virasat - 7 - last part in Hindi Thriller by श्रुत कीर्ति अग्रवाल books and stories PDF | विरासत - 7 (अंतिम भाग)

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विरासत - 7 (अंतिम भाग)

विरासत

पार्ट - 9
(अंतिम पार्ट)

सबकुछ के बावजूद, ऋचा को इस तरह धोखा देने के लिये वह अपने मन को तैयार नहीं कर पा रहा था। उससे अलग होने का निर्णय लेना बेहद मुश्किल काम था कि पिछले कितने ही सालों से ऋचा उसके हर सपने, भविष्य की हर प्लानिंग, हर चीज में उपस्थित रही थी। तय किया कि एक बार स्वयं को ही आजमाना पड़ेगा... देखना होगा कि कितने दिन वह ऋचा के बिना रह सकता है। उसके फोन नहीं उठाए, जी कड़ा करके उसके मैसेज खोल कर देखने बंद कर दिये... पर कब सोंचा था कि वह सीधा उसके घर ही आ पँहुचने की हिम्मत जुटा लेगी? जब ऋचा ने तेज आवाज़ में उसका नाम लेकर पुकारा था, वह बाऊजी के ऊपर वाले कमरे में प्रॉपर्टी के कागजात पढ़ने, समझने और सँभालने में व्यस्त था... और इसके लिये उसे बाऊजी की तरह ही ग्लोरिया को कोठी में बंद करके यहाँ आना पड़ा था।

इस तरह एक जवान लड़की को बेरोकटोक घर में घुसते देखकर माँ भौंचक्की थी और जब उसकी उपस्थिति को बिल्कुल अनदेखा कर उस लड़की ने अचानक रमेश का कॉलर पकड़कर झकझोर दिया... "बात क्यों नहीं करते मुझसे? बताते क्यों नहीं क्या बात है? तुम शायद मुझे धोखा देना चाहते हो!" तो वह बिल्कुल अप्रस्तुत सी हो उठी। अचकचाई सी उठ कर जाने लगी थी तो गंभीर आवाज में रमेश ने कहा, "तुम यहीं बैठो माँ, मुझे आज हर बात तुम्हारे सामने ही करनी है।"

अब शायद माँ की उपस्थिति पर ध्यान गया था ॠचा का। वह थोड़ा सा संयत होकर एक ओर हट गई।

"यह ऋचा है माँ! हम पिछले कई सालों से क्लासमेट हैं। मैं इससे शादी करना चाहता था।"

"था? क्या मतलब? अब नहीं करना चाहते हो?"

" पहले मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ। मान लो मुझे यह शहर छोड़ कर किसी अंजान जगह पर शिफ्ट होना पड़े, नई जिंदगी इतनी अनिश्चित हो कि मेरे पास हजार रुपये भी न हों और मेरी पढ़ाई पूरी होने की कोई संभावना भी न हो, क्या तुम मेरे साथ चलोगी... अभी और इसी समय?"

" तुम तो इतने सीरियस स्टूडेंट हो। अच्छी से अच्छी नौकरी मिलेगी तुमको इस लाईन में और ये घर भी तुम्हारा अपना है। तुम इस तरह की बातें क्यों कर रहे हो?" ऋचा कुछ भ्रमित सी थी... ऐसी किसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा, इसकी उसने कल्पना भी नहीं की होगी। "मुझे पता है तुम ऐसी बातें क्यों कर रहे हो... तुम्हारी लाइफ में कोई और है। तुमने मुझे धोखा दिया है।"

"मैंने तुम्हें कभी अपने पिता के बारे में कहा भले नहीं, क्योंकि वह हमारे साथ नहीं रहते थे, पर पिछले दिनों उनकी मृत्यु के साथ-साथ मेरे कमिटमेंट्स अचानक बहुत बढ़ गए हैं। मुझे अब बिल्कुल नहीं पता कि मेरा भविष्य क्या है, तो मैं तुम्हें अपनी परेशानियों में इन्वॉल्व कैसे करूँ?"

शायद कुछ और बातें हुई होतीं ऋचा से पर मोबाइल की घंटी लगातार बजती ही जा रही थी। उठा कर देखा, सलमा थीं उधर! बड़ी घबराई की आवाज में उन्होंने बताया कि कुछ लोगों ने उनके घर पर हमला कर दिया, उनको और सादिक को रस्सियों से बाँध कर, पूरे घर की तलाशी ली और जो कुछ भी मिला, लेकर भाग गए। बदहवास सा वह, ऋचा को माँ के हवाले कर, सलमा के घर के लिए भागा।

