Mita ek ladki ke sangarsh ki kahaani - 8 in Hindi Love Stories by Bhupendra Kuldeep books and stories PDF | मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 8

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मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 8

अध्याय-8

मीता कुछ दिनों तक घर नहीं आ पाई और उसका ज्वानिंग लेटर भी आ गया। नजदीक के ही शहर में उसे पोस्टिंग मिली थी। वो आराम से घर से आ जा सकती थी और ज्वानिंग के तुरंत बाद ही उसे प्रशिक्षण के लिए प्रशासन अकादमी जाना था।
मीता सुबोध के साथ जाकर ज्वानिंग दे आई।
सुबोध मैं प्रशासन अकादमी जाने से पहले फिर से एक बार घर जाना चाहती हूँ। मीता ने कहा।
बिलकुल मीता। तुमको अपने पिताजी से फिर से बात करनी चाहिए।
तो फिर चलो मुझे लेकर।
सुबोध उसे लेकर उसके घर छोड़ आया।
जिस वक्त वो घर पहुँची उसके पापा नहीं थे वो कहीं बाहर गए थे।
माँ।
ओह! आओ बेटा।
तुम्हारे पापा तो बाहर गए हैं बेटा।
मुझे उनसे फिर से माफी माँगनी थी। जब तक वो माफ नहीं करेंगे मैं उनसे माफी माँगती ही रहूँगी।
मैं नहीं जानती तुम दोनो बाप-बेटी का क्या नाता है। दोनो एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हो फिर भी बातचीत बंद है।
हाँ ये तो तुम सही कह रही हो माँ। यदि पापा के ऊपर कोई विपत्ति आई तो मैं जान देने से भी पीछे नहीं हटूँगी। पहले भी मेरी वजह से उनको एक बार तकलीफ पहुँच चुकी है। अब दुबारा उन्हें चोट नहीं पहुँचाऊँगी। अच्छा तुम उन्हें बता देना कि मैं आयी थी।
ठीक है बेटा।
अच्छा माँ मैं जाती हूँ। ऐसा कहकर उसने सुबोध को बुलाया और घर चली गई।
दूसरे दिन सुबोध उसको लेकर प्रशासन अकादमी पहुँचा। सामने गेट पर ही अंजली मिल गई।
हाय अंजली।
ओ हाय। मीता डार्लिंग। क्या हॉल है ? ये जीजाजी हैं ?
हाँ ये सुबोध है मेरे पतिदेव। और ये है मेरी प्यारी दोस्त अंजली। उसका चयन आयकर निरीक्षक के लिए हुआ है।
हाय जीजाजी। आपकी बीवी तो मेरी अधिकारी हो गई है। भई बॉस तो बॉस है अब दोस्ती कहाँ रहेगी।
तू फिर शुरू हो गई। एकदम चुप कर। ये बता तूने रजिस्ट्रेशन करा लिया? और रूम कौन सा मिला तुझे ?
अभी नहीं कराया यार। चलो एक साथ ही कराते हैं और एक ही रूम के लिए ट्राई करते हैं।
दोनो रजिस्ट्रेशन काऊँटर पर गए और किस्मत से दोनो को एक रूम ही एलॉट हो गया।
फिर वो दोनो रूम पर जाकर सामान छोड़ आए और सुबोध को रोड तक छोड़ने आए।
अच्छा सुबोध अब तुम निकल जाओ। अब चिंता की उतनी बात नहीं है मेरी रूम पार्टनर अंजली जो है।
ठीक है मीता। अपना ध्यान रखना और कोई आवश्यकता हो तो फोन कर देना। सुबोध बोला।
हाय। ये देखकर तो मेरा जी मचल जाता है। काश मुझे भी कोई छोड़ने आता और बोलता अपना ध्यान रखना । अंजली छेड़ते हुए बोली।
तू चुप कर।
नहीं, नहीं आप लोगों को एक दूसरे को चूमना हो तो मैं पलट जाती हूँ। आप लोग प्लीज कैरी ऑन । यह कहकर वो पलट गई।
बदमाश। तुझे तो बहाना चाहिए बस छेड़ने का।
तुम जाओ सुबोध ये ऐसी ही है। कहकर उसने अंजली को वापस पलट लिया।
चलो बाय। चलता हूँ। कहकर सुबोध निकल गया और दोनो अपने कमरे में वापस आ गए।
