wo bhuli daasta - 15 in Hindi Women Focused by Saroj Prajapati books and stories PDF | वो भूली दास्तां, भाग-१५

Featured Books
Categories
Share

वो भूली दास्तां, भाग-१५

खाना तैयार होने के बाद वह पड़ोसन सबको बुलाने आई। सभी उनके साथ जाने लगे तो वह बोली "आपकी बेटी नहीं आ रही क्या !"
चांदनी की मम्मी ने बहाना बनाते हुए कहा "बहन जी आज वह काम करते हुए थक गई है और तबीयत भी कुछ सही नहीं है उसकी इसलिए वह नहीं आ रही वह हमारे साथ। "

"कोई नहीं उसे आराम करने दो। मैं उसका खाना पैक कर दूंगी।"
"घर पर उनके बेटे ने सब का बहुत ही अच्छे से स्वागत किया। अपने बेटे से मिलवाते हुए वह बोली "बहन जी यह है मेरा बेटा विशाल और मैं कल्याणी। यही मेरा छोटा सा परिवार है।"
विशाल ने दादी और चांदनी की मम्मी के पैर छुए तो दोनों ने प्यार से उसके सिर पर हाथ रख दिया। सभी बैठ गए। तब चांदनी की मम्मी ने कहा "बहन जी मेरे परिवार से तो आप मिल ही चुकी हो। यह मेरा बेटा रोहित और वह उसकी बड़ी बहन चांदनी थी। उसके पापा को गुजरे हुए 8 साल हो गए हैं। मैं भी इन दोनों के लिए जी रही हूं।"
"सही कह रही हो बहन जी आप। हम औरतें तो अपने घर परिवार से बंधी है। दुख की घड़ी में इनकी मोह ममता ही हमें जीने का हौंसला देती है। विशाल के पापा तो जब यह 10 साल का था, तभी गुजर गए थे।" कहते हुए उसकी आंखों में आंसू आ गए।
यह देख विशाल बोला "क्या मम्मी आप! अरे खाने पर बुलाया है आपने इन्हें आंसूओं से पेट भरोगे क्या इनका। चलिए उठिए खाना लगाते है टेबल पर। वहीं पर बैठकर और बातें करेंगे लेकिन इमोशनल नहीं समझी प्यारी मम्मी!"
उसकी बात सुनकर कल्याणी मुस्करा उठी।
खाने की टेबल पर विशाल ने रोहित से उसके बारे में पूछा तो वह बोला "भैया अभी बीबीए पूरा किया है आगे पढ़ने की सोच रहा हूं। आप कोई सलाह दो।"
"हां हां क्यों नही!"
चांदनी की दादी बात आगे बढ़ाते हुए बोली "बेटा तुम सब से मिलकर तो लग नहीं रहा कि हम नयी जगह आए हैं। पहले तो मन बड़ा घबरा रहा था कि बुढ़ापे में दूसरी जगह कैसे मन लगेगा लेकिन अब लगता है जीवन के बाकी बचे दिन कट ही जाएंगे।"
"अरे अम्मा जी ,आप फिकर ना करो बहुत अच्छा मोहल्ला है हमारा। फिर जो पास में मंदिर है, वहां तो हमेशा भजन कीर्तन होते ही रहते हैं। सुबह शाम वहां चली जाया करो पार्क है। देखना कुछ ही दिनों में आप अपना पुराना गली मोहल्ला भूल जाओगे और आपके यहां संगी साथी बन जाएंगे। और आपकी बेटी वह क्या करती है। बहुत सुंदर व प्यारी लड़की है। स्वभाव से भी शांत दिखती है। '
"उसने भी अभी अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है। आगे देखो क्या करेगी। विशाल बेटा तुम क्या करते हो।" चांदनी की मम्मी ने बातों का रुख दूसरी और करते हुए कहा।
"आंटी जी मैं छोटी सी एनजीओ चलाता हूं। जिसमें गरीब व अनाथ बच्चों को पढ़ाई लिखाई के साथ कुछ हाथ के हुनर भी सिखाए जाते हैं।"
"वाह!तुम तो बहुत ही नेक काम करते हो! "
खाना खत्म करने के बाद चांदनी की मम्मी किचन समेटने के लिए उठी तो वह मना करते हुए बोली "नहीं बहनजी आज तो आप हमारे मेहमान हो इसलिए कोई मदद नहीं लूंगी हां , अगर कोई जरूरत पड़ती है तो मदद मांगने से पीछे नहीं हटूंगी।" फिर उन्हें एक टिफिन देते हुए बोली " यह हमारी बिटिया रानी के लिए।"
" क्या मम्मी, 1 दिन में इतनी जान पहचान हो गई कि 2 घंटे वहां लगा आए। यह भी भूल गए घर पर एक बेटी अकेली बोर भी हो रही होगी।" चांदनी झूठी नाराजगी दिखाते हुए बोली।
"तो तू क्यों नहीं चली। हमने तो तुझे कितना कहा था । अच्छा चल अब जल्दी से खाना खा ले। बहुत टाइम हो गया है। भूख भी लग रही होगी ना तुझे।"
"हां, वह तो लग रही है।" चांदनी खाना खाते हुए बोली "खाना तो बड़ा अच्छा बनाया हुआ है और यह खीर तो बहुत टेस्टी है।"
"हां ,खाना बहुत ही अच्छा था और मजे की बात खीर उनके बेटे ने बनाई है। सुन रही है ना बेटे ने।"
"हां हां समझ गई। क्या कहना चाहते हो आप! आती है मुझे भी खीर बनानी लेकिन आपको तो दूसरों के हाथ की बनी ज्यादा अच्छी लगती है ।अपनी बेटी की नहीं। लो मुझे नहीं खानी।"
"बस बात-बात पर मुंह बनाने लगी है तू ! अरे भई दूसरे की बड़ाई सुनना भी तो सीख। बहुत ही अच्छे लोग हैं ।बस मां और बेटा ही हैं घर में। रोहित को तो उससे बात कर बहुत ही अच्छा लगा। हां सुन एनजीओ चलाता है वह। "
"ठीक है मम्मी, क्या आप भी एक ही मुलाकात में कितनी इंप्रेस हो जाती है दूसरों से। अभी थोड़े दिन रुको, उसके बाद पता चलेगा कौन कितना अच्छा है! कौन कितना बुरा! सब शुरू शुरू में अच्छे लगते हैं असली रंग तो बाद में ही पता चलता है ।" कहते-कहते उसका गला भर आया।
"तू फिर पुरानी बातों को लेकर बैठ गई। बेटा सभी एक से नहीं होते। तुझे उनकी यादों के साए से बचाने के लिए ही तो यहां आए हैं और तू उन्ही बातों को लेकर फिर से बैठ गई। मैं आज के बाद तेरे मुंह से पिछली बातें ना सुनूं। भूल जा आगे बढ़। "।
घर का सामान समेटने के लिए सुबह सभी जल्दी उठ गए थे। थोड़ी देर में ही मंदिर से घंटी व आरती की आवाज आने लग । सुनकर दादी बोली "बहू मुझसे तो रुका नहीं जाता। मैं मंदिर जाना चाहती हूं। तू भी चल ना मेरे साथ।"
"मां देख रही हो, अभी तो सामान फैला हुआ है। आप ऐसा करो चांदनी को अपने साथ ले जाओ। वह नहा भी चुकी है जब तक आप लोग आओगे मैं और रोहित बाकी बचा काम निपटाकर नाश्ता पानी बना लेंगे। जा बिट्टू दादी के साथ चली जा। "
"नहीं मुझे नहीं जाना मंदिर! विश्वास उठ गया है मेरा भगवान से। आपको रोहित को भेज दो। मैं आपके साथ काम करवा दूंगी।" चांदनी मुंह बनाते हुए बोली।
"कैसी बातें कर रही है तू। रात को कितना समझाया था, उसके बाद भी। रोहित अभी नहाया नहीं है। जब तक वह नहाएं धोएगा, आरती खत्म हो जाएगी। जा चली जा तू मेरी प्यारी बिटिया है ना!"
ना चाहते हुए भी चांदनी को दादी के साथ मंदिर जाना ही पड़ा।
मंदिर पहुंचकर चांदनी दादी से बोली "दादी आप दर्शन करने जाओ ,मैं नहीं बैठी हूं यही।"
"पागल हो गई है क्या! अंदर नहीं चलेगी !"
' नहीं दादी आपके कहने से मैं यहां तक आ गई लेकिन प्लीज अब जिद मत करो ।आप जाओ मैं बैठी हूं।"
चांदनी और दादी की बहस हो ही रही थी कि तभी वहां पर कल्याणी अपने बेटे के साथ आ गई। उन दोनों को देख कल्याणी दादी के चरण स्पर्श करते हुए बोली "अरे अम्मा जी आप यहां क्यों खड़ी है चलिए , आरती खत्म हो जाएगी।"
"हां हां चलो!" कहते हुए दादी जाने लगी तो कल्याणी चांदनी से बोली
"बिटिया तुम नहीं चल रही क्या दर्शन करने!"
" नहीं आंटी जी आप लोग चलिए।"
बात संभालते हुए दादी बोली "उसकी तबीयत सही नहीं है ना! वो तो मेरे कारण आ गई।"
थोड़ी ही देर में सब पूजा कर वापस आ गए ।तब विशाल हंसते हुए बोला "दादी आपने मेरा परिचय तो करवाया ही नहीं अपनी पोती से।"
"अरे, हां बेटा ! कल भी इसकी तबीयत खराब थी। इसलिए नहीं आई थी। यह मेरी पोती चांदनी है। चांदनी यह कल्याणी का बेटा विशाल है।"
चांदनी ने रूखे स्वर में उससे नमस्ते की तो वह हंसते हुए बोला " अरे भाई हम पहली बार मिल रहे हैं। परिचय तो गर्मजोशी के साथ मुस्कुराते हुए होना चाहिए ना।"
उसकी बातों को नजरअंदाज करते हुए चांदनी अपनी दादी से बोली "दादी अब घर चलें, मम्मी अकेले काम करते हुए परेशान हो रही होंगी।"
"हां हां तू सही कह रही है !अच्छा कल्याणी हम चलते हैं।"
"अच्छा मां जी किसी भी चीज की जरूरत हो तो बता देना वैसे भी आज विशाल की छुट्टी है।"
"जरूर बिटिया हम तो वैसे भी अभी यहां नये है। तुम्हें ही परेशान करेंगे बेफिक्र रहो।"
"मां यह दादी की पोती कुछ नकचढी नहीं है।" विशाल ने हंसते हुए अपनी मां से कहा।
"सब तेरी तरह बातूनी नहीं होते। सबका अलग-अलग स्वभाव होता है। हो सकता है, उसे ज्यादा बातें करना पसंद ना हो और वैसे भी अभी आए 1 दिन हुआ है इन्हें। धीरे धीरे सबसे घुल मिल जाएगी। "
कुछ ही दिनों में दोनों परिवारों में अच्छा मेलजोल हो गया। कल्याणी व चांदनी की मम्मी दोनों ही अच्छी सहेलियां बन गई थी। दादी की तो पार्क व मंदिर की अपनी एक अलग ही मंडली बन गई थी। जिनके साथ इनका अच्छे से समय कट रहा था। रोहित भी अपनी आगे की पढ़ाई में जुट गया था। विशाल से भी उसकी अच्छी दोस्ती हो गई थी। बस चांदनी ही थी। जो अभी तक अपने पुराने दुखों के साये में जी रही थी। कितनी बार उसकी मां उसे अपने साथ पार्क में चलने के लिए कहती, दूसरों से मिलने जुलने के लिए कहती लेकिन हर बार वहां मना कर देती । ज्यादा कुछ कहने पर रोने लग जाती ।

अपने तजुर्बे से कल्याणी इतना तो समझ गई थी कि दोनों मां बेटी को कोई ना कोई चिंता घुन की तरह खाए जा रही है लेकिन पूछ कर और तकलीफ नहीं देना चाहती थी उन्हें।
एक दिन जब कल्याणी उनके घर आई तो चांदनी की मम्मी उन्हें बहुत दुखी दिखाई दी। कारण पूछने पर बस बात टालते हुए इतना ही बोली कि
"हम सबका मन तो यहां लग गया है लेकिन चांदनी का मन नहीं लग पा रहा। पूरा दिन घर में खाली रहने के कारण और दुखी रहती है। बचपन की सहेलियां भी तो वही छूट गई जिससे आपने मन की बात करती थी। आजकल के बच्चे सारी बातें तो अपने मां बाप को बताते नहीं।"
"हां यह तो है ।एक बात कहूं बहन जी। यह विशाल की एनजीओ जॉइन क्यों नहीं कर लेती । वहां जाएगी तो बच्चों के साथ इसका मन लग जाएगा और काम करते हुए समय का पता भी नहीं चलेगा। विशाल कह भी रहा था कि उसे बच्चों को पढ़ाने के लिए एक टीचर की जरूरत है। जो टीचर बच्चों को पहले पढ़ाती थी, उसकी शादी हो गई हैतो जगह खाली है । आप चांदनी से बात कर देखो।"
"कह तो आप सही रहे हो। मैं उससे बात करती हूं। शायद मान जाए। वहां भी घर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी।"
उन्होंने जब चांदनी से इस बारे में बात की तो वह मना करते हुए बोली " मम्मी मुझे नहीं जाना कहीं पर भी। मेरा मन नहीं है करता कुछ भी करने को।"
"बेटा इतना अच्छा अवसर तेरे पास आया है। चली जा मन लग जाएगा तेरा वहां। वैसे भी नेक काम है। कुछ दिन जाकर देख ले, अगर अच्छा नहीं लगा तो फिर मत जाना। बात मान ले अपनी मां की और वैसे भी विशाल है वहां पर कोई दिक्कत हो तो संभाल लेगा। "
अपनी मां के बार-बार जोर देने पर चांदनी ने हामी भर दी।
क्रमशः
सरोज ✍️