#अहिल्या_तारा_द्रौपदी_कुन्ती_और_मंदोदरी,
#पंचकन्या_महारत्ने_महापातक_नाशनम......अर्थात नित्यप्रति पंचकन्याओं का नाम स्मरण करने से महापाप का भी नाश हो जाता है।
#अब_आगे_पढिये...... गौतम ऋषि के श्राप से अहिल्या पत्थर की शिला बनकर भगवान श्रीराम का आतिथ्य करने की प्रतीक्षा करने लगीं। जब महाऋषि विश्वामित्र ताड़का वध के लिए राम और लक्ष्मण को अपने साथ ले गये तभी उन्होंने राम और लक्ष्मण को कई दिव्य अस्त्र भी प्रदान किये और उन्होंने अहिल्या का उद्धार भी कराया। वो राम को पत्थर की शिला बन चुकी अहिल्या के पास लेकर गये। भगवान श्री राम के चरण स्पर्श होते ही अहिल्या अपने पूर्व रूप में (16 वर्ष की युवती) आ गईं। उन्होंने राम को प्रणाम किया तथा पुनः गौतम ऋषि के पास चली गईं।
#पंचकन्याओं में दूसरी हैं वानरराज 'ऋक्ष' (रीछ) के पुत्र और देवराज इंद्र के धर्मपुत्र किष्किंधा के महाबली राजा बाली की पत्नि तारा। (जुड़वा भाई बाली और सुग्रीव जिनमें बाली के धर्मपिता देवराज इंद्र थे जबकि सुग्रीव के धर्मपिता सूर्य। इनके जन्म की कथा भी बहुत रोचक है जिसे किसी अन्य अंक में आपसे साझा करूँगा।)
कुछ विद्वानों का मानना है कि तारा देवताओं के गुरू ब्रहस्पति की पुत्री अथवा पौत्री थीं पर कुछ विद्वानों का कहना है कि समुद्र मंथन में निकले 14 रत्नों में कुछ अपसरायें भी थी जिनमें से एक मणि तारा थीं। सौंदर्य की प्रतिमा तारा को देखकर सभी उससे विवाह करना चाहते थे। जिनमें से समुद्रमंथन में देवताओं की सहायता कर रहे महाबली बाली तथा सुषेण वैद्य भी थे। दोनों में तारा को लेकर द्वंद की स्थिति को देखकर भगवान विष्णु ने दोनों से कहा-
“आप दोनों ही तारा के बराबर जाकर खड़े हो जायें जिससे ये निर्णय किया जा सके कि तारा किसकी पत्नि बनेगी।” सुनकर सुषेण वैद्य तारा की दाईं ओर खड़े हो गये जबकि बाली बाईं ओर। इसे देखकर भगवान विष्णु मुस्कुराकर बोले-
“आप दोनों ही तारा के वर बनने की योग्यता रखते हैं परन्तु धर्म नीति अनुसार विवाह के समय कन्या के दाहिनी तरफ उसका होने वाला पति तथा बाईं तरफ कन्यादान करने वाला पिता खड़ा होता है। अतः बाली तारा का पति तथा सुषेण उसका पिता घोषित किया जाता है। अब भगवान विष्णु के इस निर्णय का विरोध कौन कर सकता था अतः बाली और तारा का विवाह हो गया।
बाली तारा को लेकर किष्किंधा आकर राज करने लगे। बाली बहुत पराक्रमी था, माना जाता है उसमें 100 हाथियों के समान बल था और ये भी मान्यता है कि जो भी बाली के सामने आकर युद्ध करता था तो उसका आधा बल क्षीण होकर बाली के अन्दर आ जाता था। किष्किंधा में बाली के साथ उनका भाई सुग्रीव भी अपनी पत्नि रूमा के साथ रहता था।
एक बार मायावी राक्षस दुदुंभी ने भैंसे का रूप बनाकर बाली को युद्ध के लिए ललकारा। ललकार सुनकर बाली उससे युद्ध करने के लिए बाहर जाने लगा तब तारा ने उसे कहा-
“ये राक्षस बहुत मायावी है, इसलिए आपका अकेले युद्ध में जाना उचित नहीं।” सुनकर तारा ने कहा-
