anaitik - 7 in Hindi Fiction Stories by suraj sharma books and stories PDF | अनैतिक - ०७- दिल्लगी

Featured Books
  • लोभी

          "लोभी आधुनिक माणूस" प्रस्तावनाआजचा आधुनिक माणूस एकीकडे...

  • चंद्रासारखा तो

     चंद्र आणि चंद्रासारखा तो ,जवळ नाहीत पण जवळ असल्यासारखे....च...

  • दिवाळी आनंदाचीच आहे

    दिवाळी ........आनंदाचीच आहे?           दिवाळी आनंदाचीच आहे अ...

  • कोण? - 22

         आईने आतून कुंकू आणि हळदची कुहिरी आणून सावलीचा कपाळाला ट...

  • कथानक्षत्रपेटी - 4

    ....4.....लावण्या sssssss.......रवी आणि केतकी यांचे लव मॅरेज...

Categories
Share

अनैतिक - ०७- दिल्लगी

घर बस अब एक गल्ली की दूरी पर था, जैसे जैसे घर करीब आता वैसे दिल की धड़कने तेज़ हो रही थी, ये पहली बार था स्कूल के बाद मुझे किसी से इतना डर लगा हो. मै घर पर आ गया और बाइक पार्क ही कर रहा था की मुझे कशिश घर से जाते हुए दिखी और वो मुझे देख कर ऐसी हँसी दे रही थी मानो उसने कोई बाजी जीत ली हो...मै समझ गया अगर मै अभी अन्दर गया तो मुझे थोड़ी देर बाद हॉस्पिटल ही जाना पड़ेगा, मैंने बाइक धीरे से फिर बाहर निकली और सोचा थोडा रुक कर जाता हूँ, माँ पापा का गुस्सा थोडा तो कम होगा...कशिश पर गुस्सा भी बहोत आ रहा था...

जैसे ही मैंने बाइक निकली माँ ने देख लिया और बिना कुछ बोले इशारे से मुझे अन्दर आने के लिए कहा... जब आप डरे हुए होते हो तो आपको अपने भी दुश्मन नज़र आते है, मैंने बाइक पार्क की और अन्दर चला गया, माँ पापा दोनों मुझे देख रहे थे मै समझ गया की आग पूरी तरह से लगायी गयी है, पानी डालना बेकार ही जायेगा पर उसके बाद जो हुआ उस पर मुझे यकीन ही नहीं था, उन दोनों ने मुझे पहले तो बहोत गुस्से से २-४ बाते सुनायी..

पता है बाहर कितना खतरा है फिर भी तू गया, ऐसा क्या ज़रूरी काम था...ऐसा वैसा बहोत कुछ और फिर ८ बज गये थे हम खाना खाने बैठ गये..मतलब मै समाज गया की कशिश ने घर पर कुछ नही बताया था, बेकार ही उस लड़की पर शक कर रहा था..फिर वो मुस्कुरा क्यों रही थी? शायद वो समझ गयी की मै डर गया था की वो घर पर बता देगी..मुझे खुद पर हंसी आ रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे मैंने कोई चैंपियनशिप मैच जीती हो...२ मिनिट पहले मै इतना डरा हुआ था और अब इतना खुश बस ये ही सोच रहा था की तभी पापा ने मेरी ओर देखा,

मुझे भी बता क्या हुआ है मै भी हसता हूँ

नही पापा ऐसा कुछ नहीं, वो तो बस एक बात याद आ गयी थी..

बेटा याद क्या आयी थी बात या लड़की?

और हम दोनों हँसने लगे, पर माँ ..क्या कौन लड़की?

लड़की नहीं माँ, बात याद गयी थी..

अछ मुझे लगा लड़की की बात कर रहे है..वैसे तुझे है क्या कोई लड़की पसंद?

माँ, प्लीज अब फिर शादी की बात नहीं

बेटा एक न एक दिन तो करना ही है, और देख हमारे घर में सबकी शादियाँ जल्दी हो जाती है ..तू भी तो २५ साल का हो गया

हाँ, माँ वही तो कह रहा अभी मै सिर्फ २५ साल का ही हुआ हूँ, माँ मुझे पहले अच्छे से सेट होने दो..

मतलब तू कहना क्या चाहता है? कब करेगा शादी?

थोडा वक़्त चाहिए मुझे?

कितना? इस बार मौका पाकर पापा ने भी पापा होने का प्रदर्शन निभाते हुए पूछा!! पापा बचपन से ही मुझे दोस्त की तरह रखते थे, मै हर छोटी बड़ी बात उनको ही बताता था..

बस और ३-४ साल?

क्या ? माँ ने ऐसे कहा जैसे मैंने उनसे किसी की मरने की खबर सुनाई हो... क्या कहा ३-४ साल मतलब बुड्डा होने के बाद शादी करेगा?

३-४ साल में मै बुड्डा हो जाऊंगा? आपको पता है ना मेरा जर्मनी का अग्रीमेंट है ७ साल का अभी तो सिर्फ ३ साल हुए है,...आगे मै कुछ बोल पाता पापा ने दोस्ती का फ़र्ज़ अदा किया..

हाँ तो ठीक है, पर २ साल से ज्यादा नहीं ..समझा.. दो साल बाद तुझे हमारी बात सुननी ही होगी.

मै समझ गया था की पापा माँ को शांत कर रहे है, मैंने भी कह दिया हाँ पक्का सिर्फ २ साल बस...

पापा मुझे आँख मारते हुए डायनिंग टेबल से उठ कर चले गये फिर मै भी अपने रूम में आ गया...

इस सब के बिच मै कशिश को थैंक यू बोलना भूल ही गया था, मुझे अब सिगरेट पीनी थी पर बारिश जोरो पर थी और रूम में पिता तो माँ पापा को पता चल जाता. कुछ नहीं कर सकता था इसीलिए मैंने फिर लूडो खेलना शुरू कर दिया, माँ पापा रूम में सोने चले गये..मुझे नाईट शिफ्ट की आदत हो गयी थी तो अब वीक ऑफ पर भी रात को नींद नहीं आती थी. कोशिश तो बहोत करता की सो जाऊं तो थोड़ा आराम ही मिलेगा पर नहीं, नींद तो जैसे मुझसे कोसो दूर थी..