"तू तो बता रहा था कि शैलेश यहां मिलेगा?" भैयाजी ने अपनी भारी आवाज़ में पूछा जो वो बरसो पहले किसीको डराने, धमकाने या मारते वक़्त उपयोग किया करता था।
"थोड़ा सा इंतेज़ार कर लीजिए भैयाजी, कुछ ही वक़्त में वो आता ही होंगा।" यह कहते हुवे फ़ारूक़ अपने मोबाइल से कोई नंबर डायल करने लगा। ऐसा लग रहा था मानो वो अपने किसी सोर्स से पता लगा रहा था की आखिरकार वहां शैलेश मज़मुदार क्यो नही था।
"सुनो तुम्हे भैयाजी बुला रहे है।" फ़ोन पर बात करने की झूठी एक्टिंग करते हुए फ़ारूक़ उस बंध पड़े वेयरहाउस से बाहर निकला और भैयाजी के ड्राइवर से कहा जो भैयाजी और फ़ारूक़ को दीव से सिम्बोर लेकर आया था।
जैसे ही भैयाजी का ड्राइवर कुछ आगे बढ़ा की किसीने उसके सर पर लोहे के रॉड से वार किया और भैयाजी का ड्राइवर गिरते ही बेहोश हो गया।
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जब वो उठा तो उसे सर में भारी सिरदर्द था, अपने सर को हाथ से दबाते हुवे जब उसने उठने की कोशिश की तो वो थोड़ा लड़खड़ा गया क्योकि उसके पैरों को रस्सियों से बांध दिया गया था, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि उसके हाथ नही बंधे हुवे थे। लड़खड़ाने के साथ उसकी नज़रे एक कुर्सी पर बंधे हुवे आदमी पर पड़ी जिसका सर नही था।
कुर्सी पर बिना सर के रस्सियों में बंधी लाश को देखकर वो सकपका गया और बड़ी ही जल्दी अपने पैरों पर बंधी रस्सियों को खोलने की कोशिश करने लगा। भले ही उस लाश का सर नही था लेकिन, भैयाजी के कपड़ो से उसका ड्राइवर पहचान ज़रूर गया था कि किसीने भैयाजी को मार डाला था।
"जिस आदमी से उलझने से पहले हर कोई सो दफा सोंचे उस आदमी को किसने मारा होंगा, और उसकी ताकत कितनी होंगी?" ऐसे अनगिनत सवाल ड्राइवर के दिमाग मे उस वक़्त अपनी जगह बना रहे थे।
रस्सियों के खुल जाने के बाद उसने अपने फ़ोन को अपनी जेब मे ढूंढा ताकि वो भैयाजी की आफिस भैयाजी के कत्ल की जानकारी दे सके, लेकिन उसे उसकी जेब मे उसका फोन नही मिला।
वक़्त और तारीख की जानकारी के लिए उसने भैयाजी की जेब खंगाली लेकिन भैयाजी का फ़ोन भी ड्राइवर को नही मिला। भैयाजी का फ़ोन भी न मिलने पर ड्राइवर और भी घबरा गया और उसे कोई वहां न देखले और यह न सोचले की उसीने भैयाजी का क़त्ल तो नही किया। इसी ख्याल के चलते ड्राइवर वहां से भाग खड़ा हुआ और कार के पास जा पहुंचा जो ठीक उसी जगह पार्क की हुई थी जहाँ पर उसने पार्क की थी और अचरज की बात यह भी थी कि कार में चाबी भी लगी हुई थी। ड्राइवर ने बिना कोई देरी किये सिम्बोर से कार भगा दी।
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"तुमने कभी बताया नही की तुम्हारी माँ नही है।" ओकले दंपति को छोड़ने के बाद माहेरा और जय जब अपर्णा प्रेम जय के घर पर पहुंचे उस वक़्त घर मे दाखिल होते ही माहेरा ने जय से पूछा।
"अभी तो बहुत सी बातें है मेरे बारे में जिसके बारे में तुम्हे नही मालूम।" जय ने माहेरा की बात का जवाब देते हुवे कहा।
"हां, तो चलो बताओ मुझे तुम्हारे बारे में। आई एम रेडी टू हियर ध स्टोरी ऑफ जय सिवाल।" माहेरा ने मानो जय का इंटरव्यू ले रही हो उस अंदाज़ में पूछा।
"इतनी जल्दी क्यो? अभी तो वक़्त ही वक़्त है हमारे पास।" माहेरा की बात को टालने की कोशिश करते हुवे जय ने कहा।
"वैसे देखा जाये तो मैंने कभी सोचा नही था कि किसीके साथ मेरे पेरेंट्स के बारे में इस तरह... आई मीन एक रूम के अंदर बैठे बैठे बातें शेयर करूँगा।" माहेरा के पास पलंग पर बैठते हुवे जय ने कहा इससे पहले की माहेरा जय के पहले सवाल का कोई जवाब दे पाती।
"तो तुमने किस तरह सोचा था?" माहेरा ने जय और अपने बीच पंलग की दूरी को थोड़ा कम करते हुवे उसके और नज़दीक जाकर पूछा।
"डैड कहा करते थे...
"थे मतलब? तुम्हारे डैड भी नही है?" इससे पहले की जय अपनी माँ के बारे में माहेरा को कुछ कह पाता माहेरा ने एक और सवाल पूछ लिया।
"तुम सुनोगी भी या फिर ठीक इसी तरह एक के बाद एक सवाल पूछती ही रहोगी?" जय ने अपने बेड पर सोते हुवे कहा।
"ठीक है, बताओ!" जय को सोता हुवा देख माहेरा ने भी जय के पास ही सोते हुवे पूछा।
"डैड कहा करते थे कि जब में ६ साल का होनेवाला था तब उन्होंने मेरे बर्थडे पर एक पार्टी देने का प्लान बनाया था, और उसी लिए मोम और डेड बाजार ने चीज़े खरीदने गए थे और उस वक़्त मेरे मोम-डेड की कार के साथ एक हादसा हुआ और उसी हादसे में मेरी माँ चल बसी" जय की आवाज़ थोड़ी भारी सी सुनाई पड़ रही थी। उसे हमेशा दिल मे यह बात खलती थी कि वो अपनी माँ को कभी ठीक से नही जान सका, और इतना ही नही उसकी माँ की उसके पास ज़्यादा यादें भी नही थी, याद के नाम पर बस उसके पिता द्वारा कही गयी बात की उसकी माँ एक कार एक्सीडेंट में मर चुकी थी।
"और तुम्हारे डैड?" जय की भारी और थोड़ी सहमी हुई आवाज़ के कारण माहेरा बस उतना ही पूछ सकी।
"मेरे डैड एक जादूगर थे, और जब में ९ साल का था तब एक दिन उनके शो में से पुलिस उनको गिरफ्तार कर के ले गयी और फिर उस दिन के बाद डैड कभी नही मिले, बहुत ढूंढने की कोशिश की हमने उन्हें ढूंढने की लेकिन उनका पता कभी नही लगा। और अब तो पता नही वो ज़िंदा होंगे भी की नही।" इसके आगे की जय कुछ और बोल पाता माहेरा ने जय को लेते हुवे ही हग कर लिया और उसे शांत कराने लगी। जय को इतने सालों बाद कोई मिला था जो अब उसे धीरे-धीरे अपना लगने लगा था।
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