विशाल की एनजीओ का नाम आश्रय था। यहां गरीब तबके के बच्चे पढ़ने आते थे। इसके अलावा यहां सिलाई कढ़ाई कंप्यूटर आदि का फोर्स करवा उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाता था। चांदनी पहले दिन वहां पहुंची तो उन बच्चों के साथ उसका मन लगने लगा। साथ ही साथ सिलाई कढ़ाई सीखने आई कुछ लड़कियां उसकी हमउम्र ही थी ।उनसे बातचीत कर उसे अच्छा लगा।
विशाल ने उसे पहले दिन 1 घंटे के लिए क्लास लेने के लिए कहा। जिससे की वह बच्चों से घुल मिल जाए और उनके बारे में जानकारी ले सके।
चांदनी देख रही थी कि वहां के सभी बच्चे व बड़े विशाल का बहुत ही आदर करते थे। साथ ही उससे बहुत घुले मिले भी थे। उनके साथ विशाल का व्यवहार देख लग ही नहीं रहा था कि एनजीओ का मुखिया है।
विशाल ने बच्चों व वहां काम करने वाले बाकी स्टाफ से चांदनी का परिचय करवाया।
शाम को जब चांदनी वापस घर आई तो उसकी मां ने उत्सुकता से पूछा "बेटा कैसा रहा पहला दिन! अच्छा लगा तुझे वहां! कल जाएगी या नहीं!"
चांदनी ने ज्यादा कुछ तो नहीं कहा बस मुस्कुराते हुए कहा "हां मां मैं अब वहां जाया करूंगी।"
सुनकर उसकी मां को बहुत अच्छा लगा क्योंकि उन्हें पता था कि बाहर निकलने से और लोगों से मिलने जुलने से ही इसका दुख दर्द कम होगा।
चांदनी को वहां काम करते हुए 6 महीने हो गए थे । उन बच्चों को पढ़ाते हुए वह धीरे धीरे अपने दुख भूलने लगी थी। भूलेगी क्यों नहीं! वहां पर सिलाई सीखने वाली अनेक लड़कियों के दुख उससे कहीं ज्यादा थे। जब वह अपने दुख भुला आत्मनिर्भर बनने के लिए काम सीख रही थी तो वह क्यों नहीं। उसके जैसी कितनी ही लड़कियां थी, जिनको या तो पति ने छोड़ दिया या उनकी मार पिटाई से तंग आ वह उन्हें छोड़ आई थी ।
चांदनी जब उनसे बात करती और उनसे पूछती " क्या तुम्हें उनकी याद नहीं आती!"
तो सबका एक ही जवाब होता था। " दीदी बहुत आती थी लेकिन विशाल सर ने हमें आत्मसम्मान से जीना सिखाया उनका मानना था कि जो इंसान हमारी कदर नहीं करता उनके लिए घुट घुट कर क्यों मरना! सही तो कहते हैं वह। हम औरतें अपनी इज्जत खुद करना ही जानती । हमेशा भावना में बहकर उस आदमी के पीछे अपनी पूरी उम्र निकाल देती है, जिसके नजरों में हम कुछ थे ही नहीं।"
उनकी बातें सुन चांदनी मन ही मन सोचती , यह गरीब लड़कियां जो पढ़ी-लिखी भी नहीं इतनी जल्दी इन बातों को समझ गया और एक वह है जो सालों से उस इंसान के लिए घुट घुट कर मर रही है, जो उस पर इतने लांछन लगा छोड़ चला गया ।
