थ्री
बांद्रा पुलिस स्टेशन में आधी रात को फोन की घंटी जोरो से बजने लगी। 'ट्रिन ट्रिन ..... ट्रिन ट्रिन।' कुछ देर बजने के बाद फोन की घंटी अपने आप बन्द हो गई और चारो तरफ सन्नाटा छा गया। कुछ देर बाद एकाएक सन्नाटे को तोड़ते हुए फोन की घंटी फिरसे बजने लगी और साथ ही सब इंस्पेक्टर खान की नींद भी टूटी। उसने अपना मुंह बिगाड़ते हुए पास की ही दीवाल पर लगी घड़ी को देखा जो एक बजकर पैंतीस मिनिट का समय बता रही थी और सेकंड का काटा हर सेकंड को भविष्यकाल से भूतकाल बनाता हुआ आगे बढ़ रहा था। इंस्पेक्टर खान ने फोन का रिसीवर उठाकर अपने कानों पर रखा और खान ने अपनी आँखें फिर से बन्द कर ली। सामने से एक आवाज आई -
"बांद्रा पुलिस स्टेशन ?"
आवाज किसी पुरुष की थी। खान ने यह सुनकर चिढ़ते हुए कहा - " हाँ।" जिसने फ़ोन किया था उसे इंस्पेक्टर खान की चिड़चडाहट साफ महसूस हुई। उसने उसे नजरअंदाज करते हुए शांति से कहा -
"यहां मेरे घर पर तीन लोगो की लाशें पड़ी है।" यह सुनकर खान की सारी नींद एक पल में जैसे गायब हो गई और वो तनकर बैठ गया पर सामने वाले कि आवाज में स्थिरता देख उसे शक भी हुआ कि कोई उसके साथ मजाक तो नही कर रहा ? अगर कोई व्यक्ति लाश देखता है और वो पुलिस को फ़ोन करता है तो उसकी आवाज में थोड़ी घबराहट या हड़बड़ी जरूर होती है, पर इस आंगतुक के आवाज में कोई भी ऐसे भाव नही थे,और एक और वजह यह भी थी की आज कल पुलिस को गुमराह या परेशान करने के लिए अनेक फर्जी कॉल आते थे। इस लिए इंस्पेक्टर खान बोलने ही जा रहा था कि फोन के सामने से एक आदेश देने वाली आवाज आई -
"पता लिखो इंस्पेक्टर।" पता बताने के बाद उसने आगे कहा , जल्दी आना इंस्पेक्टर कही कातिल भाग न जाएं।" यह कहकर सामने वाले व्यक्ति ने फोन रख दिया और अपने खून से सने लथपथ हाथो से सामने रखे टेबल पर से कॉफी से भरा कप उठाया और अपने होंठों से लगा लिया। एक चुस्की लेने के बाद उसने दाहिनी तरफ सिर घुमाकर बैडरूम के अंदर देखा जहाँ बेड पर खून से सनी लाशें पड़ी थी।
सब इंस्पेक्टर खान के पुलिसिया दिमाग के ना कहने के बावजूद भी फ़ोन के आखिरी शब्द ने उसे जाने को मजबूर कर दिया था। वह ताम जाम के साथ फोन पर बताये हुए पते पर पहुँचा। घर का दरवाजा खुला हुआ था। इन्स्पेक्टर और उसके साथियों ने घर में प्रवेश किया और प्रवेश करते ही इंस्पेक्टर खान को खून की अजीब सी दुर्गन्ध महसूस हुई। वह आगे बढ़ते हुए खाली हॉल से बढ़ते हुए बेडरूम की तरफ बढ़ा, उसने देखा कि फर्श पूरा खून से भरा पड़ा हुआ था और खून से नहाई हुई दो डेड बॉडी बेड पर पड़ी थी, उसी के पास एक आराम कुर्सी पर एक आदमी अपने दाहिने हाथ में कॉफी का प्याला लिए हुए आराम से सो रहा था। तुरंत ही इंस्पेक्टर ने अपनी गन निकाल ली। तभी आराम कुर्सी पर सोते हुए व्यक्ति ने कहा - "रिलैक्स ऑफिसर !" उसने अपनी आँखें खोली और अपनी जगह से उठा। इंस्पेक्टर खान उसे ही देखे जा रहा था पर उसने अपनी बंदूक उस व्यक्ति पर से नही हटाई। अपने सामने गन होने के बावजूद भी उस व्यक्ति के चेहरे पर थोड़ा भी डर नही था, यह देख इंस्पेक्टर खान को हैरानी हो रही थी। उस व्यक्ति ने एक नजर अपने हाथ पर पहनी घड़ी पर डाली और इंस्पेक्टर खान के सामने देखकर बोला - " मैंने ही आपको फोन किया था, और मैं ही कातिल हूँ।"
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सुंदरभवन बंगले के सामने पुलिस जीप आकर रुकी। इंस्पेक्टर अनिल शेखावत जीप से उतरा औऱ उसने अपनी गोल्ड फ्लेक सिगरेट की आखरी कश खीचकर सिगरेट को जमीन पर फेंका और बंगले की तरफ बढ़ा। उसने देखा कि वारदात पर अब तक एम्बुलेंस और फोरेंसिक जांच टीम आ पहुची थी। तभी उसने देखा कि सब इंस्पेक्टर खान उसकी ही तरफ आ रहा है। उसके पास आते ही उसने सैलूट करते हुए कहा - "जयहिंद सर"
"जयहिन्द खान।" कुछ पल के लिए दोनों के बीच खामोशी रही फिर शेखावत ने थोड़ी हैरानी से कहा - "क्या सच में कातिल ने सामने से फोन करके अपने आप को सरेंडर किया है ?" खान ने जब फोन करके शेखावत को हुई घटना से रूबरू करवाया तब शेखावत को अपने कानों पर भरोसा ही नही हुआ, इस लिए उसने जो सुना था वह सही है या नही यह पुष्टि करने के लिए शेखावत ने सवाल किया। जिसके उतर में खान बोला -
"जी सर कातिल ने स्वयं हमे फ़ोन करके अपनी बीवी और उसके प्रेमी की हत्या के बारे में सब कुछ बताया।" खान की आवाज में भी आश्चर्य के भाव थे। यह सुन शेखावत खुद से ही बोला -" अजीब बात है , आज कल के मुजरिम भी हरिश्चंद्र बन गए है !" यह कहकर वह घर की तरफ बढ़ गया और उसी के साथ खान भी चल पड़ा। दोनो अंदर पहुचे तो अभी भी फोरेंसिक टीम अपनी जांच पड़ताल कर रही थी और दोनों लाशें बेड पर खून से सनी हुई पड़ी थी। एक फोटोग्राफर दोनो लाशो की तस्वीरें अलग अलग एंगल से खींच रहा था। शेखावत ने एक नजर लाश पर डाली , दोनो लाशें अर्ध नग्न अवस्था में थी। शेखवात ने बारीकी से देखने के लिए अपनी भूरी आँखों को थोड़ी छोटी की, उसने देखा कि पुरूष के गर्दन पर एक बड़ा सा घाव था, मानो कोई छोटी सी कुल्हाड़ी मारी हो और बस एक ही वार काफी रहा होगा, पर कुल्हाड़ी यहां ? ओह्ह ! "किचन एक्स" , शेखावत मन ही मन सोच रहा था। उसने नजर हटाकर दूसरी लाश को देखा। उस औरत का चेहरा इतना बीभत्स रूप ले चुका था कि शेखावत ने तुरंत अपनी नजर हटा ली। पर वह सोच रहा था उसी हथियार से अपनी बीवी के चेहरे पर तब तक वार किया होगा जब तक उसका गुस्सा शांत नही हुआ। उसने सवालिया नजरो से खान की तरफ देखा और खान तुरंत समझ गया कि सर इस घटना की डिटेल मांग रहे थे। उसने तोते की तरह बोलना शुरू कर दिया -
"सर यह केस पति पत्नी और वो वाला एंगल है। कातिल अपनी शादी की सालगिरह पर बीवी को सरप्राइज देने के लिए अपने बिजनेस टूर से जल्दी लौटा। उसने देखा कि खुदकी बीवी किसी अन्य व्यक्ति के साथ हमबिस्तर है तो गुस्से मैं आकर उसने किचन में रखे किचन एक्स से इस हत्या को अंजाम दिया और फोन कर के हमे इस हत्या से इत्तला किया और जुर्म कुबूल कर लिया।"
सबकुछ सुनने के बाद शेखावत ने एक आह भरी और कहा - "तो केस आईने की तरह साफ है। मीन्स केस क्लोज।"
शेखावत की बात काटते हुए सब इंस्पेक्टर खान बोल उठा - "नही सर ! एक छोटी सी दिक्कत है।" यह सुन शेखावत के कान खड़े हो गए और उसने सवालियां नजरो से खान को देखा। इंस्पेक्टर खान ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला - सर कातिल बार बार यह कह रहा है कि उसने तीन लोगों के कत्ल किए है। जब कि हमे केवल दो लाशें ही बरामद हुई है , तीसरी लाश का कुछ अता पता नही। जब हमने उससे इस बारे मे अधिक जानने के लिये सवाल किए तो वो मौन धारण कर लेता है।" इंस्पेक्टर खान ने शांति से सुनने के बाद कहा - "खान मुजरिम की हर बात पर भरोसा नही करना चाहिए।"
"पर सर जो मुजरिम सामने से चलकर अपना गुनाह कुबूल कर रहा है, पुलिस को सबकुछ सच सच बता रहा है तो वो एक झूठ आखिर क्यों बोलेगा ? " खान ने अपना पक्ष रखा। इंस्पेक्टर शेखावत को भी यह बात कही न कही सही लग रही थी। शेखावत की एक नजर किचन हॉल के डाइनिंग टेबल पर बैठे कातिल पर गई। गोल चेहरे पर नंबर वाला चश्मा और क्लीन शेव चेहरा किसी मासूम से बच्चे जैसा दिख रहा था। उसके चेहरे की मासूमियत यह मानने नही दे रही थी कुर्सी पर बैठा यह शख्स तीन तीन कत्ल को अंजाम दे चुका है पर सत्य हमेशा कड़वा होता है। शेखावत ने खान से कहा - "तीसरी लाश ढूंढो !" खान यह आदेश सुन उसे अमल करता हुआ वहां से चला गया।
इंस्पेक्टर शेखावत उस कातिल के पास गया और उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठा जिससे वो कातिल को ठीक तरीके से देख सके। बैठते ही उसकी नजर कातिल के अवलोकन में लग गई। कातिल के चेहरे पर गुनाह करने के बाद भी न ही कोई पश्चाताप का भाव था, न ही कोई भविष्य का डर। उसका चेहरा एकदम शांत मुद्रा में था। पर जब नजर उसके कपाल पर गई तो पसीने की बूंदे साफ साफ चमक रही थी, आंगिक भाव उस व्यक्ति के डर को उजागर कर रहे थे, यह देख शेखावत मुस्कुराया और जेब मे हाथ डालकर सिगरेट का बॉक्स निकाला। उसमें से सिगरेट निकाली और सिगरेट का बॉक्स उस कातिल के तरफ बढ़ाकर उसे सिगरेट पीने के लिए आमंत्रित किया। पर तभी वह कातिल यह देख निडरता से बोला -
"नो थैंक्स मैं स्मोकिंग नही करता।" आवाज की स्पष्टता शेखावत को खली। उसने अपना बॉक्स वापिस लेते हुए कहा -
"वाह ! स्मोकिंग नही करते पर दो दो खून आसानी से कर सकते हो ?"
यह व्यंग करते हुए उसने कातिल के सामने देख मुस्कुराया , तभी कातिल ने कहा -
"तीन" ( यह सुन शेखावत ने गंभीर मुद्रा में सवालिया नजरो से उस कातिल को देखा। वह आगे बोला ) मैंने तीन लोगो को मारा है।" फिरसे स्पष्ट आवाज। वह ऐसे बर्ताव कर रहा था मानो कुछ हुआ ही न हो। पर यह सुनकर शेखावत के चेहरे से हँसी जरूर गायब हो चुकी थी। उसके माथे पर गुस्से की कुछ लकीरे भी उभर आई पर अपने गुस्से को पीते हुए शेखावत बोला -
"खून करने की क्या जरूरत थी ? यह हर तीसरे घर की कहानी है। डिवोर्स दे देते , वो भी जिंदा रहती और तुम भी जेल की जिंदगी से बच जाते।"
यह सुन कातिल ने शेखावत के सामने कुछ पल देखा और फिर ठंडे लहजे में बोला -
"शादी के लिए डिवोर्स दे देता सर, पर मेरे प्यार के लिए क्या करता ?"
