anaitik - 6 in Hindi Fiction Stories by suraj sharma books and stories PDF | अनैतिक - ०६ बेखुदी

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अनैतिक - ०६ बेखुदी

मेरी शिफ्ट हो गयी थी, पर मै अब भी उसके रिप्लाई का वेट कर रहा था, दिख तो वो अब भी ऑनलाइन ही रही थी पर उसका कुछ रिप्लाई नहीं आया, मुझे लगा शायद मुझे मेसेज नही भेजना चाहिए था..मै फ़ोन लॉक कर सो गया, घर में पता था की नाईट शिफ्ट की वजह से मुझे रात भर जागना पड़ता है इसीलिए दिन के वक़्त कोई भी आवाज़ नहीं करता था, मुझे उतने में सबेरे के ११ बज गये थे, रोज की आदत थी उठने के बाद चाय के साथ एक सिगरेट पिने की पर घर माँ पापा को पता नही था की मै सिगरेट पिता हूँ इसीलिए मै छत पर चला जाता और एक साइड में थोड़ी देर बैठकर फिर निचे आ जाता. आज भी वैसे ही हुआ मैंने चाय पि और सीधा छत पर जाने लगा, छत की सीडियां घर के बहार से थी, मै जाने के लिए दरवाज़ा खोला और सामने कशिश खड़ी थी आज उसकी मुस्कान में अलग ही मदहोशी थी पर मैंने बिना उसे देखे सीधा ऊपर चढ़ गया, मुझे गुस्सा आ रहा था की उसने मुझे रिप्लाई नही दिया, इधर उधर नज़र घुमरी और ६-७- कश होने के बाद मै निचे आ गया...

माँ ये लड़की रोज रोज क्यों आती है?

बेटा उनके घर पूजा चल रही ना, प्रसाद देने आती है ...चल आजा तू खाना खा ले,

नहीं माँ अभी तो चाय पि है ..थोडा रुक कर खता हूँ कहकर मै रूम में जाकर फ़ोन देखने लगा की मुझे फेसबुक पर कशिश का मेसेज दिखा "हाय" , मैंने कुछ रिप्लाई नही किया और गेम खेलने लग गया, थोड़ी देर में पापा ने आवाज़ लगायी तो मै बहार आ गया और हम सब साथ में खाना खाने लगे..

कितना कमाया लूडो में?

क्या पापा आप भी मजाक करते हो...मैंने तो पहले ही कहा थ ऐसा कुछ नहीं रहता बस फालतू का गेम है..

अच्छा, तू फिर तू रोज क्यों खेलता रहता है?

मुझे लूडो पसंद है न तो बस थोडा टाइमपास और कुछ नहीं...

मैंने देखा मेरी सिगरेट का डब्बा खाली हो रहा था और लॉकडाउन में मिलना भी मुश्किल था इसीलिए मैंने जर्मनी से बंदोबस्त करके आया था पर अब मेरी दोस्त, मेरी गम कि साथी भी साथ छोड़ रही थी और मुझे जल्दी ही कही से सिगरेट जमाना था, तभी मुझे ख्याल आया की मेरा स्कूल का दोस्त किशन के पापा की किरण दुकान है और वो सिगरेट भी रखते है , मैंने फटाफट उसे कॉल किया और किस्मत से मुझे मिल भी गयी...आज पूरा दिन मुझे कुछ काम नहीं था, घर पर बोर होता रहता मैंने सोचा सिगरेट भी ले लूंगा और किशन से मिलना भी हो जाएगा, बहार निकलूंगा तो थोडा मन लग जायेगा.. जानता था लॉक डाउन में बहार जाना खतरा था पर मैंने चेहरे पर मास्क पहन कर पूरी तयारी करली हम उसके घर पर मिलने वाले थे, उसके मम्मी पापा रिश्तेदार के यहाँ गये थे और लॉकडाउन के वजह से वही फस गये थे किशन अकेला ही रहता था..

हमने बहोत बाते की, मैंने एक महीने का सिगरेट का स्टॉक भी साथ ले लिया था, अब मुझे सीधा घर जाकर रूम में जाना था ताकि माँ पापा इसे देख ना ले .. अब शाम के ७ बज रहे थे, माँ घर पर राह देख रही होगी.. दिन ढल गया था पर सूरज दादा अब भी गरमा रहे थे अप्रैल का महिना था, किशन का घर मेरे घर से थोडा दुरी पर था और गल्ली में था बहोत कम लोग आते जाते रहते, नया एरिया था अभी अभी सबके घर बनने शुरू हुए थे. मैंने एक सिगरेट मुहँ में डाली और गंग्स ऑफ़ वासेपुर का फैज़ल बनकर स्टाइल से बाइक निकलने लगा जैसे ही बाइक को किक मारी सामने देख कर मै कोई मिल गया का ऋतिक रोशन बन गया...सामने कशिश उसके पति के साथ बाइक पर जा रही थी और वो मुझे ही देख रही थी, एकदम से सिगरेट मेरे मुहँ से निचे गिर गयी उसकी नज़रे लगातार मेरा पिछा कर रही थी मैंने अपनी नज़रें निचे करली और वो गल्ली में टर्न हो गये, मुझे लगा आज तो बस काम हो गया, रह रह कर बाइक शुरू की और आगे बडने लगा. मुझे ज़िन्दगी में सबसे ज्यादा डर किसीका लगा होगा तो माँ का...पापा को कैसे समझाना ये मै अच्छी तरह जानता था पर ...

मै कभी नहीं भूल सकता था बचपन में जब मैंने स्कूल ना जाने की जिद की थी तो माँ ने मुझे इतना मारी थी की आज भी उसके निशान मुझे डर का एहसास कराते रहते..पर माँ प्यार भी बहोत करती थी...सोचते सोचते मै घर के करीब आ गया...