Ram Rachi Rakha - 5 - 1 in Hindi Moral Stories by Pratap Narayan Singh books and stories PDF | राम रचि राखा - 5 - 1

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राम रचि राखा - 5 - 1

राम रचि राखा

मुझे याद करोगे ?

(1)

"आनंद, आओ दूध पी लो” रुचि ने बाल्कनी से जोर से आवाज लगाई। शाम के लगभग सात बजने वाले थे। सूर्य डूब चुका था। पश्चिमी क्षितिज पर लालिमा बिखरी हुई थी। बाहर अभी उजाला था। चारो तरफ बने मकानो के बीच छोटे से पार्क में बच्चे खेल रहे थे। उनमें आनंद भी था।

"अभी आता हूँ...।“ आनंद ने रुचि की ओर देखे बिना ही उत्तर दिया और खेलना जारी रखा।

"जल्दी आ जाओ...।“ कहकर रुचि अंदर चली गई।

रूचि के बुलावे से आनंद समझ चुका था कि उसके खेल का समय अब समाप्त हो चुका है। उसे जाना पड़ेगा। जाकर दूध पीकर पढ़ने बैठना होगा।

रुचि ने उसके हर काम का समय निर्धारित कर रखा है। लौटते समय रास्ते में सोचने लगा कि जल्दी से परीक्षाएँ समाप्त हो जाएँ तो वह गाँव चला जाएगा और फिर पूरे दिन खेल ही खेल। कोई भी पढ़ने को नहीं कहेगा। उसकी छ्ठी कक्षा की परीक्षाएँ चल रही थीं।

आनंद इस कस्बे में पिछले तीन सालों से रह रहा है। उसके पिताजी यहाँ एक बैंक में मैनेजर हैं। उसका गाँव यहाँ से मात्र साठ किलोमीटर दूर है। तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई उसने वहीं की थी। गाँव में अच्छी पढ़ाई न होने के कारण पिताजी उसे और उसकी माँ को यहाँ साथ ले आए।

इस कस्बे में रहते हुए तीन साल बीत जाने के बाद भी उसका मन अपने गाँव में ही बसता है। चूँकि गाँव बहुत दूर नहीं है इसलिए स्कूल मे जब भी छुट्टियाँ होती हैं वह माँ के साथ गाँव चला जाता है।

जब पढ़ने बैठा तो उसे याद आया कि आज तो मौसी की शादी है। बारात आने वाली होगी। लोग नए-नए कपड़े पहन कर तैयार हो रहे होंगे। मेरी परीक्षा नहीं होती तो मैं भी आज वहीं होता। कितना मजा आता। मन में खीझ हुई की शादी के समय ही परीक्षा क्यों शुरु हो गई। सोचते-सोचते वह उदास हो गया। रुचि दरवाजे पर खड़ी होकर देख रही थी कि आनंद की नज़र किताबों से हटकर शून्य में खो गई है।

"क्या सोच रहे हो आनंद?" पास आकर पूछा।

"कुछ नहीं।“ आनंद ने सिर हिलाते हुए कहा। फिर पढ़ने का उपक्रम करने लगा। नज़रें नीचे किताब पर गड़ा दी।

रुचि ने उसके चेहरे की उदासी को देख लिया था। वह वहीं टेबल से टिक कर खड़ी हो गई और आनंद के चेहरे को अपने हाथों से ऊपर उठाते हुये उसने पूछा, "क्या बात है, बोलो न...मम्मी की याद आ रही है?" आनंद को माख आ गया और उसकी आँखें भरभरा गयीं।

"हे, ऐसा नहीं करते...।“ वह कुर्सी के पास उससे सटकर खड़ी हो गई। उसके सिर को अपने सीने से लगाकर आँसुओं को हाथों से पोछती हुई बोली, "रोते नहीं...अरे दो-तीन दिन की तो बात है। एग्जाम्स खत्म होते ही तुम्हारे पापा तुम्हें लिवा जाएँगे।“

थोड़ी देर में वह सामान्य हो गया। रुचि उससे कल की परीक्षा के बारे मे बातें करने लगी।

आनंद के सगी मौसी की शादी थी। माता-पिता का जाना आवश्यक था। परीक्षा के कारण आनंद नहीं जा सका और उसे पिताजी के एक डाक्टर मित्र के यहाँ रुकना पड़ा। दोनो परिवारों के बीच बहुत ही मधुर सम्बन्ध था।

क्रमश..