Chhoona hai Aasman - 3 in Hindi Children Stories by Goodwin Masih books and stories PDF | छूना है आसमान - 3

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छूना है आसमान - 3

छूना है आसमान

अध्याय 3

‘‘दीदी......।’’ अलका ने जोर से कहा,

‘‘अरे अलका तुम......आओ......लगता है आज मम्मी घर में नहीं हैं ?’’ चेतना ने मुस्कुराते हुए कहा।

‘‘हाँ दीदी, आज मम्मी घर पर नहीं हैं वह बाजार गयी हैं, तभी तो मैं आपके पास आ गयी।’’

‘‘तुम्हारे हाथ में क्या है अलका......?’’ चेतना ने अलका की बात को नजरअंदाज करते हुए कहा।

‘‘दीदी, मैं तुम्हारे लिये आइसक्रीम लेकर आयी हूँ, लो जल्दी से खा लो।’’

‘‘नहीं अलका तुम खा लो।’’

‘‘अच्छा चलो हम दोनों मिलकर खाते हैं।’’ अलका ने कहा।

‘‘हाँ, यह हुई न बात।’’ चेतना ने कहा और दोनों साथ में आइसक्रीम खाने लगीं। आइसक्रीम खत्म करने के बाद अलका ने चेतना से कहा।

‘‘दीदी, हम लोगों ने बहुत दिनों साथ में कैरम नहीं खेला, चलो आज साथ में कैरम खेलते हैं।’’ कहकर अलका भाग कर दूसरे कमरे में गयी और जल्दी से अपना कैरम और उसकी गोटियाँ उठा लायी। फिर दोनों कैरम खेलने लगीं। कैरम खेलते-खेलते जब दोनों का मन भर गया, तो चेतना ने अलका को अपनी कहानी की किताब में से कई कहानियाँ पढ़कर सुनायीं।

कहानी सुनते-सुनते अलका एकदम कहने लगी, ‘‘तुम्हें मालूम है दीदी, हमारे स्कूल में डांस काॅम्पटीषन की तैयारियाँ चल रही हैं।’’

‘‘अच्छा, तो तुम उसमें भाग ले रही हो न......?’’

‘‘हाँ, मेरे साथ मेरी सहेलियाँ भी हिस्सा ले रही हैं। हम लोग रोज स्कूल की छुट्टी हो जाने के बाद अपनी मेम के साथ डाँस की प्रैक्टिस करते हैं।’’

‘‘अरे वाह, तब तो तुम्हें बड़ा मजा आता होगा।’’ चेतना ने खुष होते हुए कहा।

‘‘हाँ, दीदी, मेरा तो मन कर रहा है कि तुम भी मेरे साथ उस कार्यक्रम में आओ, लेकिन......सोचने से क्या होता है ?’’ कहते-कहते अलका निराष हो गयी।

अलका से डांस काॅम्पटीषन के बारे में सुनकर चेतना का मन अजीब हो गया। उसने एकदम बात का रुख बदल दिया और अलका से कहने लगी, ‘‘अच्छा अलका यह बताओ स्कूल में तुम्हारी कितनी दोस्त हैं और उन सबका नाम क्या-क्या है......? चेतना ने विषयान्तर करते हुए कहा, तो अलका उसे एक-एक करके अपनी सहेलियों के बारे में बताने लगी। साथ ही वह यह भी बता रही थी कि कौन-सी सहेली, क्या शरारत करती हैं, जिसे सुनकर चेतना को बड़ा मजा आने लगा। दोनों ठहाके मार-मार कर हँसने लगीं।

उसी समय उसकी मम्मी बाजार से आ गयीं। उन्होंने अलका को देखा, अलका अपने कमरे में नहीं थी। उसी समय उन्हें चेतना के कमरे से अलका और चेतना के हँसने की आवाज को सुना। सुनते ही उनका दिमाग खराब हो गया। उन्होंने आव-देखा-न-ताव देखा, वह दनदनाती हुयी चेतना के कमरे में गयीं और अलका की जमकर पिटायी लगा दी साथ ही उसे यह हिदायत भी दे दी कि आज के बाद वह फिर कभी उनकी गैरमाजूदगी में चेतना के कमरे मंे गयी, तो उसकी खैर नहीं है।

उस दिन की बात याद आते ही चेतना एकमद ऐसे घबरा गयी, जैसे उसने को भयानक साँप देख लिया हो। वह अपने मन में दुःखी होकर सोचने लगी, उसकी मम्मी उससे इतनी नफरत क्यों करती हैं......? अगर उसके पैर जन्म से ऐसे हैं तो इसमें उसका क्या दोष है ? और फिर अपना बच्चा कैसा भी होता, उसे उसके घर वाले तो प्यार करते ही हैं......? लेकिन उसकी मम्मी तो उसके साथ गैरों जैसा व्यवहार करती हैं......ऐसा क्यों......? क्या एक घर में रहकर वह और अलका एक-दूसरे से मिले बिना रह सकते हैं ? क्या दोनों एक-दूसरे से बात किये बिना रह सकते हैं ? ऐसा संभव हो सकता है......? षायद कभी नहीं ? लेकिन उसकी मम्मी ने तो उन दोनों बहनों के बीच में दीवार बना दी है। शायद उसकी मम्मी सोचती होंगी, कि उससे बोलने या उसके कमरे में आने से अलका के अन्दर भी कोई शारीरिक या मानसिक कमी न आ जाये......? काष! मैं विकलांग न होती और अपने पैरों पर चल-फिर सकती, तो शायद उसकी मम्मी, उससे इतनी नफरत नहीं करतीं। उसे भी वह अलका जितना प्यार करतीं।

शाम के पाँच बज रहे थे। आसमान में काले घने बादल छाये हुए थे, जिन्हें देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे किसी भी समय मूसलाधार बारिष हो सकती है। तेज हवा के झोकों से पेड़-पौधे मस्ती में झूम रहे थे। पक्षियों की चहचहाट और कोलाहल वातावरण में सुनायी दे रहा था। ऐसा लग रहा था मानो सारे पक्षी आसमान में अठखेलियां कर रहे हों और सुहावने मौसम का मजा लूट रहे हों। पार्क में से आती काॅलोनी के बच्चों के दौड़ने-भागने और हँसने-बोलने की आवाजें चेतना के मन को रोमांचित कर रही थीं। लेकिन बाहर के सुहावने मौसम में पक्षियों की चहचहाट और बच्चों की आवाजों को चेतना सुनकर महसूस तो कर सकती थी, लेकिन उस खूबसूरत और मन को लुभाने वाले मौसम के मस्त नजारे को अपनी आँखों से देख नहीं सकती थी, क्योंकि वह जिस खिड़की के पास बैठकर बाहर के उस मस्त नजारे को देखती थी, वो खिड़की उसकी मम्मी ने हमेषा के लिए बंद कर दी थी।

मन तो उसका बहुत कर रहा था कि किसी तरह खिड़की खुल जाये और वह हमेषा की तरह बाहर के उस खूबसूरत नजारे को अपनी आँखों से देख सके। आसमान में उड़ते पक्षी, पार्क में दौड़ते-भागते और उछल-कूद करते काॅलोनी के बच्चे और हवा की मस्ती में झूमते पेड़-पौधे। क्योंकि उसे बारिष का मौसम बहुत पसंद था। इस मौसम में न तो तन को झुलसा देने वाली धूप निकलती है और न ही पसीने से सराबोर करने वाली गर्मी का अहसास होता है। इस मौसम की स्वछंद ठंडी हवा और बारिष की हल्की-हल्की फुहार जब खिड़की के रास्ते से अन्दर आकर चेतना को स्पर्ष करती है, उसे गुदगुदाती है, तो उसका तन और मन सिहर कर पुलकित हो उठता था और वह घण्टों इसी अहसास के सहारे खिड़की पे बैठी रहती थी।

लेकिन आज उसका मन बेहद निराष और उदास है। आज उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है। वह बस टकटकी लगाकर उस खिड़की को देखे जा रही है, जिसकी झिरी में से बादलों में कड़क रही बिजली की रोषनी छनकर कमरे में आ रही थी। हवा के झोंके भी बार-बार आकर उसकी खिड़की से टकरा रहे थे, जिससे ऐसी आवाज निकल रही थी, मानों हवा दरवाजा खटखटा रही हो और कह रही हो कि क्या बात है चेतना, आज तुमने खिड़की क्यों नहीं खोली......? ......तुम खिड़की खोलो। हम अंदर आकर तुम्हें छूना चाहते हैं......। तुम्हें तरोताजा करना चाहते हैं, तुम्हारे साथ बैठकर तुमसे ढेर सारी बातें करना चाहते हैं लेकिन बेचारी चेतना मजबूर थी, चाहकर भी वह उस खिड़की को खोल नहीं सकती थी।

खयालों की दुनिया में खोयी चेतना, कभी बाहर मस्ती में झूमते पेड़-पौधों की आवाज सुनती, तो कभी पार्क में खेल रहे बच्चों की आवाजें उसके कानों को सहलातीं और गुदगुदातीं। उसी समय दरवाजे से बीस वर्षीय रोनित चेतना के कमरे में आता है।