“स्वामी मैं जानती हूँ, आपके जैसा पराक्रमी कोई दूसरा नहीं है। आपने रावण जैसे दैत्य को अपनी बगल में दबाकर कई दिनों तक रखा था परन्तु इस बार आप मेरा निवेदन स्वीकार करें।” सुनकर बाली सुग्रीव को अपने साथ ले जाने को तैयार हो गया।
मायावी दुदुंभी तथा बाली का युद्ध कई दिनों तक चला। युद्ध करते-करते वो दोनों एक गुफा के अन्दर चले गये। कुछ दिनों बाद गुफा के भीतर से रक्त की धार बहकर बाहर आने लगी। सुग्रीव ने मन में सोचा कि निःसंदेह बाली महापराक्रमी है पर हो सकता है मायावी ने उसका वध कर दिया हो इसलिए उसने विशाल पत्थर से गुफा का प्रवेश द्वार बंद कर दिया और किष्किंधा में आकर इस बात की सूचना मंत्रियों को दी कि शायद बाली मायावी के हाथों मारा गया है, तो मंत्रणा करके मंत्रियों ने सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा चुना और प्रकट रूप से विधवा हुई तारा अपने पति के छोटे भाई की पत्नी स्वीकृत हुई। {इस बात से स्पष्ठ है कि बाल्मिकि रामायण के अनुसार उस समय भी विधवा विवाह को मान्यता थी।}
दुदुंभी का वध करने के पश्चात बाली वापस आकर न सिर्फ सुग्रीव को राज्य से निकाल देते हैं बल्कि उसकी पत्नी रूमा पर भी पती की तरह ही अधिकार जमा लेते हैं। {इसे बाल्मिकि रामायण में घनघोर निंन्दनीय तथा पाप की श्रेणी में रखा गया है।} जब राम और सुग्रीव की मित्रता होती है, किष्किंधा कांड में तब राम भी इसे पाप की संज्ञा देते हैं और बालि वध के लिए तैयार हो जाते हैं। राम के कहने पर सुग्रीव ने बाली को युद्ध के लिए ललकारा तो बाली के संग युद्ध में सुग्रीव बहुत घायल हो गया और राम जी से पूछा-
“प्रभु! ये कैसी मित्रता निभाई आपने.... आपके कहने पर मैंने बाली को ललकारा पर आपने उस पर तीर नहीं चलाया और मैं किसी तरह जान बचाकर भागा।” सुग्रीव ने कराहते हुए कहा।
“मित्र! तुम दोनों देखने में बिल्कुल एक समान दिखते हो। भूलवश अगर वो तीर तुम्हें लग जाता तो अनर्थ हो जाता।” कहकर राम ने सुग्रीव के घायल शरीर पर हाथ फेरा जिससे सुग्रीव का दर्द गायब हो गया और वो पुनः ऊर्जावान हो गया। राम ने निशानी के रूप में सुग्रीव के गले में माला डाल दी और उसे फिर से बाली के साथ युद्ध करने के लिए कहा।
सुग्रीव ने किष्किन्धा जा कर बाली को फिर से द्वंद्व के लिये ललकारा। जब बाली ने दोबारा सुग्रीव की ललकार सुनी तो वो क्रोध से भर गया और अपनी गदा लेकर सुग्रीव से युद्ध के लिए बाहर जाने लगा तब तारा को शायद इस बात का बोध हो गया था कि सुग्रीव को राम का संरक्षण प्राप्त हो गया है क्योंकि अकेला सुग्रीव बाली को दोबारा ललकारने की हिम्मत कदापि नहीं कर सकता अतः किसी अनहोनी के भय से तारा ने बाली को सावधान करने का प्रयास किया। तारा ने यहाँ तक कहा कि सुग्रीव के साथ संधि कर लो और उसे किष्किन्धा का राजकुमार घोषित कर दों किन्तु बाली को लगा कि तारा सुग्रीव का अनुचित पक्ष ले रही है इसलिए उसे दुत्कार दिया। किन्तु उसने तारा को यह आश्वासन दिया कि वह सुग्रीव का वध नहीं करेगा बल्कि अच्छा सबक सिखाकर छोड़ देगा।......#क्रमशः................#मानस