aasman mai daynasaur - 5 in Hindi Children Stories by राज बोहरे books and stories PDF | आसमान में डायनासौर - 5

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आसमान में डायनासौर - 5

आसमान में डायनासौर 5

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

प्रो. दयाल को अपनी धरती की याद आ गई जिसका विकास करोड़ो वर्षो में हुआ है। उन्होंने अजय-अभय को बताया कि ब्रहमाण्उ का यही नियम है कि हरेक ग्रह हजारों साल में धीरे धीरे ठण्डा गर्म होता हुआ विकास करता है और कभी बहुत गर्म वातावरण से बहुत ठण्डे वातावरण से होता हुआ सामान्य गर्म वातावरण मे आता है, तो ऐसे ही जीव पैदा होते हैं। हमारी पृथ्वी ने भी ऐसे ही विकास किया है और पहले पृथवी पर भी ऐसे ही डायनासोर हआ करते थे। ऐसा लगता है कि यह ग्रह भी धरती की तरह विकास कर रहा है और यह अभी पृथ्वी से बाईस करोड़ साल पीछे चल रहा है क्योकि यहां तो डायनासौर जाति के इनोस्ट्रासिवियासौर, पेरिया सारसो जैसे जीव घूमते दिख रहे है जो धरती पर बाईस करोड़ साल पहले थे।

वे बहुत ऊँचे पर खड़े थे और उन्हे जीवो से कोई खतरा न था फिर भी वे चौकन्ने थे।

दयाल सर ने कहा कि देखो इस जीव को देखो- उन तीनों ने अपनी निगाहें डायनासोर जाति के उस अजीब से जीव इमोस्ट्रांसीविया पर टिका लीं।

दयाल सर बोले -सबसे ज्यादा खतरनाक जीव यही जीव है क्युकि इसका सारा शरीर भालू जैसे बालो से ढ़का हुआ और लंबा सा मुंह दांतो से ढंका हुआ है। इसके नाखूनों में भी बड़ी तीखी नोंके दिखती है यह सदा ही चट्टानों से चिपक कर सोता है।

तभी इनोस्ट्रांसिया ने अचानक ही दूसरे गाय बराबर आकार के प्राणी डाइनासोर पेरिया सौरस पर हमला बोल दिया और उसे खंीचता हुआ बाहर ले आया पेरिया सौरस कीचड़ में छिपने का प्रयास कर रहा था। लाल सुर्ख आंखो से इधर उधर देखता यह अपनी पत्थर जैसी सख्त पीठ को हिला रहा है।

गाय बराबर आकार का यह प्राणी लकड़बग्घे के आकार के इनोस्ट्रांसीविया के आगे डरा हुआ था और बहुंत कमजोर सा लग रहा था ।

तभी वातावरण में फड़फडाहट गूंजी, प्रो.दयाल चौंके और दूसरी तरफ देखा।

दयाल सर ने देखो मैदान में ढ़ेर सारे एडाफेसौरस घूम रहे हैं ?

अजय और अभय ने देखा कि छिपकली जैसे दिखने वाले ये एडाफोसौरस छिपकली से हजार गुना बड़े थे। वे जानवर बड़े प्यारे लग रहे थें। सबकी पीठ पर गर्दन से लेकर पूंछ तक प्लास्टिक की तरह लहराती हुई कलगी जैसी उगी हुई थी। इस कलमी की उँचाई एक-डेढ फिट ़से लेकर दो-दो फिट तक थी।

दयाल सर ने बताया कि इनकी पीछ पर लगी ये कलगी दरअसल सूरज की गर्मी को इकट्ठा करने वाले बैंक का काम करती है और इस कलगी की गर्मी के सहारे यह जानवर बहुंत दिनों तक अपनी पीठ पर गर्मी सुरक्षित रखे रहता है। इनही कलगी फैलने की आवाज ही फड़फड़ाहट के रूप में आई थी, और इसी से हम लोग चौके थे।

ये एकटक होकर उधर ही देख रहे थे। तभी चट्टान खिसकने की आवाज सुनकर उन्होंने हिंसक जानवर इनोस्ट्रांसिया की और देखा तो उनका उपर का दम उपर और नीचे का नीचे का नीचे रह गया।

तीन इनोस्ट्रांसिया जाति के हिंसक जीवों ने उन तीनो को देख लिया था और ये उन पर हमला करने के लिये टीलों पर चढ़ने का प्रयत्न कर रहे थे लेकिन खड़ी चट्टान उनका रास्ता रोक रही थी और सीधी चट्टान नीचे नीचे फिसल गई थी।

प्रो. दयाल ने जल्दी-2 वहां के फोटोग्राफ लिये और सरपट भाग लिये रास्ते में उन्होंने कुछ झाड़ियो के भी चित्र लिये फिर अपने यान गगन में जा बैठे। अजय और अभय तो उनसे ही पहले आकर बैठ गये थे।

अब गगन ने रॉकेट का रूप धर के पंखे समेटे और एक क्षण में ही आसमान की ओर उड़ने लगा था ।

अगर समय पर नहीं चेतते या चट्टान न खिसकती तो इनोस्ट्रांसिया उनको लपक कर खा गया होता। प्रो. दयाल व अजय-अभय ने आगे किसी ग्रह पर नीचे न उतरने की प्रतीज्ञा की अपने गगन यान को लाल ग्रह के वातावरण से बाहर निकालने लगे।

अंतरिक्ष में पुनः पहुंचकर उन्होंने राहत की सांस ली।

उन्होंने कुछ देर विश्राम करने का विचार किया और गगन को स्थिर करके सबसे पहले खाने की ट्युब निकाली और नाश्ता करने लगे।

नाश्ता करते करते उनकी आंखो में आलस्य दिखने लगा। हिन्दी फिल्म के एक गानों की कैसेट लगाकर गीत संगीत की मधुर लहरों में डूबते हुये से उन्होंने आंखे मुंद ली।