Karm Path Par - 74 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 74

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कर्म पथ पर - 74




कर्म पथ पर
Chapter 74





वृंदा के हादसे के बाद कुछ दिन हैमिल्टन परेशान रहा। उसे यह बात भूले नहीं भुला रही थी कि जाते जाते वृंदा उसे हरा गई। अतः अपने मन को शांत करने के लिए वह तरह तरह के उपाय करता था। एक दिन उसके एक मित्र जैकब ने बताया कि लखनऊ में एक थिएटर कंपनी अंग्रेजी ड्रामा प्रस्तुत कर रही है। इस ड्रामे की कहानी प्राचीन भारत के नाटककार कालिदास की कहानी शकुंतला पर आधारित है। इस नाटक में शहर में धूम मचा रखी है। खासकर नाटक की हीरोइन बहुत सुर्खियां बटोर रही है। जैकब उसे नाटक देखने के लिए ले गया।
नाटक की कहानी में तो हैमिल्टन ने अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई। पर शकुंतला का रोल करने वाली हीरोइन ने उसका मन मोह लिया। नाटक के बाद उसने अपने दोस्त से जैकब से इच्छा जताई कि वह इस नाटक की हीरोइन से मिलना चाहता है। जैकब बहुत जुगाड़ू किस्म का इंसान था। फिर हैमिल्टन उसके बहुत काम भी आता था। इसलिए जैकब ने नाटक की हीरोइन से हैमिल्टन की मुलाकात की व्यवस्था कर दी।
हीरोइन का नाम लीना माइकल था। उसके पिता पंजाबी ईसाई परिवार से थे और माँ बंगाली थी। लीना गजब की खूबसूरत थी। उसकी बड़ी बड़ी आँखें उसकी खूबसूरती को और बढ़ा देती थीं। लीना के पिता अंग्रेजी शराब के थोक विक्रेता थे। लेनोवो की इकलौती संतान थी। उसकी शिक्षा दीक्षा इंग्लैंड में हुई थी। वहाँ उसने डांस और ड्रामा की ट्रेनिंग ली थी।
उसने एक थिएटर कंपनी ज्वाइन कर ली थी। उसी का हिस्सा बनकर वह देश के कई हिस्सों में अपने नाटक का मंचन कर रही थी। कई शहरों के बाद लखनऊ में आई थी। यहाँ इस नाटक को बहुत अधिक सराहा गया था। अतः थिएटर कंपनी ने किया था कि वह कुछ दिन और लखनऊ में रहेंगे।
लीना के साथ पहली मुलाकात में ही हैमिल्टन उसका दीवाना हो गया था। वह उसके ड्रामा का हर शो देखता था। हर बार उसके घर में फूलों का गुलदस्ता भिजवाता था। उसके साथ एक चिट्ठी होती थी कि जिसमें उसकी खूबसूरती व हुनर की तारीफ होती थी। लीना भी धन्यवाद का एक नोट उसे भिजवा देती थी।
एक दो बार हैमिल्टन लीना की इजाज़त से उसके घर पर उससे मिल चुका था। उसके बाद वह बार बार उससे मिलने लगा। हर मुलाकात के बाद लीना से मिलने की उसकी इच्छा और बढ़ जाती। वह रात दिन लीना के ही सपने देखता था।
हैमिल्टन के जीवन में जितने भी स्त्रियां आई थीं वह सभी उसका साथ पाने के लिए लालायित रहती थीं। लेकिन लीना उनमें नहीं थी। वह उससे बातचीत तो करती थी। उसके उसके और अपने बीच एक दूरी बनाए रखती थी। यह बात हैमिल्टन उसे पाने के लिए और भी अधिक प्रेरित करती थी।
लीना में उसे वृंदा की झलक दिखती थी। जो किसी भी कीमत पर उसके हाथ आने को तैयार नहीं थी। वह वृंदा को तो हासिल नहीं पाया था लेकिन अब लीना को हासिल कर अपने मन की जलन मिटाना चाहता था। इसलिए वह उसे पाने के हर दांव आजमा रहा था।
इस बार हैमिल्टन ने फूलों के साथ एक उपहार भी भिजवाया। लीना ने फूल तो रख लिए पर उपहार को एक नोट लिख कर वापस कर दिया कि वह उपहार लेना पसंद नहीं करती है।
हैमिल्टन समझ गया था कि लीना का दिल जीतना है तो चालाकी से काम करना होगा। उसे जोर जबरदस्ती या लालच देकर नहीं जीता जा सकता है। उसने भी तय कर लिया था कि वह लीना को अपनी ओर झुका कर ही रहेगा।
वह लीना के सामने एक बहुत ही सभ्य अंग्रेज़ की तरह पेश आता था। लीना को साहित्य व संगीत में बहुत रुचि थी। हैमिल्टन ने भी साहित्य के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाना आरंभ कर दिया। जब वह लीना से मिलता था तो उसके साथ साहित्य पर चर्चा करता था। वह उसके साथ म्यूजिक कॉन्सर्ट्स पर भी जाता था।
धीरे धीरे उसने लीना पर अपना रंग जमाना शुरू कर दिया था। लीना भी अब उसकी तरफ झुकने लगी थी।

