clean cheet - 2 in Hindi Fiction Stories by Vijay Raval books and stories PDF | क्लीनचिट - 2

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क्लीनचिट - 2

अंक- दूसरा/२

ब्लेक कलर के ऑफ सोल्डर टॉप और नी लेंथ स्कर्ट में ट्रेंडी मीडियम लेंथ खुल्ले हुए हेयर स्टाइल में अदिती बेहद ही खुबसूरत लग रही थी।

ग्रे कलर के ट्राउज़र पर डार्क ब्ल्यू कलर के हाफ स्लीव, राउंड नेक टी- शर्ट में आलोक का नज़ारा आसानी से एक बार किसी का भी ध्यान एक खींचने के लिए काफी था।

अदिती-आलोक बूके के लिए शुक्रिया।
आलोक-आशा करता हूँ आपको अच्छा लगा होगा।
अदिती-अरे हाँ, बहोत ही खुबसुरत है।
आलोक- मैंने आपको ज्यादा इंतज़ार तो नहीं करवाया ना ?

अदिती- जी नहीं, मैं भी अभी अभी आई हूँ. पांच मिनिट पहेले ही, सब से पहेले रिसेप्शन काउंटर पर आप के बारे में पूछा। आप नहीं आये थे, तो मैंने उनको इत्ला दी की कोई मि.आलोक देसाई आये तो उनको गार्डन की ओर आने के लिए बोल देना।

अदिती- आलोक, आपको यहाँ बैठना ठीक लग रहा है या.. टेरेस रेस्टोरंट पर चले ?

मैं सोच रहा हूँ, थोड़ी देर यहाँ बैठते है फिर जायेंगें।
अदिती- आलोक आप कम्फर्टेबल हो ?
जी, बिलकुल. क्यों एसा पूछा ?
अदिती- पर, मुझे तो आप अन कम्फर्टेबल लग रहे हो।
किस बात से ?

आलोक, मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे की आप शादी के लिए कोई लड़की देखने आये हो, या मैं किसी कंपनी की बॉस हूँ और आप इंटरव्यू देने आये हो।
फिर दोनों हंसने लगे।

अच्छा तो अदिती अब ये बताओ की आप किस बात से कम्फर्टेबल महेसूस होगा ?

आलोक मैं मानती हूँ की, हमारी बातचीत के दरमियाँ से ये राजा महाराजाओ के भारी भरख़म वस्त्र परिधान जैसे शब्द ‘आप’, ‘आपके’,
‘आपने’, ‘आपको’ ये सब को हमेशां के लिए मिटा देंगे तो बात करने में काफी आसानी रहेगी।
अदिती- बोलो क्या बोलते हो तुम ?

ह्म्म्म... सच कहूं अदिती तो मैं भी यही सोच रहा था, फिर सोचा की अगर थोडा और परिचय हो जायेगा तो थोड़ी आसानी रहेगी, अचानक से आप को तु बोलना मुझे थोडा अजीब लग रहा था इसलिये...,

अदिती- अरे.. आलोक बस.. बस.. अब और कितना सोचोगे, बोलो तुम सॉफ्ट ड्रिंक में क्या पीना पसंद करोगे ?

अदिती, में रेड बूल लूँगा, तुमको पसंद है ?
जी बिलकुल।
अदिती ने वेटर को दो रेड बूल लाने के लिए कहा।

ड्रिंक्स पीते हुए आलोक ने पूछा।
हा, अदिती पहेले ये बताओ तुम्हारी आज की क्या शर्त है ?

अदिती- अरे.. आज की शर्त का क्या मतलब ? तुम्हें क्या लगता है मैं रोज शर्तो पे चलती हूँ ऐसा ? और रही बात शर्त की, तो वो जब हम यहाँ से निकलेंगे तब बताउगी अगर बताने लायक लगा तो। पर तुम बताओ तुम कब से इन शर्तो का आदी हो गये ? चल बोलो कबूल. क्या शर्त है तुम्हारी ?
अदिती ने पूछा ।

अरे... तुम्हारी जैसी कोई कठिन शर्त नहीं है। सिर्फ इतना ही, की बिना कोई शर्त तुम अपना परिचय दो बस।

