कुछ कुछ होता था...ये कहानी एक डरी-सेमहि सी लड़की यानी मेरी है...आप कहानी मे प्रारंभ से अंत तक बने रहिए आप समझ जायेंगे title का राज....
खुद पे भरोशा रखो तुम सब कुछ कर सकती हो..आत्मविश्वास बनाये रखो....ये चीज़े जब तुम ज़िन्दागी की राह में एकली हो जाओगी तब तुह्मे काम आएगी....
खुद पे भरोशा रखो...ये बात सुने में बहोत अच्छी लगती है...लेकिन जब हम ऐसी लड़की के बारे में सोचे जिसे खुद पे भरोशा ही न हो...मतलब उसमे आत्मविश्वास यानी पत्तों का महेल... जो हवा की हल्की लहर से गिर जाए...बहोत वक़्त लगता है तिनको से पक्का मकान बनाने...
तो आप मुजे ये जवानी है दीवानी की "नैना" है उसकी बचपन की कहानी से जोड़ सकते हो । में भी वही किताबो से प्यार करनेवाली लास्ट में एकली बैठने वाली पढ़ाकू लड़की..।
जो लड़की किसी अनजान से बात करने में गभराती हो उसे पूरे स्कूल में speech कॉम्पिटिशन में भाग लेने के लिए कहा जाए तो क्या हो...
मुजे मंच पे जा के 500 लोग मतलब मेरे साथ पड़ने स्टूडेंट्स और टीचर के स्पीच देने में बहोत डर लगता था..कहो तो स्टेज फियर... मंच पर जाते नही पेर काँप उठाते थे...ओर दिल की धड़कन तेज हो जाती थी..पेट मे तो एक अजीब सी बेचेनी घर कर लेती थी..पेट मे तो कुछ कुछ होता था...
में 5 वी क्लास में थी....हमारी स्कूल में स्पीच कॉम्पिटिशन था..टीचर ने मेरा नाम लिख दिया और मुजे मटीरियल में दे दिया मुजे सिर्फ उसे याद करके बोलना था ..मने भी हा कर दी ..मेने अपनी तैयरी शुरू कर दी..जैसे जैसे दिन आते गए मेरा डर बढ़ने लगा.. फिर खबर मिली कॉम्पिटिशन अलगे week होगा... चलो ठीक है तैयारी को ज्यादा वक़्त मिला..अब वो दिन आ गया..में सभी के साथ जा कर बैठ कर गई अपनी बारी आने तक.. में बाहर से तो शांत ही लेकिन अंदर बहोत कुछ हो रहा था...अजीब सी बेचैनी हो रही थी..गभरहट सब कुछ भूला देने को मजबूर कर रखी थी..sir ने मेरा नाम लिया में गई वहा किसी को भी देखे बिना जो कुछ याद था बोल दिया .. वैसे थोडी गलतियां हुई लेकिन मेने स्पीच पूरी की...और में 3 नंबर पे आई। पर इस तरह मेने मेरा डर थोड़ा कम हुआ..मेने सभी कॉम्पिटिशन में भाग लेना शुरू किया और जितना भी..लेकिन ये स्टोरी मेरी प्राइमरी स्कूल की है...
में 8वी क्लास से 9 वी क्लास में गई यानी नये स्कूल में..नया स्कूल नया मंच...ओर डर शुरू...उस वक़्त में टॉपर थी तो स्कॉल के ज्यादातर टीचर मुजे जानते है ...नये स्कूल में मेरा फर्स्ट स्पीच कॉम्पिटिशन हुआ...मेने भाग दिया
उसका टॉपिक था डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन... मेने पूरी तैयरी कर ली....हमारी स्कूल में स्पीच के लिए टाइमिंग सेट थी...सभी ने अपनी स्पीच दी...अब मेरी बारी थी... नया मंच नये टीचर...ओर नये स्टूडेंट् थे...ये सब देख कर खुद पर जो भरोशा प्राइमरी था वो टूटने लगा था...दिमाग ने भी अपनी बत्ती गुल कर दी थी...में अपना टॉपिक भी भूल चुकी थी...अ.....आ....करने में ही मेरा time खत्म हो गया...और मेरी हार हुए...भूरा लगा लेकिन ज़िद्दी तो में बहोत थी मन मे ठान लिया की इस मंच पे जीत ना जाऊ तब तक में हर एक कॉम्पिटिशन में भाग लूँगी...चाहे मेरी कितनी भी बेज्जती हो या कोई मेरा मजाक बनाये...
ओर इसी सोच के साथ एक बार भी एक आये टॉपिक के साथ मंच पे गई डर को हरा दिया और जीत हासिल की...लेकिन तब काफी लोगो की नज़रे मुजे पे थी कि ये कुछ बोल पाएगी या नही...लेकिन मेरी जीत ने सारे जवाब ले दिया...
ये थी मेरी छोटी लेकिन सच्ची साहस गाथा....खुद पे भरोशा बनाना बहोत मुश्किल है...लेकिन कोसिस सब कुछ ठीक कर लेती है...हम सब के पास एक युद्ध मैदान है लेकिन वो बड़ा है या छोटा वो आप के नज़रिए पर निर्भर करता है...
में आश करती हूं कि आपको ये रियल कहानी पसंद आई होगी...कोई भूल हो जाए तो माफ कर दी जियेगा... खुश रखिये ..हेल्थी रखिये...ओर पढते रहिये...
☺️☺️☺️☺️☺️ Thank you☺️☺️☺️☺️☺️