Jai Hind ki Sena - 9 in Hindi Moral Stories by Mahendra Bhishma books and stories PDF | जय हिन्द की सेना - 9

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जय हिन्द की सेना - 9

जय हिन्द की सेना

महेन्द्र भीष्म

नौ

बलवीर को रह—रहकर मोना की याद सता रही थी, मोना के साथ बीते कुछ घण्टे उसे याद आ रहे थे। बलवीर को लग रहा था जैसे मोना उसके पास महीनों रह कर गयी हो, कुछ ही घण्टों में बहुत प्यार पाया था उसने मोना का।

आज वह खुलना छोड़ देगा। साथ ही यह आशंका उसके मन में घर कर गयी थी कि पता नहीं वह पुनः मोना से मिल सकेगा या नहीं। युद्ध की विभीषका में जीवन का कोई भरोसा नहीं कि कब क्या हो जाये?

एक अनिश्चित समय आगे पसरा हुआ था, परन्तु बलवीर जैसे देशभक्त सैनिक के लिए इस समय प्रेम से बढ़कर कर्तव्य था।

वह कर्तव्य के पीछे अपना सब कुछ बलिदान कर देने का साहस रखता था। भानु अपने मित्र व मुँह बोली बहन मोना के प्रेमी बलवीर की स्थिति का अपने स्तर से अनुमान लगा चुका था।

वाचाल बलवीर को वह अधिक देर गुमसुम की अवस्था में न देख सका। उसने कारण जानने की इच्छा प्रकट की। थोड़े से प्रयास से ही उसे कारण स्पष्ट हो गया। वही ‘मोना' प्रधान कारण थी। भानु के लाख समझाने पर भी बलवीर की स्थिति में तनिक परिवर्तन नहीं आया। आख़्िारकार भानु हार—थक कर बलवीर को टेंट में मोना के चिंतन में डूबा छोड़ बाहर आकर धूप का आनंद उठाने लगा।

मैदान में कुर्सी पर बैठे हुए अभी उसे पाँच मिनट भी नहीं हुए थे कि

‘मोना' तौसीफ़ व हम्माद के साथ उसके सामने खड़ी थी।

अटल कुछ दूर अकेला खड़ा था। भानु की दृष्टि अंत में उस पर पड़ी।

अपना बायाँ हाथ गले के सहारे लटक रही पट्‌टी पर टिकाये अटल ने

शिष्टाचारपूर्वक अपनी बहन के मुँहबोले भाई को नमस्कार किया। भानु ने बढ़कर अटल को अपनी बाँहों का सहारा देते हुए वहाँ रखी कुर्सी पर आग्रहपूर्वक बैठा दिया।

‘‘भानु दा आपके मित्र कहाँ हैं?'' मोना ने यह जानते हुए भी कि बलवीर

टेंट के अंदर होगा अकारण पूछा।

भानु ने मुस्कराते हुए टेंट की ओर संकेत किया।

मोना तेजी से टेंट में घुस गयी। बाहर सभी बातों में व्यस्त हो गये।

मोना के ख़्यालों में आँखें बंद किए हुए बलवीर पलंग पर सीधा लेटा हुआ था।

उसके दोनाें हाथ सिर के पीछे उंगलियों से परस्पर बंधे थे।

एकाएक उसके नथुनों में भीनी—भीनी ख़्ाुशबू भर गयी और जैसे ही वह कुछ समझने के लिए अपनी आँखें खोलता; मोना की लटें उसके चेहरे पर बिखर गर्इं।

अपने माथे पर मोना का चुम्बन उसने महसूस किया।

‘मोना' बलवीर उठकर बैठ गया और मोना को आंलिगनबद्ध कर पुनः लेट गया। मोना उसके ऊपर थी। बलवीर उसके बालों में अपनी उंगलियों से कंघी करने लगा। मोना शांत कुछ पल बलवीर के चौड़े सीने पर मुँह छिपाये पड़ी रही।

‘‘मोना हम बिछुड़ तो न जाएँगे।'' बलवीर ने मोना की आँखों में झाँकते हुए पूछा। मोना ने बलवीर के होंठों पर हाथ रख दिया।

‘‘ऐसा अशुभ नहीं बोलते।'' मोना ने कहा। बलवीर ने मोना को बाँहों का सहारा देकर अपने और ऊपर खींच लिया।

अब मोना का चेहरा ठीक उसके सामने था और अगले पल मोना के अधर बलवीर के अधरों की क़ैद में थे।

एक दूसरे की साँसें परस्पर घुलमिल रही थीं। मोना ने बलवीर के मस्तक, गाल, आँखों पर अनगिनत चुम्बन जड़ दिये। यही प्रक्रिया बलवीर ने मोना के ऊपर दोहरायी। समय दोनों के लिए ठहर—सा गया था। एकाएक दोनों को अपनी बेसुधी का ध्यान आया। वे दोनों बेबस अलग हुए; क्योंकि

