TANABAA - 14 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | तानाबाना - 14

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तानाबाना - 14

14

प्रसन्नमन से लौटे प्रीतम ने जब यह खुशखबरी घर आकर बाकी परिवार के लोगों को दी तो हर तरफ खुशियाँ छा गयी । औरतों ने आटा भून कर कसार बनाई । पितरों को भोग लगाया और अङोस पङोस में सबका मुँह मीठा कराया । दो महीनों में से एक दिन तो रास्ते में ही टूट गया । बाकी रहे गिनती के उनसठ दिन । बेशक हाथ तंग है पर कुछ तो करना ही पङना है सो परिवार तुरंतशादी की तैयारी में लग गया ।

इधर मुकुंद ने समधियों से विवाह की तारीख तो पक्की कर ली पर उनके जाते ही सिर पकङ कर बैठ गया । जिसके सेहरे बाँधने थे, उस बेटे का तो कहीं अतापता ही नहीं था ।

हुआ यूँ कि मुकुंद पढा लिखा था, कचहरी और डाकखाने में उसका रोज का आना –जाना था इसलिए उसे पहले ही भनक पङ गयी थी कि देश का विभाजन होने वाला है । दंगे भङकने की पूरी संभावना है । तो उसने तुरंत सतलुज पार रहते रिश्तेदारों को सम्पर्क किया । एक मकान ठीक किया और घोङा गाङी में जितना सामान ठूँस कर चढाया जा सकता था, उतना सामान,पत्नी, भाभी और गोद की बेटी को ले इस ओर आ गये । जरुरत भर का सामान तो आ गया पर अभी भी घर में बहुत सामान छूट गया था तो पंद्रह साल के रवि को घर पर छोङ दिया गया । हिदायत दी गयी कि बचा सामान जितनी जल्दी हो सके, बाँध कर चार पाँच चक्कर में ले आए । पंद्रह साल का रवि लगभग सूने घर में बैठा बोरियों में सामान भरता । कभी कभी डर के मारे उसकी घिग्गी बंध जाती । पास –पङोस की औरतें तरस खाकर रोटी दे जाती तो चुपचाप खा लेता । नहीं तो पानी पीकर सो रहता । उसने जैसे तैसे दो चक्कर तो लगा लिए पर तीसरे फेरे में रेलगाङी अभी मिंटगुमरी स्टेशन पर पहुँचने वाली थी कि दस किलोमीटर पहले ही बलवइयों का हमला हो गया । नंगी तलवार लिए बीस बाईस लोगों ने गाङी रोक दी ।

लोगों से सामान छीन लिया गया । डिब्बे में जितनी हिंदू सवारियाँ थी, सब तलवारों से काट दी गयी । उनकी औरतें और लङकियाँ उठा ली गयी । पंद्रह मिनट यह तांडव चलता रहा । रवि यह सब देख दहशत के मारे बेहोश हो गया । वह अपनी ही बर्तनों की बोरी के नीचे दब गया था । ऊपर से रक्तसनी लाशे गिर गिर कर उसके कपङे लहूलुहान हो गये । शायद इसी लिए मवाली उसे भी लाश समझ जिंदा छोङ गये थे ।

किसी ने स्टेशन मास्टर और थानेदार को सूचना दी तो करीब घंटे भर बाद ये लोग घटनास्थल पहुँचे । गाङी में सन्नाटा छाया था । लाल से काला हो चुका खून बह कर अब जम गया था । सिपाही लाशें उतारने लगे । अचानक एक सिपाही चिल्लाया –

साबजी साबजी, इसकी साँस चल रही हैं

अरे इतनी प्रलहौ में भी कोई जिंदा है । हे परमात्मा तेरी लीला न्यारी है ।

उन्होंने साथ आए डाक्टर को बुलाया । उसके सिर और माथे से खून साफ कर पानी के छींटे मारे गये तो उसे होश आ गया । उसे बस में बिठा कर घर भेजने की व्यवस्था कर दी गयी । यहाँ तो घायलों की मरहम पट्टी होनी थी, लाशें ठिकाने लगानी थी । लूट के बावजूद बच गये सामान को भी देखना बाकी था । कितना काम बाकी था ।

सामान की बोरियों का कहीं अतापता नहीं था तो खाली हाथ रवि घर पहुँचा । एक तो तीन दिन बाद आया और वह भी खाली हाथ । चाचा ने खींच कर दो तमाचे रसीद कर घर में स्वागत किया । पहले से ही डरा – सहमा किशोर बुरी तरह से टूट गया । न उससे किसी ने देरी का कारण पूछा, न उसने किसी को बताना जरुरी समझा । उल्टे नालायक और निकम्मा की उपाधी मिल गयी ।

अब वह बिल्कुल गुमसुम हो गया । जहाँ बैठता, बैठा ही रह जाता । सौदा लेने जाता तो सामान का नाम ही भूल जाता और ताश खेलती किसी टोली के सिरहाने खङा उनका खेल देखता रह जाता । जब घर से गये को बहुत देर हो जाती तो चाचा या चाची खोजते हुए आते और कान से पकङ कर घर ले जाते । डांट और मार रोज का हिस्सा हो गये । एक दिन ऐसे ही घर से निकला रवि बस में बैठ कहीं चला गया । किसी ने उसे ढूँढने की कोशिश भी नहीं की थी – “ कौन सा लङकी है कि कोई उधाल के ले जाएगा । लङका है । कहीं मजदूरी करेगा तो भी पेट भरने लायक कमा लेगा और नहीं कमा पाया तो धक्के खा कर घर ही न आएगा “ ।

और आज रवि को घर से गये दो महीने से ऊपर हो गए थे कि अचानक ये समधी आ टपके । ब्याह का दिन भी तय हो गया । अब क्या होगा ? लङका नहीं मिला तो बङी बेइज्जती हो जाएगी ।

आनन फानन में मुकुंद ने अपना अचकन पहना । सिर पर तुर्ले वाली पगङी बाँधी और पाँवों में चमचमाता पंपशू पहनकर सीधे बस स्टैंड पहुँचे । दो चार लोगों से पूछा तो पता चल गया कि रवि अमृतसर वाली बस में बैठकर गया था । बिना वक्त गँवाए वे अमृतसर की बस में बैठ गये । अमृतसर जाकर वहाँके थानेदार से मिले । अपना परिचय दिया, पटवारी भाई के बारे में बताया और रवि की खोज में मदद माँगी । और एक घंटे बाद ही रवि शीतला मंदिर की सफाई करता मिल गया । और शाम होते होते मुकुंद रवि को लेकर घर लौट आये ।

माँ ने भरे गले से बेटे का स्वागत किया और कई ऊँचनीच समझाई । उनमें से कितनी रवि को समझ आई, यह तो नहीं कहा जा सकता पर नियत दिन नियत समय पर पाँच लोगों के साथ बारात सहारनपुर गयी । प्रीतम और सुरसती ने तो मानो गंगा नहा ही ली पर कन्यादान करके सबसे ज्यादा खुश थे चंद्र, जमना और उनके बच्चे । सादे से समारोह में धर्मशीला दुल्हन बन कर गोनियाना आ गयी ।

इस तरह एक आदमी जोगी बनते बनते गृहस्थी बन गया और एक लङकी कुँआरी विधवा होते होते सुहागन हो गयी ।