सिम्बोर से दमन तक जाने का रास्ता 672 किलोमीटर लम्बा और थका देनेवाला था और ऊपर से उन दोनों के पास इतना वक़्त भी गंवाने के लिए नही था। इसी लिए अब्बास ने रहीम को पहले से ही एक बोट का इंतज़ाम करने को कहा था। और उसके दो फायदे भी थे, पहला तो यह कि किसी को उनके बारे में पता चल पाता इससे पहले वो दोनों आराम से पलायन कर सकते थे और दूसरा अरबी समुद्र जहा पर वो हत्या में शामिल किए हुवे हथियारों से छुटकारा पा सकते थे।
"चलो फेंक दो इस दरांती को रहीम।" हरा लबादा पहने हुवे शख्स्श ने बीच समुद्र में बोट रोककर रहीम से कहा।
रहीम ने हरा लबादा पहने हुवे शख्श के कहने पर उस दरांती को अरबी समुद्र में फेंक दिया और दरांती के साथ साथ अपने बीते हुवे कल को भी अलविदा कह दिया। कल से उसकी जिंदगी अलग होने वाली थी, एक अलग नाम और पहचान के साथ वो हमेशा अपनी पुरानी जिंदगी को अलविदा कहनेवाला था।
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"साहब ये आपके लिये।" पीओ ने आलोक थॉम्पन को देते हुवे कहा, जो अपने आफिस में बैठे हुवे कंप्यूटर पर कुछ जरूरी काम कर रहा था।
पीओ के जाने के बाद उसने कवर को खोला और उसमें से एक पेन ड्राइव निकली और साथ मे एक खत निकला जिससे वो पढ़ने लगा।
"अजित साहब, मैं आपका शुक्र गुज़ार हूँ, कि आपने मुझे उस वक़्त सहारा दिया था जिस वक्त मेरे अपने मुझसे मुंह फेर चुके थे, उम्मीद है आप कुशल मंगल होंगे, आपके किये हुवे एहसानों का बदला चुकाना मेरे लिए नामुमकिन है, लेकिन फिर भी इस खत के साथ मे आपको एक पेन ड्राइव भेज रहा हूँ, उम्मीद है आपको मेरा भेजा हुवा तोहफा ज़रूर पसंद आएगा। एक और दरख्वास्त है आपसे अजित साहब की यह पेन ड्राइव सिर्फ आप और आप ही देखे, क्योकि में चाहता हु की इस मौके का फायदा सिर्फ और सिर्फ आपको मिले, और किसीको इसके बारे में जानकारी न लगे।
आपका दोस्त
मुरली सिवाल।"
"पिताजी, आपके लिए एक खत आया है और उसके साथ एक पेन ड्राइव भी आई है, भेजने वाला शायद आपका कोई करीबी लगता है।" खत पढ़ने के बाद आलोक को वो पेन ड्राइव अपने कंप्यूटर में लगाकर देखना मुनासिब न लगा इसीलिये उसने अपने ससुर की आफिस में जा कर उनको यह खत के साथ आई हुई पेन ड्राइव देते हुवे कहा।
"अनिता देबनाथ,
दत्तापारा साहिब काली मंदिर के पास,
शिलांग-अगरतला रोड,
अगरतला-799130"
"आलोक, क्या तुम पता कर सकते हो यह खत कहा से आया?" खत पर लिखा अड्रेस पढ़ने के बाद अजित ने आलोक से पूछा।
"पिताजी, इसमें अड्रेस लिखा तो है।" आलोक ने जवाब देते हुवे कहा।
"यह अनिता देबनाथ कौन है, पता करो, अगरतला में हमारा जान पहचान के किसी आदमी से पता करवाओ।" इस बार अजित की आवाज़ एक ससुर जैसी नही थी बल्कि एक बॉस की अपने किसी एम्प्लोयी के साथ होती है ठीक उसी तरह की थी।
"जी पिताजी।" आलोक कहते हुवे बाहर निकल गया।
