Amraai in Hindi Motivational Stories by Vk Sinha books and stories PDF | अमराई

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अमराई

यूं तो पर्यावरण के तहत पेड़ॊं का संरक्षण व उनकी समुचित देखभाल की जाती है। कानून भी है कि कोई व्यक्ति बिना अनुमति के अपने वृक्ष भी नहीं काट सकता।परंतु वृक्षों का संबंध हमसे और हमारे परिवेश से, मात्र सरकारी आदेशों तक ही सीमित नहीं है बल्कि उससे बहुत आगे परंपराओं व मान्यताओं तक जाता है।
मेरा कस्बा नाहर गंज,जिसे कि गांव का अर्धविकसित संस्करण कह सकते हैं,शहर से लगा हुआ ,कुछ कुछ शहरी हवा में सांस लेता,एक सामान्य सी जगह है। प्राय: सभी बच्चे स्कूल जाते हैं। कुछ मिड डे मील के लोभ से और जो थोड़े से संपन्न घरों से हैं वे,पढ़ना भी चाहते हैं। दो सरकारी स्कूल हैं ,समझ लीजिए कि कैसे होंगे। बच्चों की शिक्षा दीक्षा व संस्कारों को गढ़ने की सारी जिम्मेदारी इन्हीं दोनों स्कूलों के भरोसे रहती है। अधिकतर वयस्क लोग नौकरी और मज़दूरी के लिए रोज़ शहर आते जाते हैं। मैं भी उन्हीं में से एक हूं,नौकरीपेशा।
कस्बे में वैसे तो काफ़ी हरियाली है। बेतरतीब झाड़ झंखाड़ व नीम ,पीपल,पाकड़ आदि के वृक्ष खूब है। परंतु इन सब में एक वृक्ष, वट वृक्ष विशेष है। छोटे से मैदान में स्थित, यह कई दशकों का इतिहास अपने में समेटे हुए हैं। इसने वो समय भी देखा है जब नाहर गंज एक छोटा सा गांव था,मात्र ३०-४० घरों में सिमटा हुआ। इस वृक्ष को लोगों ने नाम अमराई दिया हुआ है। हालांकि इसका आमों से दूर- दूर तक कोई वास्ता नहीं है। इस वृक्ष का, हर उम्र वालों के लिए कुछ न कुछ, उपयोग है। बच्चों के लिए खेल का मैदान, क्रिकेट के लिए देसी पवेलियन और सभी सम्भव खेलों के लिए जगह मुहैय्या कराता है। बड़े बूढ़ों को समय गुजारने का निमित्त भी यही अमराई बनती है। शादी ब्याह में कई तरह के पूजा-पाठ व नवचार,जन्म मृत्यु के संस्कार आदि संपंन्न होते रहते हैं। किसी न किसी रूप में इस अमराई का छोटे बड़े सभी से जुड़ाव बना रहता है।
आज का दिन इसी छत्र छाया पर संकट लेकर आया है। मैं जल्दी घर कुछ काम वश अपरांह करीब तीन बजे के लौट आया। गांव की सीमा में प्रवेश करते, पक्षियों का कोलाहल अप्रत्याशित और बेचैनी लिए महसूस हुआ। लोगों की आमदरफ़्त भी रोज़ाना जैसी नहीं थी। मन किसी संभावित आपदा से शंकित हो होने लगा। कुछ और आगे जाने पर पता चला कि अमराई पर आज का दिन भारी है। दल बल सहित नगर निगम घेरा डाले हुए है। किसी समय भी अमराई ज़मींदोज़ हो सकती है। लोगों के ज़बरदस्ती प्रतिरोध से निगम को दो चार होना पड़ रहा है। अमराई के चारों तरफ़ लोगों का हुजूम उमड़ आया है। ज़ोर शोर से बहस हो रही है। औरतें बच्चे भी काफ़ी तादात में घरों से निकल आयें हैं। पास आने पर सारा माजरा समझ में आया। बच्चों में बड़ी बेचैनी दिखी। उनका तो सब खेलकूद वो मनोरंजन दांव पर लगा था।
एक ट्रक किनारे कुछ दूरी पर खड़ा था। पता चला कि अमराई यानि वट वृक्ष को काटने का सरकारी आदेश हुआ है। ये चूंकि निगम की ज़मीन थी अत: इस स्थान पर मंडी भवन बनना प्रस्तावित है। तथा सटे मैदान में अनाजों मंडी बनेगी। इसी पर विरोध प्रर्दशन हो रहा था। वृक्ष के चबूतरे पर बच्चे कब्ज़ा जमाये थे। अधिकारियों से बातचीत चल रही थी। ग्रामीण कुछ भी सुनने को तैयार न थे। कुछ हल नहीं निकलता देख, अधिकारियों ने बल प्रयोग करना चाहा। मैनें बीच बचाव की पहल की। पर निगम ने अपनी मजबूरी बताई। अब यह लगभग निश्चित सा लगने लगा कि अमराई कट ही जायेगी। इसी बीच कुछ ऐसा घटित हो गया जो बिल्कुल अप्रत्याशित था। देखते देखते वयस्क लड़के - लड़कियां बट वृक्ष पर चढ़ गये और उसकी डालियों पर इधर उधर बैठ गये। महिलाओं ने विशाल तने को घेर लिया। इससे घबरा कर सैंकड़ों पक्षी आर्तनाद करते हुए चारों ओर मंडराने लगे। बड़ा सुंदर वह गंभीर द्दृश्य था। बच्चे व अन्य बुज़ुर्ग स्त्री पुरुष सभी इस तरह घेरा डाले थे कि लगता था जैसे पूरी अमराई सीज़ हो गयी हो। इस माहौल और लोगों के द्दृढ सकंल्प के चलते ये भी पूरी संभावना थी कि अधिकारियों द्वारा बल प्रयोग पर लोग हिंसक प्रतिरोध पर उतर जाते। पूरा परिदृश्य उत्तराखंड के चिपको आंदोलन की याद दिला रह था। आपसी बातचीत से अंदाज लग रहा था कि वृक्षों में य यूं कहें कि पर्यावरण के प्रति कितना लगाव था लोगों में।
आख़िरकार इस छोटे से जन समूह की द्दृढ इच्छा शक्ति के आगे सरकारी महकमें को झुकना ही पड़ा। आपस में सलाह मशविरा कर ले लौट गये।
आज भी वो अमराई ,कस्बे की जीवन रेखा बनी, गर्व से सिर ऊंचा किये खड़ी है। उसे भी एहसास है कि वो एक निपट वृक्ष ही नहीं बल्कि अपने स्वजनों के बीच सम्मान प्राप्त है।
समाप्त