anaitik - 3 in Hindi Fiction Stories by suraj sharma books and stories PDF | अनैतिक - ०३ किस्मत का खेल

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अनैतिक - ०३ किस्मत का खेल

मैंने तुरंत फोन रखा और माँ के पास जाकर पूछा, " किधर गए थे आप इतनी सुबह?

माँ ने प्लेट में ढोकला रखते हुए बोली, "क्या? क्या कहा सुबह? बेटा लगता है तूने अब तक बाहर नहीं देखा है, दोपहर के १२ बज रहे है और बाजू वाले दुबे आंटी है ना उनका कॉल आया था, कुछ काम था तो वहीं गई थी, उठ गया तू?

हां, वो कोई लड़की आयी थी, दरवाज़ की घंटी की आवाज़ से नींद खुल गई, और बॉस का कॉल भी आया था..

कल ही तो आया तू और आज बॉस ने काम के लिए कॉल भी कर दिया, वैसे कौन थी लड़की?

पता नहीं, मैंने थोड़ा धीरे से कहा..

क्या? वाह तुझे पता नहीं कौन थी और अंदर आने दिया.

आगे मै कुछ बोल पाता उसके पहले किसीने दरवाज़ पर दस्तक दी और पीछे से एक आवाज़ आई, जी मै अंदर आऊ?

मैंने उसे देखते हुए कहा, माँ यही थी...

माँ ने मेरी बात को सुना और मुस्कुराते हुए उस से कहा अंदर आ जाओ, और मै अपने रूम में चला गया..

थोडी देर बाद वो चली गई तब तक मै भी शॉवर लेकर हॉल में बैठा ही था कि उतने में पापा भी घर आ गए..

क्या पापा सुना है ना अपने कोरोना कितना खतरनाक है फिर भी बाहर जाते हो?

काम तो करना पड़ेगा ना छोटी, वैसे भी अभी अपने शहर में ज्यादा टेंशन वाली बात नहीं है..

और हम सब लंच करने बैठ गए, तभी मुझे वो लड़की याद आयी और मैंने माँ से पूछा,

कौन थी वो लड़की, माँ?

तेरी दोस्त है ना रीना, उसको भाभी है...

अच्छा निकेत भैय्या ने शादी कर ली, अपने मुझे बताया नहीं..

वो अलग कहानी है बेटा बाद में बताऊंगी कहकर माँ ने बात बदल दी, मैंने भी सोचा ठीक है कोई बात नहीं, ज्यादा कुछ पूछे बिना हमने खाना खतम किए और इधर उधर की बाते करने लगे, तभी पापा ने टीवी लगायी..

"घर बैठे हो, तो अब हम आपके लिए ला रहे है ऑनलाइन गेम्स, जिसमे आप घर बैठे लाखो कामा सकते हो"...

ये सुनते ही मुझे इतने जोर से हँसी आई की माँ पापा दोनों मेरे तरफ देखने लगे

इसमे हँसने जैसा क्या है?

पापा, अपने कबी सुना है की गेम खेलो और पैसे कमाओ

सुना तो नहीं है पर हाँ अपनी गली का वो दिनकर है ना, उसने कहा था उसे ऐसे ही किसी गेम में पैसे कमाए ..

क्या पापा आप भी यकीन मानतो हो ये सब बातो में अगर ऐसे ही पैसे कम सकते तो हर कोई बस गेम ही खेलता

पापा ने १ मिनिट कुछ सोचा और फिर हलकी मुस्कान के साथ बोले "अगर किस्मत में लिखा हो न तो कैसे भी मिल ही जाता है"

पहले तो मैंने भी सोचा ये क्या बकवास है गेम खेलो और पैसे कमाओ, भला ऐसा भी कही होता है क्या? की कोई खेलने के पैसे दे. पर पता नहीं क्यों पापा की बात ने मुझे अन्दर तक झंझोलकर रख दिया और दिमाग ने कहा आजमाने में क्या दिक्कत है, अपना शायद कुछ जुगाड़ ही हो जाये बस फिर क्या था मैंने सोचा चलो कोशिश करने में क्या बुराई है देखते है सच है सिर्फ एक मजाक..

अगले दिन मुझे काम कम था तो मैंने जल्दी से अपना काम और खाना ख़त्म किया और अपने कमरे में आकर मोबाइल में मैंने वो गेम इन्स्टाल कर लिया. पैसे कमाने का मौका था कैसे छोड़ सकता हूँ..वैसे आपको बता दू की मुझे गेम्स में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं थी बस मैंने सोचा वैसे भी काम करके परेशान हो गया हूँ तो चलो इसे ही देखते है आखिर है क्या..

वैसे मैंने जर्मनी में दोस्तों से इसके बारे मे सुना तो था पर उन सबको तो बस सिर्फ लड़कियों से बात करनी रहती इसीलिए खेलते थे, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था की वो हार रहे है या जीत रहे है वैसे भी सही तो है कौनसा ये गेम खेलकर हम लाखो कमाने वाले थे...जैसे ही गेम मोबाइल में इन्स्टाल हो गया मैंने अपने फेसबुक अकाउंट से लॉगइन किया और देखने लग गया की क्या है ये और कैसे खेलते है. सबसे पहला गेम था लूडो..मुझे आज भी याद है बचपन में जब मै माँ के साथ मामा के यहाँ जाता था तब हम वह लूडो खेला करते पर अब तो शायद मुझे ये भी याद नही की उसे नियम क्या होते थे....