अरमान दुल्हन के भाग 9
सरजू को खबर मिलती है कि कविता के पापा रिश्ते के लिए मान गए हैं, वह सत्ते भाई से कहता है कि भाई तुम मां से बात कर लो । सत्ते की अपनी मामी के साथ कम बनती है। वह सरजू को कहता है कि मामी मेरी बात कभी नहीं मानेगी । लेकिन सरजू कहता है कि आप एक बार बात करके तो देखो।आखिरकार जिसका डर था वही हुआ।
सत्ते अपनी मामी से रिश्ते का जिक्र करता है तो मामी गुस्से में बिफर पड़ती है।
"आच्छया तैं करावैगा रिश्ता? तन्नै सोच किसतरां लेई अक(कि) मैं तेरा ल्याया होया रिश्ता ले ल्यूंगी? घणा स्याणा ना बणै। तेरी थोबड़ी पै मारूंगी।चल्या जा हाड़े (यहाँ) तैं(से) । अर मन्नै कह दी सै आज के बाद रिश्ते की बात मत ना करिए।"
सरजू सोचता है कि मेरी उम्मीद को एक रोशनी की किरण नजर आई थी और वह भी बुझ गई।वह निराश हो जाता है। वह नये नये आइडियाज सोचता रहता है। मगर सफल नहीं हो पाता। उसे सत्ते सलाह देता है कि तुम अपने बड़े जीजा जी से बात करके देखो शायद बात बन जाये। सरजू अपने बड़े जीजाजी को बताता है कि सत्ते भाई ने कहीं रिश्ते की बात चलाई है, लड़की सुंदर और सुशील है । मां मना कर रही क्योंकि सत्ते भाई से मां चिढ़ती हैं। सरजू के जीजाजी बहुत मुश्किल से लड़की देखने के लिए तैयार होते हैं।
सरजू के जीजा जी सत्ते, कविता के फूफाजी और मामा को लेकर लड़की देखने चले जाते हैं। उन्हें कविता पसंद भी आ जाती है।
सरजू के घर आकर उसके जीजाजी और मामा ने सरजू की मां यानि पार्वती को बताया कि हमने सरजू के लिए लड़की देखी जो हमें पसंद है। हम रोका भी कर आये हैं ।मामा ने कहा- "तुम चाहो तो देख आओ और लड़की की सगाई कर आओ।"
पार्वती अपने भाई और दामाद की बात कभी नहीं टालती थी। इसलिए हामी भरना मजबूरी थी।
"थम्मनै पसंद सै तो मेरा के देखणा लागरया सै?"
अपने भाई को पार्वती स्पष्ट सा जवाब दे देती है।
हालांकि पार्वती सत्ते द्वारा लाया रिश्ता करना ही नहीं चाहती थी । वह सगाई की रस्म करने भी नहीं जाती है।
सरजू खुश भी है और निराश भी है। मां सगाई के लिए चली जाये तो कितना अच्छा हो।
चूंकि सरजू का मामा कविता के माता पिता को जुबान दे चुका था तो मना करने का तो सवाल ही पैदा नहीं हो सकता था। सरजू के मामा ने भी सोचा देर सवेर बहन भी मान ही जायेगी। मगर बहन तो टस से मस न हुई।
आखिर जीजा ने सोचा रिश्ता लंबा खींचना ठीक नहीं है और जल्द से जल्द शादी कर देनी चाहिए। वे कविता के पापा को संदेश देते हैं कि आप शादी की दिन तय करने आ जाओ।कविता के पापा और ताऊ सरजू को नारियल और शगुन देकर रिश्ता पक्का कर ब्याह का दिन तय कर देते हैं।
"देखो मीनू मैं तेरै तैं बेहद प्यार करूं सूं और कसम खाऊं सूं अक सदा तन्नै खुश राखण का हर संभव प्रयास करूंगा" सरजू ने कविता के हाथ को अपने हाथ में लेकर वादा किया।सरजू के हाथ का स्पर्श पाकर वह वर्तमान में लौटी।
"मीनू तन्नै बी बेरा सै आपणा रिश्ता सत्ते भाई के थ्रु होया सै । मां सत्ते भाई नै पसंद ना करती। इस खातर ए मां आपणे रिश्तें तैं राज्जी ना थी। अर तैं कोशिश करकै दिल जीत सकै सै मां का। कदे इस्सा काम मत ना करिये। जिस तैं मां के दिल नै चोट पहुंचै।"सरजू ने कविता को समझाया।
कविता ने भी नीची गर्दन करते हुए हां में सिर हिला दिया।
रात बीत चुकी थी।चिड़ियों ने चहचहाना शुरु कर दिया था और भोर होने का इशारा कर रही थी।
सरजू सुबह सैर करने निकल गया । कविता ने भी बाहर पड़े मटके से पानी लेकर मुहं धोया।तभी रज्जो लिवाने आ गई ।
"भाबी आप नहा धोके तैयार होल्यो । कांकर डोरड़ा खोलण खातर तोळ करैं सैं।फेर घाम(धूप) होज्यागा।"
और कविता के लिये साड़ी स्लैक्ट करने लगी।
कविता नहा कर ड्रेसिंग के सामने खड़ी होकर मैकअप करती है।
"ए भाबी ब्होते सुथरी लाग्गी, ले काळा टीका ला दयुं कदे मेरी ए टोक ना लागज्या।"- रज्जो कविता को काला टीका लगाकर निहारने लगी।
कविता मुस्कुरा दी।
इधर कांकर डोरड़े की रस्म निभाई जा रही थी और उधर पार्वती का मुहं अब भी फुला हुआ था।
नाइन परात में दूध, पानी और दूब डाल कर ले आई । बीच में चांदी की अंगूठी डाल दी गई और खेल( जूआ) शुरु हो गया। कभी सरजू जीत जाता तो कभी कविता अंगूठी के मिलने की खुशी में उछल पड़ती।
"छोरे हार मत जाईये, ना तै सारी उम्र हारता ए रहवैगा।" बूआ ने सरजू को चेताया।
सरजू ने जानबूझकर अंगूठी कविता की तरफ सरका दी ताकि उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कराहट आ जाये।आखिर फाईनल पारी में कविता ही जीत गई। सबने तालियां बजाई।
"अर बीज मरणे बहू तैं हारग्या!" बूआ भी खी खी कर हंसने लगी।
सरजू मुस्कुरा दिया ।
जूआ* -एक प्रकार का शादी में खेला जाने वाला खेल ।
एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा©