Dah-Shat - 31 in Hindi Thriller by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | दह--शत - 31

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दह--शत - 31

एपीसोड ----31

नीता अनुभा को फ़ोन पर ज़ोर देकर समझाती है ,“जो बाई तुझे दीपावली के दिन बीमार कर डालने की कोशिश कर रही है। कुशल के आस-पास मँडराती रहती है। इतने बड़े त्यौहार पर तेरा ड्राइंगरूम ख़राब कर दिया है तू समझ नहीं पा रही उसकी ईर्ष्या हदें पार कर रही है। ये वो ही है न जो दशा माँ की स्थापना करती है।”

“हाँ, वही है।”

“इसे तुरंत निकाल दे। तूने ‘जिस्म’ फिल्म नहीं देखी? उसमें एक अमीर बीमार स्त्री की सेवा करने नर्स विपाशा बसु आती है। उस स्त्री को निमोनिया है। बर्फ़ीली सर्दी की रात है। वह नर्स सारी खिड़कियों के पर्दे खोल डालती है। उसका कम्बल हटा देती है। वह स्त्री तो मरनी ही है। वह फिर उसके अमीर पति से शादी कर लेती है।”

“हाय ! ऐसी भी औरतें होती हैं?” दीपावली के एक सप्ताह बाद वह कोकिला को आऊट हाउस ख़ाली करने के लिए कह देती है। नीता से तो वह कह नहीं गई थी कि बात कोकिला के कुशल के आस-पास मँडराने से बेहद आगे बढ़ गई थी।

X XXX

उधर प्रियंका मिलिंद के लिए चिन्तित है। पिछले वर्ष भी उसे डाँट लगा चुकी थी कि रुपाली अपने घर मिलिंद और अपने रिश्ते की बात करे। मिलिंद उसका पक्ष लेता है। “मम्मी ! उसके यहाँ बड़ा ‘टेन्शन’ चल रहा है।”

“क्या?”

“उसकी बहिन डिलीवरी के लिए आई हुई है।”

“इसमें टेन्शन की क्या बात है? शादी करने के लिए मैं थोड़े ही कह रही हूँ उसने घर में बता तो देना चाहिए।”

“वह कह रही थी दिसम्बर में बतायेगी।”

“मिलिंद ! वह अपनी मम्मी को ये बात बता दे, तो मेरी चिन्ता कम हो जाये।”

“अभी कुछ महीने तो सम्भव नहीं है।”

“मुझसे एक वायदा कर यदि ये शादी न हो पाये तो तू अपने को सम्भाल लेगा न!”

वह तड़प उठता है, “ऐसी बातें क्यों करती हैं? यदि ऐसा हुआ तो मैं अपने को सम्भाल लूँगा।”

“प्रॉमिस!” प्रियंका उसके सामने हथेली फैला देती है। वह उसके हाथ पर हाथ रख देता है।

दिसम्बर में मिलिंद अपने आप कहता है, “रुपाली ने अपनी मम्मी को बता दिया है। उसकी मम्मी ने जन्म पत्री मिलवाई थी।”

“तेरी जन्म पत्री उनके पास कहाँ से आई?”

“मैंने कम्प्यूटर पर बना कर दे दी थी।”

“ओहो!”

“उनके पंडित ने बताया है ये लड़का तुझे माँ के पास आने नहीं देगा। यदि तू अधिक दिन वहाँ रहेगी तो छत से कूद जाने की धमकी देगा।”

प्रियंका गुस्सा हो उठती है, “मिलिंद ! इस लड़की से अपने को बचा। ये झूठी बातें बनाने वाली लड़की है।”

“नहीं, मम्मी! वह ऐसी नहीं है। उसकी मम्मी ने दो तीन पंडितों को हमारी कुँडली दिखाई थी। सभी ने कहा है कि तू इस शादी से सुखी नहीं रहेगी।”

“उसने तुझसे अपना ‘रिलेशन’ बनाने से पहले कुँडली क्यों नहीं मिलवाई थी? अब तुझसे अपना पीछा छुड़ाना चाह रही है तो ये बहाने गढ़ रही है?”