बस ? इतनी शर्त, ठीक है अब ध्यान से सुनो।

आलोक मेरे रिश्ते कभी शर्तो के आधीन नहीं होते। में अपनेपन के रिश्तो में कभी गुंजाइश को कोई अवकाश नहीं देती। या तो वो होता है या तो नहीं। अगर रिश्ते में परिपक्वता की गहेराईयाँ को समजने की कमी होगी तो फिर रिश्ते में संबोधन के कोई मायने नहीं रखते। स्त्री और पुरुष दोनों के करीबी रिश्ते के बीच में दोनों के समज का उनका अपनी एक अलग प्राथमिकता और गरिमा होती है।
थोड़ी देर बाद जब हम जुदा होंगे तब तक हम दोनों के दरमियाँ के संवाद में इतनी पारदर्शिता तो होनी ही चाहिए की एक दुसरे के प्रति जरा भी संदेह का कोई स्थान न हो। ऐसा में मानती हूँ, अब तुम बोलो।

अदिती मैं इतना जरुर कहूँगा की... तुमने सिर्फ चार लाइन में दो हमउम्र, अनजान व्यक्तिओ के बीच में होने जा रहे प्रथम परिचय के वार्तालाप के संवाद के लिए एक सवच्छ और सवस्थ भूमिका बांध के अपनी बात को बहोत ही अच्छी तरह पेश किया है। मुझे तो अभी से ही कोई संदेह नहीं है,और न कभी होगा।

आलोक तुमने मुझे पूछा की मैं कौन हूँ ? तो अब सुनो।

अदिती- मेरे पापा रिटार्यड आर्मी अफसर है और मम्मी होमियोपेथिक डॉक्टर। पन्द्रह साल की पापा की सर्विस के दरमियाँ एक या दो बार गंदी राजनीती के शिकार होने की वजह से उन्होंने सर्विस से इश्तिफा दे दिया। मम्मी होमियोपेथिक डॉक्टर है पर उन्होंने कभी प्रेक्टिस नहीं की। मैं और मेरी बहन स्वाति दोनों का जन्म पुना में हुआ था। पापा आर्मी अफसर, बहोत ही अनुसाशन प्रिय, सख्त स्वभाव और कूट कूट कर भरी हुई खानदानी ईमानदारी की वजह से हर दो साल बाद उनकी ट्रांसफर हो जाती थी और इस बहाने उनका भारत भ्रमण भी हो जाता था। मेरे और स्वाति के स्थाई और नियमित पढाई के लिए शुरू से हम दोनों को हमारी नानी माँ के पास मुंबई भेज दिया था. पांचवी कक्षा से ही हम दोनों ने अपनी छोटी सी सोच, समज से सब कुछ सीखना शुरू कर दिया था। महीने के आठ या दस दिन मम्मी हमारे साथ रहेती थी। पापा ने पहेले से ही कडे प्रशिक्षण के साथ सख्त शब्दों में समजा दिया था की जिंदगी के किसी भी दौर या विकट परिस्थतियो में आप अकेले है और आपको अकेले ही उन हालातो का डट कर सामना करना है।

अब पिछले पांच साल से मॉम, डेड दोनों ऑस्ट्रेलिया सेट हो गये है। पापा और मम्मी ने दिल पे पत्थर रख के हमें अपनी करियर की बुलन्दियो पर देखने के लिए हम पर जो आँखे मुंद के आज़ादी दी है उस आज़ादी को हमने आज तक दुनिया के हवा की भनक तक नहीं लगने दी।

मैंने अभी सायकोलोजी में मास्टर्स खतम किया और स्वाति एम.बी.बी.एस. पूरा के एम.डी. की प्रिपरेशन कर रही है।
ये सब समय, सम्पति, संजोग, साधना, सामर्थ्य, सम्मति और शुभेच्छा सब के संयोजन से हम आज दोनों इस मक़ाम पर पहुंची है।

आलोक- पर तुम तो आज इंजीनियरिंग में एडमिशन के लिए आई थी ?

अदिती- मगर आलोक मैंने ऐसा कब कहा की मुझे एडमिशन लेना है। एडमिशन नहीं, एडमिशन की इन्फोर्मेशन लेने आयी थी समजे।

आलोक-तो फिर एडमिशन किस को लेना है ?