"उन लोगों ने मुंह ढँक रखा था, पता नहीं क्या खोज रहे थे वह!" सलमा ने बताया! किसी तरह उन्हें सान्त्वना दे, रिपोर्ट लिखाने पुलिस स्टेशन पहुँचा ही था कि माँ का फोन घनघनाने लगा... "वह लड़की, तेरी फ्रेंड... यहाँ से बाहर निकली ही थी, कुछ गुंडे लोग घात लगाकर दरवाजे के पास में बैठे हुए थे... मैंने देखा... मैंने देखा उनको... पर उन्होंने मुँह पर रूमाल बाँध रखा था। सफेद रंग की गाड़ी में जबरदस्ती ले गए हैं उसे..." घबरा गया वह, ऋचा को क्यों? उसने किसी का क्या बिगाड़ा है? यह सब क्या हो रहा है? उसे लगा जैसे चारों तरफ आग लगी हुई है और वह बुरी तरह घिर गया है... क्यों हो रहा है यह सब?

माँ के फोन के बारे में भी पुलिस को बताया, ऋचा के घर का पता लिखवा दिया... पुलिस स्टेशन से बाहर निकला तो पैर काँप रहे थे... एक कदम भी चलना असंभव सा लग रहा था कि अचानक याद आईं ग्लोरिया... कम से कम सात-आठ घंटे जरूर बीत गए हैं उन्हें बंद किये... इन झंझटों में तो भूल ही गया कि उनको खाना-पानी देना भी जरूरी था।

ताला खोलकर हवेली में घुसा ही था कि तीर की तरह रॉबर्ट ने प्रवेश किया। किसी तीसरे की उपस्थिति में उसको अंदर आने की हिम्मत करते देखकर ग्लोरिया कुछ परेशान सी थीं कि एकाएक रॉबर्ट ने खुशखबरी दी, "गिरधारी लाल मर गया है।"
बुरी तरह चौंकी थीं वह! "किधर?"
"सब पता लगा कर आया हूँ। अपने ही घर में मरा है साला! उसका अपका बेटा मार दिया है उसको और अब तो आठ-दस दिन हो भी गया उसको मरे!"

उत्तेजना में पहले तो वे लोग शायद उसकी उपस्थिति को भूल गए थे फिर जब राबर्ट का ध्यान उसकी तरफ गया, तो ग्लोरिया ने रमेश को अपना आदमी बताकर उसे आश्वस्त कर दिया। पर वह अब कुछ हताश दिख रही थीं। "अब क्या होगा? उसके पूरा मर जाने से तो सब गड़बड़ हो जाएगा।"

"कुछ नहीं होगा। हम हीरा को ले आया हूँ।"

रमेश को लगा, उसका ह्रदय कंठ में आकर फँस गया है। ...कहाँ है सुनहरी? इसके हाथ कैसे लगी? कहाँ छिपाया है इसने उसे?

अचानक उन दोनों की नजर एक साथ ही उसपर पड़ी। ग्लोरिया कुछ पशोपेश में थी...
"तुम फिर हमको बन्द कर के गया था मैन? हम तुमको मना किया था न?"

"आपने ही तो कहा था कि गिरधारी लाल आएगा तो उसको मेरे आने का शक न पड़े।"

"इतना देर किधर चला जाता है तुम? हमको भूख-प्यास लगता है कि नहीं? "

"आपकी पसंद का खाना तो पहले ही बना कर रखा है मैंने! पर अब जब गिरधारी लाल मर चुका है तो आप लोगों को मेरी जरूरत नहीं होगी। मेरी तनख्वाह दे दीजिए, मैं यहां से चला जाता हूँ।"

उसने पासा खेला और सचमुच वे दोनों उसके जाल में फँस गए। रॉबर्ट ने पूछा, "तू पढ़ा-लिखा है? अदालत-कानून का लिखा-पढ़ी समझता है कुछ?"

"हाँ, वकालत की पढ़ाई करने के लिए ही तो नौकरी कर रहा हूँ। हर तरह के कानूनी कागजात बना सकता हूँ।"

"क्या हीरा के बालिग होने के पहले ही उसका सब रुपया-पैसा उसकी माँ का हो सकता है?"

"पर उसमें तो लड़की को भी साइन करना होगा न? पावर ऑफ एटॉर्नी लेना होता है तभी कोई उसका केस लड़ सकेगा।"

"वह लड़की तो हम ले आया है मगर वह डर से बेहोश हो गया है।"

"ये क्या किया है आपने? लड़की को कुछ हो गया तब तो बुरी तरह फँस जाएँगे आप लोग!"
रॉबर्ट कुछ परेशान सा हुआ। "हमारे घर पर है वो!"

