Baat bus itni si thi - 8 in Hindi Moral Stories by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | बात बस इतनी सी थी - 8

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बात बस इतनी सी थी - 8

बात बस इतनी सी थी

8

परम्परा और रीति-रिवाजों के अनुसार अगले दिन मंजरी पग-फेरे की रस्म पूरी करने के लिए करने के लिए अपनी मम्मी के घर लौट गयी । उसके तीसरे दिन गौने की रस्म पूरी होनी थी उस के अनुसार मैं मंजरी की मम्मी के घर जाकर उसको वापिस ले आया था।

इस बार मंजरी एक सप्ताह तक मेरे और मेरे परिवार के साथ रही । इस एक सप्ताह के दोरान हर रोज रात को हम दोनों एक कमरे में एक ही बिस्तर पर साथ-साथ सोये । लेकिन मंजरी इस बार भी हर रात कोई ना कोई बहाना करके मुझे खुद से दूर रहने के लिए मजबूर करती रही । वे सात रातें मैंने कैसे पल-पल हर पल टॉर्चर होते हुए बितायी थी, मेरे लिए उसके टॉर्चर को शब्दों में कहना आसान नहीं है ।

उस मानसिक प्रताड़ना से बचने के लिए कई बार मेरे मन में आया था कि मंजरी के साथ एक कमरे में एक बिस्तर पर न सोऊँ, किसी दूसरे कमरे में जाकर सो रहूँ ! लेकिन, अपने अभी-अभी बने रिश्ते को, जोकि वास्तव में अभी पूरी तरह बन भी नहीं पाया था, उसको सहेजकर रखने की चाहत में मैंने ऐसा नहीं किया । मैं नहीं चाहता था कि मेरे अधपके रिश्ते का सच पूरे परिवार के सामने आए और मजाक का विषय बन जाए !

एक सप्ताह बीतने के बाद मंजरी फिर अपनी मम्मी के घर लौट गई । उसके गाँव की रूढ़िवादी स्थानीय परंपरा के अनुसार इस बार उसको कम से कम छः महीने तक ससुराल से दूर अपनी मम्मी के घर रहना था ।

मंजरी के जाने के बाद मैं अपने साथ उसके अब तक के व्यवहार और हम दोनों के रिश्ते के भविष्य को लेकर बहुत तनाव में आ गया था । मैंने शादी के लिए अपने ऑफिस से एक महीने की छुट्टियाँ ली हुई थी । अब मेरी यह छुट्टियाँ घर में अकेले पड़े-पड़े तनाव में बीत रही थी ।

मेरी तनावग्रस्त हालत को देखकर मेरी माता जी चिंता में डूबी रहती थी । वह बार-बार मुझसे मेरे तनाव का कारण जानने का प्रयास करती रहती थी । लेकिन, उन्हें बताने के लिए मेरे पास कुछ नहीं था, क्योंकि मंजरी को खुद मैंने ही पसंद किया था । उन्होंने तो सिर्फ मेरी पसंद को स्वीकार किया था ।

मेरी माता जी कई बार माँ होने के नाते मेरा मनोविज्ञान समझने का दावा करके कहती थी -

"तेरी यह हालत मंजरी के दूर चले जाने की वजह से है ! तुझे मंजरी के मायके की परंपराओं की कद्र करनी चाहिए ! ऐसा करने से आपस में प्यार और विश्वास बढ़ता है !" वह मुझे समझाने का प्रयास भी करती थी ।

लगभग एक सप्ताह बीतने के बाद मेरी माता जी को संदेह हुआ कि मंजरी के जाने के बाद उसके साथ मेरी एक बार भी फोन पर बातचीत नहीं हुई है । उन्होंने यह अनुमान लगाया लिया कि शायद मेरे और मंजरी के बीच में किसी बात को लेकर नाराजगी है, इसलिए मैं तनाव में रहता हूँ ! मेरी माता जी ने मुझसे हम दोनों के बीच की नाराजगी का कारण जानना चाहा, तो मैंने बड़ी साफगोई के साथ कह दिया कि हम दोनों के बीच में कोई नाराजगी नहीं है । माता जी को मेरे जवाब पर भरोसा नहीं हुआ । उन्होंने मुझसे कहा -

"अगर तुम दोनों के बीच में कोई नाराजगी नहीं है, तो मंजरी को यहाँ से गये हुए पूरा एक सप्ताह बीत गया है, तेरी उसके साथ एक बार भी बातचीत क्यों नहीं हुई ?"