अदिती- पिक्चर अभी बाकि है मेरे दोस्त...चल अब डिनर लेते है। बाद की बात बाद में। बहोत हो गई मेरी बक बक। अब भूख के मारे पेट में दुनिया भर के चूहे दौड़ रहे है। चल टेरेस पर चलते है।

दोनों टेरेस रेस्टोरेंट के एक कोने वाले टेबल पर आ के बैठे।
ठीक उसी वक़्त स्वाति का कॉल आया.
अदिती- ‘हाई मेरी स्वीट हार्ट.. कैसी हो ? क्या कर रही हो ?
स्वाति-ओये.. तू अभी ये मक्खन लगाना बंध कर और बोल सुबह से कहाँ गायब हो ? सुबह से लेके अब तक तूझे एक कॉल करने का भी वक़्त नहीं मिला ? कहाँ.. कहाँ हो तुम अभी ? स्वाति काफी गुस्से मैं थी।

ओ ले ले ले मेला बच्चा आज इतने गुस्से में क्यूँ है रे.. बाबा ? नास्ता हिटलर के साथ किया था क्या ?
अरे यार तुमने एक बार भी नहीं सोचा की चल एक कॉल कर दूं ?
तू कब सुधरेगी ? तू कब तेरी इन लापरवाही से बाज आएगी ? चिंता भी हो रही है और इतना गुस्सा भी आ रहा है की वहां होती तो तेरा गला घोंट देती आज तो।

अरे.. अरे.. पगली सुन में अभी एक दोस्त के साथ निजी मीटिंग में हूँ. हम आराम से बात करें ?
अरे, भाड में गई तू और तेरी मीटिंग.
इतना बोल के गुस्से से स्वातिने
ने कॉल काट दिया।

आलोक-जान सकता हूँ किस का कॉल था ?

अदिती- मेरी जान का। पर इस वक़्त वो मेरी जान लेने पर तुली हुई है। पर सच कहूँ तो उनका गुस्सा भी शत प्रतिशत जायज़ है। गलती मेरी ही है. सुबह से एक भी कॉल नहीं किया इसलिए अच्छी तरह से भडकी है। एक मिनिट आलोक मैं उनको मेसेज सेंड कर देती हूँ.
फिर अदिती ने एक अच्छा सा मेसेज सेंड कर दिया।

आलोक, हम दोनों के रिश्ते की केमिस्ट्री ले लिए एक ही लाइन काफी है।
दो जिस्म एक जान।

स्वाति, मोम, डेड से भी ज्यादा मुझे चाहती है. ऑस्ट्रेलिया सेटल होना उसका ख्वाब है। पर वो मुझे छोड़ के कहीं नहीं जाएगी। इस गुस्से में भी सिर्फ उनका प्यार ही बोल है। मेरे लिए वो दुनिया की कितनी भी बडी ख़ुशी का त्याग कर सकती है। अगर तुम उसे मिलोगे तो मुझे भी भूल जाओगे।

आलोक-अरे..यार पहेले तुम्हें तो ठीक से मिल लू।

घड़ी में देखते हुए.
अदिती-आलोक १०:३५ हो गई . कितना वक्त चला गया।
तुम्हे जाने की जल्दी है, अदिती ?
हाँ.. पर ? अदिती ने वेटर को क्लोजिंग टाइम पूछा।
उसने कहा, १२ बजे
आलोक में स्टार्टर का ऑर्डर देती हूँ, तुम मेइन कोर्ष पसंद करो।
अदिती, तुम क्या पसंद करोगी ? पंजाबी, चाइनीज, मेक्सिकन, या थाई ?
आलोक आज में तुम्हारी पसंद का टेस्ट करना चाहूंगी।
अरे ये तो मेरे लिए बड़ी अग्निपरीक्षा होगी। तुम्हारे टेस्ट का मैं कैसे पता करू ?
वो ही तो. तभी तुम्हे पता चलेगा की किस बंदी से पाला पड़ा है।
११ बजे डिनर शुरू हुआ रेस्तरां के म्युज़िक सिस्टम पर इंस्ट्रूमेंटल ट्रेक पर मध्यम ध्वनी के मात्रा में गाना चल रहा था।

'आग भी जाने न तू.. पीछे भी जाने न तू... जो भी है बस यही एक पल है'

