UJALE KI OR - 6 in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर - 6

Featured Books
  • You Are My Choice - 40

    आकाश श्रेया के बेड के पास एक डेस्क पे बैठा। "यू शुड रेस्ट। ह...

  • True Love

    Hello everyone this is a short story so, please give me rati...

  • मुक्त - भाग 3

    --------मुक्त -----(3)        खुशक हवा का चलना शुरू था... आज...

  • Krick और Nakchadi - 1

    ये एक ऐसी प्रेम कहानी है जो साथ, समर्पण और त्याग की मसाल काय...

  • आई कैन सी यू - 51

    कहानी में अब तक हम ने देखा के रोवन लूसी को अस्पताल ले गया था...

Categories
Share

उजाले की ओर - 6

उजाले की ओर--6

-----------------

प्रिय एवं स्नेही मित्रों

सस्नेह नमस्कार

मनुष्य के स्वभाव में अन्य अनेक शक्तियों के साथ ही एक भरोसा करने की शक्ति भी निहित है |वह कई बार अपने से जुड़े हुओं पर बहुत अधिक भरोसा कर बैठता है ,विश्वास कर बैठता है किन्तु जब कभी उसके विश्वास को ठेस लगती है तब वह बिखरने की स्थिति में हो जाता है और इसीलिए जब कभी उसे काँटा चुभता है और वह बेदम होने लगता है तब दूसरी बार वह भरोसा करने से भयभीत होने लगता है ,हिचकिचाने लगता है |जब मनुष्य किसी व्यक्ति अथवा वस्तु को अपना आधार मान लेता है तब वह उस पर आश्रित हो जाता है और भयभीत भी रहने लगता है कि कहीं उसे पुन:उसी परिस्थिति का सामना न करना पड़ जाए जो उसे पूर्व में करना पड़ा था |

जिस पर मनुष्य आधारित हो जाता है वह यदि वस्तु है तो उसके बारे में इसलिए भयभीत हो जाता है कि वह खो अथवा टूट-फूट न जाए अथवा उसे कोई चुरा न ले और यदि वह कोई व्यक्ति है तो मनुष्य उसके लिए इसलिए भयभीत रहता है कि कहीं वह उससे नाराज़ न हो जाए अथवा किसी अन्य कारण से वह उससे जुदा न हो जाए |वास्तव में किसी को भी अपना आधार मान लेना ही भय की स्थिति का माप दंड बन जाता है |जब मनुष्य किसी पर आधारित नहीं रहता तब उसके पास भय का भी कोई कारण नहीं रहता |वह प्रत्येक पल में स्थित रहकर अपने जीवन की यात्रा को बिना किसी भय व संकोच के अपने उद्देश्य की ओर अग्रसर रहता है |

हम सब इस तथ्य से परिचित हैं कि वास्तव में तो हमारा अपना शरीर भी हमारा आधार नहीं है तब कोई व्यक्ति अथवा वस्तु को आधार मान बैठकर उस पर आश्रित होना कोई बहुत बुद्धिमत्ता नहीं है |हमारा शरीर कब हमें धोखा दे दे ,कहाँ पता चलता है ? कोई भी नहीं यह नहीं चाहता कि हम बूढ़े हों ,अथवा अशक्त हों अथवा अपने जीवन में हमें किसी असहज स्थिति का सामना करना पड़े लेकिन होता तो यही है |स्वीकार करना ही सबसे बड़ा हल है |और यह कोई समस्या भी नहीं है ----यह जीवन है और जीवन अपने सपने बुनता है ,खिलता है,खुलता है |कभी अपने सपनों को पूरा भी करता है और कभी उन्हें अधूरे छोड़कर मानसिक कष्ट को भी भोगता है |बेहतर यही है कि हम हर पल स्वयं को प्राप्त प्रत्येक वस्तु अथवा व्यक्ति का धन्यवाद अर्पण कर सकें ,जितना मिला खूब मिला ,जितना मिल रहा है खूब मिल रहा है और एक सकारात्मकता के साथ अपने जीवन की यात्रा को पूर्ण करता रहे |

हाँ,हम सब मनुष्य हैं और मनुष्य होने के नाते हम किसी न किसी से अधिक जुड़ाव महसूस भी करते हैं किन्तु जब जुड़ाव कष्ट देने लगे तब अपने जीवन को बिना किसी अपेक्षा के जीना ही बेहतर मार्ग है |हम सब पर एक छत्रछाया है, जिसने हमें बनाया है उसकी |इसे हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि माँ प्रकृति अनेक रूपों में हमारा सहारा बनती है ,हमारा हाथ थामती है ,हमें अन्धकार से उजाले की ओर प्रेरित करती है इसलिए हमारे सबके जीवन में निराशा का कोई चिन्ह न रहे ,हमें इसका स्वयं ही ध्यान रखना होगा |स्वयं अपने समक्ष आने वाली परिस्थितियों का सामना करना होगा ,स्वयं अपनी जीवन-यात्रा में नव-संचार करना होगा और जीवन को पूर्ण रूप से जीना होगा |जीवन में सदा निराशा अथवा अँधियारा नहीं रहता अत: प्रत्येक पल धन्यवाद के साथ बिताना ही सुन्दर व अर्थपूर्ण है |

जीवन में उजियारे न हों ,ऐसा कभी नहीं होता

चंदा संग सितारे न हों ऐसा कभी नहीं होता

पग-पग चुभते कंट यहाँ पर पग-पग अंधियारे छाते

पर पीछे कुछ प्यारे न हों ,ऐसा कभी नहीं होता ------!!

डॉ.प्रणव भारती