जय हिन्द की सेना
महेन्द्र भीष्म
सात
अटल सारी रात सो न सका। प्रेयसी ममता का विछोह जहाँ उसे जीवन के प्रति निराश कर रहा था, वहीं बहन मोना का आशा के विपरीत पुनर्मिलन जीवन के प्रति उम्मीद जगा रहा था। ममता इस तरह उसका साथ छोड़कर चली जायेगी, यह सोच उसे विचलित कर रही थी। उसे महसूस होता रहा कि ममता यहीं है, खुलना में, शीघ्र ही वह उससे मिलेगी। पर नहीं, तौसीफ झूठ नहीं बोल सकता। वह उसके साथ इतना बड़ा मज़ाक कभी नहीं कर सकता। तब क्या ममता उसे वास्तव में अकेला छोड़कर हमेशा—हमेशा के लिए उसके जीवन से जा चुकी है....... इस संसार से जा चुकी है। नहीं! कदापि नहीं? परन्तु यही सत्य है। ममता की सहेली शमा ने भी उसके सामने आँसू बहाकर ममता के न होने की पुष्टि कर दी थी। अब वह किसके लिए जी रहा है? रह—रहकर यही विचार उसके मन में मथ रहा था। छोटी बहन के अलावा उसका पूरा परिवार, उसकी प्रियतमा सभी काल के गाल में समा गये थे। सारी रात अटल जीवन और मृत्यु, आशा और निराशा, उत्साह और नीरसता के बीच वैचारिक द्वंद्व के भँवर जाल में फँसा रहा।
अंततः जीवन, आशा और उत्साह की विजय और मृत्यु, निराशा और नीरसता की पराजय हुई। ‘जीवन जीने के लिए है, खोने के लिए नहीं।' इस जीवन में बहुत से लोग मिलते हैं, बहुत से बिछुड़ते हैं, जो नहीं रहते उनके कार्य याद आते हैं। उनकी सुखद स्मृति साथ रहती है और एक याद सदैव अतीत के रूप में वर्तमान से जुड़ी रहती है, जिसके सहारे व्यक्ति शनैः शनैः जीना सीख जाता है और स्थितियों से समझौता कर वह नवीन परिस्थितियों में सामंजस्य स्थापित कर पुनः पूर्व सा जीवन जीने लगता है। ऐसे ही वैचारिक
द्वंद्व के मध्य फँसे अटल को मोना के रूप में, देशकाल के लिए जीने की प्रेरणा मिली।
उसने मृत्यु का, निराशा का, नीरसता का विचार त्याग दिया। प्रातः की प्रथम किरण ने उसके विचारों को पुष्टता प्रदान की। बिस्तर से उठकर वह शाल लपेटे बाहर लॉन में आ गया।
गुलाब की कतारबद्ध फुलवारी में खिले विभिन्न रंगों के गुलाब के फूल,
मुरझाने का भय नहीं सताता....
‘‘अटल बेटे किससे बातें कर रहे हो?''
अपने विचाराें के प्रवाह को समेटते हुए अटल ने मुड़कर देखा। तौसीफ़
के अब्बा दुशाला लपेटे उसके पीछे खड़े थे।
‘‘जी'' अटल ने कहा, ‘‘प्रणाम चाचाजी।''
मोती जैसी ओस की बूँंदें, सूर्य प्रकाश से प्रकाशित हो जीवन के संदेश अटल तक पहुँचा रही थीं।
पक्षियों का कलरव नये जीवन की शुरुआत संगीतमय ढंग से प्रस्तुत कर रहा था। वास्तव में सोने के साथ ही व्यक्ति मृत हो जाता है और जागने के साथ ही उसे नवीन जीवन मिलता है।
प्रत्येक दिन नया जीवन, प्रत्येक रात्रि मृत्यु। सच है सोने से पहले बहुत दूर जाना है, इसके पूर्व जागते जीवन में जो कर लिया, वही प्राप्ति है, जितना अच्छा किया, वह परमार्थ है। चप्पलें बरामदे में ही छोड़ अटल नंगे पाँव हरी
घास पर टहलने लगा।
हरी घास पर पड़ी ओस की बूँदों से उसके चरण धुल गए।
तलुओं से अंदर पहुँच रही ठंडक अटल को जीवन का रोमांच प्रदान कर रही थी। उसने एक बड़ा—सा सफेद गुलाब का फूल टहनी से तोड़ा। फूल के टूटते ही एक काँटा उसकी अनामिका में बेरहमी से चुभ गया। अटल के मुँह से सिसकारी निकल गयी।
एक नन्हा—सा महीन काँटा इतने बड़े शरीर को कितना दर्द पहुँचा सकता है, फिर पूरे शरीर को नष्ट करने में कितना दर्द होगा। मन ही मन अटल अनुमान लगाने लगा।
उंगली की पोर में खून एक बड़ी बूँद के रूप में इकट्ठा हो चला था।
