ichchha - 15 in Hindi Fiction Stories by Ruchi Dixit books and stories PDF | इच्छा - 15

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इच्छा - 15

अमूमन रविवार को इच्छा सबके साथ लेट ही उठती ,किन्तु आज सुबह जल्दी उठ स्नानादि के पश्चात वह अपना सूटकेस सेट करने लगी | कमरे मे कुछ आवज सी सुन प्रतीक्षा की भी नींद खुल जाती | प्रतीक्षा , अपने बालो को समेट जूड़ा बनाती, जम्हाईं के साथ, क्या कर रही है इच्छु? इच्छा, मुझे जाना होगा पुरू! रूम पार्टनर वहाँ पहुँच गई है, उसके साथ मिलकर वहाँ की साफ-सफाई भी तो करनी है | प्रतीक्षा, तूने तय कर लिया अब तुझे जाना ही है ? इच्छा, बड़ी मासूमियत से क्षमाभाव लिए प्रतीक्षा की तरफ देखती है | प्रतीक्षा, ठीक है !तेरी जैसी मर्जी !! पर, खाना खाकर जाना | सॉरी यार ! खाने के चक्कर मे पड़ी तो देर हो जायेगी | प्रतीक्षा ठीक है ,
मै चाय बनाकर लाती हूँ! | इच्छा , तू जब सो रही थी, तभी मैने चाय बनाकर पी ली थी | प्रतीक्षा नाराजगी भरे स्वर में, ठीक है ! फिर तो तू जा !! तुझे देर हो जायेगी न ?? | इच्छा, प्रतीक्षा को गले लगाते हुये, परमात्मा ने मुझे अगर किसी अनमोल चीज से नवाज़ा है , तो वह तू है ! मेरी प्यारी पुरू !! | प्रतीक्षा, हल्की मुस्कुराहट के साथ , नौटंकी !! अच्छा अब जा तू! बहुत हो गया मख्खन - पानी, तुझे देर हो जायेगी | इच्छा, एक बार फिर प्रतीक्षा को गले लगा, उसके माथे पर प्यार भरा चुंबन दे , हाथ मे सूटकेस उठाकर वहाँ से निकल पड़ती है | प्रतीक्षा बालकनी से इच्छा को तब तक निहारती रही, जब तक की वह ओझल न हो गई | इच्छा के जाते ही प्रतीक्षा उदास सी हो गई आखिर एक इच्छा ही तो थी जिससे दिल की सारी बात वह कर लेती थी, वैसे घर पर प्रतीक्षा की सास और बच्चे भी थे | किन्तु दोस्त का स्थान भला कौन से सकता है | पति का तबादला जब से दूसरे शहर मे हुआ था तब से ही प्रतीक्षा अकेली सी पड़ गई थी |
प्रतीक्षा की सास पूजा पाठ सत्संग व अपनी हम उम्र आस - पास की महिलाओं मे बिजी रहती | वहीं बच्चे स्कूल पढ़ाई टि्यूशन मे और जो थोड़ा समय बचता वह कार्टून व गेम मे लग जाते | जब से इच्छा आई थी , तब से ज्यादातर समय उसका हँसते खिलखिलाते ही बीतता था | वह उसके साथ बिताये खुशनुमा पलो को याद करने लगी | तभी उसे याद आया, अरे हाँ ! उसे तो गये काफी देर हो गई, अब तक तो वह पहुँच गई होगी | यह सोच उसे फोन लगाती है | इधर इच्छा सर पर कपड़ा बाँध झाँड़ू हाथ मे लिए बेंच पर चढ़ी दीवार पर लगे जाले साफ कर रही थी कि, अचानक रिंग की आवाज सुनकर, अपनी कॉलीग से कहती है,
उषा !जरा फोन उठाकर प्रतीक्षा से कह दे मै अभी बिज़ी हूँ, तुझे थोड़ी देर बाद काल करूँगी | उषा ,तुझे कैसे पता कि, प्रतीक्षा की ही काल है? इच्छा हल्की मुस्कुराहट के साथ एक नजर उषा की तरफ देखती है , और फिर काम मे लग जाती है | उषा , फोन उठाकर, हैलो! कौन? उधर से प्रतीक्षा ! प्रतीक्षा के आगे कुछ बोलने से पहले ही, उषा बोल पड़ती है प्रतीक्षा जी! इच्छा अभी बिजी है , थोड़ी देर बाद वो आपको खुद काल करेगी | प्रतीक्षा , उससे कह दो मुझे फोन करने की आवश्यकता नही है | बस यही पूछना था, कि उसने नाश्ता किया या नही? उषा इच्छा की तरफ देख हल्की मुस्कुराहट के साथ हाँ !! अभी हम लोगो ने बाहर से ब्रेड पकौड़े मँगाकर खा लिये है | इतना सुन प्रतीक्षा फोन काट देती | सारा दिन काम की वजह से इच्छा और उषा दोनो ही बहुत थक गई थी , अतः अपने -अपने बिस्तर पर पड़ते ही दोनो को नींद आ गई | सुबह होते ही दोनो ऑफिस के लिए निकल पड़ती हैं | अभी किचन का सामान नही आया था, इस वजह से दोनो ने ही बाहर कैंटीन मे नाश्ता किया था | और दोपहर का भोजन भी प्यून से कहकर मँगवा लिया | शाम को ऑफिस से घर आ इच्छा जैसे ही बेड पर रिलैक्स होने के लिए लेटती है कि, अचानक उसे याद आता है ,अरे मर गई!! | उषा बाथरूम से बाहर निकलती हुई पूछती है क्या हुआ?? इच्छा, मै फोन करना भूल गई ?? उषा टावेल से बाल झाड़ती हुई किसे??अरे कल तूने जिसका फोन रिसीव किया था उसे | तो क्या हुआ अब कर लें! | इच्छा लम्बी साँस भरते हुए, हम्म!! अब न उठाने की वो | उषा, फिर भी ट्राई कर ले क्या पता उठा ही ले | इच्छा ने लगातार कई बार प्रतीक्षा को फोन लगाने की कोशिश की ,
किन्तु काल रिसाव नही हो रही थी | उधर प्रतीक्षा साइलेन्ट मोड पर टेबल पर रखे फोन को जो इच्छा की फोटो , चमकीली लाइट के साथ दिखाये जा रहा था , प्रतीक्षा पास मे बैठी उसे निहारती हुई, हुम्म!! बजती रह!!! मै न उठाने की!! | काफी देर बजने के बाद फोन बन्द हो जाता है | फिर अचानक कल्पना करती हुई, गुस्से मे मेै उसका फोन नही उठा रही ,कहीं कोई और बात तो नही? यह सोच वह पलट कर इच्छा को फोन लगाती है | इच्छा फोन उठाते ही, सॉरी या!! बात पूरी होने से पहले ही प्रतीक्षा फोन काट देती है | इच्छा लम्बी साँस भरती हुई, हम्म!! | उषा जो यह सब बड़ी देर से देख रही थी,बोल पड़ती है, इच्छा तू बड़ी लकी है, जो तुझे इतनी अच्छी दोस्त मिली | इच्छा चेहरे पर कई सारे भाव केन्द्रित किये कुछ देर सोचने के पश्चात, हल्की अव्यवस्थित मुस्कुराहट के साथ सहमति भरे उत्तर मे सिर हिला देती है | उषा इच्छा के बारे मे बहुत अधिक नही जानता थी और न ही इच्छा उसके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी बातों मे ही अधिक रूचि लेती थी | कुल मिलाकर उनका रिश्ता जरूरतो पर ही टिका था | दोनो ही इस शहर मे नई और अकेली थी, एक रूम मे साथ रहने की वजह से जहाँ एकतरफ उनका अकेलापन दूर हो रहा था , वहीं दूसरी तरफ किराया भी आधा ही देना पड़ता | भोजन भी दोनो साथ तैयार करती जिससे खाने पर खर्च भी आधा हो गया था | यह लाभ ही उन दोनो को एक दूसरे से जोड़े था | तभी प्रतीक्षा दुबारा फोन लगा, हाँ बोल? इच्छा हल्की मुस्कुराहट के साथ ,फोन कान मे चिपकाये कुछ देर शान्त रहती है | जैसे प्रतीक्षा के अगले वाक्य का इन्तजार करती हो |अरे बोल न! शान्त क्यों है?? इच्छा धीरे से सॉरी यार! | प्रतीक्षा माथे की सिलवटो को स्वतंत्रत करती हुई, तुझे अब समय मिला मुझसे बात करने का | नही यार !ऐसी बात नही !! | ऐसी ही बात है, तुझे नई सहेली जो मिल गई मुझे तू भूलेगी ही | इच्छा , माफ कर दे यार! | चल एक शर्त पर माफ किया , सन्डे को मेरे साथ मूवी देखने चलेगी | इच्छा अनमने मन से , उँम्हूँ! | प्रतीक्षा उँहू कुछ नही, चलना है तो बता | इच्छा ठीक है! तू जीती | प्रतीक्षा तो फिर डन ?? इच्छा, हम्म!! डन ! | दोनो सहेलियाँ सन्डे की शाम माल मे मिलती है , प्रतीक्षा पहले से ही टिकट लेकर इच्छा का इन्तजार कर रही होती है | इच्छा के पहुँचते ही, शिकायती