Ek muththi ishq - 8 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | एक मुट्ठी इश्क़--भाग (८)

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एक मुट्ठी इश्क़--भाग (८)


शाम हो चुकी थीं,दिनभर आराम करने के बाद इख़लाक सब्जियों के खेतों मे गुड़ाई निराई का काम कर रहा था,सभी बच्चे बाहर खेल रहे थें,फात़िमा दूसरी कोठरी में शाम के खाने की तैयारी कर रही थीं, तभी गुरप्रीत नींद से जागकर आई और फात़िमा के पास आकर बोली___
आपा!आपने मुझे जगाया नहीं, कितनी शाम होने को आई और आप छोड़िए खाने की तैयारी मैं करती हूँ।।
तू ये क्यों भूल जाती हैं, जीनत़ कि मैं भी तेरी तरह एक औरत हूँ, तेरी हालत देखकर क्या मुझे जरा सा भी दुःख नहीं हुआ होगा, मुझे क्या इतना बेरहम समझा हैं, तू पराई ही सही लेकिन इतने दिनों से हमारे साथ रह रहीं हैं, एक लगाव सा हो गया है तुझसे, मैं तेरा दर्द बहुत अच्छी तरह समझ सकती हूँ, मैने भी तो अपने शौहर को खोया है, फिर मैं तुझसे अलग कैसे हो सकती हूँ और तू आज आराम कर ,तू बाहर जाकर ताजी हवा ले और इम्तियाज को सम्भाल,रसोई का काम मैं देख लूंगी और देख आज से तेरा नाम पूरी तरह से जीनत़ ही होगा तेरा पुराना नाम लेने से तुझे अपने घरवाले फिर याद आने लगेंगे, फात़िमा ने गुरप्रीत से कहा।।
ठीक है आपा! मेरे मन का दर्द समझने के लिए शुक्रिया, मैं कैसे आप लोगों का एहसान चुका पाऊँगी,जीनत़ बोली।।
अच्छा! पिद्दी भर की छोकरी बहुत बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगी है,जा तू बच्चों को सम्भाल मै रसोई देखती हूँ, फात़िमा ने जीनत़ से कहा।।
और जीनत़ हंसते हुए, बच्चों के पास आ गई और इम्तियाज को सम्भालने लगी।।
करीब एक दो घंटे बीत चुके थें,अब शाम रात का रूप लेने लगी थी,बच्चे खेलकर थक चुके थे अब बच्चों को भूख भी लग आई थी___
तभी इख़लाक को हाथ पैर धोने के लिए पानी चाहिए था और उसने असलम से कहा कि___
बेटा असलम! एक बाल्टी पानी तो खींच दे कुएँ से मेरे हाथ मिट्टी से भरे हैं।।
अच्छा! मामू,असलम बोला।।
तभी जीनत़ , असलम के पास जाकर बोली___
असलम!तुम रहने दो बेटा! मैं करती हूँ ना।।
इख़लाक गुस्से से बोला___
मोहतरमा! आपको मना किया था कि आप कुछ भी वजन वाला काम नहीं करेंगी, फिर भी आपको समझ नहीं आता,दिमाग खराब हो गया हैं क्या? आपका !जो इतनी सी बात समझ नही आती और कितनी बार समझाना पड़ेगा॥
इतना सुनना था कि जीनत़ गुस्से से भागते हुए कोठरी के भीतर चली गई और तकिए मे मुंह छुपाकर फफक फफक कर रो पड़ी।।
असलम ने जाकर फातिमा को सारी बात बता दी अब तो फ़ातिमा का पारा चढ़ गया और इख़लाक के पास जाकर बोली__
तूने क्या कसम खा रखी है,उसे परेशान करने की बेचारी अभी गहरे सदमे है, उसके परिवार का कुछ पता नहीं है, इतनी मनहूस खबर से पहले ही परेशान थी बेचारी और तूने फिर से उसका दिल दुखा दिया आखिर तू चाहता क्या है? अपने घर में पनाह देकर तूने बड़ा एहसान कर दिया क्या उस पर जो हर बात पर चिल्लाता रहता है,बीवी नहीं तेरी वो, मेहमान है इस घर की,तेरा उसके साथ ऐसा बर्ताव मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है।।
आपा! ऐसा मैंने क्या कह दिया, इतना ही तो कहा कि अपना ख्याल रखों,वो है कि पता नहीं मेरी हर बात का क्या मतलब निकालती है, इख़लाक बोला।।
ओ भाईजान! कहने कहने का भी एक तरीका होता है जो कि तुझे आता ही नहीं है ऐसा है तो उस मासूम से बात ही मत किया कर,गंवार कहीं का औरतों से बात करना तो आता नहीं,बस मियां बात ऐसे करते हैं जैसे लट्ठ चला रहे हों,फ़ातिमा बोली।।
अब क्या करूं मुझे तो ऐसे ही बात करना आता है, इख़लाक बोला।।
चल जा अब उससे माफ़ी मांग लें,ऐसी हालत में उसका इतना रोना ठीक नहीं, वैसे भी दिन भर से रो रही है,ज्यादा रोएगी तो कहीं तबियत ना बिगड़ जाए और कहना कि आपा ने बुलाया है खाना तैयार है,सबको खाना परोसकर खुद भी खा ले,फ़ातिमा बोली।।
ठीक है आपा!आप कह रहीं हैं तो मैं माफ़ी मांग लेता हूं, इख़लाक बोला।
और हां,अब से इसे जीनत़ ही पुकारा करेंगे, इससे उसे अपने घरवालें कम याद आएंगे,फ़ातिमा बोली।।
ठीक है आपा! इख़लाक बोला।।
और इख़लाक,जीनत़ से कोठरी में मांफी मांगने पहुंचा।।
माफ़ कर दीजिए, मोहतरमा! गलती हो गई, इख़लाक बोला।।
ठीक है,जीनत़ बोली।।
तो फिर चलिए, खाना तैयार है,खाना परोस दीजिए, इख़लाक बोला।।
आप चलिए, मैं आती हूं,जीनत़ बोली।।
इख़लाक अकेला ही खाने के लिए पहुंचा तो फ़ातिमा बोली,देखा... नहीं आई ना! तेरी आदत ही ऐसी है,उसे झिड़क दिया,अब क्यो आने लगी भला।।
क्या हुआ आपा! ज़ीनत कोठरी में आकर बोली।।
कुछ नहीं,चल खाना खा ले आज तेरी पसंद का खाना बनाया है,देख आलू मैथी का साग,बैंगन का भरता और मूंग की दाल तेरे लिए ख़ासतौर पर बनाई है,ऐसी हालत में खाएंगी तो बहुत फायदा करेगी,मूंग की दाल हल्की होती है,आसानी से पच भी जाती है,अब मुझे ही अपनी मां समझ, मैं ही अब से तेरी सबकुछ हूं,फ़ातिमा बोली।।
ये सुनकर ज़ीनत की आंखें भर आईं,चूल्हे की आग और लालटेन से आ रही हल्की रोशनी में भी ज़ीनत के चेहरे के भाव हर कोई देख सकता था क्योंकि ये आंखों से नहीं दिल से महसूस करने वाली प्रतिक्रिया थी,जो इतना प्यार पाकर आंसू के जरिए अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर रही थी।।
तू फिर आंसू बहाने लगी,कितनी बार मना किया,इस हालत में बच्चे पर असर पड़ेगा,फ़ातिमा बोली।।
चल खाना खा,आज मैं भी सबके साथ ही खाऊंगी इतना कहकर फ़ातिमा ने सबके लिए खाना परोस दिया,सबने मिलकर खाना खाया, खाना खाकर सब लेट गए,अब तो कोई परेशानी भी नहीं थी क्योंकि अब तो दो कोठरियां थीं।।
कार्तिक मास चल रहा था,अब ठंड ने भी जोर पकड़ लिया था,रात का अंधेरा,बाहर सब्जियों का खेत और कुआं,खेत में बनी दो कोठरियां जो अंदर से बंद थीं, दोनों में ढ़िबरी की हल्की रोशनी थीं।।
उधर इख़लाक एक कोठरी में चटाई और ठंड से बचने के लिए धान के पुवाल से बने बिस्तर पर रजाई ओढ़कर लेटा था और रह-रहकर उसके दिमाग़ में एक ही ख्याल आ रहा था कि अगर ज़ीनत का बच्चा हो भी जाता है तो दुनिया वालों से क्या कहेगा कि ये किसका बच्चा है लेकिन लोग तो उसे ही इस बच्चे का बाप समझेंगे,जो कि वो है ही नहीं,बिना निकाह के मैं खुलकर ये भी नहीं कह सकता कि ये मेरा बच्चा है, कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं और यही सोचते सोचते इख़लाक नींद़ के आगोश़ में चला गया।।
उधर फ़ातिमा भी यही सोच रही थी कि ना जाने अब इस बच्ची का क्या होगा,उसके मन में भी वही विचार चल रहे थे जो इख़लाक के मन में चल रहे थे।।
अब जीनत़ की उलझन भी कुछ कम नहीं थी आखिर लोगों से क्या कहेंगी,उसे इख़लाक ने दुनिया वालों के सामने खुद की बीवी बता रखा है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है इख़लाक से तो उसका सिर्फ इंसानियत के सिवा और कोई नाता ही नहीं है और यही सोचते सोचते ज़ीनत सपनों की दुनिया में चली गई।।

क्रमशः__
SV__