aasman mai daynasaur - 9 in Hindi Children Stories by राज बोहरे books and stories PDF | आसमान में डायनासौर - 9

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आसमान में डायनासौर - 9

आसमान में डायनासौर 9

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

तीसरे दिन उन्होंने यान में लगा कम्प्युटर चालू किया और अभी तक देखे गये ग्रहों की जानकारी और चित्र देखने चाहे बटन दबाते ही सारी जानकारी पर्दे पर दिखने लगी। इसके साथ ही उन्होंनेे कम्प्युटर के इंटननेट को चालू किया तो बड़ा अचरज हुआ िकवे अपने देश से वायरलेस पर तो सम्पर्क नही ंकर पा रहे थे पर जाने किस ग्रह के आसपास थे कि इंटरनेट चल रहा था सो प्रोफेसर दयाल ने नेट चालू किया और कम्प्युटर के बहुत सारे बटन दबाकर इतिहास और जीवाश्मिक से संबंधित जानकारी कम्प्युटर के पर्दे पर देखना शुरू कर दी।

पर्दे पर विकिपीडिया की वेव साइट पर हिन्दी के देवनागरी शब्द चमकने लगे वे लोग ध्यान सवे पढ़ने लगे। वहां बतया गया था कि पृथ्वी ग्रह का धीरे धीरे करोड़ों साल में विकास हुआ था और इस विकास के बीच अलग अलग समय यहां भी ऐसे डायनासौर प्रजाति के जीव जंतु अलग-अलग समयो पर हुये थे और हमारी पृथ्वी का मौसम व वातावरण बदलते ही वे खत्म हो गये थे। यह भी हो सकता है हमारी पृथ्वी पर मौसम तब बदलता और जब अंतरिक्ष से कोई दूसरा ग्रह यानिकि कोई धूमकेतु धरती पर आकर टकराता होगा जिससे धरती पर आग या पानी ही पानी भर जाता होगा जिससे उस युग में जीवित सारे जीव समाप्त हो जाते होंगे।

प्रो. दयाल का अनुमान सच निकला था कि इस सौर मंडल के लाल, पीले और हरे आदि ग्रह पृथ्वी के विकास के ही रास्ते पर चल रहे थे और एक दिन वे पृथ्वी जैसे ही विकसित हो जायेंगे।

अब प्रो. दयाल का ध्यान अपने गगन यान के पर्दे पर दिखते उन ग्रहों की ओर भी गया जहां वे अब तक गये नही थे। उन्होंने अपने शिष्यों से बात की कि दूर-दूर से ग्रहों को देख लेना क्या बुरा है?

छोनों भाइयों ने सहज स्वीकृति दे दी थी ।

इसी समय उनकी दृष्टि अचानक ही पर्दे पर चली गयी और उन्हे भय मिश्रित कौतुहल हुआ।

पर्दे पर एक अंतरिक्ष यान तीर की गति से बढ़ता हुआ सामने से चला आ रहा था। उन्हंे लगा कि यह यान तो देखा हुआ है वे याद करने लगे कि कब और कहां उस यान को देखा होगा।

थोड़े से प्रयास के बाद ही अजय को याद आया कि अरे ये तो सोवियत संघ का भेजा हुआ अंतरिक्ष यान ““पायोनियर”” है, जिसको कई वर्ष पहले पृथ्वी से रवाना किया था ताकि वह आकाश में लगातार विचरण करते हुये पता लगाये कि पृथ्वी के अतिरिक्त और कहां जीवन जगत मौजूद है। बाद में इस यान के बीचबीच में संपर्क धरती से टूटे भी जाता था।

तो ““पायोनियर”” यहां तक आ ही गया। चलो अब धरती से संपर्क हो ही जायेगा। प्रो. दयान प्रसन्नता से झूम उठे।

उन्होंने अपना रेडियो चालू किया और पायोनियर यान में लगे कम्प्युटर से संबंध स्थापित करने का प्रयास करने लगे।

काफी परिश्रम के बाद भी उन्हे निराशा ही हाथ लगी, तो वे कुछ उदास होने लगे। तभी वे चौके .........

अचानक ही पायोनियर ने अपनी दिशा बदली थी और ठीक नब्बे अंश का कोण बनाते हुये एकदम मुड़कर अपनी दांई और तरपट भाग निकला था।

प्रो. दयाल ने भी पलक झपकते ही अपना यान पायोनियर के पीछे पीछे लगा दिया और यहां जा वहां जा वे पायोनियर यान का पीछा करने लगे थे।

पायोनियर एक अज्ञात ग्रह की ओर बढ़ रहा था जो लगातार बड़ा होता जा रहा था। प्रो. दयाल ने अपनी दूरबीन लगाकर देखा और देखते ही रह गये। वह ग्रह दूर से एकदम पृथ्वी कि तरह लग रहा था।

प्रो. दयाल के मन में एक हुक सी उठी और उन्हे भारतवर्ष की शस्य सामला भुमि याद आने लगी। दक्षिण भारत के ऊँचे ऊँचे मंदिरो के शिखर तथा केरल नौका दोड़ और गुजरात के गरबा याद कर वे पुलकित हो उठे।

बंगाल की भुमि पर गुंजता रवीन्द्र संगीत,हरियाणा,पंजाब के भांगड़ा और भत्त संगीत के तालपर नाचते नौजवान उनकी आंखो के आगे नाच उठे।

उन्हे अपनी धरती से दूर पायोनियर को देख कर लगा था कि अब काई अपना भाई बंधु आ पहुंचा है। हालांकि पायोनियर तो वैजान लोहे का एक यंत्र मात्र ही था। सच है घर से दूर घर की कोई भी चीज कितनी लगती है, यह सोचकर प्रो.दयाल उस धरती जैसे ग्रह को गौर से देखने लगे।

अब उस ग्रह के आसपास घुमते छोटे-छोटे उपग्रह भी दिखने लगे थे, और ताज्जुब तो यह था, कि वे भी वैज्ञानिकों द्वारा बनाये गये उपग्रहो जैसे लग रहे थे। अजय अभय भी बड़ी उत्सुक्ता से उस ग्रह की ओर ताक रहे थे।

पुरी प्रसन्नता के साथ प्रो.दयाल की निगाहें उस ग्रह पर टिक गई। पायोनियर तो उस ग्रह के पास पहुंचकर उसकी कक्षा में प्रविष्ट हुये बगैर उसे इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा जबकि गगन सीधा ही नये ग्रह की कक्षा मे प्रविष्ट हो गया।

ग ग ग ग ग

नये ग्रह की में प्रवेश करते समय प्रो.दयाल को पक्का विश्वास हो गया था, कि दूर पृथ्वी पर बसे फ्रांस देश की मैडल ब्लास ग्रजमैन की अकूल संपत्ति का वारिस अब जरूर ही मिलने वाला है क्योकि अपने आखिरी दिनों में “मैडम” ग्रजमैन ने लिखा था कि मेरी संपत्ति मंगल ग्रह से या अंतरिक्ष से आने वाले उस पहले प्राणी को दी जाये जो हमारी दुनिया यानि इस पृथ्वी का वासी न हो।

प्रो. दयाल को लगा था कि जल्द ही वे इस ग्रह के किसी मानव को लेकर लौटेंगे और उसे फ्रांस ही नही दुनिया का सबसे अमीर आदमी बना देंगे।

प्रो.दयाल की तंद्रा जल्द भंग हो गई जबकि उन्होंने देखा कि उनका यान गगन एकाएक स्थिर होकर लटक सा गया था।

उन्हें बड़ा अचरज हुआ।

उन्होने एक बार फिर सारे यंत्रो का निरीक्षण किया।

मगर मामला “वहीं ढ़ाक के तीन पात” यंत्र चालू थे, मगर यान टस से मस नही हो रहा था। अजय अभय की आंखो से भय झांकने लगा था।

बिस्मित प्रो. दयाल ने स्क्रीन पर नजर दौड़ाई तो उन्हे मामला कुछ संगीन ही नजर आया। ग्रह वासियों की नज़रे तेज दिखाई देती थी। गगन यान के चारों और लगभग आठ राकेट जैसे यंत्र खड़े थे, जिनमें से रह रह कर नीली सी आग निकल रही थी।

प्रो. दयाल ने अपना कम्प्युटर चालू किया और उसके माध्यम से गगन के बाहर लगे माइक द्वारा पृथ्वी की समस्त भाषाओं में बारी बारी से एक ही संदेश दोहराने लगे मित्र...मित्र...मित्र...!

लगभग आधा घंटा बीता।

यानो में थोड़ी हरकत सी हुई थी, मगर मामला कुछ जम नही पाया था। वे शायद संदेश को समझ नही पा रहे थे। धरती की कोई भाषा वे नही जानते होंगे।

प्रो. दयाल सकपकाये। अब क्या करे।

एकाएक उन्हें ध्यान आया कि उनके यान में एक सूट रखा है, जिसे पहनकर अंतरिक्ष में तैरा जा सकता हैं।

उन्होंने झटपट अपना वही सूट पहना और गगन को स्थिर होने के यंत्र दबाकर निचले कक्ष में उतर गये। निचले कक्ष का तापमान शुन्य पर लाकर उन्होंने दरवाजा खोला और अंतरिक्ष में छलांग लगा दी।