“ओ नो मम्मी।”

प्रियंका बड़े बेटे की शादी की बात सोच रही थीं लेकिन उसके छोटे भाई अरविंद के लिए शादी का एक अच्छा प्रस्ताव आ जाता है। वह लड़की अनुश्री सबको पसंद आ गई है। शादी की तारीख भी तय हो गई है। शनिवार को ही मिलिंद के पास रुपाली का फ़ोन आ गया है “मेरे मम्मी पापा कल तुम्हारे यहाँ शादी की बात करने आ रहे हैं।”

प्रियंका को और क्या चाहिए वह खुश है “अब तो दोनों भाईयों को शादी एक साथ कर देंगे।” वह फ्रिज खोलकर देखती है उनकी ख़ातिरदारी के लिए मिठाई व फल है हीं, कटलेट्स बाई तल देगी।

शाम को सभी सज सँवर कर रुपाली के मम्मी पापा का इंतजार कर रहे हैं। रुपाली का फ़ोन आता है,“मेरे मम्मी पापा इस संडे नहीं आ पायेंगे।”

दो इतवार यही तमाशा होता है।

प्रियंका का सब्र टूट गया है। अरविंद उसे रुपाली के भाई का नम्बर ढूँढ़कर देता है। प्रियंका गुस्सा हो रही है या रुपाली के भाई को बता रही है वह स्वयं ही नहीं समझ पा रही है।

“मैंने सुना है रुपाली ‘पेरेन्टस’ से अधिक आपसे ‘फ्री’ है।”

“आंटी! आपने ठीक सुना है। कहिए कैसे फ़ोन किया?”

“रुपाली यहाँ तीन इतवार से फ़ोन कर रही है कि आपके पैरेन्ट्स शादी की बात करने हमारे घर आने वाले है।”

“ये बात मुझे नहीं पता। मैं दो महीने से बैंगलोर में हूँ।”

“मेरे बेटे को आपकी बहिन बेवकूफ़ बना रही है। इनका अफ़ेयर पाँच वर्ष से चल रहा है। लेकिन रुपाली ने अपने घर पर बताया है कि ये एक वर्ष से रिलेशन है। हम लोगों ने कभी शादी के लिए नहीं मना किया फिर ये सब तमाशा क्यों हो रहा है? ”

“मैं घर परसों पहुँच जाऊँगा फिर देखता हूँ कि क्या बात है?”

मिलिंद राजकोट से आकर दुखी है,“मम्मी ! आपको इस तरह नहीं करना चाहिए था उसकी मम्मी सोचने के लिए समय चाह रही है।”

“वह सोचने के लिए समय चाह रही हैं रुपाली हमारा टाइम क्यों बर्बाद कर रही है? हमें अरविंद की शादी भी आगे बढ़ानी पड़ेगी।”

“आप अरविंद की शादी तो कर ही दीजिए।”

“वह तो सोचना पड़ेगा। इन तीन इतवारों में कितनी शॉपिंग कर ली जाती।”

“मम्मी ! अब एक ‘रिकवेस्ट’ है आप रुपाली और मेरे बीच में अब नहीं बोलेंगी।”

अरविंद बीच में बोल उठता है,“क्यों नहीं बोलेंगी?”

“आप लोग बीच में बोले तो मैं देख लूँगा।”

बेटे के इस रुख से प्रियंका अचकचा जाती है लेकिन अरविंद ने उसकी बात का जवाब दिया,“ तुम क्या देख लोगे? क्या घर वालों को छोड़ दोगे ? तो छोड़ दो ।”

“सॉरी ! मेरा यह मतलब नहीं था।” मिलिंद का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है।

अरविंद की शादी से एक दिन पहले होटल के हॉल में सगाई की गहमागहमी है। भीड़ में से निकल कर रुपाली उससे नमस्ते करने आती है तो प्रियंका की जैसे जान में जान आ जाती है सब कुछ ठीक-ठाक है। वह अपने बेटे का मायूस चेहरा बर्दाश्त नहीं कर पा रही है लेकिन रुपाली का स्लीवलेस टॉप और ऊँची कुछ बेतुकी सी स्कर्ट देखकर हैरान रह जाती है। रुपाली को उसके रिश्तेदार नाम से जानते हैं। उनके बीच पहुँच कर वह भी विवाह समारोह में क्या सिद्ध करना चाहती है?

शादी की गहमागहमी के बाद वह पीछे वाले कमरे में रखे अरविंद की शादी के उपहार सम्भाल रही है।

वह कुछ डिब्बों के रैपर खोलने में मदद करने लगती है। दो डिब्बों के बीच में एक प्लास्टिक बैग दबा है। वह उसे खोलती है। उसमें कुछ दो तीन पुराने सलवार सूट, कुछ नकली ज़ेवर, कुछ सॉफ़्ट टॉयज व कुछ ग्रीटिंग कार्ड् स रखे हैं। वह आश्चर्यचकित होकर मिलिंद से कहती है, “अनुश्री की मम्मी ने उसका पुराना सामान इतनी जल्दी क्यों भेज दिया?”

मिलिंद गंभीर चेहरे से उसे देखते हुए कहता है, “ये भाभी का नहीं रुपाली का सामान है।”

“अच्छा।” वह बिना चौंके इतने शांत स्वर में कहती है कि उसे जैसे पता था कि ये तो होना ही था। वह धीमे से पूछती है, “ये उसने कब लौटाया?”

“भैया की शादी के दिन वह दोपहर को आई थी। तभी ये सामान लौटा गई थी।”

“क्या शादी के दिन?”

“हाँ।” मिलिंद लाल पड़े चेहरे से वहाँ से हट जाता है। वह भी उसकी तड़पती आँखों में नहीं झाँकना चाहती।

यह तड़प उसे कब तक तड़पाती रहेगी? उसे क्या पता ? क्या सच ही वह अपने बेटे को नृशंस लड़की से बचाने में सफ़ल हो गई है ? वर्ना पता नहीं कितने वर्ष ये नाटक और चलता ? विवाह कोई रोमानी ख़ुशबू नहीं है जिसमें आँखें मूँदे सराबोर हुआ जाये। जाने कितने तूफ़ानों को बेहद धीरज से झेलना पड़ता है। भाई की शादी के आल्हाद में डूबे मिलिंद को वह कैसी विकट चोट देकर तड़पता छोड़ कर गई है। यदि वह सच ही प्यार करती होती तो प्रियंका के उठाये कदम की नाराज़गी उसी पर उतारती। क्यों मिलिंद से संबंध काट शातिर बहाना बनाकर चल दी?

कुछ महींनो बाद जैसे वह ख़बर मिलनी ही थी कि रुपाली अपने जाति वाले एन.आर.आई से शादी कर अमेरिका चली गई है।

***

सुबह-सुबह अक्षत फ़ोन करता है, “मॉम ‘ज़हर’ फ़िल्म ज़रुर देखिए। इट्स ए ‘गुड क्राइम थ्रिलर’।”

शनिवार को वह अभय के साथ डीवीडी पर ये फ़िल्म क्या देख रही है उसकी नसें सनसना रही है। पति पत्नी की जालसाज़ी का ज़हर! वह तो सालभर से यही देखती चली आ रही है। आस-पास तक किसी को पता नहीं है कि किस सुनियोजित ढंग से अभय का दिमाग़ लकवाग्रस्त कर समिधा को सताया जा रहा है। उसकी फ़िल्म तो ज़हर से आगे की फ़िल्म है। एक तीस वर्ष पुराना दोस्त भी ज़हरीला नाग बनकर शामिल है। अभय सहमे से ये फ़िल्म देख रहे हैं, फ़िल्म के बाद वह जानबूझकर उससे आँख नहीं मिलाते।

कुछ दिन ही बाद कविता की बाई दिखाई दे जाती है। एक घटिया औरत के उत्तर में घटिया बनने में हर्ज़ ही क्या है ? वह उससे पूछती है, “धर्मिष्ठा बेन ! तुम्हारी मैम साहब क्यों नहीं दिखाई देतीं?”

“पता नहीं उन्हें क्या हो गया है। सारा दिन घर बंद करके पड़ी रहती हैं।”

“अपनी मैम साहब को बोलना ‘ज़हर’ बहुत अच्छी फ़िल्म आई है। वह ज़रूर देखें।”

“उसमें क्या अच्छा है?”

“उसमें एक हीरोईन है तुम्हारी मैम साहब जैसी सुन्दर है।”

“सच?”

“हाँ, बिल्कुल तुम्हारी मैम साब जैसी है।”

“आपने कौन सी ‘पिच्चर’ का नाम लिया?”

“ज़हर।”

“ज़ेहर?”

“ज़ेहर नहीं बाबा ज़हर।” यदि ये नाम ठीक से नहीं सीख पाई तो उसकी मेहनत सब बेकार हो जायेगी।

“ज़हर।”

“हाँ।” अब उसे तसल्ली हुई, “उन्हें ज़रुर बोलना, भूलना नहीं।”

वह फ़िर बेचैन रहने लगी है उसकी बात का असर हो रहा है या नहीं। इंतज़ार में महीना निकल जाता है। बस उस फ़्लैट में रात में एक कमरे को छोड़ सारे घर में अँधेरा रहता है। महीने भर बाद वह शाम को समिति की मीटिंग से लौट रही है। आदतन उस फ़्लैट की तरफ आँख उठ जाती है। वे दोनों सामने खड़े हैं। उस पर नज़र पड़ते ही बबलू जी को बिजली का झटका लगता है। वे बालकनी से भागकर अंदर कमरे में चले जाते हैं। अलबत्ता कविता धीरे-धीरे चलती अंदर जाती है। इधर कॉलोनी में बाढ़ का पानी भरा हुआ है, उधर समिधा के सीने में खुशी का समुद्र उफ़ान भरने लगता है तो तीर ठीक निशाने पर लगा। हे भगवान ! ‘इज़ी मनी’ कमानेवाले लोग उसके घर में दो ढाई बरस तक आते रहे उसे पता भी नहीं चला ? ये सोचकर कैसी-कैसी वितृष्णा होती है।

बाढ़ के कारण कॉलोनी के कुछ हिस्से के लोगों को अस्पताल व रेस्ट हाऊस में पनाह दे दी गई है। नये एम.डी. जा जाकर लोगों से मिल रहे हैं। उनकी देख-रेख की व्यवस्था पर नज़र रखे हुए हैं। कॉलोनी के बाढ़ग्रस्त लोग उनकी इस सहृदयता से ख़ुश है। समिधा उनकी इस व्यस्तता को देखकर स्वयं उलझ़न में है। कैसे उन्हें याद दिलाये अपनी समस्या?

समिधा के घर के सामने वाले नीचे मुड़ती सड़क पर पानी कभी-कभी घुटनों से ऊपर भी हो जाता है अलबत्ता उन लोगों के घर सुरक्षित है। कॉलोनी में पानी में सड़क पर या घरों में तैरते साँप दिखाई दे रहे हैं लेकिन समिधा की देखी काली नागिन किसी को दिखाई नहीं दे रही।

कविता के सामने वाली बिल्डिंग में रहने वाली श्रीमती बनर्जी उसे बाज़ार में पकड़ लेती है, “क्या बात है आप लोग बबलू जी के यहाँ अब नहीं आते?”

“हाँ, हम लोगों को तो उनसे संबंध तोड़े एक वर्ष हो गया। ये पहला परिवार है जिससे मुझे संबंध तोड़ना पड़ा है।”

“ऐसा क्या हो गया?”

“बहुत भयानक लोग हैं, कभी बाद में बताऊँगी।”

“बबलू जी बहुत बीमार हो गये थे। पंद्रह दिन अस्पताल रहकर आये थे। अभी छुट्टी पर चल रहे हैं।”

“क्या?” खुशी से उसकी चीख निकल जाती है। उसका ‘ज़हर’ बुझा तीर निशाने पर लगा है। अब तो कविता को पति के स्वास्थ्य के कारण रुकना ही होगा।

कुछ दिन बाद ही उस घर के पर्दे खुल जाते हैं। सारी लाइटें जलने लगती हैं। ये किस जश्न का एलान है ?

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नीलम कुलश्रेष्ठ

ई -मेल –kneeli@rediffmail.com