मेरी माता जी ने जासूसी-तेवर में मुझ पर सवाल दागा । मुझे मेरी माता जी से ऐसे किसी प्रश्न की आशा नहीं थी, इसलिए बिना सोचे समझे मैंने कह दिया -

"आपको कैसे पता मंजरी से मेरी बात नहीं होती है ? मेरी उससे रोज बात होती है !

"अच्छा ? उससे तेरी रोज बात होती है ? मैं भी तो देखूँ, जब से वह गई है, उससे तेरी बात कब-कब और कितनी देर तक हुई है ?" माता जी ने आक्रामक होकर कहा ।

"माता जी ! आप क्यों जानना चाहती हो कि मंजरी के साथ मेरी कब-कब और कितनी देर तक बातें होती हैं ? वह मेरी पत्नी है ! मैं उससे कभी भी, कितनी भी देर तक बातें कर सकता हूँ !" मैंने बात को टालने के ढंग से कहा था ।

"बेटा, मुझे पता है कि मंजरी तेरी पत्नी है और तू उससे कभी भी, कितनी भी देर तक बातें कर सकता है ! पर मुझे यह भी पता है कि उसके यहाँ से जाने के बाद तुम दोनों में एक बार भी बात नहीं हुई है !"

मैंने महसूस किया कि मैं अब पूरी तरह से फँस चुका हूँ ! जहाँ से निकलना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल भी ! वहांँ से निकलने की पहली कोशिश में मैंने झुँझलाकर कहा -

"माता जी ! इतनी छोटी-सी बात को तिल का ताड़ क्यों बना रही हो आप ? मैंने कह दिया है न, मंजरी से मेरी बात होती रहती है ! और नहीं भी होती है, तो इसमें कौन-सी बड़ी बात है ? कौन-सा पहाड़ टूट पड़ा है ? जब मैं चाहूँगा, उससे बातें हो जाएगी !"

मेरे जवाब से मेरी माता जी थोड़ी-सी उदास होकर मुझे घेरने लगी थी । मैंने महसूस किया कि अब माहौल थोड़ा बोझिल होने लगा है, इसलिए माहौल को हल्का करने के लिए मैंने हँसकर कहा -

"माता जी ! एक बात बताइए, जब आप नानी के घर जाती थी, तब पापा से आपकी रोज रोज बातें हो पाती थी ? उस जमाने में मोबाइल फोन तो थे नहीं !"

"बेटा, तब और जमाना था ! मैं और तेरे पापा तो हमारी शादी से पहले भी आपस में इतनी बात नहीं करते थे, जितनी तू और मंजरी अपनी शादी से पहले करते थे !"

माता जी ने यह बात विषय को गंभीरता से लेते हुए कही थी । उनकी गंभीरता से मुझे एहसास हो गया था कि बात अभी और आगे बढ़ सकती है । अतः मैंने स्थिति को नियंत्रण में रखने के उद्देश्य से शांत स्वर में कहा -

"माता जी ! ऐसी-वैसी कोई बात नहीं है ! रात में मैं उससे बातें कर लेता हूँ ! दिन में वह अपनी किसी न किसी सखी-सहेली के साथ होती है या किसी नाते-रिश्तेदारी में होती है, इसलिए ... !"

मेरी माता जी सब कुछ बर्दाश्त कर सकती हैं, पर झूठ बोलना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं है । जब उनका अपना बेटा ही उनके सामने झूठ बोल रहा था, तो यह उनकी बर्दाश्त से बाहर था । वह अपनी पूरी शक्ति के साथ उठ खड़ी हुई और बोली -

"चल, अपना मोबाइल ऑन करके मुझे कॉल डिटेल निकालकर दिखा कि उसके जाने के बाद तेरी उससे कौन-सी रात को कितनी देर बात हुई ?"

