koi naam na do in Hindi Moral Stories by Jyotsana Kapil books and stories PDF | कोई नाम न दो

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कोई नाम न दो

बेटी से बात करके शिवानी के हृदय में ममत्व का सागर सा उमड़ने लगा। दो साल गुज़र गए थे उसे देखे हुए। जबसे दामाद का सिंगापुर की ब्रांच में तबादला हुआ था अब तक भारत आने का समय नही निकाल पाए थे। अक्सर वीडियो कॉलिंग करके ही वे अपना मन तृप्त करने की कोशिश करतीं। अब बहुत अकेलापन लगने लगा था उन्हें। उनके पति अनिमेष अपनी ही दुनिया मे मग्न रहते। देश के प्रतिष्ठित साहित्यकार थे। यद्यपि वह अपनी व्यस्त दिनचर्या में से थोड़ा समय अपनी सहचरी के लिए अवश्य रखते थे, परन्तु इससे शिवानी के मन का खालीपन उतना नही भर पाता जितना वह चाहती थीं।

दायित्व सारे पूरे हो चुके थे। बेटा नीलेश गुवाहाटी में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पदासीन था, और बेटी नीलांजना विवाहोपरांत सिंगापुर में थी। जीवन सन्ध्या का खालीपन काटने को दौड़ता था। बेटी की शिकायत बताने के लिए वह अध्ययन कक्ष की ओर चल दीं। अनिमेष यदि घर मे होते तो उनके दिवस का अधिकतर हिस्सा उस कक्ष में ही व्यतीत होता था।

" ओ डियर , बिलीव मी तुमने मेरे मन को किस कदर छू लिया है। " पति का स्वर सुनकर उनके बढ़ते कदम थम गए। ये कौन है ? नीलू तो है नही !

" सच कह रहा हूँ, न जाने कौन से पुण्य किये थे मैंने जो तुम मुझे मिलीं। तुम्हे पाकर मन मे जैसे धूप सी खिल गई। मैं सचमुच जब सोचता हूँ तो हैरान रह जाता हूँ, इतने कम समय मे तुम मेरे कितनी नज़दीक आ गई हो। "

शिवानी को सांस रुकती सी प्रतीत हुई। ये कौन इनके इतनी करीब आ गई ? कबसे चल रहा है ये सब ?

" मैं तुमसे दूर होने की सोच भी नही सकता, तुम मेरे लिए अब उतनी ही ज़रूरी बन गई हो जितना कि सांस लेना। अगर तुम मुझे छोड़कर चली गईं तो न जाने क्या होगा मेरा ।"

उन्हें अपना गला अवरुद्ध होता सा लगा, उम्र के इस पड़ाव पर आकर अनिमेष ऐसी हरकत कर रहे हैं ! पर ये भी तो हो सकता है ये मेरा वहम हो। पर इतने मनुहार किसके कर रहे हैं ? है तो कोई स्त्री ही। उनसे रुका न गया और वह अपने बेडरूम में आ गईं। मस्तिष्क में झंझावात सा उठ रहा था। काफ़ी देर हृदय में कोलाहल सा मचा रहा। तभी कदमो की आहट से वह सजग हो गईं।

" क्या कर रही हो डार्लिंग ?" प्रतिउत्तर में वह उनके चेहरे को पढ़ने की कोशिश करती रहीं, पर भाव समझने में असफ़ल रहीं।

" ऐसे क्या देख रही हो ?"

" कुछ भी तो नही,कॉफी बनाऊँ या सैर पर जा रहे हैं ? "

" अभी तो सैर पर, चलो उठो जल्दी से तब तक मैं हाथ मुँह धोकर आता हूँ ।" कहते हुए वह बाथरूम में चले गए।

दरवाजा बंद होते देखकर शिवानी फुर्ती से उठीं, पलँग पड़ा मोबाइल उठाया और जल्दी से डायल नम्बर चैक करने लगीं। आखिरी कॉल पर दो घण्टे पहले का समय दिख रहा था और नाम लिखा था ' शैलेन्द्र '। वह चौंक पड़ीं, बात तो अभी हो रही थी तो इसमें दो घण्टे पहले की कॉल क्यों दिख रही है ? ओह, यानी नाम मिटा दिया गया है। उन्होंने ठंडी सांस ली। एक बार मन हुआ सारे सम्पर्क पर दृष्टि डालें, कौन से नए नाम जुड़े हैं, पर दरवाजा खुलने की आहट हुई और उन्होंने शीघ्रता से मोबाइल रख दिया।

तैयार होकर वे दोनों तेज कदमों से पार्क की ओर चल दिये। यह उनकी दिनचर्या का आवश्यक अंग था। शाम को दोनों पति पत्नी भोजनोपरांत चहलकदमी के लिए निकल जाते थे। आधा घण्टा तेज चलकर बैंच पर बैठ जाते। थोड़ी बातें करते इसके बाद घर लौट आते। शिवानी ने देखा सैर करते - करते किसी सन्देश की टोन आते ही अनिमेष झट से अपना मोबाइल चैक करते। कभी - कभी उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान भी आ जाती। जितनी देर वे लोग पार्क में बैठे रहे आने वाले हर सन्देश का जवाब अनिमेष ने तुरंत दिया।

आज शिवानी अपनी मनोदशा के चलते बहुत खामोश थीं। घर जाकर दोनो ने एक एक गिलास दूध लिया और शयन कक्ष में आ गए। अनिमेष की आदत थी घण्टा भर पत्नी को हृदय से लगाकर स्नेह स्पर्श के साथ दुनिया जहान की बातें करना। प्रारम्भ से ही दोनो के मध्य बहुत प्रेम था, अब विवाह का चौथा दशक चल रहा था पर मजाल है कि सम्बन्धों की उष्णता में कोई कमी आयी हो। दोनो एक दूसरे के प्रति पूर्णतः समर्पित, सन्तुष्ट और भरा भरा से महसूस करते थे। जब शिवानी की पलकें नींद से बोझिल होने लगतीं तो वे उठकर अपनी स्टडी में आ जाते और आधी रात तक लेखन कार्य करते।

आज शिवानी की आँखों मे नींद का नामो निशान न था। पर अनिमेष कुछ व्यग्र दिख रहे थे, बार बार उनकी दृष्टि घड़ी की ओर जा रही थी।

" क्या बात है ? बड़े बेचैन लग रहे हो । बार बार घड़ी देख रहे हो " जब न रह गया तो शिवानी की जुबान से फ़िसल ही गया।

" नही, अपना नया उपन्यास जल्दी पूरा करके पब्लिशर को देना है। कई कॉल्स कर चुका है तो ... "

" जाओ फिर। "

" जाऊं ? पक्का ?" लगा जैसे उन्होंने राहत की सांस ली है।

" हाँ जाओ, मैं तो सोने ही वाली हूँ "

जवाब में कपोल पर एक चुम्बन अंकित करके वे स्टडी की ओर चल दिये। शिवानी का मन बुझ सा गया। उनका जी चाह रहा था कि वे न जाएं पर निराशा हाथ लगी। मोबाइल उठाकर वे चल दिये। काफ़ी देर तक शिवानी करवटें बदलती रहीं पर नींद आँखों से जैसे रूठ गई थी। हृदय की जलन जैसे सब कुछ जलाकर राख कर देना चाहती थी। बेचैनी में वह जानने को व्याकुल हो गईं की अनिमेष क्या कर रहे हैं। वह उठीं और दबे पाँव स्टडी की ओर चल दीं। पर्दा हटाकर देखा तो बड़े मनोयोग से उनकी उँगलियाँ कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर थिरक रही थीं। अचानक उन्होंने दृष्टि उठाकर द्वार की तरफ देखा। झट से शिवानी आड़ में हो गईं। फिर धड़कते दिल के साथ बिना कोई आहट किये शयनकक्ष में आ गईं।

दिल तेजी से धाड़ -धाड़ हो रहा था। आज उनकी चोरी पकड़े जाने से रह गई थी। कभी शक का कोई कीड़ा ज़हन में नही कुलबुलाया था। कभी उनपर निगाह नही रखी थी, पर आज उस फोन ने विकल कर दिया था। पूछ भी तो नही सकती थी । कोई आधार भी तो हो पूछने का। उधर अनिमेष हैरान थे, उन्हें यकीन था कि द्वार पर कोई था, जो उन्हें देख रहा था, पर देखने पर नज़र भी नही आया था। घर मे उनदोनो के सिवा कोई न था।

दृष्टि दीवार पर लगी घड़ी की ओर उठी। मध्यरात्रि के डेढ़ बज रहे थे, क्या शिवानी अब तक नही सोई ? चुपके से झाँकने की क्या ज़रूरत थी ? ऐसा पहले तो कभी नही हुआ। यकायक क्या हुआ ? पर ये भी तो हो सकता है कि किसी के देखने का उन्हें वहम हुआ हो। शिवानी ने कभी उनकी जासूसी नही की थी। कभी फ़ोन चैक नही किये थे।

" अरे ! " उन्हें शाम की एक बहुत ही गैरजरूरी बात याद आ गई। जब सैर पर जाने से पहले उन्होंने अपना मोबाइल बेड पर रखा था तो होम स्क्रीन थी, पर जब उठाकर ऑन किया तो कॉल लॉग खुली हुई थी।

" माई गुडनेस " बेसाख्ता मुँह से निकल गया " यानी आज शिवानी ने मेरा फ़ोन चैक किया था " बेध्यानी में कॉल लॉग खुल गई। उसमे कुछ भी संदिग्ध नही था। शीघ्रता से उन्होंने कॉन्टेक्ट्स खोले। श्रेया का नाम अंकित था। मन के छोर ने उकसाया, उन्होंने झट से श्रेया शब्द मिटाकर सिर्फ एस पी लिख दिया, एस पी अर्थात श्रेया पण्डित। इस नाम के साथ ही उनकी आँखें चमक पड़ीं। गैलरी खोलकर देखी तो उसमें श्रेया के नाम का एक अलग फोल्डर बना हुआ था। उस फोल्डर के खुलते ही एक आकर्षक चेहरा नज़र आने लगा। बत्तीस - पैंतीस वर्ष के लगभग एक खूबसूरत युवती, कंधे तक कटे बाल, मनमोहक मुस्कान।

उनके लबों पर मुस्कान बिखर गई।काफ़ी देर तक उसे देखते रहे। फिर जैसे चैतन्य हुए, आँखें सोचने वाले अंदाज़ में सिकुड़ गईं। उन्होंने उस फोल्डर को मेल पर डाला और मोबाइल से डिलीट कर दिया। अब वहाँ कोई तस्वीर नही थी। उठकर लाइट बन्द की और शयनकक्ष में आ गए। शिवानी को देखकर लगा कि वह गहरी नींद में हैं। सोने की कोशिश की तो ज़रा देर में ही निंद्रा देवी ने अपनी अपनी गोद मे ले लिया। उनके खर्राटे की आवाज सुनकर शिवानी ने आँखें खोल दीं। कुछ देर वह उनके हिलने का इंतज़ार करती रहीं फिर गहरी नींद में होने का विश्वास करके उनका मोबाइल उठाया। कॉल लॉग, गैलरी, व्हाट्स एप, सभी पर एक त्वरित दृष्टि डाली।

कही कुछ ऐसा नही था जिसपर ऐतराज़ किया जा सके। उन्हें खुद पर शर्म महसूस होने लगी, क्यों वह अचानक शंकालु हो उठी हैं। अरे कर रहे होंगे किसी से बात, पर इस तरह से बात ? मन ने प्रश्न किया। आज तक के वैवाहिक जीवन मे उन्हें कभी अनिमेष से कोई शिकायत नही थी। बासठ वर्षीय अनिमेष धर स्वस्थ, सबल, आकर्षक, मृदु स्वभाव वाले थे। वे देश के प्रतिष्ठित उपन्यासकार थे,जो अपने परिवार के लिए पूरी तरह से समर्पित थे। जाने कितने प्रतिष्ठित सम्मान और पारितोषिक उन्हें सरकार की ओर से दिए जा चुके थे। उनके लिखे एक एक शब्द महिला पाठिकाओं के हृदय को बींधकर रख देते थे। स्वभाव से मिलनसार, हँसमुख, ओर शायराना अंदाज़ में बात करने वाले अनिमेष से जो मिलता उनका प्रशंसक हो जाता। अन्य लेखकों की तरह कभी उनका नाम किसी महिला से नही जोड़ा गया था।

वे पूरी तरह अपनी पत्नी के प्रति आज भी ईमानदार थे।शिवानी के लिए उनके मन में विवाह के इतने लंबे अंतराल के बावजूद अथाह प्रेम था। शिवानी कुछ स्थूल शरीर की आकर्षक महिला थीं। बौद्धिक धरातल पर दोनों समान ही थे। उनके मित्र आज भी उन दोनों को लवबर्ड्स कहकर संबोधित करते थे। एक आदर्श दम्पत्ति, जो औरों के लिए एक मिसाल थे। पंछियों के चहकने का स्वर सुनकर अनिमेष की आँख खुली, मोबाइल उठाकर देखा तो पाँच बजकर बीस मिनट हो चुके थे। वह हड़बड़ाकर उठे, नेट ऑन किया तो देखा सुंदर गुलाबों के चित्र के साथ व्हाट्स एप पर श्रेया का सुप्रभात का संदेश पड़ा हुआ था। उन्हें स्वयं पर खीज हो उठी की आंख खुलने में इतनी देर क्यों हो गई। श्रेया को थोड़ा इंतज़ार करने का संदेश छोड़कर वह तुरंत स्नानागार में चले गए। कुछ समय बाद निकले तो कॉफी बनाकर अपनी स्टडी में आ गए । उनका चेहरा खिला हुआ था।

" कैसी हो डियर , सॉरी आज उठने में थोड़ी देर हो गई। जवाब में श्रेया ने एक स्माइली भेजी और लिखा

" कोई बात नही, आप सोए भी तो देर से होंगे। थोड़ा और सो लेते ।"

" नही, ये हिमाकत कैसे कर सकता था। फिर तुम चली जातीं, ओर मेरी सुबह का आगाज़ कितना सूना होता। तुम्हारे बिना सिसकती हुई सी सुबह मुझे भाती नही । "

" अच्छा तो सच मे मुझे भी नही लगता। इतनी सी देर में ही लगा कि सुबह बहुत बोझिल और उबाऊ हो गई है। "

" और मेरा सोचो, एक ताजगी भरी हवा के झोंके की तरह तुम आती हो और मेरे मन की बगिया का हर फूल खिल उठता है। बार बार शुक्रिया अदा करता हुँ खुदा का, जिसने तुम्हे मेरी ज़िन्दगी में भेजा ।" जवाब में एक ब्लश करता हुआ स्माइली आया। उन्होंने कॉफी का घूँट भरा

" अब चलूँ मैं ?"

" इतनी जल्दी ? अभी न जाओ ... के दिल अभी भरा नही। " साथ मे एक उदास चेहरे का ईमोजी। " छः बज गए, बेटे को उठाऊँ, बहुत सारा लाड़ करना पड़ेगा तब जाकर उठेगा, बहुत देर हो जाएगी ।"

" और बेटे के पापा को ?" फिर से ब्लशिंग स्माइली और सन्देश " हाँ उन्हें भी, बहुत नखरीले हैं दोनो बाप बेटे। "

" होना भी चाहिए, इतनी प्यारी बीवी होते हुए जो नखरे न दिखाए लानत है उस पुरुष को ।" साथ मे ठहाके लगाता हुआ ईमोजी। " आयम जेलस ऑफ योर हब्बी ।"

" जेलस क्यों, वन एन ओनली हसबैंड है मेरा, दोस्त और पति का आपस मे क्या कम्पेरिज़न ? अब बाय, देर हो रही है" श्रेया का हँसता हुआ ईमोजी आया और वह ऑफलाइन हो गई।

कुछ पल अनिमेष उसकी तस्वीर देखते रहे और कॉफी के घूँट भरते रहे। श्रेया से उनकी मित्रता कुछ समय पूर्व ही हुई थी। एक साहित्यिक समारोह में वे दोनों शामिल हुए थे। वहीं श्रेया ने उन्हें अपना परिचय दिया था और बताया था कि वह उनकी प्रशंसिका रही है। सोशल साइट पर भी दोनो जुड़ गए थे। इन दिनों नवोदित कहानीकार के रूप में श्रेया तेजी से उभर रही थी। उसने अनिमेष को अपनी दो कहानियां मेल की ताकि वे उसे सुझाव दे सकें। कई दिन बाद समय निकालकर अनिमेष ने पढ़ा तो चकित रह गए। उसमे उन्हें बहुत सम्भावना नज़र आयी। ये लड़की अगर सही मार्गदर्शन मिले तो दूर तक जा सकती है। पहली बार उनके मन मे सकारात्मक विचार उभरे। उन्होंने उसकी कहानी के विषय मे कुछ सुझाव दिए जिसे उसने प्रसन्नता से ग्रहण कर लिया।

फिर शुरू में कुछ अंतराल पर बातें होती रहीं और पता ही न चला कि कब उनके मध्य एक अनोखी सी समझदारी, अपनत्व और आत्मिक सम्बन्ध विकसित हो गए। श्रेया के भीतर उन्हें जो बात सबसे ज्यादा पसंद आई थी वह थी उसकी चारित्रिक दृढ़ता और आम से हटकर विशेष विचारधारा। दोनो की रुचियां और सोच आपस मे इतनी मिलती थीं कि उन्हें हैरानी होती। बहुत कम समय मे वह दोनों एक दूसरे के प्रति बहुत मोह रखने लगे। दिन की शुरुआत कॉफी के मग और सुप्रभात के सन्देश के साथ होती। थोड़ी देर चैटिंग ओर फिर दोनों अपनी दैनिक गतिविधियों में व्यस्त। दिन में कई बार मजाकिया सामग्री भेजी जाती और फिर एक बार रात में सोने से पहले थोड़ी सी बात। इस छोटी सी चीज ने उनदोनो के जीवन मे बहुत परिवर्तन ला दिया था। हर वक़्त चेहरे पर मुस्कान, हृदय में कोमल और सकारात्मक भाव। कहीं कोई उलझन न थी।

पर नही, उलझन तो थी, और बहुत बड़ी उलझन थी। जितनी घनिष्ठता उनके मध्य उभरी थी उसे कौन स्वच्छ दृष्टिकोण से देखता ? अधिकतर लोगों की सोच कि एक स्त्री और एक पुरुष कभी मित्र नही हो सकते उसे कैसे बदला जा सकता था ? अनिमेष को विश्वास था कि जिस दिन शिवानी को उन दोनों के विषय मे पता चलेगा वह इसे स्वीकार नही कर पाएंगी। भला कौन सी स्त्री होगी जो अपने पति के जीवन में एक कमसिन स्त्री की इतनी घनिष्ठता बर्दाश्त कर पाएगी ? कोई तूफ़ान आये इससे पहले ही वह उसके हर निशान को मिटा देना चाहते थे। अनजाना डर था श्रेया को खो देने का। जिसे वह किसी कीमत पर स्वीकार नही कर सकते थे। इसलिए हर सम्भव तूफ़ान के रास्ते को मोड़ देने की एक कोशिश।

मग रखकर उन्होंने अपने उपन्यास में रंग भरने शुरू कर दिए। अब वह दुनिया को भूल गए थे। नाश्ते का समय हुआ तो शिवानी ने आवाज़ लगाई। नाश्ता करते हुए उनका ध्यान गया कि शिवानी उन्हें एकटक देख रही हैं

" क्या हुआ ?"

" आजकल बड़े खुश नजर आने लगे हो ।"

" तो पहले क्या दुखी नज़र आता था ?"

" दुःखी तो नही, पर आजकल चहक कुछ ज्यादा ही रहे हो । "

" पार्क में एक से बढ़कर एक हसीनाएं जो नज़र आती हैं। मन ताजगी से भर जाता है। हा हा हा " उन्होंने ठहाका लगाया।

" किसी के चक्कर मे तो नही पड़ गए हो ?"

" हाँ, पड़ा हूँ न, टॉप सीक्रेट ।" शिवानी ने बुरा सा मुँह बनाया।

" क्या यार, जवानी के दिन कुछ नही किया, अब बुढ़ापे में ये सब करूँगा ?"

" कहते हैं न घोड़ा ओर मर्द कभी बूढा नही होता ।"

" व्हाट नॉनसेंस, शिवानी क्या है तुम्हारे मन मे ?"

" अरे मजाक कर रही थी ।"

" नही, मुझे लगता है कुछ तो है तुम्हारे दिल मे ।"

" कहा न, मजाक कर रही थी " वह हँस पड़ीं।

अनिमेष उन्हें देखते रहे फिर अपनी स्टडी में चले गए। उनका मन विचलित हो गया। कुछ तो अवश्य है शिवानी के मन मे। मजाक तो नही था ये। पर ऐसा क्या पता लग गया उसे ? क्या उसने कभी मेरी फोन पर बात सुन ली ? या कोई तस्वीर देख ली श्रेया की ? अब मुझे विशेष सावधान रहना पड़ेगा। मुझे अपने घर मे कोई तूफ़ान नही चाहिए और न ही श्रेया से दूरी। आखिर क्या गलत कर रहा हूँ मैं ? कुछ भी तो नही। शिवानी के साथ बेवफाई नही कर रहा, उसके प्रति हर दायित्व निभा रहा हूँ। बस एक मित्रता ही तो की है, इसमे कौन सा गुनाह कर दिया ?

क्या मुझे अपने लिए थोड़ी सी खुशी चुरा लेने का हक़ नही ? मेरा मन श्रेया से बात करने को करता है, उसे देखने को करता है तो क्या हुआ। उससे दोस्ती सिर्फ इसलिए गलत है कि वह एक विपरीत लिंगी है ? अगर किसी से मन इतना मिल गया तो कौन सा भूचाल आ गया। हाँ मुझे उसका अहसास पसन्द है। उसकी बौद्धिकता, समझदारी, खुशमिजाजी, हाजिर जवाबी इन सबने मेरा मन मोह लिया तो क्या। मैं कौन सा उससे इश्क कर रहा हूँ। प्रेम तो मैंने सिर्फ शिवानी से ही किया है, और अब भी करता हूँ। लोग इतनी गलत दृष्टि से क्यों देखते हैं।मैं शिवानी से छुपाना नही चाहता, पर क्या करूँ, वह बर्दाश्त नही कर पाएगी। वो नही समझ पाएगी इस रिश्ते की प्रकृति, इसकी अहमियत। मेरे और भी मित्र हैं। उनसे कितनी भी बात करूँ तो कोई समस्या नही। पर एक स्त्री से बात करूँ तो हंगामा।

उनका मन खिन्न हो उठा। वह श्रेया से बात करने को बेकरार हो गए। कुछ पल सिगरेट जलाकर धुआँ निकालते रहे फिर स्टडी का दरवाजा बंद किया और श्रेया को फ़ोन लगाया " हैलो " उधर से एक मीठा स्वर गूँजा। अनिमेष को महसूस हुआ जैसे उदासी के बादल छंट गए।

" क्या कर रही हो श्रेया ?"

" कुछ खास नही, बताइये ।"

" इस वक़्त बात कर सकती हो ? अगर थोड़ा समय हो तो ?"

" आपके लिए हमेशा समय है मेरे पास, बताइये ।" " तुम्हे देखने का मन कर रहा है । " " हुआ क्या ?"

" कुछ नही, बस तुम्हारी याद आ गई ।"

" ज़हेनसिब, ज़हेकिस्मत, इस नाचीज़ की याद कैसे आ गई ?"

" मन बड़ा खिन्न है ।'

" घर मे कुछ हुआ क्या ? शिवानी जी से वाद विवाद ?'

" नही, बस ऐसे ही ।" उनका मन नही हुआ इस विषय मे कुछ भी कहने का।

" ओ के , रहने दीजिए अगर मन नही बताने का तो।"

" प्लीज़ डोंट माइंड ।"

" नो नेवर, एक्चुअली किसी ज़रूरी काम से जा रही थी ।"

" ओह प्लीज़, गो अहेड "

" मिलते हैं । "

" बाय ।" उन्होंने फ़ोन रख दिया अब वह काफ़ी रिलैक्स मूड में नज़र आ रहे थे।

उधर श्रेया ने फोन बंद किया तो देखा उसका पति अपूर्व चला आ रहा है " तुम अब तक तैयार नही हुईं ? देर हो रही है "

" हो गई, एक फ़ोन आ गया था ।"

" किसका। "

" अनिमेष जी का ।"

" अब उन्हें क्या ज़रूरत पड़ गई तुम्हारी ?"

" प्रॉब्लम क्या है अपूर्व ? तुम उनके नाम से इतना चिढ़ क्यों जाते हो ?" उसने हैरानी से पूछा।

" मैं हर साहित्यकार के नाम से चिढ़ता हूँ। एक नम्बर के चरित्रहीन ओर ठरकी होते हैं सब के सब। जहाँ कोई औरत देखी बस लार टपकने लगती है इनकी। "

" इतने रूड मत हो, सब एक से नही होते। अनिमेष जी को तुम नही जानते। बहुत अच्छे हैं वो ।"

" खाक अच्छे हैं ? दूसरे की बीवी देखी और शुरू हो गए। मुझे पूरा यकीन है उसे भी इश्क हो गया है तुमसे। "

" देखो मूड खराब मत करो मेरा, जिसके बारे में जानते नही अपनी राय मत दो। उनके जैसा जेंटलमैन मुश्किल से मिलता है ।"

" कौन सी जेन्टलनेस दिखा दी उसने ? जो तुम्हे इतना लाड़ आ रहा है उसपर ? कहीं तुम भी उसके इश्क में गिरफ़्तार तो नही हो गईं ?"

" दिस इज़ टू मच अपूर्व, खबरदार जो तुमने उनके बारे में अनाप शनाप कहा। मेरे मित्र हैं वो, बहुत अच्छे ।"

" हुँह "

श्रेया का भी मूड बिगड़ गया था।

" अब चल रही हो या नही ?"

" नही जाती तुम्हारे साथ, हम चरित्रहीन साहित्यकार लोगों से दूर रहो ।" क्रोध में अपूर्व भी मुड़कर चल दिया।

आज उसका मन हद से ज्यादा खराब हो गया था। उसे अपूर्व की आधुनिक सोच पर बड़ा नाज़ था, पर आज के वार्तालाप ने उसे बहुत आहत कर दिया था। आठ साल के वैवाहिक जीवन मे इतना ही समझा है उसने ? जब तक वह साधारण गृहणी थी उन्हें कोई समस्या नही थी। जब थोड़ा समय मिलने लगा और उसने अपनी रुचि का विस्तार चाहा तो उनका पुरुष अहम सर उठाने लगा। क्या हमारे भारतीय समाज मे स्त्री की यही नियति है ? उसे विवाहोपरांत अपनी पहचान को समाप्त करके ही जीना होगा ? बस घर गृहस्थी में खुद को झोंक दे और अपनी इच्छा अनिच्छा की परवाह न करके परिवार वालों की इच्छा के मुताबिक नाचती रहे। गोया वह हाड़ माँस से बनी कोई इंसान नही सिर्फ एक मशीन है, जिसका कर्त्तव्य गृहस्थी की गाड़ी को सुचारू रूप से चलाना और जननी बनना है।

इस पर भी हम आधुनिकता और तरक्की की बात करते हैं। स्त्री को उसके अधिकार देने और मातृशक्ति की बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं पर जब बात अपने घर की हो तो हर तरह से शोषण किया जाता है उसका। कॉलेज टाइम में उसे लिखने का बड़ा शौक था। अक्सर कविता और कहानियाँ लिखा करती थी। जब लोग सराहते तो बहुत अच्छा लगता था। शादी के बाद अपनी सब इच्छाएं भूलकर उसने सिर्फ परिवार पर ध्यान दिया। अब जब बेटा थोड़ा बड़ा हो गया और उसे समय मिलने लगा तो पुराने शौक ने फिर से सर उठाया। सोशल मीडिया में सक्रिय हुई और अपनी रचनाएँ उसमे पोस्ट करने लगी। लोगो की सकारात्मक प्रतिक्रिया मन का उत्साह दोबाला करने लगी। फिर कई समाचार पत्रों ओर पत्रिकाओं के द्वारा उसे रचनाएँ भेजने का आग्रह किया जाने लगा।

शुरू में यह बहुत बड़ी उपलब्धि लगी कि वह प्रकाशित हो रही है, पर धीरे धीरे यह नशा उतरने से लगा। अब उसे लगा कि नही, सिर्फ ये मेरी मंज़िल नही, अब मुझे गम्भीरता पूर्वक लेखन करना चाहिए। वह लेखन की बारीकियाँ सीखने लगी और बहुत से प्रतिष्ठित साहित्यकारों के सम्पर्क में आने लगी। प्रारम्भ में उसकी उपलब्धि से प्रसन्न होने वाले अपूर्व का अहम अब आहत होने लगा। उसके साहित्यिक गोष्ठियों में जाने और लेखन से उन्हें ऐतराज़ होने लगा। अक्सर कहते ये किन चक्करों में पड़ गई हो तुम, छोड़ो ये सब बकवास। पर श्रेया को लगता कि अब वह लिखे बगैर नही रह सकती। इसके प्राण बसते हैं लेखन में। वह स्वयं को बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर पाती है। नए पंख उगने का बोध होने लगा। उसका मन आसमान में ऊँची उड़ान को व्याकुल होने लगा।

ऐसे में एक प्रकाशक का प्रस्ताव उसके लिए तोहफ़े के रूप में आया। उन्होंने पेशकश की कि वह अपनी 100 कविताएं उन्हें दे और वह उसका काव्य संग्रह निकालेंगे। श्रेया प्रसन्नता से भर उठी, उसने तुरंत यह खुशखबरी अपूर्व को दी। लगा कि वह बहुत खुश हो जाएंगे, पर वह देखकर हैरान रह गई कि उन्होंने मुँह बना लिया।

" तुम किन फालतू चक्करों में पड़ गई हो, छोड़ो ये सब, बस घर सम्हालो। इन चीजों में कुछ नही रखा। "

" घर तो सम्हाल ही रही हूँ न, कौन कर रहा है ये सब। अगर थोड़ा समय अपने किसी शौक को दे दूँ तो क्या गलत है ?"

" अब समय अपने शौक पूरे करने का नही है, बच्चे के भविष्य बनाने का है। उस पर ध्यान दो। कल को कुछ बन जाएगा तो तुम्हे ही गर्व होगा। अपने शौक पूरा करके उसका भविष्य मत खराब करो। "

वह हैरानी से पति को देखती रह गई। क्या ये उनका मेल ईगो बोल रहा है ? वह हताश हो उठी, मन इतना खराब हुआ कि उसने प्रकाशक को कोई जवाब नही दिया। एक अवसर खो चुकी थी वह। उसकी खास आदत थी कि अगर किसी काम से घर मे कोई अप्रसन्न हो तो वह उस काम को नही करती थी। पति का रुख भाँपकर उसने उनसे लेखन सम्बन्धी बात की चर्चा बिल्कुल बन्द कर दी। गृहकलेश उसे स्वीकार्य नही था , पर लेखन छोड़ना भी उचित नही लगा। अब वह अपूर्व की अनुपस्थिति में लिखती थी। लेखनी में निखार आ रहा था धीरे धीरे उसकी पहचान भी बन रही थी।

घर की समस्या से तालमेल बैठाया तो मालूम पड़ा कि बाहर की राह भी आसान नही। कदम कदम पर मगरमच्छ बैठे हैं जबड़े फैलाए, नन्ही मछलियों को निगल लेने को आतुर। हर कोई सामने शुभचिंतक और पीठ पीछे मखौल उड़ाने वाला नज़र आ रहा था। सब एक दूसरे की टांग पकड़कर खींच रहे थे कि दूसरा कहीं आगे न निकल जाए। कई स्थापित रचनाकारों से सुझाव चाहे तो उन्होंने कोई मदद नही की सिर्फ टाल दिया। ऐसे में एक समारोह में अनिमेष से मुलाकात उसका जीवन बदल गई।

शुरु में तो अन्य नामचीन लोगों की तरह उन्होंने भी उसपर कोई ध्यान न दिया, पर एक बार जब उसकी एक कहानी पढ़ी तो कुछ सदय हो उठे। उसकी रचनाओँ पर समालोचना की तो उसे अपनी खामियाँ समझ आयीं। हर सुझाव को विनम्रतापूर्वक स्वीकार किया तो उन्हें भी अच्छा लगा इस सिलसिले में लम्बी फ़ोन कॉल और चैटिंग हुई। दोनो को एक दूसरे का साथ कब भाने लगा मालूम ही न पड़ा। उनसे बात करते समय कितना वक्त गुज़र जाता है पता ही न चलता। उसे इंतज़ार रहने लगा उनके संदेशो का , कॉल का। घनिष्ठता इतनी बढ़ चुकी थी कि हर सुख दुख उनसे बाँटने का मन करने लगा। अगर सुबह या शाम उनसे बात न हो पाए तो अजीब सी बेचैनी हो जाती, समय जैसे ठहर सा जाता। उनका साथ इतना सुकून भरा था जैसे दिल के दुखते फफोलों पर नर्म शीतल फाहा रख दिया जाए। यह मित्रता ईश्वर की कुबूल की गई एक दुआ की तरह थी।

इस मित्रता को वह कभी नहीं तोड़ेगी ,यह मन मे दृढ़ कर चुकी थी। जब वह गलत नही तो क्यों करे ऐसा कुछ भी जो उसे तकलीफ दे। अब तक जीती आई है न सबकी खुशी के लिए। क्या अपने लिए सोचने का हक़ नही उसे ? एक पवित्र आत्मिक सम्बन्ध है, कहीं कुछ गलत नही। फिर क्यों परवाह करे, अगर कोई गलत सोच रहा है।

* * * * *


शिवानी को कोई प्रमाण नही मिला था, इससे उनका मन थोड़ा शांत हो गया था। पर अनिमेष का हर वक़्त का चौकन्नापन उनके मन मे शक पैदा करता था। हर सन्देश पर मोबाइल चैक करना। अलग जाकर बात करना, चेहरे पर खिलती मुस्कान। बाद में भी कई बार फोन चैक किया पर कहीं कुछ न मिला। मन था कि आश्वस्त हो ही नही रह था। उन्हें पूर्ण विश्वास होने लगा था कि कहीं कुछ तो है। एक दिन शिवानी ने उनका फोन उठाकर देखा, कुछ भी सन्देहास्पद नही था। अचानक एक ख्याल आया और उन्होंने सेटिंग में जाकर कॉल रिकॉर्डिंग ऑन कर दी। मन को तसल्ली मिल गई। बस ये अंतिम प्रयास है, अगर अब भी कुछ न मिला तो वे सन्देह को निकाल फेंकेंगी।


अनिमेष बहुत खुश थे, अपना चौकन्नपन बनाए रखा था उन्होंने। चैट करते हुए सन्देश लगातार मिटाते जाते थे। फ़ोन अब स्टडी बन्द करके या घर से बाहर जाकर करते। फ़ोटो भी तुरन्त डिलीट कर देते थे। लग रहा था सब कुछ नियंत्रण में है। हर ओर शांति थी, पर अंदर से एक बेचैनी भी । क्या ये शांति तूफान के आने से पहले की है ? अक्सर सोचते फिर दिमाग से ये ख्याल निकाल देते। जब तक कोई गम्भीर परिस्थिति नही आ जाती सामने, फिक्र करने से कोई मतलब न था।


उधर अपूर्व के मन मे अपनी पत्नी के लिए शक तो नही था पर वह अनिमेष के नाम से चिढ़ जाता था। दो तीन बार अपनी अप्रसन्नता जता चुका था। इस बात से श्रेया बुरा मान गई थी और उससे बहुत कम बात करने लगी थी। उसका कहना था कि अगर वह गलत नही तो क्यों दबाव मानकर अनिमेष से मित्रता समाप्त करे। क्या एक छोटी सी खुशी का भी अधिकार नही उसे। अगर मन मे चोर हो तो सोचे भी। पर उसके मन मे तो कुछ था ही नही। क्या हुआ जो उसे उनसे बात करना अच्छा लगता था। अपनी हर समस्या उन्हें बताती ओर वह धैर्य से उसकी हर बात सुनते ओर समाधान भी बताते। उनसे चर्चा करने को विषयों की कोई कमी न थी। मन को बड़ा सुकून मिलता जब देखती की दूर बैठे वह उसकी छोटी से छोटी खुशी की बहुत परवाह करते हैं। उसकी आवाज़ उन्हें बता देती थी कि वह खुश है या परेशान।


घर मे वातावरण खराब हुआ तो उसने उन्हें कुछ नही बताया और हर सम्भव प्रयत्न किया कि उन्हें भनक न लगे। अपूर्व की संकीर्ण सोच वह उनके सम्मुख कैसे प्रकट कर सकती थी। अगर वह उसके पति के लिए गलत सोच रखते तो उसे बिल्कुल अच्छा न लगता। अपूर्व जीवनसाथी था उसका , जिससे बहुत प्रेम था उसे। उसकी इमेज खराब हो किसी की नज़रों में, ये कैसे स्वीकार करती वह।


" आज तुम दिन भर नही मिलीं , मैं कितना उदास रहा। तुम हो तो लगता है कितने रंग हैं ज़िन्दगी में। तुम्हारे बिना लगता है जैसे ज़िन्दगी की रवानी थम गई है। "

" मुझे भी अच्छा नही लग रहा था, जानती थी कि आप मेरे मैसेज का इंतज़ार कर रहे होंगे। पर इतने लोगों के बीच मोबाइल उठाती तो अच्छा नहीं लगता। "

" जानता हूँ , पर दिल है कि कुछ सुनने समझने को तैयार ही नही। "

सब कुछ सुनकर शिवानी को अपनी साँसें थमती सी महसूस हुई। लगा पैरों तले से जैसे ज़मीन सरक गई हो। कितना विश्वास था उन्हें अपने पति पर, उनके प्रेम पर । कभी उन्हें शिकायत का अवसर नही मिला , पर उम्र के इस मोड़ पर ऐसा छल ? उनकी उँगलियाँ मोबाइल पर तेजी से काम कर रही थीं। गैलरी में जाकर सरसरी निगाह से देखा तो किसी महिला की एक तस्वीर पर दृष्टि पड़ी।शक्ल कुछ पहचानी सी लगी। कौन है ये ? उन्होंने सोचा, ओह, याद आया, श्रेया पण्डित, उनकी आभासी दुनिया की एक नई लेखिका मित्र। पर अनिमेष से इसका क्या वास्ता ? इसकी तस्वीर यहाँ क्यों है ? दिमाग पर ज़ोर देती रहीं।

फिर कुछ याद आया, झट से वाट्स एप के कॉन्टेक्ट्स पर निगाह डाली। थोड़ा ढूंढने पर एस पी के नाम से उसकी तस्वीर फिर से नज़र आई। उसके नाम की जगह एस पी लिखा देखकर सन्देह और गहरा गया। अनिमेष को ये क्या सूझा की उसका पूरा नाम न लिखकर संक्षिप्त में लिखा ? तो ये है उनकी सुखी गृहस्थी में सेंध लगाने वाली। जिस आदमी ने अब तक अपना सारा प्रेम मुझे दिया अचानक वो बेईमान हो उठा अपने से आधी उम्र की लड़की को देखकर फिसल गया। शर्म नही आई ये सब करते हुए। और इसने क्या देखा उनमे ? इतनी बड़ी उम्र के व्यक्ति के साथ खिलवाड़ करते हुए ज़रा भी नही कचोटा इसके मन ने ? आज की ये शोहरत की भूखी लड़कियाँ किसी भी हद तक गिर सकती हैं अपना मतलब साधने के लिए।

ये इस्तेमाल कर रही है अनिमेष के कॉन्टेक्ट्स का। उन्हें सीढ़ी बना रही है और उन्हें ज़रा भी समझ नही आ रहा कि ये सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध कर रही है। कितना गिर चुका है आज इंसान, सफल होने के लिए इस हद तक गिरावट ? चरित्र की कोई कीमत ही नही रह गई आज के दौर में। जिसे देखो गिरने को तैयार बैठा है। लानत है आज की पीढ़ी की इस सोच को। मोबाइल बन्द हो चुका था और वह दूसरे कमरे से निकलकर बेडरूम में आ गईं। बेड की साइड पर मोबाइल रखा और वहाँ से निकल गईं। इतने वर्षों का साथ, प्रेम , साहचर्य, सब व्यर्थ गया। जिसे सबसे अलग समझा था, बहुत नाज़ था, वह भी एक अति साधरण पुरुष निकला । जिसका कोई सिद्धांत नही, एक सुंदर चेहरा देखा और फिसल गया।

इन्द्रियों का गुलाम, एक बहुत मामूली इंसान। इसके लिए मैंने खुद को समर्पित कर दिया, तन मन धन से। वो डिज़र्व नही करता था ये सब। आदमी की फ़ितरत ही कुत्ते जैसी होती है, चाहे जितना बढ़िया पकवान मिल जाएं, गन्दगी के ढेर पर मुँह ज़रूर मारता है । और ये श्रेया , महान चरित्र की औरतों की कहानियाँ लिखती है, खुद महाघटिया, गिरी हुई औरत। शादी शुदा होते हुए भी दूसरे आदमियों को फंसाती फिरती हैं। कम से कम उम्र का लिहाज तो किया होता। बाप की उम्र के आदमी के साथ ये घिनौना खेल, छी। अपने पति से मन नही भरा तो दुनिया मे इसे मेरा पति ही मिला था ?

काफ़ी देर सोच विचार चलता रहा। अनिमेष उठ चुके थे, उनके बाथरूम में जाने की आहट हुई तो वह उठ खड़ी हुईं। एक निश्चय की दृढ़ता चेहरे पर आ गई थी। कमरे में आकर सूटकेस निकाला और वार्डरोब से कपड़े निकालकर उसमे रखने शुरू कर दिए। तभी बाथरूम का दरवाजा खुला ओर अनिमेष बाहर आये । पत्नी को कपड़े रखते देखकर आश्चर्य में पड़ गए

" अरे! तुम कहाँ की तैयारी कर रही हो, मुझसे कोई जिक्र नही किया। " शिवानी ने जवाब नही दीया।

" बोलो न, कहाँ जा रही हो ?"

" ये घर छोड़कर जा रही हूँ ।"

" घर छोड़कर ? मजाक कर रही हो ?"

" नहीं ।"

" हुआ क्या ?"

" अपने आप से पूछो ।"

" अपने आप से ?" उन्होंने हैरानी से कहा ।

" इतने हैरान क्यों दिखा रहे हो खुद को अनिमेष, ये जो नया खेल चल रहा है श्रेया के साथ, इसके बावजूद उम्मीद करते हो कि मैं यहाँ बनी रहूँ ?" स्वर बहुत तल्ख हो उठा था।

" कौन सा नया खेल ? कुछ भी तो नही है। "

" मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिष मत करो, तुम्हारी कॉल्स की रिकॉर्डिंग सुन चुकी हूँ, अब सफाई देने से कोई फायदा नही ।" सुनकर उनके पैरों की शक्ति जैसे जाती रही , वह धम से पलँग पर गिर से पड़े।

" ऐसा कुछ नही है शिवानी, तुम गलत समझ रही हो, हम सिर्फ अच्छे दोस्त हैं ।"

" मैं शक्ल से इतनी बेवकूफ दिखती हूँ क्या ? एक औरत ओर एक मर्द कभी दोस्त नही हो सकते। " चेहरे पर तूफ़ान के भाव लिए वह कपड़े जमाती रहीं।

" मुझे छोड़कर मत जाओ शिवानी,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ मैं, कैसे रहूँगा तुम्हारे बिना ?"

" क्यों ? वो है न,जवान भी है खूबसूरत भी है। उसके सामने अब मैं कहाँ ठहरती हूँ। तुम्हारे ही शब्द हैं कि उसके बिना लगता है कि ज़िन्दगी थम गई है। तुम्हारी राह आसान कर रही हूँ, तुम्हे आज़ाद कर रही हूँ ।"

अनिमेष को लगा जैसे शिवानी उनकी आत्मा को निकालकर ले जा रही हैं। चालीस साल से ज्यादा लम्बा साथ था, दिल की गहराइयों से चाहा था उन्होंने पत्नी को। बहुत सम्मान भी दिया था उन्हें। बेशुमार खूबसूरत लम्हे गुज़ारे थे एक साथ। शिवानी के बिना उनकी ज़िंदगी मे कुछ भी बाकी नही रह जाता था। यह सच था कि अचानक श्रेया से बहुत लगाव हो गया था, न जाने कैसा रिश्ता था यह। पर उसमे कुछ भी विकार कहाँ था। कोई अपेक्षा नही, कोई स्वार्थ नही। बस एक अजीब सा मोह, बिल्कुल जैसे पिछले जन्म का कोई नाता था यह।

उसके बिना भी लगता जैसे ज़िन्दगी में कुछ नही रहा। पर यह कोरा आकर्षण नही था। एक रूहानी सम्बन्ध था जैसा किसी भी बहुत अपने से होता है इस रिश्ते को कोई नाम नही दिया जा सकता था। या कहा जा सकता है कि उसमें हर रिश्ते की उष्णता थी। उसके साथ ममत्व था, स्नेह था दुलार था। दैहिक आकर्षण नाममात्र को भी न था। बस शब्दों से , किसी भी नाम से परे यह रिश्ता बन बैठा था।

उन्हें एक गह्वर से उठता प्रतीत हुआ, लगा जैसे दम घुट रहा है। सीने में तीखा दर्द उठा और वह तड़पने लगे।उन्हें तड़पते देखकर शिवानी लापरवाह न रह सकी दौड़कर उनके पास गईं, सम्हालने का प्रयास किया फिर शीघ्रता से डॉक्टर को फोन किया। बड़ी मुश्किल से डॉक्टर के आने तक का समय कटा। काफी देर उपचार के बाद उनकी हालत में सुधार दिखा। डॉक्टर के जाने के पश्चात शिवानी सन्न बैठी रह गईं। घटनाक्रम इतनी तेजी से परिवर्तित हुआ था कि कुछ सोचने समझने का अवसर ही नही मिला था। दिमाग जैसे जड़ हो गया था। कभी अनिमेष के श्रेया से कहे गए स्वर गूँज रहे थे तो कभी उनका पीला पड़ा चेहरा नज़र आ रहा था।

तभी मोबाइल में मैसेज टोन बजी। एक के बाद एक कई सन्देश आये। शिवानी लापरवाह नही रह सकीं। मोबाइल उठाया तो देखकर फिर सुलग सी उठीं। श्रेया के कई सन्देश पड़े थे।पहले एक गुड मॉर्निंग मैसेज, फिर उसके दो घण्टे बाद के सन्देश - कहाँ हैं आप ? आज सुबह की चाय अकेले पीनी पड़ी, कोई मैसेज नही आया आपका, क्या हुआ ? सब ठीक तो है न ?

हृदय में जलन सी महसूस होने लगी, वितृष्णा में आकर मोबाइल उनके सिरहाने रख दिया। मन को नियंत्रण में रखकर रसोई में आ गईं। पथ्य तैयार करना था, सुबह से चाय तक नही पी थी अनिमेष ने। जाने का फैसला कर लिया था, पर बीमारी की हालत में उन्हें यूँ असहाय छोड़कर कैसे जाएं ? बेशक वो बेवफाई कर रहे थे पर शिवानी ने तो बहुत प्रेम किया था उनसे। वो अपने दायित्वों से मुँह कैसे मोड़ें। काफ़ी देर स्वयम से संघर्ष करके उन्होंने स्वयं को नियंत्रण में किया। फिर सेब काटकर उन्हें खिलाने चल दीं। अनिमेष की आँख खुल चुकी थी, आहट सुनकर उन्होंने उड़ती सी निगाह से पत्नी को देखा जहां बेहिसाब दर्द सिमट आया था, फिर आँखें बंद कर लीं।

शिवानी के खाने का इसरार करने पर भी वह खामोश पड़े रहे। एक टुकड़ा भी न खाया। दिल मे तूफान आया हुआ था। सब कुछ खत्म हो गया, अब शिवानी उनपर कभी विश्वास नही करेंगी। वो कभी यकीन नही दिला पाएंगे कि श्रेया के प्रति उनके मन मे कोई विकार नही, सिर्फ असीम अपनत्व और लगाव है। उसके लिए वे कुछ भी गलत सोच भी कैसे सकते हैं ? उसका साथ उन्हें अनन्त खुशियां देता है, वे उसके साथ दिल की बात करना चाहते हैं। सुख दुख साझा करना चाहते हैं। उसकी बातें उन्हें नई ऊर्जा देती हैं जीने के लिए। उनमे जीने की उमंग भर उठी थी इन दिनों। काश तुम समझ पातीं शिवानी, इतने वर्षों की ईमानदारी और समर्पण का ये परिणाम ? क्या कहूँ, किससे कहूँ। कौन समझेगा या मानेगा इस रिश्ते की पावनता को ? हर कोई हम दोनों को गलत ही समझेगा। उनकी आँखों से अश्रु की बूंद छलक पड़ी।

अब कभी वे श्रेया से सम्पर्क नही करेंगे। अब यह शरीर आत्मा के बिना ही रहेगा। चलता फिरता, एक इंसानी जिस्म, बिल्कुल खोखला। उन्हें ऐसे ही जीना होगा, अगर अपनो की यही माँग है तो यही सही। उसके साथ गुज़रे पल एक स्वप्न बनकर रह जाएंगे। अब वे कभी उसे देख नही पाएँगे, सुन नही पाएंगे। आँसू बहकर तकिये में जज़्ब होते रहे।

दूसरी ओर श्रेया बेचैन थी। सुबह से कोई सन्देश नहीं, उसके सन्देशों का कोई जवाब नही,देखकर भी अनदेखा किया है। क्यों ? ऐसा क्या हो गया ? श्रेया का एक एक पल पहाड़ सा कट रहा था। दोनो ही बहुत सुबह चाय का प्याला एक साथ लेकर बैठते थे और बातें करते हुए चाय पीते। दुनिया भर की बातें , कभी चुटकुले तो कभी गाने, कभी उसकी कहानी के अंश की चर्चा। कितनी ही तो बातें थीं उनके पास करने को, जिनका कोई आदि अंत न था। एक दूसरे की संगति में समय कैसे कटता पता ही न लगता। फिर वह रसोई में चली जाती और अनिमेष अपना लेखन करते। दिन भर दोनो अपनी दिनचर्या में व्यस्त रहते फिर रात के खाने के बाद भी थोड़ी बात होना आवश्यक था। इसके बिना वह सोने नही जाती थी।

कभी वह ऑनलाइन होती तो उससे पूछकर अनिमेष कॉल कर लेते। एक दूसरे की आवाज़ सुनकर कैसा चैन मिलता था। दोनो को एक दूसरे के साथ कि इतनी आदत हो गई थी की अगर एक दिन किसी वजह से सम्पर्क न हो पाए तो बहुत बेचैनी होती थी। आज सुबह से खामोशी थी। अनिमेष ऑनलाइन तो आये थे पर न उनका कोई सन्देश आया और न ही उसका कोई सन्देश देखा। बहुत बोझिल मन लिए उसने सुबह की चाय पी। कभी फेसबुक तो कभी ट्विटर पर भटकती रही, पर कहीं चैन नही मिला। बीतता हर लम्हा बहुत बोझिल और उबाऊ था। सुबह का वह समय जो पलक झपकते बीत जाता था आज बहुत लंबा लगा।

नाश्ता बनाते हुए भी उसने दो तीन बार चैक किया। उसके सन्देश तो गए थे पर उन्होंने अब तक देखे नही थे। आज कहाँ हैं, क्या कर रहे हैं अब तक ? वह बहुत बेचैन होने लगी। बच्चे को स्कूल और अपूर्व को ऑफिस भेज देने के बाद दूसरी चाय पीने बैठी तो उसने फिर से सन्देश भेजे। भेजने के कुछ पल बाद वे ऑनलाइन आये, उसके सन्देश देखे, पर कोई जवाब नही आया। ऐसी उपेक्षा क्यों ? इससे पहले तो ऐसा कभी नही हुआ था। उसके हर सन्देश का जवाब ज़रूर मिलता था। फिर आज क्यों नहीं ? हो सकता है आज वह अपने उपन्यास के किसी रोचक मोड़ पर हों, इस वक़्त कोई व्यवधान नही चाहते हों। पर इतना सन्देश तो छोड़ सकते थे न कि अभी व्यस्त हूँ। वह जबरदस्ती तो करती नही की मुझसे बात ही करो। इतनी दूर से उसके वश में था ही क्या, फिर इतनी नासमझ भी नही थी की बेवजह किसी को बाधा पहुंचाए।

अब उसे गुस्सा आने लगा था उनकी उपेक्षा पर। काफी देर इंतज़ार के बावजूद भी चुप्पी छाई रही तो वह गुस्से में आकर उठ गई और अपने काम मे लग गई। पूरा दिन निकल गया, अब भी वहाँ से कोई सन्देश न था। रात हो गई, कोई कॉल भी नही की उन्होंने।वह स्वयं को अपमानित सी महसूस करने लगी। अब बात नही करूँगी उनसे, न जाने खुद को क्या समझ रहे हैं। एक दिन बात नही करूँगी तो दिमाग ठीक हो जाएगा। देखती हूँ कितनी देर रह पाते हैं मेरे बगैर। खुद में गुम सी होकर उसने मोबाइल बन्द किया और लेट गई। मन बहुत व्याकुल था, लग रहा था जैसे कुछ अति आवश्यक कहीं गुम हो गया। उसे मोबाइल बन्द करता देखकर अपूर्व की निगाह घड़ी पर गई, अभी तो बहुत कम समय हुआ था इतनी जल्दी तो नही सोती।

फिर उसने भी अपना लैपटॉप बन्द कर दिया। उसके पास आकर हृदय से लगाया तो खामोशी से वह उसके सीने से लग गई। लग रहा था कि दिन भर से थमा तूफान अपना आवेग तोड़ने वाला है। मस्तक को चूमकर जैसे ही पलकों पर अधर रखे, अपूर्व को वहाँ नमी का अहसास हुआ। उसने चौंककर उसे देखा , आँखें बंद थीं औऱ पलकों की कोर पर अश्रु कण दिखाई दिए। " क्या हुआ ?" अपूर्व ने पूछा तो वह खामोश रही। उसने जानने का बहुत प्रयत्न किया पर श्रेया खामोश रही ।

" अगर तुम मारो नही तो एक बात कहूँ ?" उसने एक दृष्टि उस ओर डाली " बुढ़ऊ आशिक से झगड़ा हो गया क्या ?" शरारत पूर्ण स्वर में बोला।

उसने पलकें झुका लीं ओर आँसू बहते रहे।

" कुछ गलत बात की क्या उसने ?" अब भी वह खामोश रही " मैं इन बूढ़ों को बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ, पहले अपनी मीठी -मीठी बातों में औरतों को फँसाते हैं और फिर जहां मौका मिला दिमाग की गंदगी उगल देते हैं। "

" क्यों मुझे तकलीफ पहुंचाते हो कुछ भी बोलकर ? वो ऐसे नही हैं, मेरी तो आज उनसे बात तक नही हुई है ।"

" ओह दैट्स द रीज़न, सच बताओ श्रेया , कहीं तुम्हे सचमुच इश्क तो नही हो गया बुढ़ऊ से ? "

" तुम्हे मजा आता है न मुझे आहत करके ?" " नही ,पर मुझे अक्सर ये डाउट होता है, मैं डरता हूँ तुम्हे खो देने के ख्याल से ।"

" पर क्यों अपूर्व, संजय ओर राजीव भी मेरे कॉलेज टाइम के फ्रेंड हैं, उनके लिए तो तुमने कभी ये सब नही कहा ।"

" क्योंकि तुम डेली उनसे चैटिंग नही करतीं, उनसे बात न हो पाने पर रोती नहीं, ये अजीब ही रिश्ता है तुम्हारा । कौन यकीन करेगा इस बात पर ? "

" और कोई करे न करे, पर तुम्हे यकीन करना पड़ेगा अपूर्व, तुम मेरे पति हो, इतने साल से मेरे साथ हो, क्या अब भी मुझे नही समझ पाए ? इतना कमजोर रिश्ता है हमारा ?"

" ओके, शांत हो जाओ " सन्तुष्ट न होते हुए भी बोला। " तुम्हे खो देने का ख्याल ही मुझे पागल करने लगता है श्रेया, मैं तुम्हे दिल की गहराइयों से चाहता हूँ ।"

" जानती हूँ, इसीलिए अपेक्षा करती हूँ कि मुझपर विश्वास रखो, मेरे इस जन्म में तो तुम्हारे सिवा कोई पुरुष नही आएगा, ये मेरा वादा है। " सुनकर अपूर्व की आँखें सोचने के अंदाज़ में सिकुड़ गईं।

रात हो गई थी पर अनिमेष ने अब तक कुछ नही खाया था। शिवानी अब घबरा रही थीं, वह उनसे बात भी नही कर रहे थे। कभी सूनी नज़रों से छत को निहारते ,तो कभी निश्वास लेकर आँखें बंद कर लेते। मोबाइल को हाथ भी न लगाया था। दिन भर बहुत सी कॉल आयीं पर उन्होंने एक बार यह देखने का भी प्रयास नही किया कि कौन फ़ोन कर रहा है। अभी भी फोन बजा तो उदासीन से पड़े रहे। काफ़ी देर हो गई बजते हुए तो शिवानी ने उन्हें फोन उठाने को कहा पर उन्होंने कोई जवाब न दिया और न ही कॉल ली। जब शिवानी ने कहा कि लाइन पर बेटी नीलांजना है तो चुपचाप फोन को कान पर लगा लिया।

बेटी ने शिकायत की कि वह भोजन क्यों नही कर रहे ? उनकी वजह से माँ भी भूखी हैं। यह सुनकर वह बेचैन हो गए। शिवानी इतनी नाराज़गी के वावजूद अब भी भूखी बैठी हैं, क्योंकि उन्होंने कुछ नही खाया। वह बेकल हो उठे। उन्होंने शिवानी को भोजन लाने को कहा। शिवानी परोस लाई तो इसरार करके उन्हें भी खिलाया और स्वयं भी थोड़ा सा खा लिया।

सुबह चाय पीते हुए श्रेया ने प्रतिदिन की तरह गुड मॉर्निंग का संदेश भेजा पर यह देखकर उसका मन बुझ गया की वह रिसीव नही हुआ। चाय पीते हुए बेचैनी से वह बार बार चैक करती रही पर अनिमेष ऑनलाइन नही थे। ऐसा क्या हुआ कि कल से गायब हैं अनिमेष जी। मुझसे नाराज़ है क्या , कोई बात बुरी लग गई ? पर मैंने तो ऐसा कुछ नही कहा। परसो रात को अच्छे खासे गुड नाइट कहकर गए थे, कहीं कोई अंदेशा न था कि ऐसा भी कुछ होगा। क्या शिवानी जी को कोई ऐतराज हो गया ? पर मुझे कुछ तो कहते, एक मैसेज तो छोड़ते की अब तुमसे बात नही हो पाएगी। पर क्या सचमुच अब वो मुझसे कभी बात नही करेंगे ?

हे भगवान , क्या करूँ, कैसे पता लगाऊँ ? एक फ़ोन कर लेते, कल से एकदम गायब। कहते थे तुमसे दूर होने के ख्याल से ही कांप जाता हूँ, और कल से एक बार भी मुझे याद नही किया। वो भावात्मक बातें क्या सिर्फ दिखावा था ? पर मुझे तो ऐसा कभी नही लगा । चाय बहुत बेस्वाद लग रही थी, अंत मे उसने सिंक में उलट दी और उदास होकर बैठ गई। पलकें अब भी गीली हो गईं। ये कैसा लगाव हो गया मुझे, की उनके बगैर कुछ अच्छा ही नही लगता। कितना सूनापन, कैसी पीड़ा, ये क्या कर बैठी मैं। अगर अब कभी उन्होंने मुझसे बात नही की तो क्या करूँगी मैं। मूर्खों की तरह मैं एक अनजान आदमी से इतना जुड़ गई कि पति की नाराज़गी की भी परवाह न कि। उन्होंने भी मजाक सा बनाकर रख दिया है मुझे।

जब स्वयं को सम्हालना मुश्किल लगने लगा तो श्रेया ने उनका नम्बर डायल किया। इस वक़्त वो स्टडी में ही होंगे, उन्हें बात करने में दिक्कत नही होगी, उसने स्वयं को तसल्ली दी। एक बार स्पष्ट तो हो जाए कि बात क्या है,इस रिश्ते की परिणति क्या है। घण्टी बजती रही पर फ़ोन नही उठा। वह सोच में पड़ गई। फोन भी नही उठाया, ऐसी बेरुखी ? नही , आज बात करनी ही पड़ेगी उन्हें, कुछ तो कहें। उसने पुनः डायल किया, पूरी रिंग गई और फिर कॉल बन्द। उसने रिडाइल किया, इस बार फोन उठ गया

" आप ऐसा क्यों कर रहे हैं ? क्या गलती हो गई मुझसे ? अगर बात नही करना चाहते तो एक बार कहते तो सही, मैंने कभी आपकी बात टाली है ? पर मुझे इस तरह परेशान क्यों कर रहे हैं ? "

" तुम्हे शर्म नही आती श्रेया, ये हरकतें करते हुए ? क्यों मेरी गृहस्थी में आग लगाने पर तुली हुई हो ?" शिवानी का कटु स्वर उभरा।

" ऐसा क्या कर दिया मैंने ? " वह हैरान रह गयी।

" खुद शादीशुदा होते हुए भी पिता जैसी उम्र के आदमी के साथ ये खेल खेल रही हो ?"

" आपको ज़रूर कोई गलतफहमी हुई है। "

" झूठ मत बोलो, मैंने तुम्हारे सन्देश देखे हैं, कॉल रिकॉर्डिंग सुनी है। तुम जैसी शोहरत की भूखी औरतें नीचता की किसी भी हद तक जा सकती हैं। लानत है तुम पर, छी ।" कहते हुए शिवानी ने फोन बंद कर दिया। वह सन्न रह गयी।

अपने आस पास सब कुछ घूमता सा प्रतीत हुआ।

अनिमेष किसी की कॉल उठा नही रहे थे अतः शिवानी को मोबाइल अपने कब्जे में करना पड़ा। एक बार फोन बजकर बन्द हो गया था। दोबारा बजा तो उठाकर देखा, एस पी देखकर कड़वाहट सी भर गई मस्तिष्क में। अब इसकी इतनी हिम्मत पड़ गई कि फोन भी कर लिया ? जी चाहा कि मोबाइल उठाकर टुकड़े टुकड़े कर दे। पर जब तक जवाब न दिया जाता वह करती जाती। उन्होंने फ़ोन उठाया और जो मन मे आया उसे सुना दिया।सब कहकर लगा जैसे हृदय पर रखा भारी बोझ हट गया हो। अनिमेष को बताया कि श्रेया का फोन था। पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया न करके मुँह फेर लिया। उनकी बेरुखी देखकर मन को तसल्ली भी हुई। ये होता है फ़र्क पत्नी और दूसरी औरत में।

बहुत देर श्रेया यूँ ही बैठी रही, इतनी विकृत मानसिकता ? इतना घृणित आक्षेप ? ये समाज एक स्त्री और पुरुष के मध्य सिर्फ एक ही सम्बन्ध की कल्पना क्यो कर पाता है ? क्या उनके मध्य सिर्फ मित्रता नही हो सकती ? चेहरा आँसुओ से तर था, बेध्यानी में उसके हाथ चल रहे थे और वह सब्जी काटती जा रही थी। अचानक एक तीखा दर्द उंगली में उठा, चौंककर विचारों से बाहर आई तो देखा वह अपनी दो अँगुलियाँ घायल कर बैठी थी। अपूर्व की नज़र उसके चेहरे पर पड़ी तो वह चौंक गया। लाल सूजी आँखें और धुंआ धुंआ होता चेहरा।

" क्या हुआ श्रेया ?" जवाब में वह खामोश रही। जानती थी कि पूरी बात सुनकर वह भी उखड़ जायेगा । जब बार -2 उसने पूछा तो" श्रेया ने झिझकते हुए कारण बता दिया। एक बार फिर अश्रुकण चमक उठे। अपूर्व के चेहरे पर क्रोध के चिन्ह दिख रहे थे।

" ये तो होना ही था श्रेया, मेरा मुँह तो तुमने बन्द करवा दिया था नाराज़गी दिखाकर। पर कौन तुम्हारी इस सो कॉल्ड दोस्ती पर यकीन करेगा ?"

" क्या बिना किसी अपेक्षा के एक स्त्री और पुरुष में घनिष्ठता नही हो सकती ?"

