anaitik - 5 in Hindi Fiction Stories by suraj sharma books and stories PDF | अनैतिक - ०५ जागने की रात

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अनैतिक - ०५ जागने की रात

काम ज्यादा होने के वजह से मै रोज सिर्फ थोड़ी देर ही खेल पाता. कभी कभी तो एक गेम खेलने को भी वक़्त नही मिलता था ऐसे ही कुछ दिन गुजरे.. अब मै पूरी तरह गेम समझ गया था और ज्यादातर गेम जितने लगा, रात को भी नींद ख़राब करके खेलने लग गया था शायद गेम का नशा छा रहा था, पैसे तो कुछ मिल नही रहे थे पर जैसे जैसे गेम जीतता गया मुझे ऐसा लगने लगा की इस गेम का "अपुन भगवान् है".

अब हर जगह जब भी खाली वक़्त मिलता बस खेलता रहता, इसी बिच कशिश का कई बार घर पर आना जाना हुआ अब हम हाय बाय से थोडा आगे बढकर बाते करने लगे थे या फिर कहूँ की थोडा खुलने लगे थे उसका घर मेरे घर के बिल्कुल बगल में था इसीलिए अक्सर वो किसी काम से घर आया करती. मै बचपन से शर्मीला लड़का रहा हूँ, मैंने कभी किसी लड़की से ज्यादा बात नही की थी शायद एक वजह ये भी की मुझे जर्मनी जैसे सुन्दर देश में कोई सुन्दर लड़की नहीं मिल पायी थी..

कशिश मुझे पसंद आने लगी थी, मै ये भी जनता था की वो शादीशुदा है पर पता नहीं क्यों उसे देख कर मुझे एक अलग ही अहसास होता. उसकी नज़रे भी हमेशा मुझसे कुछ कहना चाहती, शायद मै ही कुछ समझ ना सका, बस ऐसी ही ज़िन्दगी जाने लगी, जैसे जैसे दिन बीतते गये मै अन्दर ही अन्दर उसके और करीब आने लगा उस से बात करना चाहता था पर डर लगता कही कोई कुछ गलत ना समझ बैठे वैसे भी हमारे समाज में एक लड़का अगर किसी लड़की से बात भी कर ले तो तो लड़का या लड़की घर पहोचने के पहले ये बात पुरे गाँव में पता चल जाती है... फिर ये तो शादीशुदा थी, पता नहीं लोग क्या सोचते बस इसी डर के वजह से में कभी आगे बढ़ने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाया था.

१६ अप्रैल, हाँ मुझे अच्छे से याद है, वो दिन कैसे भूल सकता हूँ मै, जो मेरे ज़िन्दगी का कभी ना भूलने वाला दिन था, आखिर वो वक़्त आ ही गया जिसका मुझे बेसब्री से इंतजार था. मुझे घर आये लगभग एक महिना होते आया था, मेरी यहाँ नाईट शिफ्ट रहती, रात में काम करते वक़्त मुझे नींद भी आने लगती इसीलिए मै गेम खेला या थोड़ी देर वेब सीरीज देखने लगता, घर से काम करने का ये एक फायदा थ की आप और कुछ भी कर सकते हो वरना ऑफिस में सिर्फ काम, काम और काम वैसे भी कल शनिवार था, मुझे छुट्टी ही थी तो मै ऑफिस का काम ख़तम करने के बाद वेब सीरीज देखने लगा, थोड़ी देर बाद मेरे मोबाइल में आवाज़ आई, मैंने देखा तो फेसबुक पर किसीकी फ्रेंड रिकवेस्ट आयी थी पर मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया मुझे आज वेब सीरीज जो ख़त्म करनी थी, काम के वजह से किसी और दिन तो वक़्त ही नहीं मिलता था इसीलिए मै आज पूरा ध्यान बस इसी पर लगाना चाहता था..और आखीर मैंने वो पूरी देख ली.

सबेरे के ४ बज रहे थे, नींद मुझे आगोश में ले रही थी पर अब भी शिफ्ट ख़तम होने में वक़्त था सोचा टीवी देख लू पर पापा मम्मी सो रहे थे उन्हें आवाज़ आएगी इसीलिए थोड़ी देर गेम खेला और फेसबुक खोलकर बैठ गया, मैंने देखा वो फ्रेंड रिकवेस्ट किसी और की नहीं बल्कि कशिश की थी, दिमाग ये ही कश्मकश में था की क्या करू ..ज्यादा कुछ सोचे बिना ही मैंने उसे एक्सेप्ट कर ली, मुझे खुद पर गुस्सा भी आ रहा था कि अगर मै पहले ही देख लेता तो शायद हम बात कर सकते थे पर अब तो दिन के ४ बज रहे थे, लेकिन ये क्या....मै देख सकता था कशिश अब भी ऑनलाइन थी....

मुझे समझ नही आ रहा था की ये सबेरे के ४ बजे तक जाग रही थी या फिर अभी उठ गयी थी, खैर बिना देरी किये मैंने फ्रेंड रिकवेस्ट एक्सेप्ट करली. बस फिर क्या था दिल और दिमाग ने जंग छेड़ दी, बात करू या ना करू? दिमाग कह रहा था अच्छा नहीं लगेगा पर दिल कह रहा था फ्रेंड रिक्वेस्ट उसी ने तो भेजी थी, पर नहीं अभी सबेरे के ४ बज रहे है कल देखते है आखिर इस जंग में दिमाग जीत ही गया और मैंने फ़ोन बंद करके काम में ध्यान देने की कोशिश करने लगा पर दिल तो दिल है, फिर थोड़ी देर बाद मैंने देखा की वो अब भी ऑनलाइन ही थी, आखिर हिम्मत करके मैंने "हाय" मेसेज कर ही दिया....