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"सिर आपके लिए खत आया है" जब रामदास पासवान पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ अपने घर मे बातें करने में व्यस्त था तब उसके बॉडीगार्ड ने उसको लिफाफा थमाते हुवे कहा।
"रामदास पासवान जी, उम्मीद है आप और घर मे सब कुशल मंगल होंगे, रकसोबजकसम के बारे में आपने सुना होगा, गर नही सुना है तो आपको बताते हुवे मुझे बेहद खुशी होगी, रकसोबजकसम यानी किसी पर हुवे ज़ुल्म का बदला लेना। गरुड़ पुराण में इस सजा का विस्तार से वर्णन है। ज़्यादातर ये सज़ा उन लोगो को दी जाती है जिन्होंने जानवरो पर और इंसानो पर जुल्म किया हो और उनका खून बहाया हो। भैयाजी, या फिर आदित्यनाथ को भी हमने यह सजा दी है, और इस पूरी घटना का हमने पूरा वीडियो रिकॉर्ड कर एक पेन ड्राइव में स्टोर कर आपको भेजा है। उम्मीद है आपको पसंद आएगा।
कलम को विराम देने से पहले एक और सलाह, कृपया हमें ढूंढने की कोशिश न करे, क्योकि चुनाव सर पर है और हम नही चाहते कि, आपके और भैयाजी के पुराने दिनों और काले धंधों का सच पब्लिक और मीडिया को पता न चल जाये।"
आपका अपना,
मुरली सिवाल।"
खत पढ़ने के बाद तो रामदास आग बबूला हो गया और उसकी ऐसी हालत थी हो गयी थी कि काटो तो खून न निकले, अपने गुस्से को काबू करने के बाद उसने वो भैयाजी के क़त्ल का वीडियो देखा और सोचने लगा कि यह मुरली सिवाल आखिर कौन है, और वो चाहता क्या है?
"केशव तनवानी,
आसोपालव, ग्रीन वुड्स,
यूनिवर्सिटी रोड,
राजकोट 360005"
पहले मिले खत पर लिखे अड्रेस की वजह इस बार रामदास को एक अलग जगह से खत मिला था। अब तक वो समझ गया था कि जो भी शख्श इसके पीछे था वो बेहद ही शातिर था, उसके बारे मे पता लगाना और उसको पकड़ना यकीनन मुश्किल होने वाला था।
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"रामदास जी, आपके लिए फ़ोन है।" रामदास जब भैयाजी के क़ातिल के सोच-विचारो में अपने बरामदे के सोफे पर बैठा हुआ मग्न था तब रामदास के पी.ए. ने उनका ध्यानभंग कर फ़ोन देते हुवे कहा।
"हेलो, रामदास पासवान जी, में अजित बोल रहा हु, आज फिर मुरली सिवाल के नाम से एक खत मिला है।" जैसे ही रामदास ने फोन अपने कान पर रखा तो उसे अजित की आवाज़ सुनाई पड़ी।
"तुम्हे कैसे पता कि, मुझे मुरली सिवाल का कोई खत मिला है?" रामदास थोड़े टेंशन के कारण बात को ठीक से समझ नही सका और सामने सवाल कर बैठा।
"मतलब, आपको भी मुरली सिवाल का कोई खत मिला है?" सवाल के बदले सवाल करते हुवे अजित ने रामदास की बात सुन सकपका कर पूछा।
थोड़ी देर बाद फोन पर दोनों के साथ घटी घटना का एक दूसरे को पूरा ब्यौरा देते हुवे दोनों ने बिनाधिकारिक तौर पर मुरली सिवाल को ढूंढने का प्लान बनाया, और इस काम के लिए रिश्वतखोर पुलिसवाले आई.जी.प्रभु को लगाने का फैसला किया जो पैसों के लिये कुछ भी कर सकता था।
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