लहज़े में , तेरी लेट लतीफी कभी न जाने की | इच्छा ,क्या करती ! ऑटो मिलने मे ही देर हो गई ! , प्रतीक्षा शिकायती लहजे मे, तेरी वजह से पन्द्रह मिनट की मूवी निकल गई | अब क्या खाक मजा आयेगा | इच्छा मासूमियत से कान पकड़ते हुए , सॉरी यार!! | प्रतीक्षा बस तू सारी माँगती रह!! दोनो तेजी से हाल मे प्रवेश कर जातीं है | ढाई घण्टे की मूवी के पश्चात प्रतीक्षा शॉपिंग हाल की तरफ इशारा करते हुए , इच्छु! मुझे कुछ शॉपिंग करनी है ! | इच्छा हुँम्म!! लै !! तेरा शॉपिंग का भूत फिर सवार | प्लीज यार चल न! कुछ जरूरी चीजे खरीदनी है | इच्छा एक लम्बी साँस भरते हुए हम्म! तू और तेरी जरूरी चीजे ,और दोनो शॉपिंग हाल मे प्रवेश कर जाती हैं | प्रतीक्षा , तुझे एक खुशख़बरी देनी थी | इच्छा, मुझे पता है| प्रतीक्षा आश्चर्य से इच्छा की तरफ देखती हुई | इच्छा ,अरे हाँ !! यही न बिन्नी के पापा घर आ रहे हैं | प्रतीक्षा तुझे कैसे पता?? इच्छा तेरे चेहरे के भाव पतिदेव की बात करने से पहले ही सूचना दे जाते हैं |प्रतीक्षा शर्मीले अन्दाज मे अपनी कोहनी से इच्छा को ठुनकी मारती हुई , बड़ी आई चेहरा पढ़ने वाली | प्रतीक्षा घर के कुछ जरूरी सामान के साथ पति के लिए कुछ कपड़े खरीदकर , दोनो बाहर आ जातीं हैं | प्रतीक्षा सामान गाड़ी मे रखते हुए ,
अभी तुझे साथ चलने के लिए कहुँगी तो तू मना कर देगी ?यह मै जानता हूँ | लेकिन अगले मन्डे तुझे हर हाल मे आना है| इच्छा , ओके बाबा ठीक है हर हाल मे आऊँगी, यमराज लेने आये तब भी उनसे कहुँगी, भई! थोड़ा रूको अभी मुझे मेरी प्यारी सहेली के घर से होकर आने दो | कार की डिग्गी बन्द करते हुए धत्त ! बेकार की बात की , तो मारूँगी तुझे! | प्रतीक्षा कार का गेट खोल अन्दर बैठती हुई, इच्छा नेक्स्ट मंन्डे तुझे आना है | कार दूर जाने से पहले आखिरी शब्द भूलना नही | इच्छा भी आटो कर अपने आवास के लिए चल पड़ती हैं | ऑटो वाले को पैसे दे बिदाकर वह जैसे -जैसे सीढ़ियाँ चढ़ती है उसे कुछ अजीब सा आभास होता है , अचानक उसकी नजर सीढ़ी पर पड़े ब्रेसलेट , बैग के बकल उसके एक सीढ़ी ऊपर रबर बैंड मे लिपटा बालों का गुच्छा किसी अप्रिय घटना की ओर संकेत कर रहा था , उसे उठाकर देखती है , कि अचानक उसके माथे पर कई सिलवटे एकसाथ उभर आती हैं | माथे से टपकता पसीना उसकी बेचैनी को बयान कर रहा था, पैरो की गति धीमी मानो बिना ऊपर गये ही लौट जाना चाह रही हों , किन्तु लौटकर जाती भी तो कहाँ, मुश्किलोंसे भागकर मुश्किलों से पीछा छुड़ाया जा सकता है क्या ? मन मे यह विचार करती हुई इच्छा डोर के पास पहुँच जाती है, बड़ी मुश्किल से इच्छा का हाथ डोरबेल तक पहुँचता है, मानो डोरबेल बजाते ही ब्लास्ट होकर पूरी बिल्डिंग ही उड़ जायेगी | बहुत देर तक बेल बजाने पर भी कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर इच्छा को घबराहट सी होने लगी, उषा ठीक तो होगी न ? न जाने उसके साथ क्या हुआ होगा खुद से ही ढेर सारे सवाल करती हुई , अनहोनी की आशंका मन मे दबाये अब उसका हाथ और भी तेजी से डोरबेल को दबाने लगा | अचानक उसे ध्यान आया, बैग से मोबाइल निकाल जैसे ही सौ नंबर डायल कर पुलिस को फोन करने ही वाली थी कि, तभी गेट खुल जाता है |सामने उषा खड़ी बाल बिखरे, जैसे किसी ने तेजी से खींचा हो , सूजी हुई आँखे ,होठ के