्य है कि बुरा मत बोलो । बुरा मत बोलो पर एकदम मुँह दबाकर भी तो मत बैठो, सही तो बोलो । पर कौन ध्यान दे रहा है इस पर । उल्टे नहीं बोलने पर बुरा करने वालों,भ्रष्टाचारियों, धूर्तों, स्वार्थियों के हौंसले और बुलंद हो रहे हैं और शह मिल रही है । मेरा तो मु्ंह दबे दबे दर्द कर रहा है और हाथ भी थक गए हैं । "

बडे ध्यान से उन तीनों बंदरों की बात सुन रही थी और उनकी पीड़ा को भी समझ रही थी क्योंकि हमारे मन में भी तो आज के वातावरण और परिवेश को लेकर यही दुविंधा चल रही है । आज इंसान में, उसके आचरण में, उसकी सोच में कितना परिवर्तन आया है । लगता है गांधी जी का वह एक गाल पर चांटा खा कर दूसरा गाल आगे करने वाली सीख की भी प्रासंगिकता भी नहीं रह गई है । ऐसे लोग अब कायरों की श्रेणी में गिने जाते हैं । गांधी के समय में इन सब प्रतीकों, उपदेशों का महत्व था क्योंकि लोग संवेदनशील थे, अपनी ग़लतियों, कमियों को स्वीकार करने की उनमें हिम्मत थी । अच्छी नसीहतें सदा अच्छी ही रहेंगी पर उन्हें सही रूप में ग्रहण करने वाली मानसिकता चाहिए ।

मुझे सोच में पड़ा देख तीनों बंदर घबरा गए, रुआंसे से होकर बोले," हम कुछ ग़लत कह गए क्या ? लगता है हमारी बातें आपको पसंद नहीं आईं । "

मैंने पुचकारते हुए कहा," अरे नहीं नहीं, बल्कि मुझे तो आश्चर्य हाँ रहा है कि जानवर होकर तुमने कितनी समझदारी की बात की है जो आदमी होकर भी हम लोग देख और सोच नही पा रहे । तुमने तो हमारे आँख कान और मुंह खोलने की प्रेरणा दी है । सब कुछ देखो, सुनो और कहो पर अपने विवेक से काम लो । मैं तुम्हारी व्यथा समझ कर एक परामर्श देना चाहती हूँ कि तुम लोग जहाँ से आए हो वही जाकर विराजमान हो जाओ क्योंकि तुम गांधी जी के तीन बंदर के रूप में अमर हो, और प्रतीकों के माध्यम से जीवन जीने की राह दिखा रहे हो । लोग समझ नहीं पा रहे, यह उनकी अक़्ल का फेर है । तुम डटे रहो ।"

मैंने उनकी पीठ पर प्यार से हाथ फेरा और ढेर से फल देकर विदा किया ।

यह एक सपना था जो मैंने दो अक्टूबर को गांधी जयंती पर देखा था ।