अंजली हमारे साथ कौन-कौन से सर्विस वाले लोग ट्रेनिंग में आए हैं।
डी.एस.पी. लोग ट्रेनिंग में आए हैं ?
डी.एस.पी. और लेखाधिकारी है शायद।
मतलब 30-40 लोग तो आराम से होंगे ना ?
हाँ उतने तो होंगे ही। अंजली बोली।
गुड चलो अच्छा है। हम लोग 2-4 लोग ही रहते तो बोर हो जाते। मीता बोली।
हाँ तुम सही बोल रही हो। ज्यादा लोग रहेंगे तो ज्यादा मजा आएगा।
तू भी ढूँढ लेना इसी में से किसी को।
देखते हैं कोई मुझे भी पसंद करता है कि नहीं। मेरे पास तो कोई बड़ा पद नहीं है यार।
क्यों आयकर निरिक्षक भी तो अच्छा पोस्ट है।
हाँ। अब सो जाओ। कल से क्लास जाना है।
दूसरे दिन से उनकी कक्षाएँ प्रारंभ हो गई।
धीरे-धीरे कर लोग आना चालू हो गए और दो-तीन दिनों में पूरी क्लास भर गई।
अब वो लोग 28 डी.एस.पी., 3 आयकर सेवा से और 3 लेखाधिकारी थे। जो एक ही क्लास में बैठकर पढ़ते थे।
एक दिन मीता जब क्लास में पहले से आ गई थी तब एक लड़का अंदर आया।
मैडम आपका नाम जान सकता हूँ। उसने कहा।
मीता, मीता शर्मा।
अच्छा, अच्छा आप आयकर अधिकारी हैं ना ?
हाँ।
और कहाँ की रहने वाली हैं ?
यही नजदीक के शहर की।
तभी कुछ लोग क्लास में अंदर आ गए और वो लड़का पीछे जाकर बैठ गया।
अंजली भी मीता के पास आकर बैठ गई।
वो पीछे एक लड़का बैठा है वो आज मेरा नाम पता पूछ रहा था। मीता बोली।
तो इसमें क्या विशेष बात है वो तो सब एक दूसरे को जानने की कोशिश करेंगे ही। तू व्यर्थ ही सोचते रहती है।
पर मुझे उसका एटीट्यूड थोड़ा ठीक नहीं लगा।
तु इन सब बातों पर ध्यान मत दिया कर। अंजली बोली।
अच्छा ठीक है।
कुछ दिनों बाद एक दिन फिर अंजली जब क्लास में 5 मिनट पहले आ गई थी तो वही लड़का अंदर आते दिखा।
ओ हैलो मैडम। क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ ?
मीता कुछ बोलती उससे पहले ही वह बैठ गया।
आपने उस दिन बताया नहीं था कि आप कहाँ की रहने वाली हैं ?
दुर्ग की रहने वाली हूँ।
और आपके पिता क्या करते हैं ?
वो पी.डब्लू.डी. में संयुक्त सचिव हैं। हो सकता है वो एकात दिन हमारी क्लास लेने भी आयें। मीता ने थोड़ा प्रभाव दिखाने के लिए बताया।
अच्छा, अच्छा मेरा नाम दीपक साहनी है। डी.एस.पी. हूँ और यहाँ के जो सांसद हैं उनका बेटा हूँ।
तभी क्लास में काफी लोग अंदर आ गए और वो लड़का फिर से पीछे जाकर बैठ गया। अंजली भी मीता के बगल में आकर बैठ गई।
अंजली वो लड़का कुछ ज्यादा ही नजदीकियाँ बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
तू है ही इतनी खूबसूरत, मेरी जान।
मजाक की बात नहीं है अंजली।
उसने तुझसे कोई बदतमीजी तो नहीं की ना ? अंजली बोली।
नहीं। की तो नहीं पर मुझे कुछ ठीक नहीं लगा।
सुबोध को बता दूँ क्या ?
जीजाजी को बताओगी तो वो और तनाव में आ जायेंगे। अगर वो कुछ बदतमीजी करता है तो अपने डायरेक्टर को बतायेंगे ना। तू चिंता क्यों करती है।
चल ठीक है। अगले दिन से वो जल्दी आना बंद कर दी ताकि वो लड़का फिर अकेले में बात ना कर सके।

क्रमशः

मेरी अन्य दो कहानिया उड़ान और नमकीन चाय भी matrubharti पर उपलब्ध है कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दें- भूपेंद्र कुलदीप।