" नही हो सकती, स्त्री एक बार को गलत न भी सोचे पर पुरुष ... नेवर "

" तुम्हे भी मुझ पर विश्वास नही अपूर्व ?" वह आहत दिख रही थी।

" मुझे विश्वास है श्रेया, जैसे तुम हुलसकर मुझे हर बात बता देती हो, तुम पर शक नही कर सकता। पर …." वह उलझन में दिख रहा था।

" शायद तुम ठीक ही कह रहे हो , मुझे उनसे प्यार है….. बहुत ज्यादा…...पर ऐसा ही जैसा अपनी माँ से है, जैसा अपने पिता से है । मुझे उनसे वैसा ही प्यार है जैसा अपने भाई से है, जैसा अपनी सबसे प्रिय सहेली से है। पर यकीन मानो, मैंने उनसे वैसा प्यार कभी नही किया जैसा मुझे तुमसे है। तुम्हारी जगह मेरे जीवन मे कोई नही ले सकता "

" अगर मुझे तुम दोनों में से किसी एक को चुनने का विकल्प दिया गया तो बेशक मैं तुम्हे ही चुनूँगी, उन्हें नही। क्योंकि जीवन मुझे तुम्हारे साथ ही बिताना है। ये सच है कि मैं भावात्मक रूप से उनपर बहुत निर्भर हो गई हूँ । उनके बिना शुरू किया दिन मुझे अच्छा नही लगता, उनसे बात किये बिना मुझे चैन नही आता। क्योंकि उनसे बात करके मुझे मानसिक सन्तुष्टि मिलती है।" वह बोलती गई।

" अगर अभी मैं उन्हें भाई का सम्बोधन दूँ तो शायद तुम्हारा ऐतराज़ खत्म हो जाएगा। अगर मैं उन्हें अंकल कहूँ तब भी तुम्हे बुरा नही लगेगा। पर क्या ज़रूरी है कि हर रिश्ते को एक नाम ही दिया जाए ? क्या नाम भर दे देने से ही कोई रिश्ता पवित्र हो जाता है ? और बेनाम रिश्ता हमेशा अपवित्र रहता है ? ये स्त्री पुरुष के सम्बंध को भूलकर सिर्फ दो इंसानो के रूप में हमे देखो। ऐतराज़ करने की कोई वजह नज़र नही आएगी। " इस बार सोच में पड़ने की बारी अपूर्व की थी।

" हमारे बीच कोई दैहिक आकर्षण नही अपूर्व,बस एक रूहानी सम्बन्ध बन गया है, अनजाने में। तुम्हे पता है कि जब भी कोई पुरुष मेरी ओर आकर्षित होता है मैं तुरन्त उससे दूरी बना लेती हूँ।मुझे नही पसन्द ये सब। मैं उनका सम्मान करती हूँ, घर के बड़े की तरह मानती हूँ ,उनका स्नेह खोना नही चाहती। क्या तुम भी मुझपर विश्वास नही कर सकते ? '

" श्रेया ,तुम्हारी एक एक बात पर यकीन है मुझे ।" अपूर्व कुछ शर्मिंदा सा लग रहा था, शायद अपनी छोटी सोच की वजह से।

कई दिन गुज़र चुके थे , पर अनिमेष के अंदर जैसे सारी ऊर्जा, जीवन्तता समाप्त हो चुकी थी। दिन भर बैठे रहते या आँख बंद करके लेट जाते। बातचीत किसी से नही करते, लेखन बन्द था, मिलना जुलना, सन्ध्या भृमण के लिए जाना बंद कर दिया था। मोबाइल को हाथ भी न लगाया था। शिवानी उनकी हालत देखती और दुखी होती रहती। उन्हें सामान्य करने के बहुत प्रयास किये पर सब व्यर्थ। ऐसे तो कभी स्वस्थ न होंगे। उन्हें हमदर्दी महसूस होने लगी थी। क्रोध हवा हो चुका था, वैसे भी श्रेया के पृष्ठभूमि से गायब होने से मन मे सन्तोष भी था। अपना महत्व भी समझ आ गया था। सच मे उसका इतना महत्व नही। मैं ही अधिक महत्वपूर्ण हूँ। कितना नाज़ुक था वो प्यार जो एक हल्के हवा के झोंके से बिखर गया।अब अपनी औकात समझ आ गई होगी उसे। ये सब विचार उन्हें आत्म विश्वास से भर रहे थे।

किसी के आने की सूचना पाकर शिवानी बैठक में आयीं तो हैरान रह गईं। श्रेया और अपूर्व वहाँ बैठे हुए थे। उनके चेहरे पर क्रोध के भाव उभरे।

" नमस्ते मैम, मुझे तो आप जानती ही हैं, ये हैं मेरे पति अपूर्व ।" दोनो ने एक दूसरे को अभिवादन किया।

" जानती हूँ कि आपको मेरा इस तरह यहाँ चले आना अच्छा नही लगा होगा, पर मुझे लगा कि आपकी ग़लतफ़हमी दूर होना बेहद ज़रूरी है। वरना आपका घर बिखर जायेगा। "

" मैं मूर्ख नही हुँ श्रेया , और न ही शक्की, जो कहा है उसका प्रमाण मिलने पर ही कहा है। "

" कई बार आँखों देखा और कानों सुना भी पूरा सत्य नही होता। माना कि कई बार हमारे सन्देश और अक्सर बातें भी दोस्ती की सीमा से आगे बढ़ जाती हैं। फिर भी हमारे बीच ऐसा कुछ भी नही जो काबिले- ऐतराज़ हो। आप अनिमेष जी को भी बुला लीजिये, जिससे हर बात उनके सामने भी हो जाए। "

" वो नही आ सकते " श्रेया ने प्रश्नवाचक नज़रों से देखा ।

" उनकी तबियत ठीक नही। उन्हें बेवजह तनाव देने की ज़रूरत नहीं। "

" क्या हुआ है उन्हें ?"

" सीवियर हार्ट अटैक ।" एक गहरा आघात सा उसे लगा, इतनी बड़ी बात हो गई और उसे ख़बर तक नही ?

" प्लीज़ एक बार मुझे उन्हें देख लेने दीजिये, वादा करती हूँ उनके जीवन से निकल जाऊँगी। " उसने सचमुच हाथ जोड़ लिये थे, आँखें बरसने लगी थीं।

शिवानी ने एक पल गहरी नज़रों से उसे देखा फिर अपने पीछे आने का इशारा किया। बैठक और लॉबी पार करते हुए वे लोग शयन कक्ष में आ गये। सुंदरता से सजा सँवरा और आरामदायक कक्ष था वह। जहाँ मद्धिम रोशनी फ़ैल रही थी। बिस्तर पर आँखे बंद किये हुए अनिमेष लेटे हुए थे। शिवानी ने दूसरा बल्ब जलाया तो उन्होंने चौंक कर दृष्टि उठाई और श्रेया को देखकर अपलक देखते रह गए। उनका कमज़ोर और उदास चेहरा देखते ही श्रेया का मुश्किल से रोका हुआ आवेग कूल तोड़ने को व्याकुल हो उठा। अपूर्व ने दृढ़ता से उसका हाथ थाम लिया।

" नमस्ते अनिमेष जी, मैं अपूर्व, श्रेया का पति " पहली बार उनका ध्यान भंग हुआ और उन्होंने अपूर्व की ओर देखकर हाथ जोड़ दिए , और उठने का प्रयास किया। पर अपूर्व ने उन्हें लेटे रहने का इशारा किया।

" अच्छा लगा आपसे मिलकर, बहुत सुना है आपके बारे में ।"

" उम्मीद है कुछ बुरा नही नही सुना होगा ।"

" हरगिज़ नही। " फिर वह श्रेया की ओर मुड़े ।

" कैसी हो तुम?" वह जवाब न दे सकी, आँसुओ का आवेग टूट पड़ने को व्याकुल हो उठा। उसकी स्थिति देखकर उन्होंने आँखें बंद कर लीं, जैसे हृदय में उठने वाले तूफ़ान को थाम लेने का प्रयत्न कर रहे हों। वह आगे बढ़ी पर चाहकर भी कुछ बोल न सकी। बस हाथ जोड़कर कुछ पल खड़ी रही फिर कमरे से बाहर निकल गई। अपूर्व और शिवानी भी उसके पीछे आ गए। अपूर्व ने उसके कंधे पर ढाढस भरा हाथ रखा। थोड़ी देर शांति रही फिर वह शिवानी की ओर मुड़ी। " यकीन मानिये की हमारे बीच कुछ भी गलत नही। बेशक हम भावात्मक रूप से हद से ज्यादा जुड़ गए हैं पर इससे ज्यादा कुछ नही। वो आपके और परिवार के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं। मुझे भी अपूर्व से बहुत प्यार है। उनके बिना ज़िन्दगी की कल्पना भी नही कर सकती। "

" ये सच है शिवानी जी, हम बहुत अच्छी ज़िन्दगी जी रहे हैं। मुझे अपनी श्रेया पर पूरा भरोसा है। वह मुझसे कुछ भी नही छुपाती। " इस बार अपूर्व बोला

" सोचिये ज़रा, अगर कुछ गलत होता तो क्या वह मुझे बताती ? "

शिवानी बारी बारी से दोनो का चेहरा देखती रहीं।

" यह सच है कि ये रिश्ता बहुत गहरा है, पर यकीन मानिये यह कुछ भी नही तोड़ेगा। अनिमेष जी हमेशा आपके ही रहेंगे। वह आपको बहुत चाहते हैं, उन्होंने बताया है कि बुरे वक्त में कैसे आपने उनका साथ निभाया है। "

" मैम, क्या कोई भी रिश्ता सिर्फ नाम का मोहताज़ होता है ? अगर मैं उन्हें बड़े भाई या अंकल के सम्बोधन से पुकारूँ तब तो आपको कोई ऐतराज़ नही रहेगा न ?"

अब शिवानी असमंजस में पड़ गईं थीं।

" आपको ऐतराज़ इसीलिये है न कि हमारे इस रिश्ते का कोई खूबसूरत नाम नही। पर क्या सिर्फ नाम दे देने से उसकी प्रकृति में कोई अंतर पड़ जायेगा ?"

" मैं यहाँ सिर्फ इसलिये आई थी कि आपके मन का क्लेश दूर कर सकूँ। प्लीज़ उनपर ,आपके प्रति उनके प्रेम पर विश्वास बनाये रखिये। मैं वादा करती हूँ कि अब उनसे कोई सम्पर्क नही रखूँगी। बस उन्हें सम्हाल लीजिये। " कहते हुए उसने हाथ जोड़े और फिर अपूर्व से चलने का इशारा किया। वे दोनों वहाँ से निकल गए और शिवानी किंकर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी रह गईं ।


समाप्त ।