अदिती ये गाना।
गाना क्या ? अदिती ने पूछा ।
मुझे ऐसा लग रहा है की ये गाना हम दोनों के बीच में बंधने जा रहे संबंधसेतु के किसी अधूरे अंश का काम कर रहा है या फिर ?
या फिर क्या, आलोक ?
या फिर मुझे एसा लग रहा है की इस गाने के संदर्भ में मैं जो तुमसे कहेने जा रहा हूँ उस बात को ठीक ढंग से तुम को समजा नहीं पा रहा।

पर आलोक इस वक्त सब कुछ भूल के सिर्फ इस गाने को महेसुस करो बस।
डिनर खतम कर के अदिती ने वक्त देखा।११: ४०

आलोक ऐसा करते है कुछ देर के लिए हम रेस्तरां के आगे जो गार्डन है वहाँ बैठते है। चलो उस बेंच पे बैठे ।
तुम्हे कहीं जाने की जल्दी थी ?
हां, थी तो सही पर अब मेसेज आ गया तो कोई जल्दी नहीं है।
किसका मेसेज ?
वो बाद में कहूँगी।
आलोक...तुम एक बात बताओ, मुझे मिलने का ख्याल तुम्हे क्यूँ आया ?
तुम्हे ऐसा क्या लगा की मुझे मिलना चाहिए ? और अपनी ये मुलाकात तुम्हारे लिए क्या मायने रखती है ? मुझे सच्चा जवाब चाहिए हा।

ओह, एक साथ इतने सवाल। सच कहूँ अदिती मुझे तुम्हारी और से
कुछ हकारात्मक संकेत आ रहे थे।
आलोक, प्लीज़.. मुझे एसा रटारटाया रेडीमेड डिप्लोमेटिक उत्तर नहीं चहिये।
अदिती .. मेरा मतलब है की..मैं ये कहेना चाहता हूँ की...में सोचता हूँ की तुम समज जाओगी।

क्यूँ आलोक.. शब्दों को ढूँढना पड़ता है.. ? शब्दों को संजोना पड़ता है ?
अरे.. अदिती मैंने आज तक किसी लड़की के साथ इस तरह खुल के बातें नहीं की और मुझे तुम्हारी तरह बोलना भी नहीं आता।
मेरी तरह का क्या मतलब ?
वो उसको क्या कहेते है...तुम्हारे पास बात करने की एक अनूठी कला है।
तुम बात करती हो तो सुनने वाले को ऐसा लागता है जैसे की तुम उनके कानो को केडबरी खिला रही हो।

थोड़ी आँखे बड़ी कर के अदिती बोली।
ओह्ह.. अच्छा चल आलोक मुझे पूरी नहीं पर एक बाईट तो खिला दे।
फिर हँसते हुए आगे बोली

जीन के ख्याल से कॉलेज की लड़कियों की धडकने बढ़ जाती है। वो आलोक इतना बोखलाया हुआ क्यूँ है ? और तुम्हे क्या दिक्कत है।
तुम कहाँ मुझसे शादी करने वाले हो। बोल के अदिती हंसने लगी ।

अदिती, मेरी भी लडकियों से दोस्ती है। क्लासमेट, फेमिली फ्रेंड्स,या फिर कोई सोशियल मिडिया से कोंटेक्ट में आयी हो। कोई थोडा क्लोज़ पर कोई बिलकुल दिलके करीब हो या किसी के साथ निजी और गहेरा संबंध हो ऐसा कोई नहीं।

सोरी, आलोक मैं तुम्हारे उत्तर से संतुष्ट नहीं हूँ।ये मेरे सवालों का सही
और सटीक जवाब नहीं है। मुझे एसा लगता है की तुम ठीक से मेरे सवाल को समज नहीं रहे हो।
पर यार तुम मुझे उलझन में डाल देती हो।
आलोक का चहेरा देख के हँसते हुए अदिती बोली।
तुम्हे उलझाना अच्छा लगता है।
हा, अब बोल।

सुन, कोई ऐसा की उसके सामने हम अपने आप ही बेमतलब खुल के खिल जाए। जिनके साथ बात करते हुए शब्दों की साप-सीढ़ीया का खेल खेलना न पड़े। तुम्हारी बातोँ को सुन के मैंने एक चीज़ पर गौर किया की इतने कम वक्त के परिचय में मुझे ऐसा बिलकुल भी महेसुस नहीं हुआ की हम दो अजनबी है और पहेली बार मिल रहे है। कोई औपचारिकता नहीं। तेरे विचार बहोत ही साफ है। तेरी बातोँ में एक ठहेराव है। एक छोटी सी बात में कहूँ तो तुम मेघधनुष जैसी हो. जीवन के सब रंग है तुजमे।

ठहाके मार के हँसते हुए अदिती बोली।

बस.. बस.. बस.. मेरे लवगुरु। मुझे तो एसा लगा की तुम्हारे शरीर में मजनू की आत्मा ने प्रवेश कर लिया हो।
सच बताना आलोक, इस से पहेले कितनी लडकियों के आगे ये डायलॉग्स के रिहर्सल किये है।
अरे अदिती, तुमने तो मुझे बिलकुल पोपट बना दिया। पर अदिती मुझे तुम्हारे बारे में अभी और भी जानना है।
क्यूं, मुझ से शादी करने का इरादा है ? मन में लड्डू फूटा ?
आलोक के चहेरे के विस्तार को देख के अदिती अपनी हंसी पर काबू न कर सकी।

कम ओन अदिती, लोगो को मैंने ताकत से चोक्के- छक्के मारते हुए देखा है पर नजाकत से मारते हुए पहेली बार देख रहा हूँ।
बेहद हँसते हुए अदिती बोली.
अरे बाबा मैं तो सिर्फ मजाक कर रही हूँ।

सुन, आलोक।

अदिती- मैं अपने आप को किसी भी संजोग के मुताबिक ढाल सकती हूँ।
वो ‘शोर’ फिल्म के गाने की तरह. ‘ पानी रे पानी तेरा रंग कैसा..’
समय और संजोग से मैं बहोत कुछ सीखी हूँ। पापा,मम्मी से दूर रह कर। पैसा, धनदौलत, ऐशो आराम. लक्जरी, बचपन से देखा है। पांच साल की उम्र के बच्चे को पैसे की गरमी नहीं माँ-बाप के प्यार की गर्मजोशी चाहिए. मॉम,डेड ने अपना फर्ज़ पूरा करने में कोई कसर नहीं रखी है। पर जब कभी बेहद सूनेपन और मायूसी के वक्त माथे पर प्यार से मम्मी या पापा का हाथ नहीं होता था तब अंदर ही अंदर दर्द भरी एक खामोश चीख निकल जाती थी। आंसू को हम थमा दिया करते थे. वात्सल्य के खालीपन को ही हमने अपना हथियार बना लिया था।
आलोक, मैं हनुमान चालीसा गा सकती हूँ. और रेप गाने भी। मैं फ्लाईट में जाती हूँ और मुझे बैल गाड़ी में बैठना भी अच्छा लगता है। मैं साड़ी पहेनती हूँ और शॉर्ट्स भी। मुझसे भूख बिलकुल बर्दास्त नहीं होती पर में नवरात्री के पुरे नौ दिन उपवास रखती हूँ। मुझे भगवद गीता पढना अच्छा लगता है और चेतन भगत भी। मुझे महेंदी लगवाना बेहद पसंद है।
मैं कराटे में ब्लेक बेल्ट हूँ। मुझे पुरुष और उनके अंदर के ‘पुरुषत्व’ को भी अच्छे तरह से पहेचानना आता है।

आलोक, मैंने अपने एक अनोखे निजी स्पर्श के कंपन का कभी भी अनुभव नहीं किया है। पर फिर भी में सरेआम सेक्स के बारे में बिन्दास हो के डिबेट कर सकती हूँ। और एक खास बात व्होत्सप और फेसबुक जैसे भस्मासुर राक्षस से में और स्वाति दोनों हंमेशा से दूर ही रहेते है।

इन के अलावा में एक अनाथ और निसहाय बच्चो के लिए इंटरनेशनल एन.जी.ओ. की नियमित रूपसे कार्यरत सदस्या भी हूँ। उस में कभी कभी स्वाति भी मुझे हेल्प करती रहेती है।

इसीलिए मैंने सुबह कहा था अदिती मजुमदार के परिचय के लिए तुम्हारे कॉलेज की केन्टीन छोटी पड़ेगी. सही कहा था ?

मैं ऐसी सी ही हूँ, थोड़ी हटके। मैं अपने आप से बहोत प्यार करती हूँ। और उससे भी ज्यादा मुझे स्वाति प्यार करती है। आलोक, अगर इश्वर मुझसे पूछे की तुम्हे अगले जन्म में क्या बनना है तो एक पल का भी इंतजार किये बिना कहे दू... स्वाति की बहन।

आलोक, अब तुम बोलो. मेरे ख्याल से मैंने काफी बक बक कर ली।

अदिती मैंने सुना है की इस धरती पर कुछ हस्ती ऐसी है जिनको कुदरत ने अपने हाथो से बड़े आराम से फुर्सत में बनाया है। आज उस हस्ती के दर्शन भी हो गये।

आलोक, हस्ती की मस्ती करते हो क्या ?
पर अदिती ये एडमिशन का क्या चक्कर है. वो तो कहो।

बात ये है की मैं मेरे एन.जी.ओ. के एक नये प्रोजेक्ट के लिए एक दिन के लिए ही आयी हूँ। बरसो से मेरे एक अंकल यहाँ रहेते है। उन की एक बेटी मतलब मेरी कजिन सिस्टर है। मैं उनके एडमिशन के लिए ही कॉलेज आयी थी। दो दिनसे उनकी तबियत ठीक नहीं थी तो सोचा चलो इसी बहाने कॉलेज का चक्कर लगा के अपने कॉलेज के पुराने सुनहरे दिन याद कर के रिफ्रेश हो जाउंगी पर जैसे ही केम्पस में एंट्री मारी और तुम टकरा गए।

अदिती, अब तुम्हारा सवाल मैं तुम्हे पुछता हूं। तुमने मुझे अपने आप से मिलने की इज़ाज़त क्यूं दी?

आलोक, में मिलने जैसे आदमी से ही मिलती हूँ। तुम मिलने जैसे हो वो तो मुझे पता चला ही गया था। पर अब एसा लगता है सिर्फ मिलने जैसा ही नहीं। घुलने जैसे भी हो।

आलोक, तुम्हे यूँ ही यकायक कभी किसी अजनबी की बात या साथ से अपनी लगती खुशबु का अहेसास हुआ है ? बस उसी खुशबु को अनंत और लगतार रखने की वहज से ये मुलाकात जरुरी थी। तू पल में अजनबी तो पल में पिछले जन्म का कोई अधुरा रिश्ता लगता है। प्यार के हर हिस्से को तुम सही तरीके से उजागर कर सकते हो. और सब से अच्छी बात तुम शादी शुदा नहीं हो। बोल के अदिती हंसने लगी।

पर तुमने कब इतनी बारीकी से इन सब बातों पे गौर किया ? मेरा ध्यान क्यूँ नहीं गया इस बात पे ?

क्यूँ की उस वक्त तुम अपने कान को केडबरी खिलाने में व्यस्त और मस्त थे। हँसते हुए अदिती ने कहा।

आलोक मुझे आदमी को परखना आता है। और खास कर के पुरुष को । रास्ते पर दातुन बेचती अनपढ़ औरत भी मर्द की आँखे पढ़ सकती है।

तुमने मेरी आँखों में क्या देखा अदिती ? क्या कहेती है मेरी आँखे ?
सच कहूँ ? तेरी आँखे सुखी, सुनी और खाली और बिलकुल खामोश है।
मतलब ? मैं कुछ समजा नहीं अदिती।
वो ही तो। तुम कुछ भी तो नहीं समजते। तुम्हारी आंखे भी बिलकुल तुम्हारे जैसी है.... शरीफ।
घड़ी में १२:२५ का वक्त देख कर अदिती बोली,
आलोक, अब मुझे जाना होगा।
पर अदिती तुमने थोड़ी देर पहेले कहा की तुम एक दिन के लिए ही आयी हो तो तुम कल ही चली जाओगी ?
अरे नहीं, कल नहीं अभी। अहमदबाद एयरपोर्ट से मेरी जल्दी सुबह की फ्लाईट है।

-आगे अगले अंक मै.

© विजय रावल
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