यह सुन इंस्पेक्टर शेखावत स्तब्ध रह गया मानो किसी ने उसके कानो में सुखी बर्फ के टुकड़े डाल दिये हो और उसी के साथ उसका पारा सातवे आसमान पर चला गया। वह चिल्लाते हुए बोला -
"तू यह कहना चाहता है कि हर प्यार में धोखे खाने वाले को अपने पार्टनर को तेरी तरह मौत के घाट उतार देना चाहिए ? सुन हरामी , तू कोई प्यार व्यार नही करता था समझा , करता तो उससे जान से न मारता , और यह सारी हेकड़ी न जेल की हवा के साथ निकल जाएगी समझा, फालतू बकवास न कर।"
कातिल खामोश रहा। कुछ पल के लिए दोनों के बीच सन्नाटा रहा। इंस्पेक्टर शेखावत ने फिर से पूछताछ शुरू करते हुए कहा -
"तुम अपने बयान में यह कह रहे हों कि तुमने तीन खून किए है?" आवाज सुन कातिल ने शेखावत की तरफ देखा और वाक्य खत्म होते ही तुरंत बोला उठा - "जी।" शेखावत ने उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश की पर अफसोस वह कातिल सच कह रहा था। उसने आगे कहा - " पर हमें तो केवल दो ही लाशें बरामद हुई है तीसरी लाश हमे कही भी नही मिली।" कातिल ने आसपास की चीजों के देखा फिर आँखे बंद की और बोला - लगता है आप लोगों ने अच्छी तरह से तलाशी नही ली। यह कहकर उसने अपनी आँखें खोली और आगे कहा - "या फिर आपकी पुलिस कामचोर है।" यह सुन इंस्पेक्टर शेखावत तिलमिला उठा और दहाड़ते हुए बोला -
"ओए ! ज्यादा बकवास मत कर चुपचाप बता की तीसरा खून तूने किसका किया और मारकर उसकी लाश कहा छुपा दी ? जल्दी बता वरना ऐसी ऐसी जगह मारूँगा न कि सारी की सारी शानपत्ति निकल जाएगी समझा , चुपचाप बता।" कातिल के चेहरे पर पहली बार डर के भाव उभरे, उसने अपनी झेब में से हाथ रुमाल निकाला और सर का पसीना पोछा उसने तय किया सब कुछ बताने का।
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कातिल ने अपनी बीवी के प्रेमी को किचन एक्स के एक ही वार से मोत के घाट उतार दिया था। वह अब अपनी बीवी की तरफ लपका, उसकी बीवी उससे माफी मांग रही थी, रो रही थी पर कातिल के सर खून सवार था। उसने उसके सर के बालों को बहुत कसकर पकड़ा , उसकी बीवी की चीख निकल गई। वो उसपर वार करने ही वाला था कि पीछे से एक जानी पहचानी सी आवाज आई। कातिल ने मुड़कर देखा तो दरवाजे की तरफ रोहित खड़ा था। कातिल यह देख स्तब्ध हो गया। रोहित परेशान सा होकर उसके पास आया और बोला - यह क्या कर रहे हो तुम, वह तुम्हारी बीवी है छोड़ो उसे।" रोहित कातिल से उसकी बीवी को अलग करने की कोशिश करने लगा तभी कातिल रोहित को धक्का देते हुए बोला - नही इसने मेरे साथ धोखा किया है, मेरे विश्वास को तोड़ा है, मेरे प्यार को गाली दी है, इसे जीना का कोई हक्क नही !" कातिल अपनी बीवी को मारने के लिए आगे बढ़ा ही था की रोहित ने गिड़गिड़ाते हुए कहा - " रुको ! तुम उसे नही मार सकते।"
"क्यो ?" कातिल ने चिल्लाते हुए यह कहा। रोहित की आवाज भारी हो गई। उसने जुंजलाते हुए कहा - " क्योकि मैं प्यार करता हुँ " वह कातिल के हाथ से उसकी बीवी को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था पर यह सुनकर कातिल का खून और खौल उठा थाl उसने किचन अक्स की मुठ रोहित के सिर पर मारते हुए कहा-
"धोकेबाज़" रोहित के सिर से खून निकल ने लगा था। कातिल ने अपना हथियार अपनी बीवी को मारने के लिए उठाया ही था कि उसके हाथ अपने आप काँपने लगें। प्यार तो उसने भी बहुत किया था अपनी बीवी से। जब ब्याहकर उसे घर लाया था तब ही वह मन ही मन फैसला कर चुका था कि वह अपना सारा प्यार अपनी बीवी पर लुटा देगा। वह उसकी कही अनकही सारी ख्वाहिशों को पूरा करता था , उसके बावजूद भी उसने मेरे साथ धोखा किया, मेरे विश्वास को घात में बदल दिया। यह सोचते ही उसके हाथ ने फिरसे हथियार को मजबूती से पकड़ लिया और वार करने ही जा रहा था कि रोहित ने बीच में आते हुए कातिल से कहा -
"मैं तुम्हारे सामने हाथ जोड़ता हूँ। मत मारो उसे। मैंने उसके साथ जीने मरने की कसमें खाई है। कई सपने देखे है मैंने उसके साथ, प्लीज उसे मत मारो !"
