30 Shades of Bela - 13 in Hindi Moral Stories by Jayanti Ranganathan books and stories PDF | 30 शेड्स ऑफ बेला - 13

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30 शेड्स ऑफ बेला - 13

30 शेड्स ऑफ बेला

(30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास)

Episode 13: Roopa Das रूपा दास

जिंदगी के रंग अधूरे हैं अभी

काफी देर से बेला अपनी मां के बारे में सोच रही थी। दिमाग में तूफान सा मचा था। उसकी सबसे चहेती दादी ने भी उससे इतनी बड़ी बात कैसे छिपा ली? वे ऐसा कैसे कर सकती थीं? जब भी बेला अपनी मां के बारे में सोचती, उसकी आंखें भर आतीं। वह अपनी मां से हमेशा दूर रहा करती थी, काश, वह उस वक्त उन्हें समझ पाती। काश, काश, काश…

अपने ख्यालों में मशगूल वह दिल्ली में अपने घर पहुंच गई, सफदरजंग एन्क्लेव। मौसी उसे देख कर खुश लग रही थीं। बिना उनकी तरफ देखे बेला पापा के कमरे में चली गई। पुष्पेंद्र बिस्तर पर लेटे थे, बीमार। बेला को देखते ही उनकी आंखें चमक उठीं, ‘बेटा, मेरे पास आओ। मैं बहुत दिनों से कुछ बताना चाहता हूं तुम्हें।’ बेला ने धीरे से उनके कान के पास जा कर फुसफुसाते हुए कहा, ‘मुझे पता है पापा,’ पुष्पेंद्र की आंखें फैल गईं, ‘तो क्या कृष ने तुम्हें पद्मा के बारे में बता दिया?’

‘नहीं, मेरी मां ने बताया… सबकुछ …’

पुष्पेंद्र चौंक गए। उनके चेहरे पर सवाल से उभर आए। इसी समय मौसी कमरे में आ गई, ट्रे में कचौडी और चाय ले कर। बेला ने ध्यान से उनकी तरफ देखा, आशा मौसी, उसे जन्म देनेवाली मां। उसकी मां, उसे जन्म दे कर अपने से दूर करने वाली मां? क्या सब कुछ भूल जाए बेला, माफ कर दे उन्हें? मौसी ने उसके हाथ में चाय का कप पकड़ाया। बेला का हाथ उनके हाथ से छू गया। बेला ने अपना हाथ तुरंत पीछे खींच लिया। मौसी उससे पूछ रही थीं, रिया के बारे में, समीर के बारे में। बेला हां-हूं में जवाब दिए जा रही थी।

बेला को कृष से भी मिलना था। पापा से उसने कहा, वह एक दोस्त से मिलने जा रही है, जल्दी ही लौट आएगी।

रास्ते में बेला ने घर फोन लगाया। उसकी आवाज सुन कर रिया खुश हो गई। बस उसकी एक ही रट थी, मम्मा जल्दी से घर आ जाओ। बेला का मन भावुक हो उठा। उसकी बेटी को बुखार है, उसे जल्द से जल्द उसके पास पहुंच कर उसे अपनी गोद में लेना है।

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रेस्तरां में कृष पहले ही पहुंच गया था। कमरे में हलकी सी रोशनी थी, सुरीला संगीत बज रहा था। फूलों की खुशबू से पूरा माहौल गमगमा रहा था। कृष को देख कर बेला के कदम ठिठक गए। दिल की धड़कनें बढ़ गईं। वह पहले से भी ज्यादा हैंडसम लग रहा था। उसे देख कर कृष खड़ा हो गया। उसका पुराना दोस्त… प्रेमी …! कृष ने दोनों के लिए सफेद वाइन और बेला का पसंदीदा दही के कबाब मंगवाया। दोनों के बीच एक अजीब सी दूरी थी। दोनों एक-दूसरे से बहुत कुछ कहना चाहते थे, सुनना चाहते थे। कुछ देर चुप रहने के बाद दोनों अचानक एक साथ बोल उठे। बेला ने पूछ ही लिया, तुमने पद्मा से शादी क्यों की? कृष ने लंबी सांस भरी और जैसे अतीत में चला गया।

वो तो दिल्ली आया था, बेला के पापा से मिल कर उसका हाथ मांगने। पापा और मौसी ने उसे बताया कि बेला की शादी हो गई है, समीर से, जिसे वह प्रेम करती है। कृष का दिल टूट गया, जिंदगी से जो बचाखुची उम्मीद थी, वह भी छूट गई। वह घर से जाने को ही था कि उसका सामना पद्मा से हो गया। पद्मा जो बेला जैसी दिखती थी। पर बेला नहीं थी… फिर पापा ने बताया उसे पद्मा के बारे में। इतनी छोटी उम्र में क्या-क्या नहीं हुआ उसके साथ। पद्मा विधवा है, यह जानकर कृष को भी रोना आ गया। पद्मा उस वक्त बहुत बिखरी हुई थी। कृष को लगा कि वह पद्मा को एक नई जिंदगी दे सकता है। उसे मजबूती दे सकता है। पापा चाहते थे कि वे दोनों शादी कर लें। पद्मा को पापा ने ही समझाया था शादी के लिए।

कृष ने एक सांस में उसे अपनी कहानी बता डाली। अब दोनों के पास कहने के लिए कुछ था नहीं। कृष की आंखें उससे कह रही थीं कि वह अब भी उसे कितना चाहता है। बेला की आंखों में पता नहीं क्या था? प्यार था तो किसके लिए? इस समय तो हजारों शंकाएं और चिंताएं थीं।