रोनित ने इसी वर्ष इन्टरमीडिएट की परीक्षा पास करके शहर के एक डिग्री काॅलेज में एडमीषन लिया है। रोनित एक नेक, ईमानदार, व्यवहारकुषल और मृदुभाषी लड़का है। रोनित के पापा नहीं हैं। रोनित जब छोटा था, तभी उसके पापा की एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी थी। उनकी मृत्यु के बाद रोनित की मम्मी ने मेहनत-मजदूरी करके रोनित को पाला-पोषा और पढ़ाया-लिखाया था।

रोनित बहुत सारे बच्चों को ट्यूषन पढ़ाकर घर का खर्च चलाने में अपनी मम्मी का हाथ बटाता था।

रोनित चेतना को भी ट्यूषन पढ़ाने के लिए रोज उसके घर आता है।

चुपचाप अंधेरे कमरे में अकेले बैठी चेतना को रोनित काफी देर तक खड़े होकर यूँ ही देखता रहा। चेतना का ध्यान अब भी कहीं और लगा हुआ था। उसे पता ही नहीं चला रोनित कब का आकर उसके सामने खड़ा हो गया।

बंद खिड़की और चेतना के चेहरे पर छायी उदासी और मायूसी को देखकर रोनित समझ गया कि चेतना को लेकर जरूर उसके घर में कुछ-न-कुछ हुआ है, जिसकी वजह से वह इतनी गंभीर हो गयी है, क्योंकि उसको वह अच्छी तरह जानता था कि चेतना की मम्मी चेतना को पसंद नहीं करती हैं, जब-तब उसको उल्टा-सीधा, जो उनके मुँह में आता, बोलती हैं। वह जब भी चेतना को कुछ कहती हैं, तब चेतना बहुत उदास हो जाती है और उसे चेतना का उतरा हुआ चेहरा अच्छा नहीं लगता है।

‘‘चेतना......।’’

कमरे की लाइट जलाते हुए रोनित ने कहा।

रोनित की आवाज सुनकर चेतना एकदम ऐसे चैंक गयी, जैसे किसी ने उसे गहरी नींद से जगा दिया हो।

वह एकदम हड़बड़ा कर बोली, ‘‘अरे सर आप......? ......आप कब आये......?’’ चेतना ने अपने आपको सम्हालते हुए कहा।

चेतना की बात का जवाब न देकर रोनित एकदम मुस्कुरा दिया और बोला, ‘‘क्या बात है चेतना......आज तुमने न तो अपनी खिड़की खोली......और न ही कमरे की लाईट जलाई।’’ कहते हुए रोनित खिड़की खोलने के लिए खिड़की की तरफ बढ़ा तो चेतना एकदम बोल पड़ी, ‘‘अरे सर, क्या कर रहे हैं......? खिड़की मत खोलिएगा।’’

चेतना की बात सुनकर रोनित जहाँ-का-तहाँ रुक गया और बोला, ‘‘क्यों, खिड़की क्यों नहीं खोलूं......?’’

‘‘बस, ऐसे ही......इसे आप बंद ही रहने दीजिए......।’’

रोनित समझ गया हो-न-हो खिड़की को ही लेकर कोई बात हुई है। वह बिना खिड़की खोले चेतना के सामने कुर्सी पे आकर बैठ गया। क्षण-दो-क्षण दोनों के बीच खामोषी छायी रही। इस बीच रोनित चेतना के चेहरे को पढ़ने की कोषिष करता रहा और जब उससे रहा नहीं गया तो उसने चेतना से कहा, ‘‘क्या बात है चेतना......कहाँ तो तुम इस खिड़की को क्षण भर के लिए भी बंद नहीं होने देती हो......और अब इसे खोलने को मना कर रही हो......क्यों......? जबकि आज बाहर का मौसम इतना अच्छा है कि तुम देखोगी तो तुम्हारा मन खुष हो जायेगा।’’

रोनित की बात सुनकर चेतना और गंभीर हो गयी। उसकी आंखों में आंसू तैरने लगे। पर वह चाहकर भी कुछ बोल नहीं पायी। उसकी आंखों में आँसू देखकर रोनित ने चैंकते हुए कहा, ‘‘अरे तुम्हारी आँखों में आँसू......? ......क्या बात है चेतना......? मुझे लग रहा है जैसे तुम मुझसे कुछ छिपा रही हो......? ......बोलो न क्या बात है......? ......खिड़की को लेकर तुम्हारी मम्मी ने तो तुमसे कुछ नहीं कहा......?’’

रोनित का इतना कहना था, चेतना एकदम भावुक हो गयी। उसकी आँखों में आँसू तैरने लगे। वह भर्रायी हुई आवाज में बोली, ‘‘जी सर, मम्मी ने ही इस खिड़की को बंद किया है।’’

‘‘क्यों, उन्होंने ऐसा क्यों किया......?’’ रोनित ने चैंक कर पूछा।

क्रमशः ...........

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बाल उपन्यास: गुडविन मसीह