मुझे मेरी माता जी के यहाँ तक पहुँचने की उम्मीद नहीं थी । मैंने कभी क्षण-भर के लिए भी यह कल्पना नहीं कि थी कि वे मेरी कॉल डिटेल भी माँग सकती हैं ! लेकिन उन्होंने मेरा मोबाइल ऑन करने और कॉल हिस्ट्री देखने के लिए मुझ पर इतना दबाव बनाया कि न चाहते हुए भी मुझे यह स्वीकार करना ही पड़ा कि मंजरी के जाने के बाद मेरी उसके साथ एक बार भी बात नहीं हुई है ।

मेरी स्वीकारोक्ति के बाद माता जी कुछ देर तक मंजरी के बारे में बात करती रही और मुझसे यह जानने की कोशिश करती रही कि हम दोनों में बढ़ती दूरी की वजह कहीं वह तो नहीं है ? वास्तव उन्हें यह ग्लानि हो रही थी कि हम दोनों की नाराजगी का विषय शादी समारोह में दहेज को लेकर हो चुका तमाशा और वह वीडियो तो नहीं है, जो मंजरी ने पूरे समाज और सभी रिश्तेदारों के सामने प्रोजेक्टर के परदे पर दिखाई थी । माताजी की आशंकाओं और चिंताओं को दूर करते हुए मैंने उनसे कहा -

"ऐसा कुछ नहीं है, जैसा आप सोच रही हैं ! और ऐसा कुछ होगा भी क्यों ? हमने उसके पिता से किसी प्रकार का कोई दहेज नहीं लिया है ! यह बात वह भी जानती है और मैं भी जानता हूँ ! मेरे मन में इस बात का गुस्सा था कि उसे वह वीडियो पूरे समाज के इतने लोगों के बीच नहीं दिखानी चाहिए थी ! पर हमने जो किया था, वही तो उसने सबके सामने दिखाया था ! हमने जो गलती की थी, उसकी सजा हमें मिल गई, तो हिसाब बराबर हो गया ! अब उसको लेकर मंजरी और मेरे बीच तनाव क्यों होगा ? मेरा मतलब है कि हम दोनों के बीच इस विषय को लेकर किसी तरह का कोई तनाव नहीं है ! आप निश्चिंत रहें !"

"बेटा, मैं तेरी बात मान लेती हूँ ! पर मेरे मन में अभी भी एक शंका है ! सब-कुछ ठीक चल रहा है, तो तुम दोनों में एक हफ्ते से कोई बातचीत क्यों नहीं हुई ?"

"इसलिए नहीं हुई, क्योंकि मंजरी ने मुझसे कहा था कि कुछ दिनों तक वह अपने रिश्तेदारों से मिलने-जुलने में व्यस्त रहेगी ! इसके लिए वह उनके घर जाएगी, जहाँ पर मुझसे बातें करने में वह कंफर्ट फ़ील नहीं करेगी !"

माता जी मेरे उत्तर से काफी हद तक संतुष्ट हो गई थी । लेकिन, एक माँ होने के नाते मुझे लेकर उनके दिल में एक कसक अभी बाकी थी, जिसका कोई समाधान न तो उनके पास था और न ही मेरे पास था ।

संयोग से उसी दिन शाम को मंजरी की कॉल आ गई । जिस समय मंजरी की कॉल आई थी, तब मैं मेरी माता जी के साथ बैठकर किसी सामान्य घरेलू विषय पर बातें कर रहा था । मोबाइल की घंटी बजते ही मंजरी का नाम देखकर मैं बहुत खुश हुआ था । दरअसल मैं इसलिए ज्यादा खुश था कि कम-से-कम मेरी माता जी की चिंता का एक विषय कम हो गया था ।

