जब मेरे पति शौर्य ने आकर बताया कि उनका प्रमोशन हो गया है और उनकी पोस्टिंग मैनेजर के पद पर जयपुर हो गई है तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा इसकी दो वजह थीं पहली ये कि मेरे पति असिस्टेन्ट मैनेजर (केनरा बैंक)से मैनेजर बन गए थे और दूसरी वजह थी मेरी सहेली अनुभा
जिसकी ससुराल जयपुर में ही थी।में मन ही मन बहुत खुश थी कि अब हम मिल लिया करेंगे ।कॉलेज टाइम में वह मेरी बेस्ट फ्रेंड हुआ करती थी ।स्नातकोत्तर के बाद उसकी शादी हो गई और मेरे पापा की पोस्टिंग दूसरे शहर हो गई।मेरे पास उसका फ़ोन नंबर तो नहीं था पर उसका जयपुर का एड्रेस था जो कि शादी के बाद वह अपने पति के साथ एक बार मेरे घर(मायके) आई थी तब मैंने अपनी डायरी में नोट कर लिया था।मैंने फटाफट अपनी पुरानी डायरी निकाली तो उसमें वह पता लिखा हुआ था ।मैंने राहत की सांस ली वैसे मेरी आदत है में हर चीज़ को संभालकर रखती हूँ।वर्ना डायरी मायके में ही छोड़ आती और वह इधर उधर हो जाती तो उसे कहाँ ढूँढती। कुछ ही दिन में हम जयपुर शिफ्ट हो गए। मैंने अपने पति से अनुभा के घर चलने के लिये कहा तो उन्होंने कहा कि रविवार को चलते हैं।रविवार को हम उसी पते पर जा पँहुचे घर ढूँढने ने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई।मैंने दरवाजे पर दस्तक दी तो अनुभा ने ही दरवाजा खोला ।एक बार को तो में उसे पहचान नहीं पाई वह काफी कमजोर और थकी थकी सी लग रही थी।उसने देखते ही मुझे गले लगा लिया और आश्चर्यमिश्रित खुशी से बोली सुप्रिया तू इस तरह अचानक कैसे।मैंने कहा ज्यादा हैरान मत हो में अब जयपुर में ही रहने वाली हूँ।वह खुश होकर बोली क्या?मैंने कहा हाँ फिर इनकी पोस्टिंग के बारे में बताया।वह बहुत खुश हुई और हमारी आवभगत में जुट गई हम एक घंटा बैठे खूब बातें हुईं लेकिन मुझे वह कुछ बुझी बुझी सी लगी जैसे वो पहले चहका करती थी वो हँसी उसके चेहरे से गायब थी फिर उसके पति भी आ गए और उसने हम दोनों का परिचय करवाया थोड़ी औपचारिक बातों के बाद हम चलने लगे दोनों खाना खाकर जाने की जिद करने लगे ।हमें बाजार में कुछ काम है कहकर हम वहाँ से निकल लिये।चलते समय उन लोगों से भी अपने घर आने के लिये कहा और फोन नंबर का आदान प्रदान किया।इसके दो महीने बाद तक न अनुभा हमारे घर आई न ही उसका कोई फ़ोन ही आया। उस दिन शौर्य किसी कॉन्फ्रेंस के सिलसिले में शहर से बाहर गए हुए थे में घर पर बोर हो रही थी तो मैंने सोचा क्यों न अनुभा के घर चलकर उसे सरप्राइज दूँ।में ऑटो लेकर उसके घर चल दी।जैसे ही उसके दरवाजे पर पहुँची में ठिठक गई उसके घर से मारने पीटने चीखने चिल्लाने और फिर रोने की आवाजें आ रही थीं।में असमंजस की स्थिति में थी उसके घर में तो वह तीन प्राणी हैं अनुभा उसका पति और उसकी तीन साल की बेटी अवि तो फिर ये आवाजें कैसी।मैंने आगे बढ़कर दरवाजे पर दस्तक दी।थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला दरवाजा उसके पति अजय ने ही खोला मुझे देखते ही बोला अरे आप आइए आइए फिर मुझे बैठक में बिठाकर अनुभा को बुलाने चला गया।
थोड़ी देर में अनुभा आई उसकी आँखें लाल थीं ऐसा लग रहा था कि वह अभी अभी बाथरूम से मुँह धोकर बालों में कंघी करके आ रही है।वह मुझे देखकर मुस्कराई लेकिन आज मुझे उसकी मुस्कराहट बनाबटी लगी।कुछ ही देर में उसका पति आया और अनुभा से दुकान पर जाने की कहकर चला गया उनका थोक मार्केट में डिपार्टमेंटल स्टोर था।उसके जाने के बाद में अपने आप को रोक नहीं सकी मैंने पूछा अनुभा ये मारपीट ये चीख चिल्लाहट क्या है ये ?।वह थोड़ी देर खामोश रही मैंने फिर कहा क्या छिपा रही है तू मुझे बता।मेरी हमदर्दी पाकर वह खुद को रोक नहीं पाई और फूट फूटकर रोने लगी मैंने उसे चुप कराया और पूछा क्या बात है?उसने जो मुझे बताया सुनकर में हतप्रद रह गई।वह बोली तुम्हें तो मालूम है चार साल पहले मेरी शादी हुई थी अच्छा घर और वर पाकर में और मेरे घरवाले बहुत खुश थे शुरू शुरू में तो सब अच्छा ही था मुझे लगा कि अजय एक खुशमिजाज इंसान है पर जल्दी ही मेरा ये भ्रम दूर हो गया ।