Hruday Parivartan in Hindi Motivational Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | हृदय परिवर्तन

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हृदय परिवर्तन

हृदय परिवर्तन

सुरेश, महेश और राकेश तीनों मित्र थे। वे कक्षा दसवीं के छात्र थे। तीनों बहुत शरारती और उद्दण्ड थे। उनके शिक्षक, अभिभावक और साथी सभी उनसे परेशान रहते थे। शिक्षकों द्वारा उन्हें प्रायः दण्डित किया जाता रहता था किन्तु इसका कोई प्रभाव उन पर दिखलाई नहीं देता था।

शाला में नये प्रधानाचार्य आये तो इन तीनों की शिकायत उनके पास तक भी पहुँची। उन्होंने तीनों के विषय मे अच्छी तरह से जांच पड़ताल करने के बाद उन्हें अपने कक्ष में बुलवाया।

शाला का चपरासी मोहन उनके पास गया और बोला प्राचार्य जी ने तुम तीनों को अपने पास बुलाया है।

फरमान सुनकर वे चौके! आज तो हमने ऐसा कोई कार्य किया ही नहीं है जो हमें बुलवाया जाए। उन्होंने मोहन से पूछा किसलिये बुलवाया है?

मुझे नहीं पता। आप लोग स्वयं जानो। उनने मुझसे तुम लोगों को बुलाने कहा है इसलिये मैं बुलाने आया हूँ। आगे तुम जानो और तुम्हारा काम जाने। चपरासी भी उनकी शरारतों से त्रस्त था इसलिये उपेक्षा भरे लहजे में उसने जवाब दिया।

वे सोच विचार में डूबे हुए प्राचार्य कक्ष के सामने पहुँचे और बोले- मे आई कम इन सर?

प्राचार्य जी ने सिर के इशारे से उन्हें अनुमति दी। उनके भीतर आने पर उन्होंने तीनों के हाथों में एक-एक कागज की शीट पकड़ाई और बोले- मैं चाहता हूँ तुम तीनों यहीं बैठकर इस पर माँ के विषय में अपने विचार लिख कर मुझे दो। तुम्हें अपनी स्वयं की माँ के लिये ही लिखना है कि उसके विषय में तुम क्या सोचते हो?

प्रधानाचार्य के इस व्यवहार से वे अचंभित थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि जो कुछ उनसे कहा जा रहा है वह क्यों कहा जा रहा है। सुरेश की माँ का निधन हो चुका था। उसने अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा-

उसकी माँ की मुस्कराहट उसके अंतःकरण में चेतना जाग्रत करती थी और उसका आना उसे प्रेरणा देता था एवं दीपक के समान अंतः मन को प्रकाशित करता था। पता ही नहीं चला वह कब और कैसे अनन्त में विलीन हो गई जहां पर न ही हमारा जाना संभव है और न ही अब उसका यहां आना हो सकेगा। दिन-रात सूर्योदय और सूर्यास्त वैसा ही होता है किन्तु माँ तेरा न होना हमें विरह और वेदना का अहसास कराता है। अब तुम्हारी यादें ही जीवन को प्रेरणा देती हैं। सदाचार व सहृदयता से जीवन जीने की राह दिखलाती है।

महेश ने अपने विचार इन शब्दों में व्यक्त किये- माँ की ममता और त्याग का मूल्य मानव तो क्या परमात्मा भी नहीं कर सकता। वह हमेशा स्नेह व प्यार से आदर्श जीवन की शिक्षा देती रहती है। यही हमें जीवन में सफलता की राह दिखलाती है। हमारी नादानियों को वह माफ करती है। हमारी चंचलता, हठ व शरारतें वह सहनशीलता की प्रतिमूर्ति के समान स्वीकार करती है। उसकी अंतरात्मा के ममत्व में जीवन के हर दुख का समाधान है। वह चाहती है कि हम अपने पैरों पर खड़े होकर स्वाबलंबी बनकर जीवन यापन करें।

राकेश की माँ का निधन भी कुछ साल पहले हो चुका था। राकेश बहुत भावुक था। उसका मत था कि माँ का स्नेह व प्यार हमें स्वर्ग की अनुभूति देता है। उसका प्रेममय आशीष जीवन में स्फूर्ति प्रदान करता है। वह हमेशा कहती थी कि जब तक सांस है तब तक जीवन की आस है। चिन्ता कभी नहीं करना चाहिए। यह किसी समस्या का निदान नहीं है। इससे परेशानियां और बढ़कर हमें दिग्भ्रमित कर देती हैं। हमें अपने कर्मों का प्रतिफल तो भोगना ही होता है इससे मुक्त कोई नहीं हो सकता है। अपने कर्तव्यों को पूरा करते हुए पराक्रमी एवं संघर्षषील बनो। तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। जो हार गया उसका अस्तित्व समाप्त हो गया। एक दिन उसकी सांसों का सूर्यास्त हो रहा था। हम सभी स्तब्ध और विवेक शून्य होकर अपने को बेबस और लाचार अनुभव कर रहे थे। वह हमारे सामने ही अनन्त की ओर चली गई और यही था जीवन का यथार्थ। मुझे आज भी उसकी याद है जब मैं रोता था तो वो परेशान और जब मैं हंसता था वह खुशी से फूल जाती थी। वह हमें सदाचार, सद्व्यवहार और सद्कर्म का पाठ पढ़ाती थी। वह पीड़ित मानवता की सेवा तथा राष्ट्र प्रेम की शिक्षा देती थी।

इतना लिखते-लिखते वह भाव विह्वल हो गया और आगे कुछ भी नहीं लिख पाया। उसकी आंखों की कोरें गीली हो गईं थी। तीनों ने अपने-अपने पन्ने उन्हें सौंप दिये और उनके इशारे पर कक्ष से बाहर चले गये।

दूसरे दिन प्रार्थना के समय प्रधानाचार्य ने उन्हें सबके सामने बुलवाया। उसके बाद उनके लिखे हुए वे पृष्ठ उन्हें देकर कहा कि वे माइक के सामने उन्हें पढ़कर सारे विद्यार्थियों को सुनाएं। तीनों ने उनके आदेश का पालन किया। तीनों ने एक के बाद एक अपने लिखे हुए वे वक्तव्य पढ़कर पूरी शाला को सुनाए। उनके विचारों को सुनकर पूरी एसेम्बली में सन्नाटा छाया हुआ था, तभी प्राचार्य जी माइक के सामने आये। उन्होंने तीनों के विचारों पर उनकी प्रषंसा करते हुए प्रसन्नता व्यक्त ही और अपनी ओर से उन्हें पुरूस्कृत किया। जब वे पुरूस्कार ले रहे थे तो पूरी शाला में तालियों की आवाज गूंज रही थी।

इस घटनाक्रम से तीनों छात्र हत्प्रभ थे। उन्होंने प्राचार्य के चरण स्पर्श किये। प्रधानाचार्य ने उन्हें अपने गले लगा लिया और माइक पर ही बोले- मैं इस शाला को एक आदर्श शाला बनाना चाहता हूँ और मैं चाहता हूँ कि ये तीनों छात्र इस शाला के सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी का पुरूस्कार प्राप्त करें।

उनका हृदय परिवर्तन हो चुका था और उनके जीवन को एक नया रास्ता और नयी दिशा मिल चुकी थी।