किनारे खरोंच जैसे जख्म से सूज गये थे, आँखों के नीचे की हड्डी पर नील पड़ा हुआ | जो किसी गंभीर हादसे का संकेत दे रही थी| वैसे अन्दर का नजारा सामान्य ही था , इच्छा क्या हुआ उषा?? उषा इच्छा से लिपट जोर -जोर से रोने लगी | इच्छा उसे सम्भालती हुई पलंग पर बैठाती है, सामने टेबल पर रख्खे जग से ग्लास मे पानी डाल, उषा के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुये पानी का ग्लास आगे बढ़ाती हुई पीने को कहती है | मुँह से ग्लास लगाते ही उषा फिर से फट पड़ती है, इच्छा उसे चुप कराती सिर, पीठ पर हाथ फेरते हुए बोली, मै हूँ न ! मै हूँ! | थोड़ी देर पश्चात समान्य होने पर, इच्छा पूँछती है | अब बता क्या हुआ? उषा, मैने एटीएम से पैसे निकाले पच्चीस हजार रुपये | वही से एक मेरे पीछे लग गया , आभास तब हुआ जब मै घर तक पहुँच गई थी , जैसे ही मैने सीढ़ी पर पैर रख्खा किसी ने पीछे से पर्स खींचने की कोशिश की हाँलाकि, मै बचाने मे कामयाब रही जैसे ही दो सीढ़ी पार कर तीसरी पर पैर रख्खा तभी, फिर किसी ने मेरा पर्स खीचने की कोशिश की और मुझपर हाथों से हमला कर छीनना चाहा | इच्छा, फिर??
मैने भी दोनो हाथ से अपने बैग को कसकर पकड़ा और लातों से उसे मारने लगी उसने मेरे बाल खींच लिये लेकिन मैने लात चलाना नही छोड़ा | अन्त मे वह भाग गया | इच्छा, और पैसे?? उषा, पैसे मेरे पास है | इच्छा एक संतुष्टि भरे मुस्कान के साथ उषा यार! तू तो बड़ी बहादुर निकली!! | मुझे तुझ पर गर्व है | उषा, ऐसा नही है इच्छा! हालात इंसान को हिम्मती बना देते है |मै बहुत डरपोक लड़की हूँ | इन पैसे ने ही मुझे हिम्मत दी ! | तुझे पता है इच्छा ? यह पैसे कितने जरूरी है मेरे परिवार के लिए | मेरे पिता जी की बचपन मे ही मौत हो गई | वे शराब के आदी थे | उस समय हमारे घर के हालात बहुत खराब थे , माँ ज्यादा पढ़ी लिखी नही थी , इसलिए घरो मे काम कर कपड़े सीकर हम भाई बहनो को पढ़ाया | घर मे सबसे बड़ी मै हूँ और भाई सबसे छोटा | बहन की शगाई होने वाली है | एटीएम से जो पैसे निकाले थे वह लड़के की रिंग के लिए सुनार को देने थे | इच्छा घर में तू सबसे बड़ी है तो , बहन की शादी पहले क्यों?? इसके दो कारण हैं | पहला मै कभी शादी नही करूँगी | इच्छा , क्यों ? उषा, शादी जैसी व्यवस्था पर मुझे विश्वास नही |दूसरा बहन की शादी भाई की पढ़ाई , माँ का इलाज सब मुझ पर ही निर्भर हैं | माँ को मै कभी किसी के भरोसे नही छोड़ सकती , और न ही मेरे नसीब इतने ऊँचे हैं कि , कोई मेरी माँ को अपनी माँ समझकर मुझे अपने जीवन साथी के रूप मे स्वीकार करे, इच्छा ! मेरी माँ ने बचपन से लेकर जवानी तक बहुत दुःख सहे है | अब बुढ़ापे मे उन्हें कोई तकलीफ नही होने दूँगी मै | इच्छा गर्व से आह्लादित हल्की मुस्कान के साथ उषा के हाथ को चूमती हुई मुझे तुझ पर गर्व है | मुझे नही पता था कि, मै एक ऐसी बहादुर लड़की के साथ रह रही हूँ जो , मुश्किल हालात के दाँत तोड़ देने मे सक्षम है| खैर! तूने उसका चेहरा देखा है? और गार्ड कहाँ था ? उषा, नही!! उसने मुँह पर कपड़ा बाँध रखा था | उस समय गेट पर कोई नही था | इच्छा ऐसा दुबारा न हो इसके लिए तो कुछ करना पड़ेगा | उषा, हाँ! लेकिन क्या करेगी तू ?? सन्डे ऑफिस की छुट्टी रहेगी , तब हम इस सोसाइटी के अध्यक्ष से बात करेंगे |क्रमशः