दोनों रेस्तरां से बाहर निकल आए। कृष ने कहा कि वह उसे घर छोड़ते हुए आगे निकल जाएगा। टैक्सी में ड्राइवर ने एफएम रेडियो चला दिया। लता मंगेशकर और आशा भोंसले की मधुर आवाज गूंजने लगी, मन क्यों बहका रे बहका आधी रात को। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की मनमोहक धुन। बेला ने आंखें बंद कर लीं, गाना जैसे कहीं दूर से आ रहा था। आस-पास खुशबुएं हैं, जिंदगी है, दूसरों के लिए, शायद उसके लिए नहीं। उसका घर आ गया। कृष ने अलविदा कहने के लिए उसका हाथ थामना चाहा। पर बेला तो जैसे किसी दूसरी ही दुनिया में थी। वह बिना कृष की तरफ देखे, टैक्सी से उतर कर घर की ओर चल दी।

दरवाजा खुला था। बेला ने पापा के कमरे में झांक कर देखा, वे सो रहे थे। बेला उनके सिरहाने बैठ गई। उनके कमजोर चेहरे पर उम्र के निशान दिखने लगे थे। अचानक कितने बूढ़े लगने लगे हैं पापा। कमजोर हाथों में नसों का उभार साफ दीख रहा था। बेला ने रजाई खींच कर उन्हें उढ़ा दिया। उनका चश्मा बंद आंखों से निकाल कर टेबल पर रखा, बेड लैंप स्विच ऑफ करके दबे पांव अपने कमरे में आ गई।

बहुत देर तक उसे नींद नहीं आई। आंख खुली, मोबाइल की घंटी से, उसका रिंग टोन था, मेहदी हसन की गजल, रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ…

बेला ने चिहुंक कर फोन उठाया।

‘हैलो, मैं मेरी एंड जोसेफ स्कूल से सिस्टर सेबेस्टियन बोल रही हूं मैडम। मुझे आपसे तुरंत मिलना है। आपकी बेटी रिया…के बारे में कुछ बात करनी है।’

इतनी सुबह, रिया के स्कूल से फोन? बेला घबरा गई। बेला ने सिस्टर को बताया कि अभी वो दिल्ली में है। सिस्टर जल्दी में थी, उन्होंने कहा, तुम तुरंत यहां आओ।

बेला को कुछ समझ नहीं आया। झटपट उठ कर वह पापा के कमरे में गई। पापा तो दवाई ले कर बेहोशी की नींद सो रहे थे। कमरे में बस उनके मद्धम खर्राटों की आवाज हलकी-हलकी गूंज रही थी। बेला ने तुरंत पापा की टेबल से एक पैड उठाया और जल्दी-जल्दी लिखने लगी। शायद लिखते-लिखते वह रो रही थी। पत्र के अंत में उसने लिखा, … नियति की प्यारी बेटी…

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मुंबई छत्रपति शिवाजी टर्मिनस एयरपोर्ट से वह सीधे रिया के स्कूल गई। बेला ने पहले सोचा, समीर को खबर कर दे। पर ना जाने क्यों वह रुक गई। बेला को देख सिस्टर सेबेस्टियन अपने कमरे से बाहर निकल आई। उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, ‘मुझे खुशी है, तुम जल्दी आ गई। दरअसल पिछले हफ्ते हम लोगों ने स्कूल में सभी बच्चों का मेडिकल टेस्ट करवाया था, रूटीन में हर साल करवाते हैं। उनकी रिपोर्ट आई है। तुम देख लो।’

रिया की रिपोर्ट उसके हाथ में थी। बेला की सांसें जैसे रुक गईं।

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बेला अपने फैमिली डॉक्टर अतुल विजन की क्लीनिक में थी। डॉक्टर ध्यान ने मेडिकल रिपोर्ट पढ़ रहे थे। उनके माथे पर चिंता की लकीरें पड़ने लगीं। रिपोर्ट नीचे रख कर उन्होंने गंभीर आवाज में कहा, ‘बेला, आप किसी स्पेशलिस्ट से मिल कर सेकंड ओपिनियन ले लीजिए।’

बेला गमगीन सी घर आई। रिया अपनी गुड़िया को बांहों में ले कर सोई हुई थी। बेला उसके पास पहुंची और उसे गले से लगा लिया। रिया सोते में अपनी गुड़िया से कस कर लिपट गई। बेला के गले में कुछ अटक गया। रिया के अंदर जैसे आंसुओं का उबाल आ गया। ये क्या हो रहा है उसके साथ? वही क्यों? दादी, मां और अब…

नहीं, वह रिया को कुछ नहीं होने देगी। बेला फूट-फूट कर रोने लगी। ऊपर वाले को जरा भी दया नहीं आ रही उस पर। मेरी मदद करो। मदद।

अगर तुम नहीं कर पाए, तो मैं करूंगी अपनी बेटी की रक्षा। मेरी बेटी।

रिया हलके से कुनमुनाई। बेला झपट कर उसके पास पहुंची। रिया जैसे नींद में बड़बड़ा रही थी, मम्मा तुम आ गई? मम्मा, क्या मैं मरने वाली हूं मम्मा…

बेला ने रोते-रोते अपनी बेटी को गले से लगा लिया, वह बस उसे चूम रही थी और मन ही मन प्रार्थना कर रही थी…