रोहित की बाते कातिल को कमजोर कर रही थी। एक बार फिर उसका हथियार वाला हाथ काँपने लगा था। उसका दिमाग सोच रहा था कसमें तो मैंने भी जीने मरने की खाई थी उसके साथ, मैंने भी उसे लेकर कई सपने संजोए थे, जिसे उसके साथ हकीकत बनाना था, पर वो इन सारे सपनो को चकनाचूर कर उसे रौंदकर कर किसी और के साथ सपने संजोने लगी। उन सारी कसमो को निभाने के बजाय तोड़ दिया। यह सोचकर उसकी आँखों मे आँसू भर आए और साथ ही बहुत सारा गुस्सा। जिसे उसने रोहित पर उतारा वह रोहित पर घुस्से लात बरसाता गया। रोहित जमीन पर ढह गया। उसके मुंह और नाक से खून बहने लगा था। कातिल चिल्लाते हुए बोला - "चुप कररर।" कातिल की आवाज में एक याचना थी। वह फिरसे अपनी बीवी की तरफ बढ़ा ही था कि उसके पैर जमीन पर थम से गये। कातिल ने अपने पैरों की तरफ देखा तो रोहित ने खून से लथपथ होने के बावजूद भी कातिल के पैर कसकर पकड़ रखे थे, और कातिल की बीवी को जिससे वह प्यार करता था उसे न मारने की भीख मांग रहा था। कातिल यह देख तिलमिला उठा और पूरी ताकत के साथ आगे बढ़ा। रोहित भी उसके साथ घसीटता हुआ आगे बढ़ रहा था। जब कातिल अपनी बीवी के पास आ गया। तब रोहित ने आखरी बार रोते हुए कहा -
"प्लीज मुझसे मेरी जीने की वजह मत छीनो,मैं उससे प्यार करता हूँ "
यह सुन कातिल का दिमाग फिरसे सन्न हो गया, वो सोचने लगा कि मेरा भी इस जहा में इसके अलावा कोई नही था, यही मेरी जीने की एक वजह थी, पर शायद उसके जीने की वजह में नही था। इस लिए उसने मुझसे सबकुछ छीन लिया। यह सोच कर कातिल गम और गुस्से से भर गया, उसके आँसू अब उसके चेहरे को भिगो रहे थे, उसने रोहित को बालों से पकड़कर उठाया, रोहित दर्द से कराह रहा था। रोहित को उसने बेड पर फेंका और वह भी उसके छाती के ऊपर घुटनो के बल बैठ गया और पूरी ताकत से रोहित के सर पर किचन अक्स से वार करते हुए बोलता रहा - "हाँ, मैं उससे प्यार करता हूँ, मैं उससे प्यार करता हूँ, आई लव हर आई लव हर डेम इट !" और बस वह वार करता रहा।
कातिल ने जो बताया उसे सुन शेखावत के रीढ़ की हड्डी में एक सिहरन सी दौड़ गई। वह जल्दी से बोला -
"तो फिर लाश कहाँ है ?"
यह सुन पहली बार कातिल मुस्कुराया। कातिल को मुस्कुराता देख शेखावत असमंजस में पड़ गया। वह कुछ कहने ही जा रहा था कि सब इंस्पेक्टर खान की पीछे से आवाज आई। वह हांफ रहा था जिसे देख शेखावत कुर्सी से खड़ा हो गया, खान ने साँस लेते हुए कहा - "सर हमे यह जहर की बोटल सोफे के नीचे...
तभी धडम सी एक जोर की आवाज आई। दोनो ने आवाज की दिशा में देखा तो कातिल का धड़ टेबल पर गिर गया था और उसके मुंह से ढेर सारा जाग निकल रहा था और उसकी आँखें उल्टी हो चुकी थी। दोनो उसकी तरफ दौड़े पर बहुत देर हो चुकी थी। दोनो को तीसरी लाश रोहित सक्सेना के रूप में मिल चुकी थी।
'दुसरो की जान लेने से पहले खुद को मारना पड़ता है।'
- Aryan suvada