"तो पहले उसे यहाँ लाकर, ईलाज करिये उसका।"

रॉबर्ट के बाहर जाते ही ग्लोरिया एकाएक फुर्तीली हो गईं। "अब हम यहाँ एक दिन भी नहीं रहेगा। सब तरफ से रासबिहारी और गिरधारी लाल का बदबू आता है यहाँ।" वह बड़बड़ा रही थीं और अलमारी, पलंग के नीचे और भी पता नहीं कहाँ-कहाँ छुपाकर रखे हुए कीमती सामान निकाल कर बैग में भरती जा रही थीं। कोई और समय होता तो रमेश शायद इन चीजों को बचाने का प्रयास कर रहा होता पर इस समय तो दिमाग बिल्कुल परेशान था। कैसे बचाएगा व सुनहरी को? कागजात तैयार करने के नाम पर कुछ दिन खींचने की कोशिश करेगा! पुलिस को खबर कर के रॉबर्ट को जेल भी पहुँचाना होगा क्योंकि जैसे ही इन लोगों को लगेगा कि काम निकल जाएगा, यह लोग सुनहरी को मारने में दो मिनट भी नहीं लगाएँगें।

रॉबर्ट ने अपनी पीठ पर लदे बोरे को सँभालकर पलंग पर उतारा और उसकी रस्सी खोली... अरे, यह तो ऋचा थी। पल भर में रमेश को सब कुछ समझ में आ गया... बाऊजी का सारा इंतजाम तो इतना पुख्ता था कि उस अंजान से गर्ल्स हॉस्टल में राॅबर्ट पहुँच ही नहीं सकता था। यह तो भ्रम में उसके घर से ऋचा को उठा लाया है। ग्लोरिया चीख रही थीं... "यह किसको ले आया है मैन? ये हीरा थोड़े ही न है! तुम क्या उस को पहचानता नहीं है? मेरा शादी के समय में देखा नहीं था?"

रमेश चौकन्ना था। रिचा होश में आते ही उसे पहचान लेगी... फिर तो तुरंत यह बात भी खुल जाएगी कि वह उसी गिरधारी लाल का बेटा है। लेकिन वह यहाँ से हट भी तो नहीं सकता... कहीं फालतू समझ कर ये ऋचा की जान ही न ले लें।

अपनी परेशानियों में व्यस्त उन लोगों का ध्यान अपनी तरफ से जरा भटकते ही, उसने पुलिस को ऋचा के बारे में जानकारी दे दी थी और जल्दी ही किडनैपिंग के जुर्म में ग्लोरिया और रॉबर्ट पुलिस की गिरफ्त में आ गए। उसने देखा, बदहवास से ऋचा के पिता भी पुलिस के साथ ही आए थे... उधर ऋचा को भी तब तक होश आ गया था। रमेश ने पाया, सहमी हुई ऋचा को अपने पिता के सामने, उसे पहचानने में भी संकोच महसूस हो रहा था... न नजरें ही मिलाईं न कोई बात ही की... समझ में आ गया कि या तो इन सभी घटनाओं में वह उसे दोषी समझ रही है या घर में हुई उन बातों का असर है ये! अब पुलिस उससे बयान ले रही थी, उसके पिता अचंभित से, बार-बार पूछ रहे थे कि वह उन गलियों में गई ही क्यों थी जहाँ से किडनैप हुई पर सामने उपस्थित होते हुए भी ऋचा ने न उसकी ओर देखा और न उसका नाम ही लिया, तो जिंदगी के इस अध्याय की समाप्ति पर रमेश ने एक गहरी साँस लेकर सिर झटक दिया।

माहौल बिल्कुल बदल गया था, एक और लड़की की किडनैपिंग कर राॅबर्ट, और साजिश के आरोप में ग्लोरिया जेल जा चुके थे, फिर भी वकील साहब की सलाह पर, सतर्कता की दृष्टि से सुनहरी के बालिग होने तक उसे होस्टल में ही छिपा कर रखा गया। फिर उसकी कोर्ट मैरेज में जब माँ और सलमा दोनों ने उपस्थित होकर विटनेस (गवाह) किया तो पता नहीं क्यों उसकी आँखें भर सी आईं... कहाँ हैं बाऊजी आप? क्या आपकी आखिरी इच्छा पूरी हो गई है? आपकी विरासत सिर आँखों पर... कोशिश करूँगा आपका सच्चा वारिस साबित होने का!

अपने घर में वापस आकर सुनहरी काफी खुश थी। सभी कमरों के दरवाजे-खिड़कियाँ खोल देने से भुतही सी दिखने वाली हवेली एकाएक धूप, रोशनी और ताजी हवा से भर गई थी। एक कमरा माँ और उनकी पूजा-पाठ के लिए, एक कमरा सलमा और साजिद के नाम... वह कोशिश कर रहा था कि 'इतने-इतने लोगों' को एक ही छत के नीचे समेट ले! अचानक उसका ध्यान गया... सुनहरी ने हाॅल में अपने माता-पिता के तैल-चित्रों के साथ, बाऊजी की फोटो भी प्रतिस्थापित कर दी थी।

समाप्त

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मौलिक एवं स्वरचित

श्रुत कीर्ति अग्रवाल
पटना
shrutipatna6@gmail.com