विशाल अपने हंसमुख स्वभाव के कारण सबके साथ हंसी मजाक करता रहता था । चांदनी को हमेशा गुमसुम व उदास देख वह उसे भी हंसाने की कोशिश करते हुए कहता "चांदनी जी एक बात मैं यकीन से कह सकता हूं आपने जानबूझकर चुप्पी की चादर ओढ़े हो। वरना आपका चेहरा देखकर कोई नहीं कह सकता कि आप इतने शांत स्वभाव की हो। भई खुलकर हंसा बोला करो। हंसने बोलने के पैसे नहीं लगते । "
चांदनी सुनकर भी उसकी बात को अनसुना कर देती ।उसे पसंद नहीं था कि विशाल उससे ज्यादा घुले मिले। वह उससे दूरी बना कर रखने की कोशिश करती थी। इस बारे में अपनी मां से भी कई बार कह चुकी थी।
"बेटा तेरी उदासी दूर करने के लिए ही तो कहता है ना। तुझे कभी कुछ गलत तो नहीं कहा उसने। फिर बुरा मानने की क्या बात है । इतना अच्छा लड़का है। पूरा मोहल्ला उसकी कितनी इज्जत करता है । कभी किसी से उसके बारे में गलत नहीं सुना। फिर तू क्यों उससे इतनी चिढ़ी हुई रहती है ।एक ही जगह काम करते हो तो हंसना बोलना तो होगा ही ना! परेशानी की क्या बात है इसमें। "
"तो हंसे बोले ना लेकिन उनके साथ जिसे पसंद हो। मुझे नहीं पसंद है उसके साथ बात करना। फिर क्यों बिना मतलब मुझसे बात करने की कोशिश करता है।"
"एक जगह काम करोगे तो थोड़ी बहुत बातचीत तो होगी ना! ठीक है कह दूंगी मैं उससे। रह तू अपने आप में अकेली। समझना ही नहीं चाहती । 2 साल होने को आए लेकिन तू है कि ...!"कहते हुए चांदनी की मां वहां से उठ कर चली गई।
चांदनी की मम्मी ने बातों ही बातों में विशाल को चांदनी की परेशानी समझा दी और कहा " बेटा थोड़े जिद्दी स्वभाव की है। अपने में ही खोई रहती है । कुछ कह दे तो उसकी बात का बुरा मत मानना । बस मैं और क्या कहूं ।तुम खुद ही समझदार हो।"
चांदनी की मम्मी की उदास आवाज और चेहरे के भाव से विशाल समझ गया था कि वह क्या कहना चाहती है और जो कहना चाहती हैं। उससे भी ज्यादा वह चाहकर भी जो नहीं कह पा रही है ।
विशाल ने भी अब चांदनी से दूरी बना ली थी। वह बस उससे उतनी ही बातें करता, जितनी जरूरी या काम से संबंधित होती थी। वह अगर कहीं बैठा होता तो चांदनी के आने के बाद उठ कर चला जाता। चांदनी को समझ नहीं आ रहा था कि उसे विशाल की यह बेरूखी अच्छी क्यों नहीं लग रही। वह यही तो चाहती थी कि वह उससे दूर रहे लेकिन जब दूर है तो क्यों वह उसके पास जाना चाहती है!
एक दिन छुट्टी के समय अधिकतर स्टाफ व बच्चे जा चुके थे। चांदनी भी अपना सामान समेट जाने ही लगी थी कि अचानक उसका पैर मुड़ गया और वह गिर गई। उसके गिरने की आवाज सुन, विशाल और सिलाई सीखने वाली दो लड़कियां दौडी हुई आई और उसे उठाने की कोशिश करने लगी। विशाल ने जब उसका हाथ पकड़ सहारा देने की कोशिश की तो उसने एकदम से हाथ झटक दिया और गुस्से से बोली
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा हाथ पकड़ने की। यहां काम करते हैं तो इसका मतलब यह थोड़ी ना है कि तुम अपनी मनमानी कर सकते हो। जब से आई हूं देख रही हूं कि तुम मुझे हमेशा तंग करने की कोशिश करते हो। बड़ा हंसने
व दूसरों का को हंसाने का शौक है तुम्हें। सभी को अच्छा लगता हंसना बोलना। कभी जिंदगी में दुख तकलीफों का सामना करना। तब हंसकर दिखाना सब हंसी भूल जाओगे।" कह चांदनी उठी और कराहती हुई बाहर निकल गई।
विशाल उसे जाते हुए देखता रहा। उस दिन वह घर आया तो गुमसुम और उदास था। पूछने के बाद भी बस उसने अपनी मां को इतना ही कहा तबीयत कुछ सही नहीं। कल्याणी ने भी कुछ नहीं कहा लेकिन जब कई दिनों तक उसका हाल ऐसा ही रहा तो वह समझ गई कि कुछ ना कुछ बात जरूर है। जो वह उसे बताना नहीं चाह रहा है।
लेकिन अपने बेटे की यह चुप्पी भी कल्याणी से देखी नहीं जा रही थी। एक दिन शाम को चाय पीते हुए उसने विशाल से इसके बारे में बात की तो वह बोला "मां ऐसा कुछ नहीं है।"
"बेटा तू कब से अपनी मां से अपने दिल की बात छुपाने लगा! बताएगा नहीं क्या मुझे !" वह उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोली।
उनका ममताभरा स्पर्श पा वह पिघल गया और उस दिन ही सारी बातें बताते हुए बोला " मां मैं तो बस उसे खुश देखना चाहता हूं ।उसकी उदासी मुझसे देखी नहीं जाती तो थोड़ा हंस बोल लेता हूं। मेरे मन में उसके लिए कोई गलत भावनाएं नहीं ।फिर उसने ऐसी बातें क्यों की। क्या मैं इतना बुरा हूं!"
नहीं बेटा तुम अपनी जगह सही हो।हो सकता है, वह तुम्हारी भावनाओं को सही से समझी ना हो और गलत मतलब निकाल बैठी हो । मैं आज उससे इस बारे में बात करूंगी।" कल्याणी उसे समझाते हुए बोले।
"नहीं मां आप रहने दो। अब मैं भी इस बात को भूल चुका हूं और सही भी है सबको अपने तरीके से जीने का अधिकार है हमें बिना मतलब दूसरों के जीवन में झांकने का हक नहीं।"
"नहीं बेटा गलतफहमी दूर करनी जरूरी है और तू बेफिक्र रह, मैं सब संभाल लूंगी।"
छुट्टी के दिन कल्याणी, चांदनी के घर गई। उस समय दादी व चांदनी की मम्मी मंदिर गई हुई थी और रोहित भी घर पर नही था । चांदनी ने उनकी बैठने के लिए कहा और बोली "आंटी जी वह दोनों तो मंदिर गए हुए हैं।"
" कोई बात नहीं बेटा, मैं उनका इंतजार कर लेती हूं। फिर तुम तो हो ही। वैसे आज तुमसे ही खास तौर पर मिलने आई थी मैं। "
"क्यों आंटी जी, कुछ खास काम था क्या मुझसे!"
"नहीं बेटा ऐसा तो कोई खास काम नहीं। बस उस दिन विशाल और तुम्हारे बीच में जो बात हुई, मैं उसके लिए बस इतना ही कहना चाहूंगी। बेटा मेरा विशाल दिल का बुरा नहीं है और ना ही उसका इरादा तुम्हारी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का था। फिर भी अनजाने में तुम्हें बुरा लगा हो तो मैं माफी मांगती हूं।"
"नहीं आंटी जी, आप ऐसे क्यों कह रहे हो। मैं तो खुद शर्मिंदा हूं, उस दिन की बात के लिए। पता नहीं गुस्से में, मैं क्या-क्या कह गई उन्हें। मैं माफी मांगना चाहती हूं लेकिन क्या करूं ! आंटी जी, मेरी पिछली जिंदगी के दुख...!" कहते हुए चांदनी की आंसू निकल आए।
"बेटा हर किसी के जीवन में दुख तकलीफ होती है लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि वह इसकी आग में खुद के साथ साथ दूसरों को भी जलाएं। यह तो गलत है ना।"
"आंटी जी, छोटे-मोटे दुख हो तो इंसान सह ले लेकिन मुझे तो जिंदगी ने समय से पहले ही इतने दुख दिखा दिए हैं कि मैं उनको चाह कर भी नहीं भुला पा रही हूं। आप और विशाल जी मेरी दुख पीड़ा का अंदाजा भी नहीं लगा सकते। यह तो जिस पर गुजरती है, वही जान सकता है।"
"बिटिया तुम्हारे साथ क्या गुजरी, यह तो मैं नहीं जानती लेकिन तुमने कैसे सोच लिया कि मेरा बेटा जो हमेशा हंसता मुस्कुराता रहता हैं तो हमारे जीवन में कोई दुख या गम नहीं। उसका दुख सुनोगी तो तुम्हारा भी कलेजा कांप उठेगा।"
" विशाल जी के साथ ऐसा क्या हुआ आंटी जी, बताओ ना!"
मेरा विशाल एक बहुत बड़ी कंपनी में बहुत ही अच्छी जॉब करता था। वहीं पर साक्षी से उसकी मुलाकात हुई और दोनों ने कुछ ही दिनों बाद एक होने का फैसला कर लिया। मुझे भी साक्षी बहुत पसंद आई और दोनों परिवारों की रजामंदी से बहुत धूमधाम से शादी हो गई दोनों की। साक्षी एक बहुत ही अच्छी लड़की थी। मेरे साथ तो वह बेटी की तरह रहती । देख कर कोई कह नहीं सकता था कि हम सास बहू है। विशाल तो उस पर जान छिड़कता था। दिन खुशियों के पंख लगाते हुए कट रहे थे। शादी के 1 साल बाद नन्हे मेहमान की आने की खुशी से हमारे जीवन में एक और नई बाहर आ गई। अब हम उसके आने का इंतजार करने लगे। विशाल तो पापा बनने के लिए एक-एक दिन उंगलियों पर गिन रहा था लेकिन हमें क्या मालूम था कि जिन किलकारियों व खुशियों का हम इंतजार कर रहे हैं। हमारे जीवन में कभी नहीं आएंगी। 1 दिन साक्षी ऑफिस से वापस आ रही थी। उसकी कार का एक्सीडेंट हो गया और वह हमें छोड़ इस दुनिया से चली गई। इस सदमे ने हमें पूरी तरह तोड़ दिया। विशाल ने तो खुद को एक कमरे में ही बंद कर लिया था। हंसना बोलना, खाना-पीना सब छोड़ दिया। अपने बेटे की हालत मुझसे देखी से ना जाती थी। कई बार उसे समझाने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं था।
तब मैंने फैसला किया, हम नयी जगह जाएंगे नई जगह और नये लोगों के बीच जाकर, क्या पता उसका दुख कुछ कम हो जाए। विशाल इसके लिए तैयार नहीं था। तब मैंने उसे बहुत समझाया और कहा
" बेटा जाने वाले के साथ नहीं जाया जा सकता। माना कि तेरा दुख बहुत बड़ा है लेकिन एक बार अपने आसपास देख। तुझे अपने से भी ज्यादा दुखी लोग नजर आएंगे। उनके बारे में सोच ।उनके लिए कुछ कर। इससे तेरा दुख भी कम होगा और तेरी साक्षी को भी अच्छा लगेगा।"
उसने मेरी बात मान ली और हम यहां आ गए। फिर उसने एनजीओ खोलने का फैसला किया और इन गरीब बच्चों के जीवन को संवारने में लग गया। इनके दुखों को दूर करने में वह अपना दुख भी भूल गया।अब तो उनके चेहरे पर मुस्कान लाना ही उसके जीवन का लक्ष्य बन गया । कहते हुए कल्याणी जी की आंखों में आंसू आ गए।
क्रमशः
सरोज ✍️