अटल अपलक कुछ पल उस लाल रुधिर को ऐसे निहारता रहा जैसे वह उस नन्हीं बूंँद में अपना अस्तित्व ढूँढ़ रहा हो। दूसरे हाथ में लिए गुलाब की पंखुड़ी पर उसने उस बूँद को छोड़ दिया और बुदबुदाते हुए गुलाब के फूल से कहने लगा, ‘तू कुछ देर बाद मुरझा जायेगा ....और तेरे साथी ये काँटें जिन्हे
नतमस्तक अटल के सिर पर हाथ रखते हुए तौसीफ के अब्बा बोले,
‘खुश रहो बेटे! लगता है तुम सारी रात सोए नहीं।' तौसीफ़ के अब्बा ने अपनी पारखी आँखों से अटल की आँखों को परखते हुए कहा।
अटल अपनी लालिमा लिए आँखों को कुछ पल के लिए बंद करने के बाद आँखों की कड़वाहट का अनुभव करते हुए सहमति में सिर हिलाते हुए बोला, ‘‘जी हाँ'' और एक दीर्घ साँस लेते हुए उसने गुलाब का फूल तौसीफ़ के अब्बा की अचकन में लगा दिया।
‘‘बेटे! मुझे शमा ने ममता के बारे में सब कुछ बता दिया है, हम सभी को बेहद दुःख है कि तुम्हें इतनी आपदाएँ एक साथ झेलनी पड़ रही हैं...... अटल के कंधे पर हाथ रखकर उसे धीरज प्रदान करने की गरज से वह आगे बोले, ‘‘जीवन तुम जैसे जवाँ मदोर्ं के लिए ही है जो अनेक विपदाओं के समय भी अटल रहते हैं, डगमगाते नहीं ......संघर्ष ही जीवन है, यही परीक्षा की घड़ी है .........जो जा चुके हैं, कुछ समय साथ रहकर उन्हें एक अच्छे हमसफ़र के
रूप में सदैव याद रखो और जो इस जीवन रूपी राह में मिलते जाएँ, उन्हें अच्छा साथ दो ताकी जब तुम उनसे बिछुड़ोे तो वे तुम्हें एक अच्छे साथी के
रूप में सदैव याद रखें और याद रखो, अच्छे लोग सदैव तुम्हारे साथ आएँगे। ईश्वरीय संयोग सदैव गड्ढ़ा पूरा करता है, विश्वास रखो यदि कहीं गड्ढ़ा हो चुका है तो ईश्वर दूसरी ओर पहाड़ भी खड़ा करता है। ईश्वर सदैव सभी के साथ न्याय करता है।''
यह सब कहना अटल को पहुँचे मानसिक आघात से येन—केन—प्रकारेण उबारने के लिए बहुत अच्छा था।
दोनों लॉन में रखी ओस में भीगी कुर्सियों पर बैठे वैचारिक मुहाने के सर्वोत्कृष्ट प्रवाह में बहते रहे।
सत्य है, उत्कृष्ट विचारों के चिंतन में डूबा व्यक्ति कब क्षुद्र विचारों के दायरे से बाहर निकलकर उन्मुक्त वातावरण में विचरण करते हुए मानव हित के लिए विस्तृत मस्तिष्क का हो जाता है कि उसे कुछ भान ही नहीं होता और उच्च विचारों के प्रवाह में जब दो बुद्धिजीवी एक साथ एक ही दिशा में बहें तब क्या कहना।
सम्भवतः मानव मात्र के लिए एकत्रित अच्छी बातें ऐसे ही समय उपजी होंगी। जब व्यक्ति ने संकीर्ण सोच को त्याग कर बहुत ऊँचाई पर पहुँच कर चिंतन किया होगा, तभी वह व्यष्टि से समष्टि की ओर सोचने के लायक बना होगा।
संसार के अनुभवों की सफ़ेदी सिर पर लिए हुए तौसीफ़ के अब्बा बहुत कुछ ज्ञान की बातें अपने व्यस्त किंतु संस्कारपूर्ण मस्तिष्क में रखे हुए थे जिसे वे परिस्थितियों में बंधकर भावना में बहते हुए अटल के ऊपर उड़ेल चुके थे।
यह एक ऐसा व्यय था जिसे जितना अधिक व्यय किया जाये उतना ही अधिक
संचित होता है। ज्ञान और कर्म की सहभागिता जीवन में किसी भी कार्य के प्रारम्भ के लिए परमावश्यक है। इस मर्म को बहुत अच्छे से अटल ने आत्मसात कर लिया था।
सुबह की चाय मोना टेबिल पर रख गयी।
श्वेत दंत—पंक्तियों के मध्य मुस्कुराते हुए अनुजा मोना की निश्छल बड़ी—बड़ी स्वच्छ आँखें अटल को साक्षात् जीवन की सच्चाई प्रकट करा गयीं।
वह स्वयं को तरोताज़ा महसूस करते हुए अतीत को विस्मरण कर वर्तमान और भविष्य के साथ सामंजस्य स्थापित करने के प्रयास के साथ चाय की चुस्कियाँ लेने लगा।
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