मेरी नज़र से
ज्योत्स्ना कपिल साहित्य के क्षेत्र में एक सुपरिचित नाम है। इनके कहानी संग्रह, लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं साथ ही अनेकों संग्रहों का सम्पादन भी कर चुकी है। आकाशवाणी बरेली से कहानी एवं बाल कथाओं का प्रसारण कर चुकी हैं साथ ही अनेकों पुरस्कार इनकी झोली में आ चुके हैं। अभी इनका उपन्यास "उर्वशी" मातृभारती पर काफी पसन्द किया जा रहा है।
लघुकथा अर्थात कम शब्दों में अधिक कहना। लघुकथा के महारथी आदरणीय बी एल आच्छा जी कहते हैं- " सीमित काल, सीमित घटनाचक्र, सीमित कथ्य और सीमित शब्दों में पूरे अनुभव के क्षण को संघनित बनाती है लघुकथा।"
इनके लघुकथा संग्रह "लिखी हुई इबारत " पढ़ने बैठी तो मस्तिष्क के तार झनझना उठे। आम जीवन में रोजाना की दिनचर्या के दौरान होने वाली उठापटक में अनेकों छोटी छोटी घटनाएं हो जाती है जो दिलो दिमाग पर गहरा असर छोड़ जाती है, ऐसे ही अनेकों मुद्दों पर ज्योत्स्ना की लेखनी ने करारी चोट की है।
बात करें इनके संग्रह की तो कुल 55 लघुकथाएँ है।
कुछ कथाओं का विवरण दूँ तो
"चुनौती" दो महान फ़नकारों के मध्य कड़ी प्रतिस्पर्धा होते हुए भी उनके तालमेल को दर्शाती है। किस तरह एक के चले जाने से दूसरे के साज़ शांत हो जाते हैं।
"रोबोट" में बताया कि वक़्त बीत जाने पर महंगी चीज की भी कोई कीमत नही रहती।
"मिठाई"- नजरिये का फर्क कि जरूरी नही हम जो बढ़ चढ़कर बुजुर्गों को सेवा दे रहे वह उन्हें रास आती हो अक्सर उनकी खुशी किसी छोटी सी चीज में होती है।
"कब तक" - लोलुप नज़रों के मध्य फंसी कामकाजी महिला की दयनीय स्थिति जिससे पति को सरोकार नही उसे बस तनख्वाह दिखती है।
"मुफ्त शिविर" में बहुत गम्भीर समस्या उठायी गयी कि किस तरह से नसबंदी के नाम पर अंग चुराए जाते है।
"लिखी हुई इबारत" में समाज सुधारक माँ की विचलन और अंत में सिद्धांतों की जीत को सटीक शब्दों में उकेरा गया है।
"दंड" में तेजाब फेंकने की समस्या पर लिखा तो
"ममता" आंखों में नमी को उकेर गयी। शहरी का स्वार्थ और ग्रामीण की ममता का सटीक वर्णन।
"श्वान चरित" हल्के फुल्के व्यग्य की श्रेणी में आता है पढ़ते ही चेहरे पर मुस्कान के साथ एक आह भी निकलती है।
"दंश" कुठाराघात करती है उस सोच पर जिसमें बेटियों की जिंदगी के फैसले उन पर मजबूरन थोपे जाते हैं। तो आईना पढ़कर चेहरे पर गहरी मुस्कान उभरी, लड़की का आत्मविश्वास और उसे ठुकराने वाले को आइना दिखाना, वह भी सीमित शब्दों में लेखिका के प्रति प्रशंसनीय भावों से मन को भर गया।
"कशमकश" की नायिका द्वारा लिया फैसला आसान नही था, एक सन्देश देता कथानक कि देशप्रेम से ऊपर कुछ भी नही।
"कुपात्र" कम शब्दों में गहरी चोट दे गई, नाकाबिल को शह देना सदैव नुकसानदायक होता है।
"खाली हाथ" अतिमहत्वकांक्षी महिलाओं के लिए एक सबक है, सफलता की दौड़ में क्या नही खोया नायिका ने।
सबसे गहरा प्रभाव छोड़ने वाली तीन कहानियों का जिक्र जरूर करना चाहूंगी।
"भेड़िया" में सरलता से लेखिका ने दर्शा दिया कि हम पूर्वाग्रहों से कितना ग्रसित रहते हैं। किसी के पीछे आने का कारण महज उसकी बदनीयती समझते हैं भले ही वह व्यक्ति हमसे डरा हुआ हो। भेड़िया को पढ़ते हुए मैं भी उसी मानसिक स्थिति से गुजरी जिससे कथा की नायिका गुजर रही थी। लेखिका के शब्द कितने प्रभावी है, यह बखूबी महसूस किया जा सकता है।
दूसरी कथा "हिसाब" , गहरी चोट कर गयी कि किस तरह से रिश्तों में हिसाब होता है। राखी का त्योहार भी अछूता नही रह गया और प्रेम व्यवहार और नफे नुकसान की भेंट चढ़ गया।
"कमजर्फ" का कथानक नया नही लेकिन फिर भी चोट करती है। गलती भले ही पुरुष की हो गालियाँ स्त्री के हिस्से में आती है।
संग्रह की आखिरी कथा "तमसो मा ज्योतिर्गमय" में अवसाद ग्रसित आत्महत्या पर उतारू नायक अपने अवसाद को धकेल कर किसी के प्राणों की रक्षा में कामयाब होता है और इस कृत्य में उसके स्वयम के प्राणों की भी रक्षा होती है और वह नवजीवन का स्वागत करता है। उसके द्वंद का कम शब्दों में जीवंत चित्रण करने के लिए लेखिका बधाई की पात्र है।
सभी लघुकथाएँ अलग अलग विषयों को उकेरती है, विषयों में दोहराव नही है। भाषा सहज सरल और सुघड़ है। लेखिका की शैली में प्रवाह है, रोचकता बराबर बनी रहती है ।
भूमिका आदरणीय बी एल आच्छा जी के अतिरिक्त आदरणीय उमेश महादोशी जी की भी है।
महादोशी जी के कथन से पूर्णतः सहमत हूँ कि -" यथार्थ से उद्भूत मनोरंजन का तत्व लघुकथा में बहुत प्रभावी रूप प्रायः से कम ही देखने को मिलता है लेकिन ज्योत्स्ना की लघुकथाएँ यथार्थपरकता को खोए बिना पाठक के चेहरे पर मुस्कुराहट ला देती हैं।"
दृढ़ता से कहना चाहूँगी कि "लिखी हुई इबारत" का परिणाम पाठक के मस्तिष्क पर चोट और लबों पर मुस्कान है।
बेहतरीन संकलन के लिए बहुत बहुत बधाई ज्योत्स्ना, भविष्य की अनन्त शुभकामनाओं सहित।
पुस्तक - लिखी हुई इबारत
लेखिका- ज्योत्स्ना कपिल
प्रकाशित - अयन प्रकाशन
मूल्य - 250 रुपये
विनय...दिल से बस यूँ ही