जय लता के घर बैठा था। वृंदा चाहती थी कि लता को पढ़ने लिखने का मौका मिले। उसके जीवन का उद्देश्य सिर्फ दो मुठ्ठी अनाज से अपना पेट पालना ही ना रह जाए। इसलिए वह लता के पिता बृजकिशोर से मिलने आया था।
वह अपनी तैयारी करके आया था।‌ उसे पता था कि यदि वह बृजकिशोर से कहेगा कि लता को पढ़ाए लिखाए तो वह उसकी बात नहीं मानेगा। इसलिए वह अपनी बात कहने का दूसरा ही तरीका सोच कर आया था।
उसने शिव मंदिर में लता को भजन गाते हुए सुना था। उसका कंठ बहुत मीठा था। मंदिर में आने वाले भक्त अक्सर उससे भजन गाने को कहते थे। लता ने सुन सुन कर मानस के कुछ हिस्से भी कंठस्थ कर लिए थे। वह भजन के साथ उन्हें भी सुनाती थी। बड़े भक्ति भाव से उन्हें उनका अर्थ भी बताती थी।
उसने लता के इसी गुण की तारीफ करते हुए कहा,

"आपकी बेटी को ईश्वर का वरदान है। कितनी भक्ति के साथ भजन गाती है। उस दिन मानस के कुछ हिस्से उसने सुनाए। जिस तरह से उनका भाव बता रही थी उन्हें सुनकर दिल खुश हो गया। सच कहूँ मैंने इतने भाव के साथ कथा करने वालों को भी प्रवचन करते हुए नहीं देखा।"
लता की माँ कमला दरवाज़े की ओट से सब सुन रही थी। वह बोली,
"भइया हमारी लता है बहुत होशियार। पर क्या कहें अभागी है।"
जय ने कहा,
"जिसे ईश्वर का ऐसा वरदान मिला हो वह भला अभागा कैसे हुआ। मैं तो कहता हूँ कि अगर उसे मौका मिले तो ग्रंथों को पढ़कर गांव वालों को बड़ी अच्छी तरह से समझा सकती है। धर्म के काम आ सकती है।"
धर्म के काम आने वाली बात ने असर किया। बृजकिशोर ने कहा,
"बात तो आपकी ठीक है। पर उसे ग्रंथ पढ़ाएगा कौन ?"
"अगर वह पढ़ना सीख जाए तो खुद ही पढ़ लेगी। समझ है उसे इन मामलों की। देखिए ना कैसे मानस के हिस्से सुनकर ही उनका भाव समझ लिया।"
एक बार फिर कमला बोली,
"बात तो है भइया। पर पढ़ना सीखेगी कैसे ?"
"उर्मिला जी से। वासुदेव जी ने लड़कियों की शिक्षा के लिए उन्हें रखा है ना। अब सावित्री जी तो अस्वस्थ हैं। ना जाने कब आएंगी। हाँ उसके लिए लता को स्कूल जाना पड़ेगा। पर वह तो आप लोगों का निर्णय होगा। पर लता सचमुच बड़ी होनहार है।"
अपनी बात कह कर जय उठा और नमस्ते करके चला गया।

वह लड़कों को पढ़ाने के लिए जा रहा था। रास्ते में उसे उर्मिला मिल गई। उसने उसे नमस्ते कर पूँछा,
"लड़कियों की कक्षा तो अब सुचारु रूप से चलने लगी है ना ?"
'हाँ अब सब व्यवस्थित हो गया है। वैसे सावित्री जी ने बहुत अच्छा सिखाया था उन्हें।"
"हाँ वह बहुत मन लगाकर हर काम करती थीं। पर अस्वस्थ होने के कारण उन्हें जाना पड़ा। लेकिन लड़कियों के भाग्य से आप मिल गईं।"
"उन्हें पढ़ा पा रही हूँ यह मेरा सौभाग्य है। मेरे पति गांधीवादी विचारधारा के थे। वह स्त्री शिक्षा के हिमायती थे। अब उनके काम को मैं आगे ले जा पा रही हूँ इससे अधिक मेरा सौभाग्य क्या होगा।"
उर्मिला ने जय को नमस्ते किया और आगे बढ़ गई।
उर्मिला भुवनदा के एक मित्र बालमुकुंद की विधवा थी। दोनों पति पत्नी गांधी जी की विचारधारा पर चलते हुए समाज उत्थान का काम कर रहे थे। लेकिन बाल की तबीयत खराब हो जाने से उनका काम रुक गया। लंबे समय तक बीमारी से जूझने के बाद बालमुकुंद मृत्यु हो गई।
उनकी मृत्यु के बाद उर्मिला लड़कियों की शिक्षा को लेकर कुछ काम करना चाहती थी। वृंदा के जाने के बाद लड़कियों की कक्षा बंद हो गई थी। अतः भुवनदा ने उसे बुला लिया था। उसे यह बात बता दी कि अंग्रेजी सरकार से बचने के लिए वह यहाँ वासुदेव गुप्ता के नाम से रह रहे हैं। पर जय और मदन का परिचय उन्होंने आदित्य और विलास के नाम से ही दिया। उन्होंने बताया कि इससे पहले लड़कियों की कक्षा उनकी भतीजी सावित्री चलाती थी। लेकिन वह अस्वस्थ हो गई और अपने घर चली गई। अतः उन्हें लड़कियों की कक्षा के लिए टीचर चाहिए। उर्मिला तैयार हो गई। अब गांव में ही एक कमरा लेकर रहती थी और लड़कियों को पढ़ाती थी।