एक दिन किसी बात पर अजय की अपनी माँ से लड़ाई हो गई तो जो रूप मैंने अजय का देखा में सहम गई माँ बेटे दोनों बुरी तरह लड़ रहे थे एक दूसरे को काफी भला बुरा कह रहे थे।उस रात में ठीक से सो न सकी।फिर तो ये सिलसिला शुरू हो गया हर महीने पन्द्रह दिन में माँ बेटे लड़ लेते फिर दोनों मुझ पर भड़ास निकालते।मेरी शादी के छः महीने बाद अजय की अपने माता पिता से लड़ाई हो गई तो वह अपने पुराने घर में रहने चले गए मेरे ससुर के इसी शहर में दो प्लाट और दो मकान हैं ।तो अजय ने इस बात का जिम्मेदार भी मुझे माना और खूब क्लेश किया ।उस दिन के बाद अजय मुझसे हर महीने पंद्रह दिन में किसी भी छोटी सी बात पर नाराज हो जाता और खूब क्लेश करता अगर में कुछ कहती तो मारपीट करता ।और गुस्से में वह जो भी चीज़ हाथ आती उठाकर मार देता ।एक दिन अजय बाथरूम से नहाकर आया तो बोला तुमने आज बाथरूम की सफाई नहीं की थी मैंने डर के मारे बोल दिया हाँ की थी, तो उसने मुझे थप्पड़ जड़ दिया और कान पकड़ कर खींचते हुए बाथरूम में ले गया कि ये सफाई की है तुमने ।में सब सहती रही क्योंकि में जानती थी कि अगर में ये बात अपने मायके में बताऊंगी तो मेरी माँ को बहुत दुख होगा और मेरे पिता और भाई भी गुस्से वाले हैं पता नहीं क्या करें।इसी तरह वक्त गुजरता गया और अवि पैदा हुई।अवि अभी तीन महीने की ही थी कि एक दिन अजय को अपनी सफेद रंग की शर्ट इस्त्री की हुई नहीं मिली, अलमारी में और भी कमीजें थीं लेकिन उसने मुझे उस कमीज को लेकर ही भला बुरा सुनाना शुरू कर दिया।मुझे भी गुस्सा आ गया मैंने भी कह दिया देखते नहीं बेटी छोटी है उसकी देखभाल में नहीं समय मिला दूसरी कमीज भी तो पहन सकते हो ।फिर क्या था उसने आव देखा न ताव एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया, मेरा सिर दरवाजे से टकरा गया दरवाजे की कुंडी मेरे सिर में समा गई जिससे मेरा सिर फट गया।फिर वही मुझे डॉक्टर के पास ले गया मेरे सिर में चार टाँके आये । मुझे घर छोड़ कर वह दुकान पर चला गया। उसी दिन मेरी माँ का फ़ोन आ गया उन्होंने मुझसे मेरा हाल चाल पूछा तो में रो पड़ी।उनके बहुत पूछने पर मैंने सारी बात बताईं।फिर क्या था मेरे पिता और भाई उसी दिन आ गए और अजय को उन्होंने बहुत भला बुरा कहा और मुझे अपने साथ मेरे मायके ले गए।करीब दो महीने बाद अजय मुझे लेने जा पँहुचा तो मेरे पिता मुझे उसके साथ भेजने को तैयार नहीं थे मेरे भाई की भी अजय से काफी कहा सुनी हो गई थी। इधर अजय ने कह दिया कि अगर अब मेरे साथ नहीं गई तो हमेशा यहीं रहना उधर मेरे पिता और भाई ने भी कह दिया कि अगर तू इसके साथ गई तो हमसे तेरा रिश्ता खत्म ।में क्या करती अपनी बेटी के भविष्य की खातिर मैंने अजय को चुना और अजय के साथ आ गई।
उस दिन से मेरे घरवालों ने मुझसे रिश्ता खत्म कर लिया।और इधर अजय का रवैया भी वैसा का वैसा ही है ।इस को हर महीने दो महीने में अपनी भड़ास निकालने के लिये कोई न कोई चाहिये ।पहले माँ थी अब में, मुझ पर तो वह कह सुनकर मारपीट कर हर तरह से अपनी भड़ास निकाल लेता है।इतना सब बताकर वह खामोश हो गई।में सुनकर हैरान थी कि ऐसे मनोविकृत इंसान के लिये ये सब कुछ सहने के लिये तैयार है पता नहीं अजय किस कुंठा का शिकार है जो इस तरह अपनी कुंठा निकालता रहता है।में मनोविज्ञान की छात्रा रही हूँ और स्नातक भी मैंने मनोविज्ञान से ही किया था में सोच रही थी कि अजय की इस मनोविकृति के पीछे क्या कारण हो सकता है।हो सकता है उसका बचपन कुंठित और असंतोषजनक रहा हो या ये भी हो सकता उसके जीवन में पर्याप्त प्यार और संस्कार का अभाव रहा हो या फिर अपनी माँ से विरासत में उसे ऐसा स्वभाव मिला है।जो भी हो में अनुभा के लिये दुखी थी।ऐसे कुंठित और मनोविकृत इंसान दूसरों की जिंदगी को नर्क बना देते हैं और शायद ही ये कभी दूसरों की भावनाओं को समझते हैं चाहे इनके लिये जान भी क्यों न दे दो।अनुभा को जो ठीक लगा उसने किया। में अनुभा की मदद करना चाहती थी पर कैसे?अजय को समझाने पर कहीं वह दूसरा अर्थ न निकाल ले और अपना गुस्सा अनुभा पर निकाले यह सोच कर में चुप रही। क्योंकि ऐसे इंसान हर बात का नेगेटिव अर्थ ही निकालते हैं। में सिर्फ ईश्वर से उसके लिये प्रार्थना ही कर सकती थी कि उसके पति को सद्बुद्धि दे।