आराधना वंश के साथ अंदर गयी, अमित भी कार खड़ी करके उसके पीछे गया।
उसने वंश को अपनी गोद में लिया और फिर परेशानी की वजह पूछने लगा, पर आराधना ने कहा कि वंश को भूख लगी होगी इसलिए वह फ्रेश होकर सबसे पहले खाना बनाएगी।
आराधना लगभग 1 घण्टे बाद किचन से बाहर आयी और सामने टेबल पर प्लेट्स जमाने लगी,
"चलो बेटा जल्दी से खाना खाकर सोना है, कल स्कूल भी तो जाना है ना"
ऐसा कहते हुए अमित वंश को लेकर आया।
कुछ आराम मिला सिर दर्द से
ज्यादा दिक्कत होगी तो खाने के बाद दवाई ले लेना" अमित ने आराधना की ओर देखकर कहा।
ऐसा कहते हुए जैसे तैसे उसने अपना खाना खतम किया और उसके बाद वंश को लेकर बेडरूम चली गयी।
"मम्मा आप भी सो जाओ न, लात हो गयी है" वंश ने आराधना का हाथ पकड़कर कहा।
" ठीक है बेटा थोड़ी देर बाद सो जाऊँगी, अभी आप आराम से सो जाओ"
वंश के माथे पर हाथ फेरते हुए आराधना ने कहा।
इधर अमित ने दरवाजा बंद किया जो उनकी शॉप पर जा कर खुलता था और सारी लाइट्स ऑफ की।
वंश अब सो चुका था, थोड़ी देर बाद अमित भी अंदर आया उसने आराधना के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा - " अपनी खामोशियों की वजह बताओ आराधना!
मैं तुम्हें अब और इस हालत मे नहीं देख सकता"
आराधना अब टूट सी गई और उसके गले से लिपट गयी, उसकी आँखें भी आँसुओ के सैलाब न रोक सके ।वंश की नींद में दखल न हो इसलिये वे दोनों छत पे गये।
मैंने कमला आंटी को देखा है,
वो कहाँ नौकरानी का काम करती है"
आराधना ने अपने आँसू पोछते हुए कहा।
अमित भी अचानक सदमे में आ गया, उसकी आँखे लाल हो गयी पर उसने आराधना को समझाते हुए कहा-
तुमने किसी और को देखा होगा,
वो भिलाई से यहाँ कैसे आ सकती हैं,
वैसे भी अग्रवाल अंकल और मनीष के रहते वो किसी के घर नौकरानी का काम क्यों करें?"
आराधना ने बताया कि वो और कोई नही बल्कि कमला आंटी ही है क्योंकि सुनीता ने खुद उसका परिचय कराया था।
उसने अमित का हाथ पकड़ते हुए कहा- " वही तो मैं सोच रही हूँ उतनी बड़ी मालकिन नौकरानी क्यों बन जाएगी और आखिर सुनीता ने उन्हें अनाथ क्यों कहा?
अंकल और मनीष कहाँ है, शीतल भी तो शादी के बाद उन्हें अपने साथ रख सकती थी।
किस्मत एक बार फिर क्यों हमें आमने - सामने ले आयी?
मैं वंश को नहीं खोना चाहती
उन्होंने फिर कुछ किया तो "
" तुम्हें मुझ पर भरोसा है ना आराधना!
क्या मैं ऐसा होने दूँगा "
" अपने आप से भी ज्यादा भरोषा है, अगर आप न होते तो न जाने मेरा क्या होता, आपके बिना तो अधूरी हूँ मैं।
लेकिन अपनी किस्मत से डर लगता है कहीं फिर ये अपना रंग न दिखाए "
ऐसा कहते हुए आराधना ने उसे कस कर पकड़ लिया।
अमित ने उसे समझाते हुए कहा कि ऐसी कोई बात नही होगी, उसके रहते कोई वंश को छू भी नहीं सकता।
लेकिन खुद उसकी आँखें ये सवाल कर रही थी आखिर क्या वजह है, जो कमला आंटी भिलाई से कोरबा आ गयी और वो भी इस हालत में।
रात के 11 बज गए अमित आराधना को बेडरूम की तरफ ले गया, वंश अब गहरी नींद में था।
"चलो अब ये सब सोंचना छोड़ दो,
कल सुबह वंश को स्कूल भी तो लेकर जाना है "
"हाँ मैं कोशिश करती हूँ नींद आ जाये तो"
"सुनीता मिलेगी तो उससे पूछ लेना कि कमला आंटी कब से कोरबा शिफ्ट हुई है, और please अपने जज्बातों पर काबू रखना, पुरानी बातों की चर्चा उससे बिल्कुल मत करना,
Good night" अमित ने उसके हाथ को सहलाते हुए कहा।
अमित ने कमरे की लाइट्स ऑफ की और उसके बायीं ओर लेट गया।
आराधना ने वंश के माथे को चूमा और आहिस्ता-आहिस्ता उसके बाल सवारने लगी, उसका मन अब पुराने ख्यालों में डूबता जा रहा था..
भिलाई शहर का वो कन्या अनाथालय जहाँ उसकी जिंदगी की शुरुआत हुई थी,
माँ - बाप का प्यार क्या होता है ये उसने कहाँ जाना था।हमेशा वो बस यही सोंचती कि आखिर भगवान ने उसे ऐसी जिंदगी क्यों दी पर दूसरी लड़कियों को देखकर वो भी अपना मन सन्तोष कर लेती। mother's day, father's day, और रक्षाबंधन जैसे त्यौहार तो उन्हें चुभने लगते थे, ये शायद अनाथों के लिए न बना हो।
स्कूल से लेकर कॉलेज पढ़ते तक अनाथालय ही तो उसका सबकुछ था। वहाँ सभी लड़कियाँ इसी उम्मीद में तो जीया करती थी कि एक दिन उनके सपनों का राजकुमार आएगा और उन्हें दुल्हन बनाकर ले जाएगा , फिर शादी के बाद शायद उन्हें एक परिवार मिल जाए।