Aadmi ka shikaar - 8 in Hindi Fiction Stories by Abha Yadav books and stories PDF | आदमी का शिकार - 8

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आदमी का शिकार - 8


योका के पीछे चलते हुए नूपुर ने योका से पूँछा-"यहां बस्ती में आदमी नहीं रहते?"
"रहते हैं."
"दिखाई तो दिये नहीं."
"दिन में आदमी शिकार करने चले जाते हैं. बच्चे ,स्त्री ,बूढे खेतों में."योका ने बताया.
"तुम और देवता भाई नहीं गये?"
"मुझे शिकार से घृणा है. देवता भाई को काम करने की जरूरत नहीं है."
"ऐसा क्यों?"
"मुझे निर्दोष जीवों की हत्या करना पंसद नहीं. देवता भाई को बस्ती वाले जरूरत की चीजें पहुंचा देते हैं."योका ने बुरा सा मुँह बनाकर कहा.
योका का बुरा सा मुँह देखकर नूपुर ने आगे बात नहीं की .वह चुपचाप योका के पीछे चलती रही.
"लो,यही हैं, देवता."एक ऊँचे टीले पर पहुंच कर योका ने विशाल मूर्ति की ओर इशारा किया.
नूपुर ध्यान से इस विशाल मूर्ति को देख रही थी. मूर्ति के एक हाथ में भाला था.दूसरे हाथ में कटोरा. चेहरा डरावना था.नेत्रों के स्थान पर दो गड्ढे थे.मुँह से हाथी की तरह दांत बाहर निकले हुए थे. गले में नरमुंड का हार.गले में नरमुंड का हार देखकर नूपुर को आश्चर्य हुआ .उसने योका से पूँछ ही लिया-"देवता के गले में नरमुंड की माला क्यूँ है.हमारे देवता तो फूलों की माला पहनते हैं.
"इसीलिए तो मुझे यह देवता पंसद नहीं है."
"क्या मतलब?"
"छोड़ो,इस बारे में फिर कभी बताऊंगा."अनमने मन से कोया बोला.
नूपुर ने जायदा बात करना ठीक नहीं समझा. वह चुपचाप खड़ी रही."
"वापस चलें."कुछ देर बाद योका स्वयं बोला.
"हां,चलो."नूपुर योका के पीछे चल दी.
योका टीले से उतरकर खेतों की ओर चल दिया.
"हम बस्ती में नहीं जा रहे?"योका को खेतों की ओर जाते देखकर नूपुर ने प्रश्न किया.
"नहीं, बस्ती में सूरज छिपने के बाद जायेंगे. जब सब लोग वापस आ जायेंगे. अभी हम मीठे बांस के खेत में जा रहे हैं."
मीठा बांस नूपुर ने कभी नही सुना था.लेकिन, उसने कुछ पूँछा नहीं. बस, उसे कोया का साथ अच्छा लग रहा था. बहुत दिनों बाद वह इंसान से मिलकर खुश थी.
योका गन्ने के खेत में घुसकर चार-पाँच गन्ने तोड़ लाया. उसने गन्ने को छील कर उसके छोटे छोटे टुकड़े किए और नूपुर को थमा दिए-"लो,खाओ.मीठे हैं."
"यही मीठे बांस हैं. हमारे यहां इसे गन्ना कहते हैं."नूपुर गन्ना चूसते हुए बोली."

"तुम्हारा घर कहा है?"योका ने पूँछा.
"बहुत दूर."
"कितनी दूर?"
"आसमान से होकर जाना पड़ता है."
"तुम आसमान में उड़ लेती हो?"योका की आँखें आश्चर्य से फैल गयी.
"अरे,नहीं. हमारे यहां आदमियों को बैठाकर उड़ने वाली गाड़ी होती है."नूपुर ने हँसते हुए हवाई जहाज के बारे में बताया.
"क्या, मैं उसमें बैठ सकता हूँ."
"हां,तुम हमारे घर चलना .हम तुम्हें उस गाड़ी म़े जरूर बैठायेगें."
"सच."उसे नूपुर की बात का विश्वास नहीं हो रहा था.
"हां."नूपुर मुस्कुरा दी.
"तुमने अपना नाम नहीं बताया."योका बोला. उसे नूपुर अच्छी लगने लगी थी.
"मेरा नाम नूपुर है."
"निप्पू."योका ने दोहराया.
"नहीं, नूपुर."नूपुर जोर से बोली.
"नप्पू."योका बहुत संभाल कर बोला.
"नूपुर... नूपुर..."नूपुर ने योका का उच्चारण सही करना चाहां.
"नुप्पू."बहुत प्रयत्न के बाद भी योका सही नहीं बोल पाया.
"अच्छा, तुम नुप्पू ही कहो."नूपुर हँसते हुए बोली.
"नुप्पू, तुम बहुत अच्छी हो."कहते हुए योका ने अपनी नाक से नूपुर की नाक दबा दी.
"योका,तुम बहुत शरारती हो."कहते हुए नूपुर एकदम पीछे हट गई.
"क्या हुआ?"योका नेआश्चर्य से पूँछा.
"तुमने मेरी नाक क्यों दबा दी?"नूपुर अपनी नाक सहलाते हुए बोली.
"हमारे यहां खुशी में नाक से नाक मिलायी जाती है."योका सहजता से बोला.
"ओह!"
"नुप्पू, तुम हमारे छाँव में रहोगी?"
"छाँव क्या होता है?"
"वहीं जहां हम लोग रहते हैं."
"हां."नूपुर धीरे से बोली .उसे भी कहीं रहने का ठिकाना चाहिए था.
"ठीक है.तुम यहां बैठकर मीठे बांस खाओ.तब तक में इनका रस निकालता हूँ."
"उसके बाद हम वापस बस्ती चलेंगे?"
"हां."सिर हिलाता हुआ योका गन्ने के खेत में घुस गया.
नूपुर वहीं रुककर उसके वापस आने का इंतजार करने लगी.

क्रमशः