बाहर भी उनके स्नेही बैठे हुए थे।

इस तरह अकेले अंदर अधिक समय बिताना व्यावहारिकता के सर्वथा प्रतिकूल था। बाहर, भानु अंदर मोना को लग रहे अधिक समय से बेचैन हो रहा था और जैसे ही उसने मुस्कराते हुए दोनों को टेंट के बाहर निकलते देखा उसकी जान में जान आयी। मोना रुख़्ासाना के आसमानी सूट में बहुत सुन्दर लग रही थी।

बाहर लॉन में सभी घास पर बैठे बतिया रहे थे। खाली कुर्सियाँ एक ओर पड़ी थीं।

अटल ने छः फीट के हृष्ट—पुष्ट बलवीर को ग़ौर से देखा।

बलवीर उम्र में उससे दो—तीन वर्ष बड़ा ज़रूर था परन्तु रिश्ते में अब वह बड़ा बनने जा रहा है। अटल ने मन ही मन मुस्कराते हुए अपने आप से कहा।

मोना आज प्रातः एकांत में उसे अपनी प्रेम कहानी सुना चुकी थी और बलवीर से विवाह करने का निश्चय अपने अटल दा को बता दिया था। अटल अनाथ मोना का दिल नहीं तोड़ सकता था। इसलिए उसने तत्काल ही तौसीफ़ व हम्माद के पिता के समक्ष मोना के प्रेम प्रकरण की बात रख दी और उनसे इस हेतु परामर्श लिया। उच्च वैचारिक स्तर के दोनों बुजुर्गों ने अपनी सहमति सहज ही प्रदान कर दी। तौसीफ़ व हम्माद ने भी उसे बलवीर के बारे में अनुकूल रिपोर्ट दी।

बाकी का मामला महिला वर्ग ने सम्भाल लिया और तौसीफ़ व हम्माद के साथ दोनों भाई—बहनों को प्रारम्भिक रस्म करने के लिए भेज दिया।

भानु, अटल के मुँह से मोना के संबंध की बात सुनकर प्रसन्नता से भर उठा। उसके अरमान इतने जल्दी पूरे हो जाएँगे उसने सोचा भी नहीं था, आखिर वह भी तो मोना का मुँह बोला भाई था। जिसकी कलाई पर बड़ी श्रद्धा से मोना ने रूमाल राखी के रूप में बाँधा था।

तौसीफ़ ने बलवीर के समक्ष अटल की ओर से मोना की मँगनी उसके साथ करने की बात रखी। सैकड़ों लड्‌डू एक साथ बलवीर के मुँह में फूट पड़े। उसने भानु को देखते हुए मोना की ओर दृष्टि घुमायी। मोना शर्म से अपने आप में सिकुड़ी जा रही थी।

भानु ने अटल की ओर से सहमति प्रकट कर दी और अटल के अनुरोध पर अंगूठी का आदान—प्रदान भानु ने भाई के नाते कराया।

सादे समारोह में मात्र पाँच लोगों की उपस्थिति में बलवीर मोना की मंगनी हो गयी। न पंडित, न शंख, न मंत्रोच्चारण।

युद्ध के वातावरण में प्रकृति की गोद में विवाह पूर्व की रस्में खुले विचारों के अंतर्गत सम्पन्न हुईं। जब व्यक्ति की भावना पवित्र होती है, तब परम्पराएँ दिखावा सिद्ध होती हैं, रीति—रिवाज गौण हो जाते हैं। महत्वपूर्ण साधन होता है और अच्छे साधनों के सहारे प्राप्त साध्य सदैव श्रेष्ठ होता है।

हम्माद ने अपने साथ लाये ताज़े रसगुल्लों का डिब्बा खोल दिया। सभी ने रसगुल्ला एक दूसरे को खिलाकर अपना—अपना मुँह मीठा किया। स्वाद से लेकर विचारों तक मिठास ही मिठास सर्वत्र सभी के मन में भर गयी।

इस बार विदा होने के पूर्व मोना ने भानु दा को उसके प्रिय की सुरक्षा का भार मौन मन से सौंप दिया था।

भानु ने मोना के भावों को समझते हुए, उसके सिर पर अपना दाहिना हाथ रखते उसे वचन देते हुए कहा, ‘‘बहन ! तुम निश्चिंत रहो, तुम्हारे भानु दा के रहते कोई भी बलवीर का बाल बाँका नहीं कर सकता।''

मोना अपने भानु दा से वरदान पा गयी। विदाई की कसक पुनः सभी के अंदर उभर आई। अटल ने गले मिलकर विदा माँगी। तौसीफ़ ने बताया कि वह और हम्माद भारतीय सेना के साथ चलेंगे।

तब मोना पूर्णतः निश्चिन्त हो गयी कि अब उसके प्रिय के साथ उसके तीन—तीन भाई बतौर सुरक्षा के लिए रहेंगे। गेट के बाहर तक भानु व बलवीर उन चारों को छोड़ने आए।

बलवीर व भानु तब तक हाथ हिलाते रहे जब तक जीप उनकी आँखों से ओझल नहीं हो गयी, बलवीर ने भानु को अपनी बाँहों में भर लिया।

दोनों मित्रों की आँखों में पे्रम व प्रसन्नता के आँसू छलक आये।

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