माता जी को मोबाइल की स्क्रीन पर मंजरी का नाम दिखाकर मैंने उनसे संकेत करके बाहर जाने की इजाजत माँगी, ताकि बाहर जाकर मैं मंजरी से खुलकर बातचीत कर सकूँ ! चूँकि माता जी समझती थी कि मेरे तनाव के पीछे मंजरी और मेरे बीच की नाराजगी है और वे खुद चाहती थी कि मैं और मंजरी आपस में बातचीत करके हमारे बीच के तनाव को खत्म कर लें । इसलिए माता जी ने भी खुशी-खुशी तुरंत मुझे बाहर जाने की अनुमति दे दी । वैसे भी माता जी तो खुद यही चाहती थी कि मैं और मंजरी फिजिकली दूर हैं, तो कम-से-कम मोबाइल पर खूब प्यार भरी बातचीत करें ; करते रहे !

बाहर जाकर मैंने मंजरी की कॉल रिसीव की, तो सबसे पहले उसने मेरे कॉल नहीं करने की शिकायत करते हुए उलाहना देकर कहा -

"तुमने मुझे कॉल क्यों नहीं की ? मुझे मेरी मम्मी के घर आए हुए पूरा एक सप्ताह बीत चुका है , एक कॉल भी नहीं कर सकते थे तुम ! जिस दिन से आई हूँ, रोज रात को तुम्हारे फोन कॉल का इंतजार करती हूँ !"

"इसलिए नहीं की थी, शायद मेरा डिस्टर्ब करना तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा !" मैंने किसी तरह का उत्साह दिखाये बिना जवाब दिया ।

"अच्छा जी ! मुझे तुम्हारा कॉल करना अच्छा नहीं लगेगा ? चंदन, तुम ऐसा कैसे सोच सकते हो ?"

"इसमें सोचने जैसी कौन-सी बात है ? मुझे क्या पता कि तुम्हें क्या अच्छा लगेगा ? और क्या अच्छा नहीं लगेगा ?"

"ठीक है ! तुम्हें नहीं पता है, तो मैं तुम्हें बता देती हूँ ! मुझे तुमसे बात करना बहुत अच्छा लगता है !" यह कहकर मंजरी जोर से हँस पड़ी ।

मंजरी हँस-हँसकर बातें कर रही थी और बहुत खुश लग रही थी । मेरी ओर से बातों में किसी प्रकार का उत्साह न देखकर वह बार-बार बस एक ही शिकायत कर रही थी और एक ही उलाहना बार-बार दे रही थी कि मैंने अपनी ओर से उसको कॉल क्यों नहीं की ?

इधर, मंजरी की जुबान से निकलने वाला हर एक शब्द मेरे दिल में तीर की तरह चुभ रहा था । मुझे ऐसा लग रहा था कि हँस-हँसकर वह मेरा मजाक उड़ा रही है और मेरा अपमान कर रही है । फिर भी मैं अपनी ओर से ऐसी कोई बात नहीं कहना चाहता था, जिससे हमारे रिश्ते में कड़वाहट आए ! इसलिए मैं उसकी हर एक बात का जवाब "हाँ-हूँ-हाँ-हूँ" करके देता रहा ।

लगभग एक घंटे तक हम दोनों में बातें होती रही । उसकी बातें सुनते-सुनते मैं खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा था और एक बार फिर ठीक उसी तरह प्रताड़ित महसूस करने लगा था, जैसे एक सप्ताह पहले उसके साथ रहते हुए कर रहा था ! इसलिए मैंने उससे झूठा बहाना करके विनम्रतापूर्वक कहा -

"माता जी मुझे पुकार रही है ! शायद कुछ काम है ! मैं तुमसे बाद में बात करता हूँ !" यह कहकर मैंने कनेक्शन काट दिया ।

उस दिन के बाद मंजरी ने मुझे फोन-कॉल नहीं की । शायद वह मेरी कॉल का इंतज़ार करती रही हो । लेकिन मैंने भी उसको कॉल नहीं की । अक्सर वह मेरे व्हाट्सएप पर मैसेज भेजती रहती थी। मेरी ओर से उसके किसी मैसेज का उत्तर न दिये जाने पर उस दिन के बाद उसने व्हाट्सएप मैसेज भेजना भी बन्द कर दिया था ।

क्रमश..