अरमान दुल्हन के भाग 8
सरजू ने डरते डरते भाभी से कहा -"भाभी वा (वो)कविता सै नै( है ना) ?"
"कोण (कौन) कविता ?"
"वा बूआ संतो की भतीजी"
"हां, फेर के(फिर क्या) था?"
"भाभी गुस्सा मत ना होईये। वा मन्नै घणी आच्छी लागै सै। मेरा ब्याह करवादे उसकी गैल(साथ) ।कसम तैं तेरे गुण कदे न्हीं भूलूँगा।"
"तैं मन्नै पिटवावैगा!!!"
"भाभी प्लीज़ ।"और भाभी के पांव पकड़ कर बूरी तरह से रोने लगता है। भाभी उसे चुप करवाती है और वादा करती है कि मैं कोशिश करूंगी।तुम्हारे भईया को आने दो उनसे बात करके देखती हूँ।
शाम को सत्ते घर लौटता है तो सरजू की भाभी उन्हें खाना परोसती है।और बातों बातों मे सरजू और कविता के रिश्ते के बाबत बात करती है। सत्ते को भी बात जंच जाती है और वह खाना खाकर कविता की बूआ और फूफाजी से बात करने चला जाता है।
"काका रै ....घरां ए सो के (घर पर हैं क्या)?"
"कुणसा सै रै ?अंदर से कविता की बूआ ने पूछा।
"काकी मै सूं (हूँ) सत्ते।"
"आज्या भाई सत्ते ।"
कविता के फूफाजी ने बैठने का इशारा किया।सत्ते हुक्के का कस खींचकर धूंआ हवा में उड़ाकर कहता है-"काका मैं तो एक काम आया था।"
"हां भाई बोल के काम था?"
"काका आपणै वा छोरी सै नै, मेरी काकी की भतीजी कविता । उस खातर रिश्ते लेके आया सूं। मेरा छोटणिया मामा जो गुजर लिया उसका छोरा सै उसकी खातर। सरकारी नौकरी मै सै। छोरी राज करैगी।अर जोट बी खूब मिलै सै।"
"ठीक सै भाई सत्ते पूछल्यांगे । लै मैं काल ए जाऊं सूं, शुभ दिन मै देर क्यांकि?"
"ठीक सै काका फेर मैं चालुं सूं।"
अगले ही दिन कविता का फूफाजी कविता के रिश्ते की बात करने चले जाते हैं।
"राम-राम सुखीराम जी। और सब बढिय़ा सै?परिवार राज्जी सै?"
"राम-राम जी सब बढिया सै।आप बताओ आपणै सब ठीक ठाक सै?"
" हां जी कति ( बिलकुल) सारे राज्जी सैं।"
"न्यु अचानक क्युकर आणा होया?"
"मैं तो आपणै कविता के रिश्ते खातर आया सूं।"
"आच्छया , बात न्यु सै ओम जी मन्नै प्रेमप्रकाश तैं बात चला राख्खी सै उड़तैं एक बै जवाब आज्यागा फेर किम्मे कह सकूं सूं। वैसे आप किसका रिश्ता लेके आये सो?"
आपणा पड़ोसी न्हीं सै वो सत्ते उसके मामा का छोट (लड़का)सै। नौकरी बी लागरया सै।जमीन बी ठीक सै। बढिया परिवार सै।"
"ठीक सै एक बै उड़ तैं जवाब आज्यागा फेर सोचांगे ।"
शाम को प्रेमप्रकाश भी आ जाता है और वो अपनी मजबूरी बताता है। इधर फूफाजी का रिश्ता लेकर आना और प्रेम प्रकाश का रिश्ते से मना करना दोनों ही कविता के लिए खुशी की बात थी। वह अंदर ही अंदर बहुत खुश थी आखिर भगवान ने उसकी सुन ली थी।
वह आज बहुत खुश थी ।आज खुशी के मारे आंखों से नींद गायब थी। वह अपनी खुशी किसी से बांटना चाहती थी मगर बांटे किससे?
"भाभी को बताऊँ ' नहीं .....किसको बताऊँ फिर? "
सोचते सोचते ही सो गई थी वह आज बहुत सोई थी वह। घर में आज उसे किसी ने जगाया भी नहीं। भाई की आवाज कानों में पड़ी तो वह जागी।
"ए बिटोड़ा सी कद की पड़ी सै? उठले नै ! सूरज देख कति सिर पै आ लिया सै । शर्म ना आती तन्नै? सासू पै गाळ दिवावैगी हमनै।"
"सुरेश को देखकर कसकर बांथ भर लेती है और आंखों से आंसू छलछला आते हैं। वह कुछ समझ नहीं पाता कविता क्यों रो रही है।
"ए लचरी सी के होया तेरै, क्यातैं रोई? , किसनै के कह दिया मेरी लाडो तईं?"
"भाई खुश खबरी सै ,फुफा उसी छोरे का रिश्ता लेके आया सै। अर वो प्रेमप्रकाश अंकल रिश्ते खातर नाटग्या।"
"ओहो ज्यातैं ए या खुशी की गंगा जमना बहवै थी के?"
ओमप्रकाश घर जाकर बूआ और सत्ते को खुश खबरी देता है।
रिश्ते की हां जानकार सरजू भी बहुत खुश होता है।
सरजू की मां और बहन इस रिश्ते को स्वीकार करेंगी? जानने के लिए पढिए अगला भाग
क्रमशः
एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा